बुधवार, 29 मार्च 2023

बृहस्पति के अस्त होने का सभी राशियो पर प्रभाव

ज्योतिष जगत के देवगुरु बृहस्पति 01 अप्रैल 2023 को शाम 07 बजकर 12 पर मीन राशि में अस्त होने जा रहे हैं |उसके बाद देवगुरु बृहस्पति मई के पहले सप्ताह में मेष राशि में उदित होंगे, बृहस्पति के अस्त होने से कुछ राशियों पर सकारात्मक तो कुछ राशियो पर नकारात्मक प्रभाव भी पड़ेगा |

सामान्य तौर से कहे तो भारतीय वैदिक ज्योतिष के अनुसार देवगुरु के अस्त होने से मांगलिक कार्यों पर भी रोक लग जाती है |

गुरु बृहस्पति के अस्त होने से सभी राशियो पर क्या प्रभाव पड़ेगा आइए जानते हैं |

1)मेष राशि के जातकों के लिए बृहस्पति नौवें और बारहवें भाव का स्वामी बनते है इस राशि के जातकों को थोड़ा संभलकर रहने की सलाह दी जाती है,इन जातकों को कार्यस्थल पर कड़ी मेहनत करने के बावजूद आपमे व आपके वरिष्ठों के बीच कुछ समस्याएं पैदा हो सकती हैं साथ ही आपको काम के सिलसिले से जबरन विदेश यात्रा पर भेजा जा सकता है. जिसके कारण आपमे थोडी असंतुष्टि की भावना का पनपेगी

2)वृषभ राशि के जातकों के लिए बृहस्पति आठवें और ग्यारहवें भाव का स्वामी बनते है. इस राशि के जातकों को अपने सभी प्रयासों में बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है. पेशेवर रूप से कार्यस्थल का असंतोषजनक माहौल आपकी चिंता का कारण हो सकता है ।

3)मिथुन राशि के जातकों के लिए बृहस्पति सातवें और दसवें भाव के स्वामी होते है. पेशेवर रूप से इस राशि के जातकों के लिए करियर में प्रगति होना संभव है. यदि आप साझेदारी में व्यापार कर रहे हैं तो इस अवधि में साझेदार के साथ संबंध में कुछ समस्याएं आ सकती हैं, जिसका असर आपके व्यापार पर पड़ सकता हैं |

4)कर्क राशि के जातकों के लिए बृहस्पति छठे और नौवें भाव का स्वामी होते है. इस अवधि में कर्क राशि वालों को कार्यों में कुछ बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है. आप छोटे कार्यों को पूरा करने में भी अधिक समय ले सकते हैं जिस कारण कार्यो मे विलंब होगा

5)सिंह राशि के जातकों के लिए बृहस्पति पांचवें और आठवें भाव का स्वामी होता है. इस राशि के जातकों के मित्रों व प्रियजनों के साथ संबंध खराब हो सकते हैं. साथ ही आपकी छवि पर भी नकारात्मक असर पड़ सकता है ।

6)कन्या राशि के जातकों के लिए बृहस्पति चौथे और सातवें भाव का स्वामी होता है. इस राशि के जातकों पर वरिष्ठों द्वारा काम का अधिक दबाव डाला जा सकता है. साथ ही नौकरी में बदलाव होने की भी संभावना अधिक है. यदि खुद का व्यवसाय चला रहे हैं तो इस अवधि में हानि होने की आशंका अधिक है । 

7)तुला राशि के जातकों के लिए बृहस्पति तीसरे और छठे भाव का स्वामी बनते है. इस दौरान कार्यस्थल पर काम के मामले में सहजता बनी रहेगी लेकिन वरिष्ठों के साथ आपके संबंध में कुछ समस्याएं आ सकती हैं और यह आपकी चिंता का मुख्य कारण होगा. खुद का व्यवसाय चला रहे हैं तो इस अवधि में आपको लाभ तो होगा लेकिन हो सकता है कि आपकी अपेक्षा से थोड़ा कम हो ।

