शनि लग्न को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो जातक श्याम वर्णी, नीच स्त्रीरत, स्वस्त्री से विमुख, और लम्पट होता है ।
शनि दूसरे भाव
को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो जातक 36 वर्ष तक धननाशक,
कुटुम्ब विरोधी, 19 वे वर्ष मे शारीरिक कष्ट, नाना
रोगो का शिकार होता है ।
शनि तीसरे
भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो जातक
पराक्रमी, अधार्मिक, भाइयो के सुख से
रहित, नीच संगती प्रिय, बुरे कार्य करने
वाला होता है ।
शनि चौथे भाव को
पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो जातक को प्रथम वर्ष मे शारीरिक कष्ट पाने वाला, 35-36 उम्र मे मे राज्याधिकार मे वृद्धि प्राप्त करने वाला और लाभ पाने पाने प्रतिष्ठित व्यक्ति होता है ।
शनि पांचवे भाव
को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो जातक नीचविद्या विशारद, नीच
जनप्रिय, और नीच कार्य करने वाला, संतान
हानि वाला होता है ।
शनि छठे
भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो जातक
शत्रु नाशक, मातुल कष्टकारक, नेत्र रोगी,
मधुमेह रोगी, धर्म से विमुख, कुकर्मरत
होता है ।
शनि सप्तम भाव को
पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो कलहप्रिय, 36 आयु वर्ष मे
मृत्युतुल्य कष्ट, धन नाशक और मलिन स्वभाव का होता है ।
शनि अष्टम भाव को
पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो कुटुम्ब विरोधी, राज्य हानि
उठाने वाला, 36 वर्ष की उम्र तक पिता का धन नाशक, रोगी
होता है ।
शनि नवम भाव को
पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो जातक देशाटन करने वाला, भाइयो से विरोध,
प्रवासी, धन प्राप्त करने वाला, नीच
कर्म रत, पराक्रमी, धर्महीन,
निंदक होता है ।
शनि दशम भाव को
पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो जातक पिता के सुख से वंचित, माता
को कष्टकरक, भूमिपति, राजमान्य,
सुखी होता है ।
शनि एकादश भाव को
पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो जातक पुत्र से सुखी, अनेक भाषाओ का ज्ञाता,
साधारण व्यापार से लाभ प्राप्त करने वाला होता है ।
शनि द्वादश भाव को
पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो जातक अशुभ कार्यो मे धन खर्च करने वाला, माता
को कष्टकारक, शत्रु नाशक, सामान्य लाभ
प्राप्त करने वाला होता है ।
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