बुधवार, 29 जून 2016

चन्द्र लग्न ( मनकारक )

चन्द्र लग्न ( मनकारक )

हम सब जानते हैं की चन्द्र तीव्रगामी गृह हैं जिसके कई चेहरे हैं और प्रत्येक चेहरा विविधता लिए हुये हैं कर्क राशि का स्वामी होकर चन्द्र वृष मे ऊंच तथा वृश्चिक मे नीच का होता हैं हमारे व्यक्तित्व का भावनात्मक पक्ष जो हमारे निर्णय,उग्रता,पसंद-नापसंद,सोच इत्यादि को दर्शाता हैं इसी चन्द्र से देखा जाता हैं |

चन्द्र जलीय ग्रह हैं जब इसका प्रभाक 1,4,7,10 राशियो पर होता हैं तब जातक मे शुद्धता व ईमानदारी होती हैं मन शांत व स्थिर होता हैं पूर्णता हेतु प्रेम होता हैं आंतरिक सोच पर बाहरी सोच का नियंत्रण रहता हैं मानसिकता साफ व वैज्ञानिकता लिए होती हैं परंतु पूर्वाभास की क्षमता कम होती हैं |

मेष राशि मे करिश्मा व संस्कार कम परंतु नेत्रत्वता व अग्नि अधिक होती हैं कर्क मे स्वयं को निखारने की क्षमता अथवा तरक्की की चाहत अधिक होती हैं तुला मे चन्द्र होतो जातक शुद्ध व नपा तुला होता हैं उसमे सुंदरता व सौहादर्ता होती हैं भावनाए शुद्ध व मस्तिष्क साफ होता हैं मकर मे होतो भावनाए नियंत्रित परंतु समय समय पर बलवती होती हैं बुद्दि व लगाव मे संबंध होता हैं संस्थागत प्रकृति सबसे पहले होती हैं |

स्थिर राशियो 2,5,8,11 मे से वृष मे चन्द्र की अधिकतम शक्ति तथा वृश्चिक मे न्यूनतम शक्ति बताती हैं पृथ्वी तत्व होने पर वृष मे भावनाए गहरी होती हैं परंतु पूर्वाभास क्षमता नहीं होती सभी स्थिर राशियो मे इच्छाए बहुत होती हैं सिंह राशि एक तरफ तो निस्वार्थ तथा दूसरी तरफ आलसी व दिन मे सपने देखने वाली होती हैं | कुम्भ राशि भावनाओ की रहस्यमय प्रकृति बताती हैं वृश्चिक राशि मंगल के प्रभाव मे होने से शंकालु मन,संवेदनशीलता प्रेम व घृणा संबंधी जो भ्रम होते हैं वह कुम्भ राशि मे समाप्त होने की प्रवृति बताते हैं |

अंत मे हम 3,6,9,12 राशियो मे आते हैं जिनमे चन्द्र काफी नपा तुला प्रभाव देते हैं बुध की मिथुन व कन्या राशि मे शुभ होने पर यह भावनाओ को नियंत्रित कर स्थिरता देते हैं जिससे जातक की तामसिकता रुक जाती हैं वही अशुभ होने पर जातक को भ्रमित व आपराधिक प्रवृति भी प्रदान कर देते हैं एक तरफ यह जातक को ज्ञानी व विनम्र बनाते हैं वही दूसरी और घमंडी व घुर्त भी बनाते हैं आंतरिक व बाहरी मन मे संबंध होतो शुभता रहती हैं मीन मे दोहरा जल प्रभाव रहने से यह जातक को स्वप्न द्र्स्टा बनाता हैं जिससे जहां नए आविष्कार जन्म लेते हैं वही नए भ्रम भी होते हैं मुड़ीपना व धैर्यहीनता इन चारो राशियो मे पायी जाती हैं |

पंचम भाव जातक की सोच व भावनाओ का होता हैं आंतरिक सोच का भाव 12वा होता हैं जहां इन दोनों भावो का अशुभ संबंध जातक को नैतिकता से हटाता हैं वही शुभ होने पर जातक को स्वयं के प्रति जागरूकता भी देता हैं |

सप्तम भाव अभिव्यक्ति का भाव होता हैं और इस भाव से चन्द्र व पंचम-पंचमेश का संबंध जातक को कलाकार बनाता हैं यह संबंध जितना अच्छा होता हैं जातक उतना ही अच्छा व बेहतरीन कलाकार होता हैं |

