गुरुवार, 27 अगस्त 2015

माँ वेष्णो देवी मंदिर का विहंगम दृस्य 

ज्योतिष का मूल्यांकन

ज्योतिष का मूल्यांकन

ज्योतिष किसी भी जातक के विषय मे वह रहस्य उजागर कर सकता हैं जो आधुनिक विज्ञान कभी भी किसी भी रूप मे नहीं कर सकता हमारे ऋषि मुनि अपनी बंद आँखों द्वारा जो हजारो वर्ष पूर्व देख सकते थे आज का विज्ञान उसे खुली आँखों व बहुत से प्रयोगो के द्वारा भी नहीं देख सकता हैं योग्य व विद्वान ज्योतिषी के लिए किसी भी जातक की कुंडली शीशे के समान होती हैं जो जातक के विषय मे वह सब बता सकती हैं जो किसी भी प्रकार का विज्ञान अथवा स्वयं जातक भी नहीं बता सकता | हमारे शास्त्रो मे विवाह के विषय मे बहुत सी बातें कहीं गयी हैं इसके संदर्भ मे ऋग्वेद के सूर्य सावित्री मंत्र मे इस प्रकार से प्रार्थना की गयी हैं की मुझे ऐसी पत्नी प्राप्त हो जो यशस्वी,पतिव्रता,सुभगा इत्यादि हो,जैसे इंद्र की इंद्राणी,शिव की गौरी,श्रीधर की श्री । यहाँ सिर्फ विवाह होना पूर्णता नहीं हैं आप यदि अच्छी नौकरी,अच्छी पत्नी व संतान वाले हैं तो आप अवश्य ही भाग्यवान हैं |

विवाह हेतु कुछ सूत्र इस प्रकार से हैं |

1)यदि छठे भाव मे शनि,सातवे मे राहू तथा आठवे मे मंगल अथवा सूर्य हो तो जातक का विवाह ऐसी स्त्री से होता हैं जो उसके शरीर का स्पर्श भी नहीं करती हैं |

2)यदि सप्तम भाव मे नीच गृह ऊंच गृह संग हो और उनमे मित्रता हो तो नीच भंग हो जाता हैं परंतु यदि ऊंच गृह लग्नेश का शत्रु हो व सप्तम भाव मे राहू भी हो तो पति पत्नी से आनंद प्राप्त नहीं कर पाता हैं |

3)यदि सप्तमेश अष्टमेश की ऊंच राशि मे हो अथवा सप्तमेश अष्टमेश मे राशि परिवर्तन हो और अष्टमेश लग्नेश का शत्रु हो तो जातक का विवाह अपने से अमीर घराने की स्त्री से होता हैं परंतु यह विवाह नाम मात्र का होता हैं |

19/5/1944 23:29 मुंबई प्रस्तुत जातक का विवाह 1975 मे स्वयं से अमीर घराने की स्त्री से हुआ परंतु विवाह समय स्त्री के राजस्वला होने से इनका उस स्त्री से वैवाहिक संबंध नहीं बन पाया आज तक दोनों अलग रहते हैं यहाँ सप्तमेश चन्द्र अष्टमेश सूर्य की ऊंच राशि मे हैं तथा अष्टमेश लग्नेश का शत्रु भी हैं | सप्तमेश वर्गोत्तम हैं तथा लग्नेश ऊंच नवांश मे हैं और शनि द्वारा दृस्ट भी नहीं हैं इस कारण विवाह स्त्री हेतु खानापूर्ति हैं वह ना तो संग रहती हैं नाही तलाक देती हैं |

4)रिक्षा शीलाध्याय का पंचांग संग्रह जो होरा शास्त्र मे भी लिया गया हैं उसमे कहाँ गया हैं की यदि जातक मकर लग्न का हो तथा चन्द्र वर्गोत्तम होकर मेष का हो तो जातक पत्नी द्वारा दुत्कारा  जाता हैं तथा वेश्याए भी उससे शारीरिक सबंध नहीं बनाती वह स्त्री सुख से वंचित रहता हैं ऐसा ही मांदी के कुम्भ राशि मे होने से तथा सप्तम का नवांश स्वामी नवांश की नवम राशि मे होने पर भी  होता हैं |    

5)स्त्री की पत्रिका मे सप्तम भाव से शुक्र अथवा बुध का संबंध हो तथा सप्तमेश पाप ग्रह संग द्वादश भाव मे हो तो वैवाहिक जीवन अच्छा नहीं होता |

