सोमवार, 30 अक्तूबर 2023

औषधि के रूप मे मसाले

 

वैसे तो हम भोजन में रोजाना ही मसाले खाते हैं, लेकिन जानकारी हो तो यही मसाले कई बड़े-बड़े रोगों से भी मुक्ति दिला सकते हैं । मसालों का उपयोग सिर्फ भोजन का स्वाद बढ़ाने के लिए ही होता है, ऐसा नहीं है । मसाले अपने आप में अपार चिकित्सकीय गुण समेटे हुए हैं ।

विशेषज्ञ अब यह मानने लगे हैं कि ये मसाले जहां एक ओर बहुत-सी बीमारियां दूर करते हैं, वहीं इनमें मोटापा कम करने का गुण भी है, हाल ही में किए गए एक शोध से पता चला है कि अगर मिर्च, काली मिर्च और कुछ दूसरे मसालों को लगातार प्रयोग में लाया जाए तो न सिर्फ पाचन शक्ति मजबूत होती है बल्कि शरीर पर जमी चर्बी भी घटती है ।

खासकर अजवायन, लौंग,हल्दी, जीरा, धनिया, सौंफ, सोंठ आदि हमारे लिए उपयोगी मसाले हैं ।


मसाले के रूप में प्रयुक्त होने वाली लौंग के नियमित सेवन से मुंह की बदबू व दांतों की सड़न दूर होती है । लौंग का तेल दांत दर्द में लाभकारी है,यह खुद दंत चिकित्सक मानते हैं । मसूड़ों की सूजन व मुंह के भीतर किसी भी प्रकार के घाव की यह रामबाण औषधि है ।




पाचन की दृष्टि से अजवायन बहुत गुणकारी मानी गई है। विभिन्न प्रकार के भोजन को सरलता से पचाने में यह मदद करती है। अफारा, पेट दर्द, उदर- कृमि, वायु-गोला, अपचन, शूल, वमन आदि बीमारियों के उपचार में अजवायन कारगर भूमिका निभाती है। साथ ही हिचकी, डकार व मिचलाहट जैसी सामान्य तकलीफों को भी यह दूर करती है। अजवायन का सेवन फेफड़े संबंधी रोगों में भी राहत प्रदान करता है। नजला, जुकाम व सिर दर्द जैसी सामान्य अवस्थाओं में अजवायन का महीन चूर्ण बनाकर सूंघने से राहत मिलती है। अजवायन को गुड़ में मिलाकर तीन बार कुछ दिन तक खिलाने से उदर कृमि बाहर निकल जाते हैं तथा सोते हुए बच्चों द्वारा बिस्तर गीला करने की शिकायत भी दूर होती है। अजवायन का काढ़ा बनाकर पीने से खांसी में आराम लिता है तथा कफ धीरे-धीरे निकल जाता है।



छोटा-सा जीरा बड़े औषधीय गुणों को समेटे है । मकड़ी काटे के दाग मिटाने के लिए नियमित रूप से जीरा पानी में पीसकर लेप करें। जीरे को पानी में उबालकर पीने से पाचन ठीक होता है और मूत्र साफ आता है। बिच्छू काटने पर घी, शहद, नमक व जीरा चूर्ण मिलाकर लेप करने से राहत मिलती है। मुंह के छालों को दूर करने के लिए पानी में थोड़ा-सा जीरा चूर्ण तथा थोड़ी-सी भुनी फिटकरी मिलाकर कुल्ला करने से लाभ होगा। गर्भवती महिला को पित्त के साथ उल्टियां हों तो जीरा चूर्ण, नींबू के रस में मिला कर देने से आराम मिलता है। पथरी व पेशाब की रुकावट में जीरा चूर्ण मिश्री के साथ लेने से लाभ होता है। काले जीरे को भूनकर दही के साथ खाने से दस्त ठीक हो जाते हैं। काले जीरे को घी में भूनकर हुक्के में पीने से जुकाम दूर हो जाता है। इसके चूर्ण को गुड़ के साथ खाने पर स्त्री के दूध में वृद्धि होती है ।