चन्द्र का अष्टम भाव मे होना जातक की सही ग़लत भावनाओ को छुपाने का प्रयास बताता हैं यदि पंचमेश चन्द्र अथवा अष्टमेश से संबन्धित होतो जातका की भावनाए होकर भी व्यक्त नहीं हो पाती और इनका  संबंध ना होतो जातक भावनाओ को समझ नहीं पाता अथवा जानता ही नहीं |

12वे भाव का चन्द्र जातक को जल्दबाज़ी देता हैं उसके निर्णय चाहे अच्छे-बुरे अथवा सही-ग़लत हो तुरंत होते हैं | चन्द्र राहू केतू के प्रभाव मे होतो उत्सुकता बढाता हैं जो कलात्मकता के साथ साथ भ्रम मे भी भी डाल देती हैं  |


राशि के अलावा चन्द्र की स्थिति भी बहुत महत्व रखती हैं चन्द्र नक्षत्र का स्वामी भी जातक के जीवन मे अपना बहुत प्रभाव रखता हैं चन्द्र का वक्री ग्रह के नक्षत्र मे होना जातक की संवेदनशीलता को बढ़ा देता हैं जिससे जातक अनिद्रा,टेलीपेथी जैसे कार्यो मे पारंगत होता हैं | चन्द्र दशा जातक को कल्पनाशीलता व भावुकता देती हैं जो जातक के जीवन को बदलते की क्षमता रखती हैं संभवत: इसी कारण हमारे विद्वानो ने चन्द्र को लग्न के बाद दूसरा लग्न माना हैं |

शनिवार, 25 जून 2016

फलित ज्योतिष मे सूर्य चन्द्र

फलित ज्योतिष मे सूर्य चन्द्र

फलित करना ईश्वरीय वरदान के अलावा विषय की सम्पूर्ण जानकारी समझ व अध्ययन क्षमता से जुड़ा होता हैं जो काफी श्रम व अनुभव से प्राप्त होता हैं | दैवज्ञ विलास नामक ग्रंथ मे विभिन्न तिथियो को जन्मे जातको के बारे मे जानकारी दी गयी हैं जिसमे कहा गया हैं की चतुर्थी (जब चन्द्र सूर्य से 156 से 168 अंश के मध्य होता हैं ) को जन्म जातक क्रूर कर्म करने को तत्पर,असंभव को प्राप्त करने वाला,दूसरों की मदद करने का ढोंग करने वाला,दूसरों को नुकसान पहुंचाने वाला बदजूबान व नैतिकता से परे होता हैं | इस लेख मे हम सूर्य चन्द्र की इसी दूरी ( तिथि ) के विषय मे जानकारी दे रहे हैं |

हमारे प्राचीन विद्वानो ने चन्द्र लग्न को भी लग्न के समान ही महत्व दिया हैं कुंडली मे बली चन्द्र जहा जातक को शुभता प्रदान कर मानसिक रूप से स्थिर बनाता हैं वही निर्बल चन्द्र जातक को मानसिक परेशानी से ग्रस्त,भयभीत व आश्रित बनाता हैं | मुख्य रूप से चन्द्र जहां दिमाग,बुद्दि,चेहरा व चेहरे व आँखों की चमक दर्शाता हैं वही सूर्य आत्मा,स्वास्थ्य व्यक्तित्व,हड्डीया व आँखें दर्शाता हैं इस कारण सूर्य चन्द्र पर शुभ प्रभाव जातक को शुभता तथा अशुभ प्रभाव जातक को अशुभता देता हैं |

अलग अलग तिथियो मे जन्म जातक को विभिन्न प्रकार की मानसिकता प्रदान करता हैं  किसी भी जातक के जीवन मे मानसिक द्वंद व परेशानी इसी सूर्य चन्द्र की दूरी (तिथि) पर आधारित होती हैं | अष्टमी,नवमी,चतुर्दशी,पुर्णिमा व अमावस्या का जन्म जातक विशेष को आंतरिक कलह व विरोधाभास जैसी परेशानी देता हैं यह प्रभाव चन्द्र से 6,7 व 8 भाव मे बैठे शुभ गृह द्वारा नियंत्रित किया जा सकता हैं ऐसे ही सूर्य चन्द्र की युति का प्रभाव अधियोग के कारण कम हो जाता हैं | सूर्य चंद्र की युति अथवा इनका सम सप्तक होना कुछ संवेदन क्षेत्र जैसे केन्द्र मे नहीं मे नहीं होना चाहिए जिससे यह अशुभता ही देता हैं इनमे से भी पूर्णमासी का जन्म दो भावो को तथा अमावस्या का जन्म एक ही भाव को प्रभावित करता हैं |जातक की जीवन की सफलता का अंदाज़ा उसकी कुंडली मे सूर्य चन्द्र की स्थिति के अनुसार ही लगाया जा सकता हैं क्यूंकी जीवन मे जातक को अपने ही अंत्रद्वंदो से उलझना पड़ता हैं जो सूर्य के प्रभावों मे आता हैं अव अन्य क्षेत्र जो सूर्य से देखे जाते हैं उनका संबंध लग्न व लग्नेश से भी देखा जाता हैं