8)वृश्चिक राशि के जातकों के लिए बृहस्पति दूसरे और पांचवें भाव का स्वामी होते है. इस दौरान आपको आर्थिक समस्याओं से भी गुज़रना पड़ सकता है. पेशेवर रूप से कार्यस्थल पर आपको कुछ समस्याएं जैसे कि आपके काम की सराहना न किया जाना, सहकर्मियों का अधिक सहयोग न मिलना आदि का सामना करना पड़ सकता है ।

9)धनु राशि के जातकों के लिए बृहस्पति लग्न और चौथे भाव का स्वामी बनता है, देवगुरु बृहस्पति के अस्त होने से आपको धीमी गति से परिणाम प्राप्त होंगे, नौकरी छूटने जैसी स्थितियों का सामना करना पड़ सकता है, साथ ही किसी कारणवश मौजूदा कार्यस्थल पर आपकी प्रतिष्ठा प्रभावित हो सकती है ।

10)मकर राशि के जातकों के लिए बृहस्पति तीसरे और बारहवें भाव का स्वामी होता है. इसके कारण आपके पारिवारिक जीवन में कुछ समस्याएं आ सकती हैं. आपको अपने वरिष्ठों के साथ संबंध में कुछ मतभेदों का सामना पड़ सकता है. हो सकता है कि नौकरी में आप जिस चीज़ की उम्मीद लगाए बैठे हों, वह आपको न मिले ।

11)कुंभ राशि के जातकों के लिए बृहस्पति दूसरे और ग्यारहवें भाव का स्वामी होता है. इसके कारण आपको अपने जीवन में कुछ असफलताओं और अचानक बदलावों का सामना करना पड़ सकता है. इस दौरान आपके सामने कुछ ऐसी समस्याएं आ सकती हैं, जिसकी आपको उम्मीद भी नहीं होगी जैसे कि नई नौकरी में बदलाव हो सकता है ।

12)मीन राशि के जातकों के लिए बृहस्पति प्रथम और दशम भाव का स्वामी होता है. इस दौरान काम के अत्याधिक दबाव के कारण आपको मानसिक तनाव हो सकता है. खुद का व्यवसाय चला रहे हैं तो इस दौरान आपको हानि की स्थिति से गुजरना पड़ सकता है. ऐसे में किसी नए व्यवसाय की शुरुआत करना एक गलत कदम साबित हो सकता है ।

सोमवार, 20 मार्च 2023

अपना इष्टदेव कैसे चुने ?


आपके मन में विचार आता होगा कि बहुत से पूज्य देवों में से किसकी पूजा अर्चना करें ? अपना आराध्यदेव किसे चुनें ? आप अपने इष्टदेव को अपनी जन्मकुण्डली से आसानी से जान सकते हैं ।

इष्टदेव निर्धारण के सम्बन्ध में भी कई प्रकार के सिद्धान्त हैं । एक मत के अनुसार आत्मकारक ग्रह की पूजा करनी चाहिए । कुछ विद्वान् लग्न कुण्डली में पाँचवें और नवें भाव में स्थित ग्रहों में, जो भी बली है, उसकी पूजा करने का निर्देश देते हैं । एक मत यह भी है कि लग्न कुण्डली के केवल पाँचवें भाव में स्थित राशि के स्वामी को ही अपना आराध्य मानना चाहिए । निष्कर्षतः पंचमेश जन्मकुण्डली में किसी भी स्थिति में स्थित हो, उसे नमन करना चाहिए । इसी प्रकार नवमेश की उपासना भी आवश्यक है ।

विभिन्न लग्नों में पंचमेश और नवमेश तदनुसार आराध्य देव निम्नांकित तालिका में सुविधा की दृष्टि से दिए जा रहे हैं । इनके अनुरूप आप अपने इष्टदेव का निर्धारण कर सरलता से कर सकते हैं ।