मसाले के रूप में सौंफ का भी औषधीय उपयोग है। सौंफ आंतों की कार्यक्षमता बढ़ाती है और खुश्की दूर करके कब्ज ठीक करती है। यह उल्टी, अजीर्ण एवं पेट दर्द में लाभदायक है। मुंह के छाले दूर करने के लिए भी सौंफ का बड़ा महत्व है। मूत्र एवं पाचन तंत्रिकाओं के विकार भी सौंफ के नियमित सेवन से नियंत्रित होते हैं। जिन लोगों को रतौंधी की शिकायत है, उन्हें सौंफ दोनों वक्त भोजन के उपरांत नियमित रूप से खानी चाहिए। सौंफ का नियमित सेवन करने से खट्टी डकारें और सांस की बदबू दूर होती है। साथ ही उदर विकारों में भी आराम मिलता हैं | बच्चों को पेट दर्द की शिकायत होने पर सौंफ का काढ़ा बनाकर पिलाने से लाभ मिलता है । सोंठ और सौंफ को घी में भूनकर, उसका चूर्ण बनाकर सेवन करने से आम का पाचन होता है और आमातिसार में लाभ होता है ।


काली मिर्च भी कई जटिल रोगों के इलाज में सहायक है । काली मिर्च कफ़नाशक हैं और दूषित बलगम को निकालकर नाक व फेफड़ों को साफ करती है । गला बैठने पर भोजन के साथ इसका चूर्ण घी में मिलाकर थोड़ी-थोड़ी देर बाद खाने से आराम मिलेगा । पित्त उछलने की स्थिति में काली मिर्च को घी के साथ खाने से आराम मिलता है ।


हल्दी भी औषधीय दृष्टि से उपयोगी मसाला है । हल्दी का धुआं सूंघने पर नाक में पानी आना, सांस की तकलीफ और हिचकी आना बंद हो जाता है। हल्दी का चूर्ण बुरकने से घाव जल्दी भरता है । हल्दी का चूर्ण दो-तीन ग्राम की मात्रा में दूध में मिला कर पीने से खांसी में आराम मिलता है तथा यह बहते रक्त को भी रोक देता है । इसके अलावा आंवले का चूर्ण या रस हल्दी चूर्ण में मिला कर शहद के साथ चाटने से शूगर की बीमारी में आराम आता है ।



मसाले के तौर पर धनिए का महत्व भी कम नहीं है । बुखार के साथ उल्टी और सिरदर्द होने पर इसके पत्तों का रस या काढ़ा पीने से आराम मिलता है । इसके बीजों के चूर्ण को रात भर पानी में डाल कर सुबह मसलकर छानकर पीने से पेशाब की रुकावट, शरीर में जलन व आंतों की गर्मी दूर होती है ।


सोंठ भी उपयोगी मसाला है। हृदय की दुर्बलता होने पर सोंठ के गर्म काढ़े में नमक मिला कर पीने से आराम मिलता है । सोंठ अग्निवर्द्धक है,यह पेट की तकलीफों को दूर करती है । बवासीर और पीलिया में दस ग्राम सोंठ गुड़ के साथ लेने से लाभ होता है । पिसी हुई सोंठ को गर्म दूध में मिला कर पीने से हिचकी बंद हो जाती है । सोंठ का चूर्ण पानी के साथ लेने पर दांत के दर्द में आराम मिलता है । अफारा और बवासीर में सोंठ लाभकारी है। सोने से पूर्व सोंठ का काढ़ा पीने से अच्छी नींद आती है ।

शुक्रवार, 27 अक्तूबर 2023

मानव शरीर में उँगलियों का महत्व




जब दोनों हाथों की सभी उँगलियाँ - अंगुष्ठ से अंगुष्ठ, तर्जनी से तर्जनी, मध्यिका से मध्यिका, अनामिका से अनामिका एवं कनिष्का से कनिष्का मिलती है तो शरीर के, जो ब्रह्मांड का एक छोटा रूप माना जाता है, उत्तरी ध्रुव (बायाँ हाथ) एवं दक्षिण ध्रुव (दायाँ हाथ) के मिलन से एक चक्र पूर्ण होता है, क्योंकि बाएँ हाथ में स्थित सभी बारह राशियों का संपर्क दाहिने हाथ में स्थित सभी बारह राशियों से परस्पर होता है !

