"श्री.तुलसीदासजी से एक भक्त ने पूछा कि महाराज आप श्रीराम के इतने गुणगान करते हैं , क्या कभी खुद श्रीराम ने आपको दर्शन दिए हैं ?
तुलसीदास बोले :- " हां "
भक्त :- महाराज क्या आप मुझे भी दर्शन करा देंगे ?
तुलसीदास :- " हां अवश्य "
तुलसीदास
जी ने ऐसा मार्ग दिखाया कि एक गणित का विद्वान भी चकित हो जाए !
तुलसीदास जी ने कहा,"अरे भाई यह बहुत ही आसान है" तुम श्रीराम के दर्शन स्वयं अपने अंदर ही प्राप्त कर सकते हो |
हर नाम के अंत में राम का ही नाम है।
इसे समझने के लिए तुम्हे एक "सूत्रश्लोक "
बताता हूँ।
यह सूत्र किसी के भी नाम में लागू होता है !
भक्त :-" कौनसा सूत्र महाराज ?"
तुलसीदास :- यह सूत्र है |
"नाम चतुर्गुण पंचतत्व मिलन तासां द्विगुण प्रमाण ||
तुलसी अष्ट सोभाग्ये अंत मे शेष राम ही राम" ||
इस सूत्र के अनुसार
अब हम किसी का भी नाम ले और उसके अक्षरों की गिनती
करें..
1)उस
गिनती को (चतुर्गुण) 4
से गुणाकार करें
2) उसमें
(पंचतत्व मिलन) 5
मिला लें
3) फिर
उसे (द्विगुण प्रमाण) दुगना करें
4)आई
हुई संख्या को (अष्ट सो भागे) 8 से विभाजित करें ।
" संख्या पूर्ण विभाजित नहीं होगी और हमेशा २ शेष रहेगा |
यह 2 ही "राम" है। यह 2 अंक ही " राम " अक्षर हैं।
विश्वास नहीं हों रहा है ना ?
चलिए हम एक उदाहरण लेते हैं |
आप एक नाम लिखें, अक्षर
कितने भी हों
!
उदाहरण
निरंजन - 4 अक्षर
1) 4 से
गुणा करिए
4x4=16
2)5 जोड़िए 16+5=21
3) दुगने
करिए 21×2=42
4)8 से
विभाजन करने पर
42÷8= 5 पूर्ण अंक, शेष
2
शेष हमेशा दो ही बचेंगे,यह बचे 2 अर्थात् - "राम" !
विशेष यह है कि सूत्रश्लोक की संख्याओं को
तुलसीदासजी ने विशेष महत्व दिया है !
1) चतुर्गुण अर्थात् 4 पुरुषार्थ :- धर्म, अर्थ, काम,मोक्ष !
2) पंचतत्व अर्थात् 5 पंचमहाभौतिक :- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश
3) द्विगुण प्रमाण अर्थात् 2 माया व ब्रह्म
4) अष्ट सो भागे अर्थात् 8 आठ प्रकार की लक्ष्मी (आग्घ, विद्या, सौभाग्य, अमृत, काम, सत्य, भोग आणि योग लक्ष्मी ) अथवा तो अष्ठधा प्रकृति।
अब यदि हम सभी अपने नाम की जांच इस सूत्र के अनुसार करें तो आश्चर्यचकित रह जाएंगे कि हमेशा शेष 2 ही प्राप्त होगा |
इसी से हमें श्री तुलसीदास जी की बुद्धिमानी और अनंत रामभक्ति का ज्ञान होता है !
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