चन्द्र जहां जातक की आदतों,मानसिकता,सोचने समझने की क्षमता ,सोच व याददाश्त इत्यादि का प्रतीक होता हैं वही सूर्य जातक की सत्यता,आत्मविश्वास,तेज,साहस,पुरुषार्थ आदि का प्रतीक होता हैं ऐसे मे यदि सूर्य चन्द्र स्वयं से 6/8 भावो मे होतो जातक विशेष की सफलता कड़ी मेहनत के बाद भी कम ही होती हैं जबकि इन दोनों के 2/12 होने पर तथा चन्द्र के आगे होने पर जातक काल्पनिक द्वंदों मे उलझा रहता हैं परंतु थोड़ा कामयाब अवश्य होता हैं |  

गुरुवार, 23 जून 2016

स्वयं सिद्द मुहूर्त

स्वयं सिद्द मुहूर्त

भारतीय विद्वानो ने किसी भी कार्य को करने के लिए साढ़े तीन तिथिया ऐसी बताई हैं जिनमे कोई भी कार्य किया जा सकता हैं ज्योतिष शास्त्र मे इसे साढ़े तीन मुहूर्त की संज्ञा दी गयी हैं यह तिथिया निम्न हैं |

1)चैत्र शुक्ल प्रतिपदा |

2)बैसाख शुक्ल तृतीया जिसे अक्षय तृतीया भी कहा जाता हैं |

3)आश्विन शुक्ल दशमी जिसमे विजय दशमी अथवा दशहरा भी कहते हैं |


4)दिवाली के प्रदोष काल का आधा भाग 

बुधवार, 22 जून 2016

श्रेष्ठ संतान कैसे पाये

श्रेष्ठ संतान कैसे पाये

भारतीय ज्योतिष के प्राचीन विद्वानो ने संतान प्राप्ति के कुछ विशेष अवसर व काल निर्धारण किए हैं जिससे की प्रत्येक जातक को उसकी आने वाली संतान अथवा भावी पीढ़ी के लिए बेहतरीन व सफलतम जीवन मिल सके | हजारो वर्षो के प्रमाणो ने साबित किया हैं की संयम,उचित समय,सात्विक मनोभावों से यदि स्त्री पुरुष रति क्रिया करे तो उसी भावना के अनुरूप उनकी कांतिवान,बुद्दिमान अथवा सर्वगुण संतान जन्म लेती हैं |

श्रेष्ठ संतान प्राप्ति हेतु स्त्री सहवास के संबंध मे काल,ऋतु,दिन,तिथि,समय तथा नक्षत्र आदि का उल्लेख हमारे प्राचीन शास्त्रो मे लिखा गया हैं भारतीय संस्कृति मे पुर्णिमा,अमावस्या,चतुर्दशी व अष्टमी को स्त्री सहवास के लिए वर्जित माना गया हैं ( जिसके पीछे वैज्ञानिक आधार भी हैं इन सभी दिनो सूर्य,चन्द्र व पृथ्वी एक ही रेखीय स्थिति मे होते हैं जिससे उनका परस्पर आकर्षण गुरुत्वाकर्षण के कारण अन्य दिनो के तुलना मे अधिक हो जाता हैं जिससे पृथ्वी पर रहने वालो मे रक्तचाप बढ्ने से उत्तेजना का प्रभाव ज़्यादा हो जाता हैं और जल प्रधान होने से हमारा शरीर का जीवन रस सही प्रकार से अपना कार्य नहीं कर पाता हैं )