 अँगूठा :

सबसे पहली उँगली को अँगूठा या अंगुष्ठ कहते हैं ! इसका स्थान सबसे महत्वपूर्ण होता है ! यह अन्य चारों उँगलियों का मुख्य सहायक है ! इसकी सहायता के बगैर अन्य चारों उँगलियाँ कार्य संपन्न नहीं कर सकतीं ! बंद मुट्ठी से अँगूठे को बाहर निकालकर दिखाने को अँगूठा दिखाना या ठेंगा दिखाना कहा जाता है, जिसका तात्पर्य हमारे यहाँ किसी कार्य को करने से मना करना समझा जाता है परंतु पश्चिमी सभ्यता में ठीक उलटा यानी थम्स आपको कार्य करने की स्वीकृति समझा जाता है। यूँ तो दुनिया में कई करोड़ मनुष्य हैं, परंतु जिस प्रकार सबकी मुखाकृति भिन्न होती है, उसी प्रकार सभी के अँगूठों के निशान भी भिन्न होते हैं ! इसी कारण अपराध जगत में थम्ब इम्प्रेशन का महत्व काफी होता है !

तर्जनी :

यह सबसे ऊर्जावान उँगली होती है ! हमारे यहाँ विश्वास किया जाता है कि जो बच्चा जितने अधिक दिनों तक उँगली पकड़कर चलता है, वह बड़ों से उतनी ही ऊर्जा प्राप्त करता है ! उसका विकास भी उतनी ही तीव्र गति से होता है ! तर्जनी की ऊर्जा इतनी अधिक होती है कि कुछ फल मात्र इसके संकेत से ही मर जाते हैं !

देखिए तुलसीदासजी लिखते हैं

इहां कुम्हड़ बतिया कोउ नाहीं

जो तर्जनी देखि मर जाहीं !!

ऐसी मान्यता भारत के अलावा अन्य कई देशों में भी है कि नन्हे फल तर्जनी के संकेत से मर जाते हैं ! सबसे पहली उँगली को अँगूठा या अंगुष्ठ कहते हैं। इसका स्थान सबसे महत्वपूर्ण होता है ! यह अन्य चारों उँगलियों का मुख्य सहायक है ! इसकी सहायता के बगैर अन्य चारों उँगलियाँ कार्य संपन्न नहीं कर सकतीं ! इसलिए वहाँ किसी को तर्जनी दिखाना अच्छा नहीं माना जाता। तर्जनी का प्रयोग लिखने के लिए अथवा मुख्य कार्य के लिए होता है, जिसके सहायक मध्यिका एवं अँगूठा होते हैं। इसकी ऊर्जा का अंदाज मात्र इस बात से लगाया जा सकता है कि किसी भी प्रकार का जप करते समय माला के किसी भी मनके से इसका स्पर्श पूर्णतया वर्जित है !

मध्यिका

यह हाथ की सबसे लंबी उँगली तो है परंतु इसका मुख्य कार्य तर्जनी की सहायता करना है। संभवतः इसी कारण जाप में मनकों से इसका भी स्पर्श निषिद्ध माना जाता है !

अनामिका

यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण उँगली है ! इसका सीधा संबंध हृदय से होता है। अतः सभी शुभ कार्यों में इसकी मान्यता सबसे अधिक है ! इसी कारण जप की माला का संचरण इसके एवं अँगूठे की सहायता से किया जाता है ! धार्मिक कृत्यों हेतु कुशा भी इसी उँगली में धारण की जाती है ! ग्रहों और नक्षत्रों से संबंधित लगभग सभी रत्न अँगूठी के माध्यम से इसी में धारण किए जाते हैं, जिसके पीछे कारण यह है कि वह रत्न सूर्य से वांछित ऊर्जा प्राप्त कर जातक (धारण करने वाले) को प्रदान करते हैं, जिससे उसके भीतर वांछित ऊर्जा की कमी दूर होती है ! वह लोग जो मंत्रों का जप उँगलियों के माध्यम से करते हैं, अपनी गणना इसी उँगली से प्रारंभ करते हैं !