लग्न - पंचमेश - पंचमेश के अनुसार पूजनीय देवता

मेष - सूर्य - भगवान् विष्णु, सूर्यदेव

वृषभ – बुध - भगवान् गणेश

मिथुन – शुक्र - माँ लक्ष्मी

कर्क – मंगल - हनूमान् जी, स्वामी कार्तिकेय

सिंह – गुरु - भगवान् विष्णु

कन्याशनि - हनूमान् जी एवं भैरव

तुला – शनि - हनूमान् जी एवं भैरव

वृश्चिक - गुरु - भगवान् विष्णु

धनु – मंगल - हनूमान् जी

मकर - बुध – श्री गणेश  

कुम्भ - बुध – श्री गणेश

मीन – चन्द्र – भगवती दुर्गा,पार्वती 

नवमेश - नवमेश के अनुसार पूजनीय देवता

मेष लग्न - गुरु - भगवान् विष्णु

वृष लग्न - शनि - भैरव एवं हनूमान् जी

मिथुन लग्न - शनि - हनूमान् जी एवं भैरव

कर्क लग्न - गुरु - भगवान् विष्णु

सिंह लग्न - मंगल - हनूमान् जी, स्वामी कार्तिकेय

कन्या लग्न - शुक्र - महालक्ष्मी

तुला लग्न - बुध - भगवान् गणेश

वृश्चिक लग्न - चन्द्रमा - माँ दुर्गा

धनु लग्न - सूर्य - भगवान् विष्णु, सूर्यदेव

मकर लग्न - बुध - भगवान् गणेश

कुम्भ लग्न - शुक्र - माँ लक्ष्मी

मीन लग्न - मंगल - हनूमान् जी, स्वामी कार्तिकेय

उदाहरण के लिए आपकी लग्न मिथुन है, तो आपको पंचमेश के अनुसार लक्ष्मी एवं नवमेश के अनुसार हनुमान जी एवं भैरव जी की उपासना करनी चाहिए ।

जन्मपत्रिका के अनुरूप आराध्यदेव की पूजा अर्चना और नमन करने से अवश्य ही लाभ होता हैं और संकट दूर होंते हैं

 

 

शुक्रवार, 17 मार्च 2023

झाडू में धन की देवी महालक्ष्मी का वास


पौराणिक शास्त्रों में कहा गया है कि जिस घर में झाडू का अपमान होता है वहां धन हानि होती है, क्योंकि झाडू में धन की देवी महालक्ष्मी का वास माना गया है ।

विद्वानों के अनुसार झाडू पर पैर लगने से महालक्ष्मी का अनादर होता है । झाडू घर का कचरा बाहर करती है और कचरे को दरिद्रता का प्रतीक माना जाता है । जिस घर में पूरी साफ - सफाई रहती है वहां धन, संपत्ति और सुख - शांति रहती है । इसके विपरित जहां गंदगी रहती है वहां दरिद्रता का वास होता है । ऐसे घरों में रहने वाले सभी सदस्यों को कई प्रकार की आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है । इसी कारण घर को पूरी तरह साफ रखने पर जोर दिया जाता है ताकि घर की दरिद्रता दूर हो सके और महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त हो सके । घर से दरिद्रता रूपी कचरे को दूर करके झाडू यानि महालक्ष्मी हमें धन - धान्य, सुख-संपत्ति प्रदान करती है ।

वास्तु विज्ञान के अनुसार झाडू सिर्फ घर की गंदगी को दूर नहीं करती है बल्कि दरिद्रता को भी घर से बाहर  निकालकर घर में सुख समृद्धि लाती है । झाडू का महत्व इससे भी समझा जा सकता है कि रोगों को दूर करने वाली शीतला माता अपने एक हाथ में झाडू धारण करती हैं ।

यदि भूलवश झाडू को पैर लग जाए तो महालक्ष्मी से क्षमा की प्रार्थना कर लेनी चाहिए । जब घर में झाडू का इस्तेमाल न हो, तब उसे नजरों के सामने से हटाकर रखना चाहिए । ऐसे ही झाडू के कुछ अन्य प्रयोग आप सभी को करने चाहिए |