9/9/1945 2:50 नागपुर कर्क लग्न मे जन्मी इस एम एससी पास स्त्री की पत्रिका मे शुक्र सप्तम भाव को देख रहा हैं तथा सप्तमेश शनि मंगल व राहू संग द्वादश भाव मे हैं जातिका का पति कलक्टर हैं जातिका के चार बच्चे हैं परंतु वैवाहिक जीवन अच्छा नही रहा हैं |

कुछ अन्य सूत्र जो आज के संदर्भ मे बिलकुल सही प्रतीत नहीं होते हैं |

6)स्त्री की पत्रिका मे गुरु की सप्तम भाव मे दृस्टी संस्कारी पति देती हैं तथा दशम भाव मे शुक्र होने से उसे प्रेम करने वाला पति प्राप्त होता हैं और उसका जीवन शानदार होता हैं |

6/5/1959 12:25 वृश्चिक लग्न मे जन्मी इस धनी परिवार की जातिका ने 17 वर्ष की आयु मे एक नीच जाति के अनाथ युवक से प्रेमविवाह किया जो ना तो सेहतवान था और नहीं उसका समाज मे कोई स्तर था माँ बाप ने इस कन्या का विवाह एक आइ ए एस लड़के से तय किया तब इसने उन्हे अपने प्रेम विवाह के बारे मे बताया जिस कारण माँ बाप ने इसे त्याग दिया तब से यह अपने पति संग झुग्गी मे रहती हैं जहां इसे वैवाहिक सुख के अतिरिक्त कोई सुख नहीं हैं |

एक अन्य सूत्र जिसके अनुसार शनि का दूसरे भाव मे होना व्यक्ति को दूसरे के घर मे दूसरों के द्वारा तिरस्कृत व अपनों से दूर रखता हैं परंतु उसके पास सभी संपन्नता के साधन,वाहन इत्यादि  होते हैं ये सूत्र भी यहाँ पर पूर्ण रूप से लागू नहीं होता हैं |

7)वराहमिहिर के अनुसार यदि शुक्र-मंगल सप्तम भाव से पाप ग्रह द्वारा देखे जा रहे होतो जातक को धातु संबंधी यौन रोग हो सकता हैं चूंकि यह रोग शारीरिक भूख के बिना हो नहीं सकता जिससे मानसिकता भी प्रभावित होती हैं जिसके कारक चन्द्र बुध होते हैं अत: इनका भी अध्ययन करना चाहिए जहां नैतिकता कम हो वहाँ ऐसी बीमारी (गोनोरिया,सिफ़लिस आदि ) हो सकती हैं | जब मानसिक द्वंद ना होतो इस प्रकार की बीमारी से बचा जा सकता हैं मंगल शुक्र अलग ड्रेसकोण मे होने चाहिए तथा चन्द्र-बुध मंगल के प्रभाव से मुक्त होने चाहिए | चन्द्र शुक्र की युति निसंदेह जातक को भोगी बनाती हैं परंतु उसका भोग अपनी पत्नी तक सीमित होता है ऐसा कोई भी प्रमाण नहीं हैं जो विवाहित स्त्री पुरुष को भोग की इच्छा से मुक्त बताता हो |

7/7/1925 8:00 जयपुर प्रस्तुत कुंडली का जातक 20 वर्ष की आयु मे मंगल दशा लगने पर अपनी बुरी आदतों के चलते यौन रोग का शिकार हुआ इलाज़ करने के बाद इसका बड़े घर की कन्या से विवाह हुआ राहू शुक्र दशा मे इसका रोग फिर बढ़ा जिससे पत्नी भी संक्रमित हो गयी उसकी शल्य चिकित्सा करनी पड़ी परंतु पति पर विश्वास खोने तथा बीमारी कारण मानसिक तनाव मे आने से उसकी क्षयरोग से मौत हो गयी अपनी आत्मग्लानि के चलते इस जातक को भी क्षयरोग हो गया | समय रहते यदि इस जातक को सुधार लिया गया होता तो संभवत; ऐसा नहीं होता यह कुंडली विचित्र दाम्पत्य का प्रबल उदाहरण हैं | इस प्रकार देखे तो कुंडली भावी जीवन की संभावना बताती हैं निश्चित रूप से क्या होगा यह नहीं बताती |