कनिष्ठिका

यह हाथ की सबसे छोटी  उँगली है, जो हर प्रकार से अनामिका की सहायता करती है ! इसे अनामिका की सहायक कहा जाता है !  

किसी - किसी व्यक्ति के हाथ में छः उँगलियाँ भी होती हैं,लोगों का विश्वास है कि जिन पुरुषों के दाहिने हाथ में एवं जिन स्त्रियों के बाएँ हाथ में छः उँगलियाँ होती हैं, वे बड़े भाग्यशाली होते हैं |

ज्योतिष विद्या के अनुसार बारहों राशियों का स्थान प्रत्येक उँगली के तीन पोरों (गाँठों) में इस प्रकार होता है -

कनिष्का      मेष, वृष, मिथुन !

अनामिका  कर्क, सिंह, कन्या !

मध्यिका    तुला, वृश्चिक, धनु !

तर्जनी        मकर, कुंभ, मीन !

शरीर का निर्माण पाँच तत्वों से हुआ है -

अग्नि, वायु, आकाश, पृथ्वी और जल ! इसका निवास क्रमशः अँगूठा, तर्जनी, मध्यिका, अनामिका एवं कनिष्ठा में माना जाता है !

दो या दो से अधिक उँगलियों के मेल से जो यौगिक क्रियाएँ सम्पन्न की जाती हैं, उन्हें योग मुद्रा कहा जाता है, जो इस प्रकार हैं - 

1. वायु मुद्रा - यह मुद्रा तर्जनी को अँगूठे की जड़ में स्पर्श कराने से बनती है |

2. शून्य मुद्रा - यह मुद्रा बीच की उँगली मध्यिका को अँगूठे की जड़ में स्पर्श कराने से बनती है |

3. पृथ्वी मुद्रा - यह मुद्रा अनामिका को अँगूठे की जड़ में स्पर्श कराने से बनती है |

4. प्राण मुद्रा - यह मुद्रा अँगूठे से अनामिका एवं कनिष्का दोनों के स्पर्श से बनती है |

5. ज्ञान मुद्रा - यह मुद्रा अँगूठे को तर्जनी से स्पर्श कराने पर बनती है |

6. वरुण मुद्रा - यह मुद्रा दोनों हाथों की उँगलियों को आपस में फँसाकर बाएँ अँगूठे को कनिष्का का स्पर्श कराने से बनती है |

सभी मुद्राओं के लाभ अलग-अलग हैं !

दोनों हाथों को जोड़कर जो मुद्रा बनती है, उसे प्रणाम मुद्रा कहते हैं ! जब यह दोनों जुड़े हुए हाथ मस्तिष्क तक पहुँचते हैं तब प्रणाम मुद्रा बनती है ! प्रणाम मुद्रा से मन शांत एवं चित्त में प्रसन्नता उत्पन्न होती है ! अतः आइए, हेलो, हाय, टाटा, बाय को छोड़कर प्रणाम मुद्रा अपनाएँ और चित्त को प्रसन्न रखें !

गुरुवार, 26 अक्तूबर 2023

हस्तरेखा से जाने धन-लाभ :


प्रायः हर व्यक्ति यह चाहता है कि उसे अचानक भारी धन-लाभ हो, चाहे किसी भी प्रकार से हो ! इस अचानक लाभ के लिए व्यक्ति अपनी जमापूँजी को भी लॉटरी, रेस, सट्टा आदि में लगा देते हैं ! इस तरह अपनी परिश्रम से कमाई हुई दौलत को बर्बाद करना सर्वथा अनुचित है ! यह भी जान लेना जरूरी है कि वास्तव में आपके भाग्य में आकस्मिक धन-लाभ प्राप्त होना है या नहीं !

