मंगलवार, 4 जुलाई 2023

6 श्लोकी सम्पूर्ण गृह वास्तु


ईशान्यां देवतागृहं पूर्वस्यां स्नानमन्दिरम् ।

आग्नेयां पाक सदनं भाण्डारं गृहमुत्तरे ॥1॥

आग्नेयपूर्वयोर्मध्ये दधिमन्थन- मन्दिरम् ।

अग्निप्रेतेशयोमैध्ये आज्यगेहं प्रशस्यते ॥2॥

चाम्यनैऋत्ययोर्मध्ये पुरीषत्याग मन्दिरम् ।

नैर्ऋतयाम्बुपयोर्मध्ये विद्याभ्यासस्य मन्दिरम् ॥3॥

पश्चिमानिलयोर्मध्ये रोदनार्थं गहं स्मृतम् ।

वायव्योत्तरयोर्मध्ये रतिगेहं प्रशस्यते ॥4॥

उत्तरेशानयोर्मध्ये औषाधार्थं तु कारयेत् ।

नैर्ऋत्यां सूतिकागेहं नृपाणां भूतिमिच्छता ॥5॥

आसन्नप्रसवे मासि कुर्याच्चैव विशेषतः ।

तद्वत् प्रसवकाले स्यादिति शास्त्रेषु निश्चयः ॥6॥

अर्थात् : ईशान कोण में देवता का गृह, पूर्व दिशा में स्नानगृह, अग्नि कोण में रसोई का गृह, उत्तर में भंडारगृह, अग्निकोण और पूर्व दिशा के बीच में दूध-दही मथने का गृह अथवा जनरेटर बैटरी, इनवर्टर का स्थान, अग्नि कोण अथवा दिशा के मध्य में तेल/घी का गृह, दक्षिण दिशा और नैऋत्य कोण के मध्य में शौचालय जाने का स्थान, नैऋत्य कोण व पश्चिम दिशा के मध्य में विद्याभ्यास का गृह, पश्चिम और वायव्य कोण के मध्य में रोदन/ पीड़ा निवारण का गृह, वायव्य और उत्तर दिशा के मध्य में रति करने का गृह, उत्तर दिशा और ईशान के मध्य में औषधि के लिए गृह, नैऋत्य कोण में सूतिका (बच्चा होने के लिए) गृह बनाना चाहिए । यह सूतिका गृह प्रसव के आसन्न मास में बनाना चाहिए । ऐसा शास्त्र में निश्चित है । 

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