8)एक अन्य सूत्र यह बताता हैं की कुंडली मे यदि शनि-मंगल संग हो तथा लग्न सप्तम मे राहू केतू अक्ष होतो जातक को पक्षाघात होता हैं |

24/7/1902 00:30 मेष लग्न के इस जातक की पत्रिका मे शनि दशमेश होकर गुरु संग राजयोग बना रहा हैं 1948 मे जब जातक को शनि मे सूर्य दशा थी शनि का गोचर जन्मकालीन सूर्य पर होने वाला था जातक की पदोन्नति हुयी उसे कार्यालय का प्रभारी बनाया गया परंतु सूर्य अंतर्दशा लगते ही इसे दुर्भाग्य ने आ घेरा इस जातक को पद से हटा दिया गया ( सूर्य पंचमेश होकर चतुर्थ मे हैं तथा चन्द्र से सूर्य सप्तमेश होकर उससे छठे भाव मे हैं महादशानाथ शनि चन्द्र से द्वादश हैं ) जिससे इस जातक के दिमाग पर घातक असर हुआ जैसे ही मंगल ने गोचर मे मकर राशि मे प्रवेश किया इस जातक को पक्षाघात हुआ एक माह बाद इसकी 47 वर्ष की आयु मे मौत हो गयी |

इस प्रकार हम देखते हैं की ज्योतिष मे बहुत सी समभावनाए हैं जिनसे जीवन सार्थक व सफल बनाया जा सकता हैं यदि हम इसे सही प्रकार से फलित कर जान सके और सामने वाले को समझा सके की जीवन को किस प्रकार से जिया जाये तो यह ज्योतिष की बड़ी सफलता सफलता होगी |


शनिवार, 15 अगस्त 2015

शनि की साढेसाती

शनि की साढ़ेसाती 

शनि का जन्म कालीन चन्द्र से 12वे,1 तथा 2रे भाव से गोचर शनि की साढ़ेसाती कहलाता हैं शनि धीमी गति से तथा चन्द्र तीव्र गति चलने वाला ग्रह हैं इस कारण इन दोनो का संबंध ज़बरदस्त प्रभाव उत्पन्न करता हैं जिसमे अशुभता ज़्यादा होती हैं शनि का यह भ्रमण तीन राशियो मे साढेसात वर्ष लेता हैं (प्रत्येक राशि पर लगभग ढाई वर्ष )परंतु जन्मकालीन चन्द्र से 15 अंश आगे व 15 अंश पीछे का भ्रमण ज़्यादा प्रभाव शाली होता हैं एक अन्य मत के अनुसार शुरुआती 5 वर्ष अशुभ तथा अंतिम ढाई वर्ष शुभ माने जाते हैं |

कालपुरुष की कुंडली मे शनि 10 व 11वे भाव के स्वामी होते हैं जो चन्द्र (चतुर्थ भाव )से देखने पर 7वा व 8वा भाव होता हैं कहा जाता हैं की अपने पूर्व जन्मो के किए गए कर्मो के अनुसार ही शनि की यह साढेसाती जातक विशेष को अपने प्रभाव देती हैं |10वा भाव पूर्वजन्म के कर्म बताता हैं तथा 11वा भाव दुखस्थान होता हैं शनि इन दोनों का स्वामी होने के कारण पूर्व जन्मो के कर्मो के परिणाम दिखा पाने मे सक्षम होता हैं |

कालपुरुष की पत्रिका मे चन्द्र चतुर्थ भाव का स्वामी हैं जो मानव जीवन मे होने वाली कई घटनाओ से संबन्धित भाव होता हैं यह माता,खुशी,शिक्षा,मकान,तरक्की,भूमि,नैतिकता,स्त्री हेतु चाह,स्वादिष्ट भोजन आदि को दर्शाता हैं जो ज़्यादातर आनंद व भोग की वस्तुए हैं प्रत्येक कार्य के अच्छे व बुरे परिणाम होते हैं ग़लत कार्यो हेतु अशुभ परिणाम प्राप्त होते हैं जिनके प्रभाव से सभी ऐसों आराम से वंचित होना पड़ता हैं जो शनि की इस साढेसाती मे अवश्य होता देखा गया हैं |