हस्तरेखा के अनुसार जिनके दाहिने हाथ पर चंद्र के उभरे हुए भाग पर तारे का चिह्न है और जिनकी अंतःकरण रेखा शनि के ग्रह पर ठहरती है, ऐसे व्यक्तियों को आकस्मिक लाभ मिलता है !

जिनके दाहिने हाथ की बुध से निकलने वाली रेखा चंद्र के पर्वत से जा मिलती है और जिनकी जीवन रेखा भी चंद्र पर्वत पर जाकर रुक जाती है, ऐसे व्यक्तियों को अचानक भारी लाभ होता है !

जिनकी भाग्य रेखा चंद्र पर्वत से निकलकर प्रभावी शनि में संपूर्ण विलीन हो जाती है, ऐसे भाग्यवान व्यक्तियों को अल्पकालीन धन-लाभ होता है !

जिनके दाहिने हाथ पर दोहरी अंत.करण रेखा है और गौण रेखा बुध तथा शनि के ग्रहों से जुड़ी हुई है, ऐसे व्यक्तियों को अचानक भारी लाभ होगा । इसके विपरीत जिनके हाथों की आयुष्य रेखा नेपच्युन ग्रह पर गई हों, चंद्र और नेपच्युन पर्वत एक-दूसरे में घुल-मिल गए हों, अंतःकरण रेखा गुरु पर्वत पर ठहर गई हो, जिनके शनि के उभरे हुए भाग पर फुली पड़ गई हो, ऐसे व्यक्तियों को रेस, लॉटरी इत्यादि में धन-लाभ कभी नहीं होगा, उनका पूरा जीवन कड़ा परिश्रम करने में ही गुजरता है । वे पैसे गँवाकर कंगाल बने रहते हैं !

बुधवार, 25 अक्तूबर 2023

सामुद्रिक शास्त्र द्वारा हस्त परीक्षण -1


मुखमण्डल तथा सम्पूर्ण शरीर के अध्ययन की विद्या है,भारत में यह विद्या वैदिक काल से ही प्रचलित रही है, गरुड पुराण में सामुद्रिक शास्त्र का वर्णन किया गया है !

मानव - शरीर के विभिन्न अंगों की बनावट के आधार पर उसके गुण – कर्म - स्वाभावादि का निरूपण करने वाली विद्या आरम्भ में लक्षण शास्त्र के नाम से प्रसिद्ध थी |

हाथ की परीक्षा -

प्रातःकाल शौच-स्नानादि से निवृत्त होकर देवपूजनोपरांत अपने हाथ में श्रीफल (नारियल), ऋतुफल, मिष्ठान्न, पुष्प एवं दक्षिणा आदि लेकर हस्त परीक्षक की सेवा में उपस्थित होना चाहिए ! सामान्यतः पुरुषों का दायाँ तथा स्त्रियों का बायाँ हाथ देखना चाहिए ! अतः वर्तमान जीवन की जानकारियाँ दाएँ हाथ से तथा पूर्व-जन्मार्जित कर्म-फल विषयक ज्ञातव्य बाएँ हाथ से प्राप्त करना चाहिए ! स्त्रियों के विषय में इससे विपरीत समझना चाहिए !

हस्त - परीक्षा का सर्वोत्तम समय प्रातःकाल का है ! ग्रहण के समय, श्मशान में, मार्ग में चलते समय तथा भीड़-भाड़ में हाथ नहीं देखना चाहिए ! हाथ दिखाने वाले के अतिरिक्त यदि कोई अन्य व्यक्ति भी उपस्थित हो तो उस समय हाथ नहीं देखना चाहिए,ल्दबाजी में हाथ देखना वर्जित है ! यदि किसी रेखा के साथ-साथ कोई और रेखा चले तो उस रेखा को शक्ति मिलती है । अतः उस रेखा का विशेष प्रभाव समझना चाहिए ! कमजोर, दुर्बल अथवा मुरझाई हुई रेखाएँ बाधाओं की सूचक होती हैं !