कामशास्त्र के आचार्यो के अनुसार यदि संयम और शास्त्रानुसार गर्भाधान किया जाये तो मनवांछित संतान प्राप्त होती हैं जिसमे यह भी कहा गया हैं की रात्रि के चतुर्थ प्रहर के मैथुन से उत्पन्न संतान स्वस्थ,बुद्दिमान,धर्मपरायण व आज्ञाकारी होती हैं |
जीवविज्ञानिकों के अनुसार मनवांछित संतान प्राप्ति के लिए दिये गए कुछ सूत्र इस प्रकार से हैं |

1)ऋतुस्नान के आरंभिक दिनो मे किए गए गर्भाधान से कन्या व बाद के दिनो मे किए गए गर्भाधान से पुत्र की प्राप्ति होती हैं |

2) यदि गर्भाधान अथवा मैथुन के समय पुरुष जल्दी स्खलित होता हैं तो पुत्री की प्राप्ति और स्त्री जल्दी स्खलित होती हैं तो पुत्र की प्राप्ति होती हैं |

3)मंगल दोष से प्रभावित जातको की पहली संतान पुत्री होती हैं | ऐसा लगभग 80%लोगो मे सही पाया गया हैं |

4)पुरुष की आयु स्त्री से अधिक होने पर भी पुत्र प्राप्ति की संभावना ज़्यादा पायी जाती हैं ऐसा कई उदाहरणो मे सही पाया गया हैं ( संभवत: इसी कारण भारतीय समाज मे विवाह हेतु स्त्री को पुरुष से छोटा ही रखा जाता हैं )

5) ऋतुश्राव से चतुर्थ रात्रि तक गर्भाधान अनुचित माना गया हैं उसके बाद की सम रात्रि अर्थात 6,8,10,12,14,16 रात्रि मे किए गए गर्भाधान से पुत्र व विषम रात्री मे किए गर्भाधान से पुत्री की प्राप्ति होती हैं |


6)शुभ व अच्छे गर्भाधान के लिए दिनो मे सोमवार,गुरुवार व शुक्रवार,नक्षत्रो मे हस्त,श्रवण,पुनर्वसु,व मृगशिरा व लग्नों मे मंगल(1,8) व शनि(10,11) के लग्नों को छोड़कर सभी लग्न शुभ कहे गए हैं | 

बुधवार, 15 जून 2016

कुछ रोचक तथ्य

कुछ रोचक तथ्य

1)आपके जूतो के द्वारा लोग आपके विषय मे सबसे ज़्यादा आंकलन करते हैं इसलिए हमेशा अच्छे जूते ही पहने |

2)अगर आप प्रतिदिन 11 घंटे बैठकर काम करते हैं तो आपके अगले तीन वर्ष मे मर जाने की संभावना 50% हो जाती हैं |

3)दुनिया मे कम से कम 6 लोग बिलकुल आपके जैसे दिखते हैं और इस बात की 9% संभावना होती हैं की उनमे से कोई आपको कभी मिले |

4)तकिये के बिना सोना कमर दर्द मे राहत प्रदान करता हैं और आपकी रीढ़ को मजबूत रखता हैं |

5)व्यक्ति का कद उसके पिता से तथा वजन उसकी माता से परखा जाता हैं |

6)आपके शरीर का कोई भी हिस्सा अथवा अंग यदि सोया होतो आप उसे अपने सिर को हिलाकर जगा सकते हैं |
7)आप अपनी कोहनी को कभी चूम नहीं सकते |

8)मानव मस्तिष्क कभी भी इन तीन वस्तुओ को नकार नहीं सकता भोजन,आकर्षक लोग तथा खतरा |

9)दायें हाथ से काम करने वाले अपना भोजन दायें जबड़े से ज़्यादा खाते हैं |

10)प्रकृति मे सेबो की इतनी किस्मे हैं यदि हम प्रतिदिन एक नई किस्म खाये तब भी हमें उसकी 
पूरी किस्मों को खाने मे 20 वर्ष लगेंगे |

11)हम बिना खाना खाये हफ्तों जिंदा रह सकते हैं परंतु सोये बिना 11 दिन से ज़्यादा नहीं |

12)आइन्सटाइन के अनुसार यदि धरती पर मधुमक्खी ना हो तो 4 वर्ष के अंदर मानव जाति  भी नष्ट हो जाएगी |

13)जो लोग ज़्यादा हँसते हैं वह ज़्यादा स्वस्थ रहते हैं |

14)मानव मस्तिष्क विकिपीडिया से 5 गुना ज़्यादा जानकारिया रखने की क्षमता रखता हैं |