1) शाम के समय सूर्यास्त के बाद झाडू नहीं लगाना चाहिए इससे आर्थिक परेशानी आती है ।

2) झाडू को कभी भी खड़ा नहीं रखना चाहिए, इससे घर मे कलह होता है ।

3) अच्छे दिन कभी भी खत्म न हो, इसके लिए हमें चाहिए कि हम गलती से भी कभी झाडू को पैर नहीं लगाए ना लगने दें, अगर ऐसा होता है तो मां लक्ष्मी रुष्ठ होकर हमारे घर से चली जाती है ।

4) झाडू हमेशा साफ रखें,गीला न छोडे ।

5) ज्यादा पुरानी झाडू को घर में न रखें ।

6) झाडू को कभी घर के बाहर बिखराकर ना फेके और इसको जलाना भी नहीं चाहिए ।

7) झाडू को कभी भी घर से बाहर अथवा छत पर नहीं रखना चाहिए । ऐसा करना अशुभ माना जाता है । कहा जाता है कि ऐसा करने से घर में चोरी की वारदात होने का भय उत्पन्न होता है । झाडू को हमेशा छिपाकर ऐसी जगह पर रखना चाहिए जहां से झाडू हमें, घर या बाहर के किसी भी सदस्यों को दिखाई नहीं दें ।

8) गौ माता या अन्य किसी भी जानवर को झाडू से मारकर कभी भी नहीं भगाना चाहिए ।

9) घर परिवार के सदस्य अगर किसी खास कार्य से घर से बाहर निकले हो तो उनके जाने के उपरांत तुरंत झाडू नहीं लगाना चाहिए । यह बहुत बड़ा अपशकुन माना जाता है ऐसा करने से बाहर गए व्यक्ति को अपने कार्य में असफलता का मुंह देखना पड़ सकता है ।

10) शनिवार को पुरानी झाडू बदल देना चाहिए |

11) सपने मे झाडू देखने का मतलब नुकसान होना होता हैं ।

12) घर के मुख्य दरवाजा के पीछे एक छोटी सी झाडू टांग कर रखना चाहिए इससे घर में लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है ।

13) पूजा घर के ईशान कोण यानी उत्तर - पूर्वी कोने में झाडू व कूड़ेदान आदि नहीं रखना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से घर में नकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है और घर में बरकत नहीं रहती है इसलिए वास्तु के अनुसार अगर संभव हो तो पूजा घर को साफ करने के लिए एक अलग से साफ कपड़े को रखें ।

14) जो लोग किराए पर रहते हैं व नया घर किराये पर लेते हैं अथवा अपना घर बनवाकर उसमें गृह प्रवेश करते हैं तब इस बात का ध्यान रखें कि आपका झाडू पुराने घर में न रह जाए । मान्यता है कि ऐसा होने पर लक्ष्मी पुराने घर में ही रह जाती है और नए घर में सुख - समृद्धि का विकास रूक जाता है ।

 

 

गुरुवार, 16 मार्च 2023

मुहूर्त और ग्रहारम्भ

गृह आरंभ करने से पहले यह जरूरी है कि वास्तु पुरुष, गणेशजी तथा अन्य देवताओं की श्रद्धा के अनुसार पूजा की जाए ।

गृह आरंभ के लिए बहुत सी बातों का ध्यान रखना चाहिए । प्रायः सभी ग्रंथों में ज्योतिष की बातों का ध्यान रखना जरूरी समझा गया है । जिसमें मास, राशियाँ तथा नक्षत्र आते हैं ।

वास्तुशास्त्र के अनुसार चैत्र (मार्च - अप्रैल) के महीने में मकान आरंभ करना अच्छा नहीं होता,यह शोक तथा परेशानियाँ पैदा करता है ।