अस्पष्ट और क्षीण रेखाएँ बाधाओं की पूर्व सूचना देती हैं ! ऐसी रेखाएँ मन के अस्थिर होने तथा परेशानी का संकेत देती हैं ! यदि कोई रेखा आखिरी सिरे पर जाकर कई भागों में बँट जाए तो उसका फल भी बदल जाता है । ऐसी रेखा को प्रतिकूल फलदायी समझा जाता है !

टूटी हुई रेखाएँ अशुभ फल प्रदान करती हैं । यदि किसी रेखा में से कोई रेखा निकलकर ऊपर की ओर बढ़े तो उस रेखा के फल में वृद्धि होती है ! वैज्ञानिक अध्ययन से यह पता चलता है कि मस्तिष्क की मूल शिराओं का हाथ के अंगूठे से सीधा सम्बंध है ! स्पष्टतः अंगुष्ठ बुद्धि की पृष्ठ भूमि और प्रकृति को दर्शाने वाला सबसे महत्वपूर्ण अंग है ! बाएं हाथ के अंगूठे से विरासत में मिली मानसिक वृति का आकलन किया जाता है और दायें हाथ के अंगूठे से स्वअर्जित बुद्धि-चातुर्य और निर्णय क्षमता का अंदाजा लगाना सम्भव है ! अंगूठे और हथेली का मिश्रित फल व्यक्ति को अपनी प्रकृति के अनुसार ढाल पाने में सक्षम है ! व्यक्ति के स्वभाव और बुद्धि की तीक्ष्णता को अंगुष्ठ के बाद अंगुलियों की बनावट और मस्तिष्क रेखा सबसे अधिक प्रभावित करती है !

अमेरिकी विद्वान विलियम जार्ज वैन्हम के अनुसार व्यक्ति के हाव-भाव और पहनावे से उसके स्वभाव के बारे में आसानी से बताया जा सकता है !

अति बुद्धि संपन्न लोगों का अंगुष्ठ पतला और पर्याप्त लंबा होता है ! यह पहली अंगुली (तर्जनी) से बहुत पृथक भी स्थित होता है ! यह व्यक्ति के लचीले स्वभाव को व्यक्त करता है ! इस प्रकार के लोग किसी भी माहौल में स्वयं को ढाल सकने में कामयाब हो सकते हैं ! यह काफी सहनशील भी देखे जाते हैं ! इन्हें न तो सफलता का ही नशा चढ़ता है और न ही विफलता की परिस्थितियों से ही विचलित होते हैं ! इनकी सबसे अच्छी विशेषता या गुण इनका लक्ष्य के प्रति निरंतरता है !

यदि अंगुष्ठ का नख पर्व (नाखून वाला भाग) यदि बहुत अधिक पतला है तब व्यक्ति अंततः दिवालिया हो जाता है और यदि यह पर्व बहुत मोटा गद्दानुमा है तब ऐसा व्यक्ति दूसरों के अधीन रह कर कार्य करता है ! यदि नख पर्व गोल हो और अंगुलियां छोटी और हथेली में शनि और मंगल का प्रभाव हो तब जातक स्वभाव से अपराधी हो सकता है !

अंगुलियां कुल हथेली के चार में से तीन भाग के समकक्ष होनी चाहिए ! इससे कम होने से जातक कुएं का मेढक होता है ! उसके विचारों में संकीर्णता और स्वभाव में अति तक की मितव्ययता होती है ! सीमित बुद्धि संपन्न यह जातक भारी और स्थूल कार्यों को ही कर पाते हैं ! बौद्धिक कार्य इनके लिए दूर की कौड़ी होती है ! अक्सर इनको स्वार्थी भी देखा गया है ! इस प्रकार की अंगुलियां यदि विरल भी हो तो आयु का नाश करती हैं !

अंगुलियां के अग्र भाग नुकीले रहने से काल्पनिक पुलाव पकाने की आदत होती है ! जिससे व्यक्ति जीवन की वास्तविकता से अनभिज्ञ रहते हुए एक असफल जीवन जीता है !