अब प्रश्न उठता हैं यह साढेसाती किस हद तक जातक विशेष को हानी अथवा परेशानी दे सकती हैं दुख कई प्रकार के हो सकते हैं जैसे गरीबी,जेल,बिछोह,नाजायज संबंध,स्वार्थीपना इत्यादि परंतु इतना निश्चित हैं की यह साढेसाती भौतिक सुखो मे कमी व हानी कर जातक विशेष को परेशानी अवश्य प्रदान करती हैं | यह साढेसाती जीवन मे 3 बार (आज के संदर्भ मे ) आती हैं यदि पहली सही हो तो दूसरी भयावह होती हैं जबकि पहली अशुभ होतो दूसरी शुभ होती हैं तीसरी हमेशा मृत्यु प्रदान करने वाली होती हैं कुछ जन दूसरी साढेसाती को शुभ ही मानते हैं परंतु उदाहरण उसे भयावह ही बताते हैं |

साढेसाती पर अभी तक कोई सटीक आंकलन व पुस्तक इत्यादि नहीं लिखी गयी हैं जिस कारण इस साढेसाती का कई कुंडलियों मे अध्ययन कर फलित सूत्र,दशा इत्यादि लगाकर परिणाम देखे जाते रहे हैं यहाँ इस लेख मे हम इसके निम्न तरीके से ही प्रभाव देख रहे हैं |
1)भाव जो लग्न से साढेसाती प्रभाव मे हैं |
2)चन्द्र शनि की स्थिति |
3)साढेसाती समय दशानाथ से शनि व चन्द्र की स्थिती |

1)4/5/1896 23:00 धनु लग्न की यह पत्रिका पूर्व रक्षा मंत्री श्री मेनन की हैं जिसमे चन्द्र अष्टमेश होकर वाणी भाव मे हैं तथा शनि वाणीपति ऊंच का होकर एकादश भाव मे हैं चन्द्र से द्वितीयेश भी शनि ही हैं जो स्वयं से दशम मे हैं शनि जब धनु मे आए तो यह बीमार हुये जब शनि मकर मे आए तो इन्हे पद से हटा दिया गया इनकी सख्त व बेबाक वाणी के कारण इनके बहुत से दुश्मन पैदा हो गए थे जिससे इनका पत्तन हुआ |

2)17/5/1911 4:00 आगरा की इस मेष लग्न की पत्रिका मे चन्द्र नवम (रुतबे)के भाव मे हैं शनि उससे पंचम भाव मे हैं साढेसाती से अन्य भाव 8,19 प्रभावी हैं चन्द्र से शनि तीसरे(सहोदरो)का स्वामी होकर उस भाव से तीसरे बैठा हैं जहां मंगल स्थित हैं साढेसाती समय मंगल की दशा भी थी मंगल से शनि तीसरे हैं जब शनि धनु से गुजर रहा था तब भाइयो मे अनबन शुरू हुयी जिससे बंटवारा हुआ जबकि शनि जब वृश्चिक मे था तब जातक को अपने कैरियर की वजह से बहुत परेशानी रही उसे झूठे केस मे फंसाया गया, ध्यान दे कि धनु का शनि कैरियर हेतु परेशानी ज़रूर देता हैं  |

3)20/7/1918 00:00 दिल्ली मेष लग्न की इस पत्रिका मे चन्द्र अष्टम भाव मे हैं चन्द्र का 8,9, मे होना साढेसाती हेतु महा अशुभ होता हैं विशेषकर जब चंद्रेश भी शनि का शत्रु हो,शनि कि पहली साढेसाती मे जातक शनि महादशा के प्रभाव मे भी था उसके पिता कि मृत्यु हुई यहा शनि लग्न से चतुर्थ हैं तथा चन्द्र से चौथे का स्वामी हैं चन्द्र स्वयं लग्न से चौथे का स्वामी हैं यह सभी तत्व माता के लिए अनिष्ट बता रहे हैं इनके पिता कि मृत्यु शनि मे शुक्र अंतर्दशा मे हुई शुक्र नवम भाव से सप्तम तथा चन्द्र से अष्टम हैं गुरु भी ऐसा ही हैं परंतु यहाँ ध्यान रखे कि शनि अपनी दशा मे अपने फल शुक्र के माध्यम से देता हैं |
4)18/7/1919 00:30 कानपुर मेष लग्न की इस पत्रिका मे शनि लग्न से पंचम भाव मे 10,11वे भाव का स्वामी के रूप मे हैं तथा चन्द्र शनि से द्वादसेश भी हैं जब शनि मकर मे आए इस जातक को अपने पद से हटा दिया गया और जब शनि कुम्भ मे आए तो जातक की सेवा समाप्त कर दी गयी |