वैशाख (अप्रैल - मई) के महीने में गृह-आरंभ करना बहुत अच्छा माना गया है । इससे उस घर में रहने वाले व्यक्तियों के लिए आर्थिक लाभ होता है तथा सुख के लिहाज से शुभता प्राप्त होती हैं

ज्येष्ठ (मई - जून) के महीने में गृह आरंभ करना बहुत ही अशुभ तथा मृत्युकारक होता है ।

इसी तरह आषाढ़ (जून – जुलाई) के महीने में भी गृह-आरंभ करना अशुभ होता है । अतः इस मास में भी गृह निर्माण नहीं करवाना चाहिए |

सावन (जुलाई - अगस्त) के महीने में गृह-आरंभ करना धन के लिए बहुत शुभ होता है ।

भाद्रपद (अगस्त - सितंबर) मास में गृह-आरंभ करने से शुभ फल मिलते हैं और दरिद्रता का नाश होता है तथा मित्रों का पूर्ण सहयोग मिलता है ।

आश्विन (सितंबर–अक्तूबर) मास में ग्रह आरंभ करने से पत्नी के लिए शुभ नहीं होता,कलह व लड़ाई-झगड़ा होता रहता है ।

कार्तिक (अक्तूबर – नवंबर) मास में गृह-आरंभ करने से पुत्र, आरोग्य एवं धन की प्राप्ति होती है ।

मार्गशीर्ष (नवंबर – दिसंबर) मास में गृह-आरंभ करना शुभ होता है। इससे उत्तम भोज्य पदार्थों की प्राप्ति होती है तथा धन के लिए भी यह शुभ फल का कारक है ।

पौष (दिसंबर – जनवरी) मास में गृह आरंभ करना अच्छा नहीं होता, इससे चोरों का भय सदा बना रहता है ।

माघ (जनवरी – फरवरी) मास में गृह आरंभ करने से घर में अग्नि के प्रकोप से कष्ट तथा हानि होती है ।

फाल्गुन मास (फरवरी – मार्च) में गृह-आरंभ करना धन तथा सुख के लिए शुभ फल का कारक है।

इस प्रकार देखे तो वैशाख (अप्रैल - मई),श्रावण (जुलाई - अगस्त),भाद्रपद (अगस्त-सितम्बर),कार्तिक (अक्टूबर-नवम्बर),मार्गशीर्ष (नवम्बर - दिसम्बर) व फाल्गुन (फरवरी - मार्च) मास गृह आरंभ करने के लिए शुभ होते हैं |

राशि - विचार और गृह - आरंभ

विशेष महीनों में सूर्य विशेष राशियों में प्रवेश करता है जिसका गृह निर्माण से बहुत गहरा रिश्ता है । नारद मुनि के कथन के अनुसार

मेष राशि (15 अप्रैल से 15 मई) में गृह आरंभ करना शुभ फल देता है और गृह पूरा होने पर भी उसमें खुशी व शांति रहती है ।

वृष राशि (मई – जून) में गृह आरंभ करना आर्थिक उन्नति का कारक है ।

मिथुन राशि (जून - जुलाई)  में गृह-आरंभ करना मृत्युकारक है ।

कर्क राशि (जुलाई – अगस्त) में गृह आरंभ करना शुभ फल देता है और घर में खुशी रहती है ।

सिंह राशि में (अगस्त – सितंबर) गृह-आरंभ करने से सेवक यानि नौकरों में वृद्धि होती हैं और जीवन सुखी रहता है ।

कन्या राशि में (सितंबर - अक्तूबर) गृह-आरंभ करना रोग का कारक होता है ।

तुला राशि में (अक्तूबर - नवम्बर) गृह आरंभ करना सुखकारक होता है ।

वृश्चिक राशि में (नवंबर – दिसंबर) यदि गृह आरंभ किया जाये तो इससे धन में वृद्दि होती हैं |