अंगुलियां लम्बी होने से जातक बौद्धिक और सूक्ष्मतम कार्य बड़ी सुगमता से पूर्ण कर  लेता है और स्थूल कार्य भी इसकी पहुंच से बाहर नहीं होते हैं ! बहुत बार इस प्रकार के जातक नेतृत्व करते देखे जाते हैं ! इस प्रकार की अंगुलियों के साथ हाथ यदि बड़ा और चमसाकार हो तो जातक अपनी क्षमता का लोहा समाज को मनवा लेता है !

लंबी अंगुलियों के साथ यदि हथेली में शुक्र मुद्रिका भी हो तब जातक सर्वगुण सम्पन्न होते हुए भी भावुकतावश प्रगति के मार्ग में पिछड़ जाता है ! 

शनि मुद्रिका होने से दुर्भाग्य साथ नहीं छोड़ता है ! इस प्रकार के जातक अपनी योग्यता और क्षमता का पूर्ण दोहन नहीं कर पाते हैं ! जिसके कारण इनको जीवन में सीमित उपलब्धियों से ही संतोष करना होता है !

चंद्रमा का बहुत प्रभाव होने से जातक पर यथार्तता की अपेक्षा कल्पना हावी रहती है !

अंगुलियों के नाखून जब त्वचा में अंदर तक धंसे हों, साथ ही वह आकार में सामान्य से छोटे हों तब जातक की बुद्धि कमजोर होती है ! इसकी मनोवृत्ति सीमित और आचरण बचकाना होता है ! यह जातक आजीविका हेतु इस प्रकार के कार्य करते पाए जाते हैं, जिनमें बौद्धिक/शारीरिक मेहनत न के बराबर होते होती है !

कनिष्ठा सामान्य से अधिक छोटी हो तब जातक मूर्ख होता है। कनिष्ठा के टेढी रहने से जातक अविश्वसनीय होता है ! टेढ़ी कनिष्ठा को कुछ विद्वान चोरी करने की वृत्ति से भी जोड़ते हैं ! लेकिन इसे तभी प्रभावी मानना चाहिए जब हथेली में मंगल विपरीत हो, क्योंकि ग्रहों में मंगल चोर माना जाता है !

अंगुलियों का बैंक बैलेंस से सीधा सम्बंध  है । केवल अंगुलियों का निरक्षण कर लेने भर से ही इस तथ्य का अंदाजा लगाया जा सकता है कि व्यक्ति में धन संग्रह की प्रवृत्ति कहां तक है !

तर्जनी (पहली अंगुली) और मध्यमा (बीच की अंगुली) यदि बिरल (मध्य में छिद्र) हों तब निश्चित रूप से जीवन के मध्य काल के बाद ही धन का संग्रह हो पाता है !

यदि कनिष्ठा विरल हो तो वृद्धावस्था अर्थाभाव में व्यतीत होता है ! यदि अंगुलियों के मूल पर्व गद्देदार और स्थूल हों तब जीवन में विलास का आधिक्य रहता है !

सभी अंगुलियों के विरल होने से जीवन पर्यन्त धन की कमी रहती है ! सीधी, चिकनी और गोल अंगुलियां धन को बढ़ा देती है। सूखी अंगुलियां धन का नाश करती हैं !

वे अंगुलियां जिनके जोड़ों की गांठें बहुत उभरी हुई हों, संवेदनशील और कंजूस प्रवृत्ति दर्शाती हैं ! लेकिन ऐसी उंगलियों वाले जातक कड़ी मेहनत कर सकते हैं । यही इनकी सफलता का रहस्य होता है !

अंगूठे और अंगुलियों के आकार - प्रकार के अलावा हाथ की बनावट से हमें काफी कुछ जानकारी प्राप्त होती है !

समचौरस हथेली के स्वामी व्यवहारिक लेकिन ऐसे लोग स्वार्थी भी होंते हैं साथ ही समय आने पर किसी को धोखा भी दे सकते हैं ! इसके विपरीत लम्बवत हथेली के स्वामी भावुक और कल्पनालोक में विचरण करने वाले लोग होते हैं ! आमतौर पर यह जीवन में स्वतंत्र रूप से सफल नहीं रहते हैं ! तथापि यह नौकरी में ज्यादा सफल रहते हैं ! ऐसे लोग यदि स्वयं का व्यवसाय स्थापित करें तो प्रायः लम्बा नुकसान उठाते हैं ! अतः ऐसे लोगों को हमेशा नौकरी को तरजीह देनी चाहिए !   