5)10/7/1939 10:00 लखनऊ सिंह लग्न की इस कुंडली का जातक अच्छे परिवार का था जो अच्छे पद पर नौकरी कर रहा था इसके लग्न से अष्टम भाव मे द्वादसेश होकर चन्द्र तथा नवम मे सप्तमेश व चन्द्र से द्वादशेश शनि स्थित हैं साढ़ेसाती के समय 7,8 व 9 भाव प्रभावित हुये जैसे ही शनि ने सप्तम भाव कुम्भ राशि मे प्रवेश किया जातक के अन्य जाति की स्त्री से संपर्क बने जिस कारण उसकी बहुत बदनामी हुयी यहाँ शनि सप्तमेश होकर नीच राशि का तथा चन्द्र से दूसरे भाव मे हैं |

6)6/11/1954 2:00 दिल्ली सिंह लग्न की यह पत्रिका एक सम्मानित परिवार की विधवा महिला की हैं जिसमे चन्द्र द्वादशेश होकर सप्तम भाव मे हैं वही शनि सप्तमेश होकर तीसरे भाव मे हैं शनि के मकर राशि मे आते ही जातिका को बहुत सी बीमारियाँ हुयी,बेटी के विवाह के लिए ज़मीन बेचनी पड़ी,शनि के कुम्भ मे आते ही इस स्त्री के बाहरी पुरुष से संबंध बने जिससे इसकी बहुत बंदनामी हुयी |

साढ़ेसाती सप्तम भाव से लगने पर निम्न तथ्य दर्शाती हैं 1) नैतिक पत्तन 2) प्रजनन अंगो मे बीमारी,3) जीवन साथी अथवा माता की बीमारी व मृत्यु 4) व्यापार व पद मे हानी तथा नौकरी का छूटना |

जब शनि बुध,शुक्र या स्वयं के भावो से गुजरता हैं तो कम हानी करता हैं परंतु मंगल,सूर्य,चन्द्र के लग्नों से शनि का गोचर हानी अवश्य करता हैं इसी प्रकार जन्मराशि से अथवा उससे अष्टम भाव से शनि का गोचर भी कष्टकारी समझा जाता हैं |

साढ़ेसाती से बहुत से लोग भय मान इसे श्राप समझते हैं जबकि यह मोक्षप्राप्ति मे सहायक होती हैं | साढ़ेसाती हमारी भौतिक वस्तुओ को समाप्त कर हमें अहंकारी बनाने से बचाती हैं यह हमें प्रारब्ध कर्मो से जोड़ हमारे कर्म चक्र को पूरा करती हैं जिससे हम निखरकर अपना भविष्य संवारते हैं अनुभव मे यह भी देखा गया हैं की जिन स्त्री जातको ने साढ़ेसाती का प्रथम चरण गुजार लिया था वह विवाह पश्चात अच्छी ग्रहणी साबित हुयी |


शनि के कुप्रभाव से रक्षा पाने के लिए छायापात्र का दान करने का विधान हमारे शास्त्रो मे दिया गया हैं जिसमे लोहे की कटोरी मे सरसों का तेल भरकर उसमे चेहरा देखकर डकोत को वह कटोरी दान की जाती हैं |