धनु राशि में (दिसंबर - जनवरी) गृह आरंभ करना अति नुकसानदायक होता है ।

मकर राशि में (जनवरी - फरवरी) भी गृह आरंभ करने से आर्थिक लाभ होता है ।

कुंभ राशि (फरवरी - मार्च) में गृह आरंभ करना अच्छा समझा गया है ।

मीन राशि में (मार्च – अप्रैल) यदि गृह आरंभ किया जाये तो वह घर भय या डर पैदा करने वाला होता है ।

दिन और गृह का निर्माण

लगभग सभी वास्तुकारों के अनुसार सोमवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार और शनिवार, ये वार गृह आरंभ के लिए बहुत शुभ समझे गये हैं ।

रविवार और मंगलवार को गृह का आरंभ कभी नहीं करना चाहिए । इससे घर में रहने वालों के लिए हमेशा परेशानी रहती है तथा धन के लिए भी अच्छा फल नहीं मिलता ।

एक अन्य बात पर ध्यान रखने की आवश्यकता है कि गृह हमेशा शुक्ल पक्ष में आरंभ करना चाहिए । यदि कृष्ण पक्ष में गृह आरंभ किया जाये तो चोर-डाकुओं का भय रहता है ।

नक्षत्र और गृह का निर्माण

नक्षत्रों के अनुसार अश्विनी, रोहणी, मृगशिर, पुष्य, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, उत्तराषाढ़, श्रवण, उत्तरा भाद्रपद और रेवती, ये नक्षत्र गृह आरंभ के संबंध में शुभ समझे जाते हैं ।

ज्योतिष के लगभग सभी ग्रंथों में ईशान कोण को बहुत शुभ माना गया है और गृह निर्माण के संबंध में जब बुनियादी ईंट या शिलान्यास का आरंभ किया जाये तो यह जरूरी है कि नींव की खुदाई ईशान कोण से आरंभ करनी चाहिए । ईशान दिशा में खुदाई शुरू की जाये तो ईशान हल्का हो जायेगा और नैऋत्य भारी हो जायेगा । इससे ईशान व नैऋत्य दोनों दिशाओं का शुभ प्रभाव प्राप्त हो सकता है । वैसे भी ईशान एक तरह का पुण्य का स्थान है, अतः इस तरफ कोई बहुत भारी चीज नहीं रखनी चाहिए और इसको पवित्र व साफ-सुथरा रखना बहुत जरूरी है ।

खुदाई के समय कहा है कि ईशान कोण से खुदाई शुरू करनी चाहिए । इसी तरह नैऋत्य से वायव्य की ओर तथा आग्नेय से ईशान की ओर तथा वायव्य से ईशान की ओर खुदाई की जानी चाहिए।

वास्तु के कुछ ग्रंथों में जिक्र आता है कि गृह बनाने में पत्थर का प्रयोग नहीं करना चाहिए । पत्थर केवल राजमहल या मंदिरों के लिए ही शुभ है किन्तु एक आम आदमी के घर के लिए पत्थर शुभ फल नहीं देता । पत्थर का प्रयोग केवल मंदिर या धर्मस्थान या राजमहल में अच्छा रहता है ।

पूरे वर्ष भर में गृहारंभ और गृह प्रवेश के लिए पंचांग देखने पर बहुत कम ही मुहूर्त मिल पाते हैं, ऐसे में आप निम्नलिखित मुहूर्तों का सहारा ले सकते हैं ।

शुभ मास शुभ तिथि – शुभ वार

वैशाख – 2,11 - सोमवार  

श्रावण - 3,13 – बुधवार

मार्गशीर्ष - 5,15 – गुरुवार

पौष – 7 – शुक्रवार 

फाल्गुन - 10 - शनि

शुभ नक्षत्र : अश्विनी,रोहिणी, शतभीषा, धनिष्ठा, उ.षा., मृगशिरा, पुनर्वसु,पुष्य,उ.फा, हस्त,चित्रा,स्वाति,अनुराधा, मूल, श्रवण ।