हथेली का पृष्ठभाग समतल या कुछ उभार लेते हुए होना चाहिए ! ऐसी हथेली का जातक व्यवहारिक होता है ! यदि हथेली का करपृष्ठ बहुत अधिक उभार लिए हुए हो तब प्रायः व्यक्ति कर्कश स्वभाव और झगड़ालू होता है !

हथेली में जब गहरा गढ़ा हो तो प्रायः जातक अपनी बात पर कायम नहीं रह पाता है। ऐसे लोग जीवन मे अत्यंत संघर्ष के उपरांत ही कुछ हासिल कर पाते हैं !

हथेली का पृष्ठ भाग और कलाई हमेशा समतल होनी चाहिए ! यदि दोनों में ज्यादा अंतर है तब यह जातक को समाज में स्थापित होने से रोकती है ! ऐसे लोग अपने परिजनों से विरोध करते हैं ! समाज में इनकी प्रतिष्ठा कम होती है !

जिन हाथों में शनि-मंगल का प्रभाव हो वह लोग कानूनी समस्याओं का सामना करते हैं ! कुछ मामलों में ऐसे लोग अपराधी भी हो सकते हैं !

हथेली में राहु का प्रभाव होने पर जातक बुरी आदतों का शिकार हो जाता है ! वह धर्मभ्रष्ट भी हो सकता है ! मदिरापान कर सकता है या अभक्षण का भी भक्षण कर सकता है !


बुधवार, 18 अक्तूबर 2023

राहू केतू की दृस्टी का प्रभाव

केतु की दृष्टि का फल राहु के समान है । लग्न पर राहु की पूर्ण दृष्टि हो तो जातक रोगी, वातविकारी, उग्र स्वाभाव वाला, खिन्न चित्त वाला, उद्योग रहित, अधर्मी या नास्तिक होता है

दूसरे भाव पर पूर्ण दृष्टि हो तो जातक कुटुम्ब सुखहीन, धन नाशक, चंचल प्रकृति वाला होता है तथा उसे पत्थर से चोंट लग सकती है ।

तीसरे भाव पर पूर्ण दृष्टि हो तो जातक पराक्रमी, पुरुषार्थी, और पुत्र रहित होता है ।

चौथे भाव पर पूर्ण दृष्टि हो तो जातक उदर रोगी, मलिनसाधारण सुखी होता है ।

पंचम भाव पर पूर्ण दृष्टि हो तो जातक भाग्यशाली, धनी, व्यवहार कुशल, संतान से सुखी होता है ।

छठे भाव पर पूर्ण दृष्टि हो तो जातक शत्रुहंता, वीर, गुदा रोग से पीड़ित, व्ययशील, नेत्र पर निशान, पराक्रमी और बलवान होता है ।

सातवे भाव पर पूर्ण दृष्टि हो तो जातक धनवान, विषयी, कामी, नीच संगति प्रिय होता है ।

आठवे भाव पर पूर्ण दृष्टि हो तो जातक पराधीन, धनहीन, कंठ रोग से पीड़ित, धर्महीन, नीचकर्मरत, परिवार से अलग होता है ।

नवम भाव पर पूर्ण दृष्टि हो तो जातक भ्रात सुखहीन, ऐश्वर्यवान, भोगी, पराक्रमी, संततिवान होता है ।

दशम भाव पर पूर्ण दृष्टि हो तो जातक पितृ कष्टकारक, राजमान्य, उद्योगशील होता है ।

ग्यारहवे भाव पर पूर्ण दृष्टि हो तो जातक संततिकष्ट, नीच कर्मरत, अल्पलाभी होता है ।

बारहवे भाव पर पूर्ण दृष्टि हो तो जातक गुप्त रोगी, शत्रुहंता, कुमार्ग में धन व्यय करने वाला है ।