मंगलवार, 11 अगस्त 2015

ऐसे बने भाग्यवान

ऐसे बने भाग्यवान

आप बहुत मेहनत करते हैं फिर भी आपको लाभ प्राप्त नहीं होता हैं लाख प्रयत्न करने पर भी सफलता कोसो दूर रहती हैं हमेशा आर्थिक परेशानिया लगी रहती हैं तो अवश्य ही आप के भाग्य मे कुछ न कुछ कमी हैं रुकावट हैं हम प्रस्तुत लेख मे भाग्य वृद्धि के कुछ उपाए प्रेषित कर रहे हैं जिन्हे पूर्ण श्रद्धा से करने पर आप अवश्य ही भाग्यवान बन जाएंगे ऐसा हमारा पूर्ण विश्वास हैं |
1)  प्रात: काल उठते समय अपनी नासिका के स्वरो को जाँचे जो स्वर चल रहा हो बंद आँखों से उस तरफ की हथेली को चेहरे पर सहलाकर उसके दर्शन करे |अब दोनों हथेलियो को देखते हुये अपने इष्ट को याद करते हुये निम्न श्लोक को पढे |
कराग्रे वस्ते लक्ष्मी; कर मध्ये सरस्वती |
करमुले तू गोविंद; प्रभाते कर दर्शनम ||
अब दैनिक क्रिया से नीव्रत हो शांत बैठकर गायत्री मंत्र के मानसिक जाप एक निश्चित संख्या मे कर नवग्रह शांति श्लोक भी पढे |स्नान के उपरांत ताम्र पात्र से सूर्य को अर्ध दे 7 बार इस श्लोक का उच्चारण करे |
एहि सूर्य सहस्त्रयांशो तेजो राशे जगतपते;|
अनुकम्पय मां भकत्या ग्रहारनाध्यमदिवाकर;||
2)  अपने नित्य पूजन मे घी के दिये मे दो लौंग डालकर पुजा करे |
3)  संध्या के समय चमेली के तेल का दिया जलाया करे व लक्ष्मी श्रोत का पाठ करे |
4)  घर से निकलते समय चमेली का तेल दोनों कानो के पिछले भाग मे लगाए करे |
5)  नित्या कपूर मे 5 लौंग जलाया करे | महत्वपूर्ण कार्यो मे उसकी राख़ को शरीर मे लगाकर जाये |
6)  रविवार को सोते समय बर्तन मे दूध मिश्रित जल भरकर ढककर सिरहाने नीचे रखकर सोये |सोमवार प्रात;स्नान आदि कर यह जल किसी बबुल या कीकर के पेड़ पर चढाए ऐसा 11 सोमवार करे|
7)  इस सौभाग्य यंत्र को भोजपत्र या तांबे पर खुदवा कर दुकान,मकान मे रखे |
8642
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8)  प्रतिदिन पक्षियो को दाना व चींटीयो को मीठा दिया करे |
9)  बड़े बुजुर्गो से आशीर्वाद लेते समय बाए हाथ से बाया पैर तथा दाये हाथ से दाया पैर छुआ करे |
10)  वर्ष मे यदि संभव हो तो दो बार ज़िंदा मछलियो को जल मे छोड़ दे |
11)  नारियल मे छेद कर मेवे,शक्कर तथा घी भरकर चींटीओ के लिए किसी पेड के नीचे दबा दे| ऐसा वर्ष मे दो या तीन बार करे | इस क्रिया को कीड़ी नागरा कहते हैं |
12)  प्रतिदिन भोजन मे से कुछ हिस्सा गाय,कुत्ते व कव्वे को ज़रूर डाले |
13) अपनी आय का दसवां हिस्सा गरीबो हेतु दान दिया करे |
14) हिंजड़ों को हरी वस्तुए दान देकर उनसे कोई एक सिक्का तथा आशीर्वाद लेकर वह सिक्का अपने धनस्थान मे रखे |

इस प्रकार इन छोटे छोटे उपायो से आप स्वयं को भाग्यवान बना ना सिर्फ अपनी आर्थिक स्थिति मे सुधार ला सकते हैं बल्कि जीवन मे सफल भी हो सकते हैं और कह सकते हैं की आप भी हैं भाग्यवान .........

गुरुवार, 6 अगस्त 2015

ग्रह चाल और बाज़ार

ग्रह चाल और बाज़ार

वस्तु बाज़ार और शेयरो पर भी ग्रहो की चाल का असर होता हैं ऐसा कई बार देखने मे आता हैं की जब आकाश मे विचरण करते समय कोई भी ग्रह जब अपनी चाल बदलता हैं,किसी अन्य ग्रह से युति करता हैं या एक राशि से दूसरी राशि मे प्रवेश करता हैं तब बाज़ार मे कुछ न कुछ प्रभाव उस ग्रह से संबन्धित वस्तु पर ज़रूर पड़ता हैं ऐसा ही अभी कुछ दिनो पहले देखने मे आया जब अचानक सोना एकदम से लगभग 25000 रु प्रति 10 ग्राम पर आ गया बाज़ार के इस अप्रत्याशित व्यवहार को देखते हुये हमने प्रस्तुत लेख मे अपने व्यापारी भाइयो के लिए इसी पर कुछ प्रकाश डालने का प्रयास किया हैं की किस प्रकार ज्योतिष की मदद से हम बाज़ार से सही समय पर निवेश कर लाभ प्राप्त कर सकते हैं | कुछ सूत्र इस प्रकार से हैं |