15)हमारा दाया पैर बाए पैर से ज़्यादा बड़ा होता हैं |

16)सोते समय हमारा कद बढ़ जाता हैं |

17)हम आँख खोलकर छींक नहीं सकते |

18)हमारे बाल मरने के बाद भी बढ़ते हैं |

19)दिमाग को काटने पर दर्द महसूस नहीं होता |

20)मानव मस्तिष्क स्वयं को समझ पाने मे अभी तक कामयाब नहीं हुआ हैं |



रविवार, 12 जून 2016

मुहूर्त ज्ञात करने की विधि

मुहूर्त ज्ञात करने की विधि

वार,नक्षत्र,तिथि एवं लग्न का योग कर 9 से भाग दे जो शेष आए उसका निम्न फल हो |

1)व्यवधान,भय,पीड़ा से ग्रसित

2)प्राकृतिक घटनाओ से विघ्न पड़े

3)सफलता मिलेगी

4)असफलता व अशुभता

5)शुभफल मिलेंगे

6)अशुभ फल मिलेंगे

7)सफलता व सिद्दी

8)रोग शोक संभावित

9)शुभ फल की सूचना

1)वार रविवार से गिने (1-7)

2)नक्षत्र अश्विनी से रेवती (1-27)

3)तिथि प्रथमा से पुर्णिमा (1-14)अमावस्या 30 मानी जाएगी |

4)लग्न मेष से मीन (1-12)


उदाहरण सोमवार,कृतिका नक्षत्र,प्रथमा तिथि और मेष लग्न होने पर मुहूर्त हुआ =2+3+1+1=7 अर्थात सफलता व सिद्दी मिलेगी |

शुक्रवार, 10 जून 2016

विवाह हेतु शुभाशुभ तिथि

विवाह हेतु शुभाशुभ तिथि

1)प्रथमा-वर पक्ष के लिए कन्या दुखो को जन्म देती हैं |

2)द्वितीय-वर को कन्या से अत्यधिक प्रीति मिले जीवन प्रेममय हो |

3)तृतीया –कन्या सौभाग्यवती रहे |

4)चतुर्थी-कन्या वर के धन का नाश करे |

5)पंचमी-दोनों का सुखमय जीवन हो |

6)षष्ठी-विवाह होते ही हर कार्य मे बाधा होने लगे |

7)सप्तमी-हर प्रकार से सुख प्रदान करने वाली वधू की प्राप्ति हो |

8)अष्टमी-किसी प्रकार का फल ना मिले |

9)नवमी-वर को हर समय शोक प्रदान करने वाली वधू मिले |

10)दशमी-आनंद देने वाली वधू जिससे सारे परिवार को आनंद प्राप्त होवे |

11)एकादशी-वधू का आगमन पूरे परिवार को सुख प्रदान करे |

12)द्वादशी-वधू सर्वसुख प्रदान करने वाली हो |

13)त्रियोदशी-सम्मान बढ़ाने वाला विवाह जिससे नाम कमाने वाली संतान जन्म ले |

14)चतुर्दशी-परिवार मे कलंक लगने वाला विवाह होवे |

15)पूर्णमाशी-हर प्रकार से सुख व संपन्नता देने वाला विवाह होवे |

16)अमावस्या-असफल विवाह या तो तलाक होवे या दोनों मे से एक की मृत्यु हो जाये |


बुधवार, 8 जून 2016

राहू व केतू

राहू व केतू

राहू केतू छाया गृह माने जाते हैं हिन्दू ज्योतिष मे इन्हे दैत्य माना जाता हैं जो सूर्य व चन्द्र को भी ग्रहण लग देते हैं यह दोनों हमेशा वक्रावस्था मे रहते हुये एक दूसरे के विपरीत भावो मे रहते हैं राहू को केतू से ज़्यादा भयानक माना गया हैं पुरानो के अनुसार कश्यप ऋषि की 13 पत्नियों मे से एक सिंहिका का पुत्र राहू था जिसके अमृतपान कर लेने से भगवान विष्णु ने अपने चक्रो से दो हिस्से कर दिये थे राहू ऊपर का हिस्सा तथा केतू नीचे का हिस्से कहलाता हैं |