चन्द्र ग्रह जब जब मेष,मिथुन,कर्क,तुला,मकर व कुम्भ राशि मे भ्रमण करता हैं तब तब तेल बाज़ार मे तेजी आती हैं |

अमावस्या जब वृष,सिंह,कन्या,वृश्चिक,धनु या मीन राशि मे पड़ती हैं तब तिलहन बाज़ार मे एक महीना मंदी  रहती हैं |

कन्या राशि के बुध पर चन्द्र की युति या दृस्टी होने से बाज़ार मे मंदी आती हैं जबकि कर्क राशि मे बुध संग चन्द्र होने से बाज़ार मे तेजी आती हैं |

मेष राशि मे चन्द्र मंगल की युति हो या चन्द्र से सप्तम भाव मे मेष का मंगल हो तब बाज़ार मे तेजी आती हैं जबकि चन्द्र मंगल की युति तुला या वृश्चिक राशि मे हो या इन राशियो पर स्थित चन्द्र पर मंगल की दृस्टी हो तब बाज़ार मंदा रहता हैं |

चन्द्र मेष राशि मे हो और मंगल अपने ऊंचान्श मे हो या चन्द्र मंगल की युति मकर राशि मे हो तब बाज़ार मे तेजी आती हैं |

कुम्भ व मीन राशि पर चन्द्र मंगल की युति या मकर व कुम्भ राशि मे स्थित चन्द्र पर मंगल की दृस्टी बाज़ार को मंदा रखती हैं |

मेष राशि के बुध चन्द्र बाज़ार को तेजी देते हैं |

गुरु व चन्द्र की युति या गुरु पर चन्द्र की दृस्टी बाज़ार मे मंदी लाती हैं |

शुक्र की राशि मे चन्द्र शुक्र की युति बाज़ार मे तेजी लाती हैं |

शुक्र तुला,मकर या कुम्भ मे हो और चन्द्र तुला राशि मे भ्रमण करे तब बाज़ार मे तेजी आती हैं |

गुरु वृष वृश्चिक या मीन मे हो और चन्द्र धनु या मीन से भ्रमण करे तब बाज़ार मे मंदी आती हैं |

कर्क राशि तथा अग्नि तत्व राशियो मे चन्द्र शुक्र युति बाज़ार मे भारी तेजी लाती हैं |

स्वराशिस्थ शनि के उपर से चन्द्र भ्रमण बाज़ार मे तेजी लाता हैं |

शनि चन्द्र का संबंध बाज़ार मे तेजी लाता हैं |

शुक्र का भ्रमण मंगल की और होने से मंदी होती हैं जोकि इनकी युति होने तक रहती हैं |

शनि का भ्रमण गुरु की राशि मे होने से बाज़ार मे तेजी आती हैं |

कन्या व धनु राशि का मंगल बाज़ार मे तेजी लाता हैं |

तिलहन बाज़ार मे शुक्र के बलवान होने पर तेजी व गुरु के बलवान होने पर मंदी होती हैं |

सूर्य का मघा नक्षत्र मे भ्रमण बाज़ार मे मंदी तथा पूर्वा फाल्गुनी मे भ्रमण तेजी लाता हैं |

सूर्य जब जब केतू,सूर्य,चन्द्र गुरु व बुध के नक्षत्रो मे भ्रमण करेगा बाज़ार मे तेजी रहती हैं |

गुरुवार का सूर्य ग्रहण व शनिवार का चन्द्र ग्रहण तिलहन बाज़ार मे तेजी लाते हैं |

सूर्य शनि की युति तिलहन बाज़ार मे मंदी तथा गुरु शुक्र कि युति अफरा तफरी लाती हैं |

सोमवार को तेजी या मंदी मंगलवार दोपहर तक रहती हैं इसी प्रकार मंगल वार की तेजी मंदी बुधवार दोपहर तक रहती हैं बुधवार की मंदी गुरुवार को तेजी मे बदलती हैं जबकि गुरुवार की तेजी शुक्रवार दोपहर के बाद मंदी और शनिवार को तेजी मे बदल जाती हैं शनिवार को आई मंदी या तेजी मंगलवार दोपहर तक रहती हैं जबकि रविवार की तेजी मंदी सोमवार को उल्टी दिशा मे चलती हैं |

वस्तुओ मे तेजी मंदी सोम,मंगल,शुक्र व शनि वारो को ही बनती हैं |