यह दोनों 12 राशियो का भ्रमण 18 वर्षो मे करते हैं तथा एक राशि मे 18 माह रहते हैं राहू को विध्वंशक तथा केतू को मोक्षकर्ता माना गया हैं राहू जिस भाव मे स्थित होता हैं उस भाव से संबन्धित कारकत्वों को ग्रहण लगा देता हैं अर्थात कमी कर देता हैं जबकि केतु उस भाव विशेष से विरक्ति प्रदान करता हैं राहू को स्त्रीलिंग तथा केतू को नपुंशक माना गया हैं | राहू केतू के मित्र बुध,शुक्र व शनि हैं तथा मंगल इनसे समता रखता हैं | यह दोनों छायाग्रह होने के कारण जिस राशि मे होते हैं उसके स्वामी के जैसे ही फल प्रदान करते हैं | केंद्र,त्रिकोण मे होने से यह कई शुभ योग प्रदान करते हैं | विशोन्तरी दशा मे राहू को 18 तथा केतू को 7 वर्ष दिये गए हैं |

चन्द्र से केंद्र मे राहू यदि 1 से 8 भावो मे हो तो जातक लंबा होता हैं और यदि केतू चन्द्र से केंद्र मे होकर 1 से 8  भावो मे होतो जातक कद मे छोटा होता हैं राहू 1,7,9,11 राशियो के अतिरिक्त सभी राशियो मे शुभफल प्रदान करता हैं कन्या राशियो मे इसे अंधा माना जाता हैं जिस कारण इस राशि मे यह कोई फल नहीं देता हैं |

लग्न मे राहू बहुत शुभ होने पर जातक लंबा व पतला,बहुत घूमने वाला तथा तकनीकी ज्ञान वाला होता हैं परंतु किसी ना किसी रोग से पीडित ज़रूर रहता हैं यदि राहू चन्द्र संग होतो जातक स्वार्थी व लालची प्रवृति का तथा मानसिक विकार वाला होता हैं ऐसे मे यदि चन्द्र केंद्र का स्वामी होतो जातक माता व परिवार का वफादार नहीं होता हैं राहू उसे हावभाव पूर्ण वाणी,बहुत तरक्की तथा दो पत्नीयो का सूख प्रदान कर्ता हैं | केतू लग्न मे जातक को छोटा कद,विकलांगता तथा अन्य अशुभ प्रभाव देता हैं |

दूसरे भाव मे राहू जातक को धन व पैतृक संपत्ति देता हैं परंतु जातक का धन बचता नहीं हैं अर्थात जातक को बरकत नहीं होती ऐसा जातक किसी के मामले मे हस्तक्षेप नहीं करता,वाणी संबंधी विकार से ग्रस्त हो सकता हैं परिवार से भी ऐसे जातक की कम निभती हैं बहुधा विवाह बाद परिवार से अलग रहते हैं | केतू यहाँ पर जातक की पूश्तैनी संपत्ति को कर्जे द्वारा नष्ट कर देता हैं जातक को बड़ा परिवार परंतु आमदनी कम देता हैं |

तीसरे भाव मे सम राशि का राहू शुभ माना जाता हैं यहाँ राहू जातक को परिवार मे सबसे छोटा बनाता हैं जो सहोदरो हेतु अशुभ होता हैं | केतू यहाँ कर्ण रोग तथा कमजोर दिमाग देता हैं बहुधा जातक के परिवार मे 3 सदस्य होते हैं |

चतुर्थ भाव मे राहू भूमि अथवा मकान के सुख मे कमी करता हैं जातक मानसिक रूप से व्याकुल व परेशान रहता हैं उसकी माँ का स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता उसके मकान मे वस्तु अथवा प्रेत दोष अवश्य होता हैं | केतू यहाँ जातक को घर से उचाट रखता हैं अर्थात जातक घर से बाहर रहना ज़्यादा पसंद करता हैं तथा उसके अपनी माँ से संबंध अच्छे नहीं होते |

पंचम भाव मे राहू शिक्षा पूर्ण नहीं होने देता परंतु बुद्दिमान बनाता हैं उसे कला,फोटोग्राफी व लेखन का शौक देता हैं जातक को विवाह सुख मे किसी ना किसी रूप मे परेशानी ज़रूर देता हैं पत्नी यदि सुंदर होती हैं तो जातक उस पर शक करता हैं उसे गर्भविकार रहते हैं जिससे संतान संबंधी कष्ट जातक के जीवन मे रहते हैं अथवा पहली संतान मे परेशानी होती हैं बहुधा जातक की पुत्र संतान नहीं होती | केतू यहाँ संतान हेतु अशुभता देता हैं तथा शिक्षा मे रुकावट ज़रूर देता हैं | संक्षेप मे कहे तो इस भाव मे राहू केतू शिक्षा व संतान हेतु अशुभ रहते हैं संतान पर रूखा व्यवहार रखवाते हैं परंतु संतान से बेहद लगाव भी करवाते हैं |

छठे भाव मे राहू जातक को ताकतवर बना उसे अच्छी नौकरी प्रदान करता हैं उसे मामा से लाभ प्राप्त कराता हैं पाप प्रभाव मे होने से जातक की कलाई पर निशान,नेत्र रोग तथा उसके मामा को पुत्र नहीं देता केतू यहाँ जातक को शत्रुता से बचाता हैं अर्थात जातक के शत्रु नहीं होते |

सातवे भाव मे राहू जातक को विवाह सूख मे किसी न किसी प्रकार से कमी प्रदान करता हैं मंगल संग होने पर राहू यहाँ जातक की पत्नी को मासिक धर्म संबंधी बीमारी देता हैं जिससे जातक के अन्य स्त्रीयों से संपर्क बन जाते हैं मंगल,चन्द्र संग राहू यहाँ नेत्रा व गुप्त रोग देता हैं शुक्र से केंद्र मे राहू यहाँ पत्नी भक्त बनाता हैं जो दूसरों को हमेशा भला बुरा कहता रहता हैं | केतू यहाँ जातक को पत्नी से समय समय पर दूर करता रहता हैं अर्थात जातक व उसकी पत्नी किसी भी कारण से अलग अलग रहते हैं बहुधा जातक की पत्नी वाचाल प्रवृति की होती हैं जिस कारण जातक उसे जातक बात बात पर टोकता अथवा जलील करता रहता हैं |

अष्टम भाव मे राहू जातक को लंबी बीमारी द्वारा मृत्यु देता हैं | 2,4,5,6,8,10,12 राशियो का राहू होने पर जातक की पत्नी सुंदर व मृत्यु सुखद अर्थात बेहोशी या सोते हुये होती हैं जातक को अपने जीवन काल मे उदर रोग रहता हैं | केतू यहाँ दंतरोग,चर्मरोग इत्यादि देता हैं तथा जातक को आत्महत्या हेतु भी उकसाता रहता हैं |

नवम भाव मे राहू सरकार द्वारा लाभ प्रदान करता हैं परंतु संतान देर से देता हैं राहू यदि समराशि मे को कष्ट तथा जवानी मे जुआ खेलने की आदत देता हैं उसकी इस आदत की वजह से अच्छे लोग उससे दूर रहते हैं तथा वह ग़लत दोस्तों के कारण अपयश पाता हैं |

दशम भाव मे 2,4,5,6,8,10,12 राशियो का राहू जातक को शुभता,अधिकार व प्रसिद्दि देता हैं ऐसा जातक छोटा काम नही करते प्राय 30 वर्ष बाद इनके जीवन मे बदलाव आता हैं यह राजनीति करने मे बड़े गुणी होते हैं |केतू यहाँ जातक से निम्न कार्य कराता हैं स्वयं का व्यापार करने नहीं देता जातक का चरित्र शंकालु होता हैं तथा पिता को शुभता नहीं देता |

एकादश भाव मे राहू धन व पद दोनों देता हैं परंतु पुत्र केवल एक ही देता हैं ऐसा जताक कर्ण रोग से पीड़ित होता हैं तथा शीघ्र धनवान बनने की चाह मे जातक सट्टा,लॉटरी इत्यादि मे धन लगता हैं केतू यहाँ गजेट्स का शौकीन बनाता हैं तथा जाक अपने बड़ो से दूर रहना पसंद करता हैं |

द्वादश भाव मे राहू नेत्र रोग,एक से अधिक विवाह,नींद मे परेशानी तथा डींगे मारने वाला व्यक्तित्व देता हैं ऐसा जातक करता कुछ नहीं हैं परंतु बातें बड़ी बड़ी करता हैं चन्द्र संग होने पर जातक का रुझान आध्यात्मिकता की और बढ़ा देता हैं | केतू यहाँ जातक को मस्तमौला व्यक्तित्व देता हैं ऐसा जातक किसी की भी परवाह नहीं करता |