सोमवार, 29 जनवरी 2018

फलित के कुछ अनुभवीय सूत्र


किसी भी कुंडली की मजबूती के लिए लग्न स्वामी अथवा लग्नेश का मजबूत होना ज़रूरी होता हैं लग्नेश का 3,6,8,12 भावो मे होना अशुभ माना जाता हैं क्यूंकी यह भाव हमेशा अशुभता प्रदान करते हैं लग्नेश भले ही पाप ग्रह हो उसका इन अशुभ भावो मे होना अशुभ ही होता हैं जबकि पाप ग्रहो का इन भावो मे होना शुभ माना जाता हैं लग्नेश का किसी भी प्रकार से 3,6,8,12 भावो से अथवा उनके स्वामियों से संबंध अशुभ ही होता हैं |

यदि कुंडली मे सूर्य बली होतो जातक सामान्य कद काठी वाला,प्रभावी,सात्विक,सम्मानित परंतु चिड़चिड़े स्वभाव का होता हैं |

यदि चन्द्र बली होतो जातक मीठा बोलने वाला,वात स्वभाव का रजोगुणी होता हैं |

मंगल बली होतो साहसी,लड़ाकू,अस्थिर मानसिकता वाला,लाल आँखों वाला तमोगुणी होता हैं |

बुध बली होतो जातक मनोहर रंग रूप वाला,बातुनी,बुद्दिमान,अच्छी याददाश्त वाला,पढ़ा लिखा ज्योतिष से प्रेम करने वाला किन्तु तमोगुणी होता हैं |

गुरु बली होतो जातक धार्मिक विचारो वाला,सदाचारी,वेदपाठी,पढ़ा लिखा व अच्छे चरित्रवाला सदगुणी होता हैं |

शुक्र बली होतो जातक सांसारिक वस्तुओ व सांसारिक कलाओ की चाह रखने वाला,शौकीन मिजाज व रजोगुणी होता हैं |

नि बली होने पर जातक पतला,आलसी,क्रूर,खराब दाँतो वाला,रूखा,जिद्दी,निष्ठुर तथा तमोगुणी होता हैं |

सूर्य व मंगल के प्रभाव मे होने पर जातक बात करते समय ऊपर की और देखता हैं |

शुक्र व बुध के प्रभाव मे जातक बात करते समय इधर उधर देखता हैं |

गुरु व चन्द्र के प्रभाव मे होने पर जातक साधारण दृस्टी से देखने वाला होता हैं |

शनि राहू केतू की प्रभाव मे होने पर जातक आधी आँखें खोलकर अपनी बाते करते हैं |

ग्रहो को अपनी मजबूती हेतु सही भावो मे होना चाहिए | लग्नेश का 12वे भाव मे होना व द्वादशेश का 10वे भाव मे होना जातक का जीवन गरीबी,अशांति व उपद्रव से भरा बताता हैं |

ग्रहो को लग्न से व अपने नियत भावो से 6,8,12 भावो मे नहीं होना चाहिए | ऊंच और नीच के ग्रह जब संग होतो ज्यादा शक्तिशाली होते हैं जैसे शुक्र व बुध मीन राशि मे होतो बुध का नीचभंग हो जाएगा जो बुध व शुक्र दोनों के भावो के लिए शुभता प्रदान करेगा इसी प्रकार नीच ग्रह जिस राशि मे हो उसका स्वामी यदि ऊंच राशि मे होतो यह नीच ग्रह भी ताकतवर हो शुभ फल प्रदान करेगा | 

शुभ ग्रहो को समान्यत: त्रिकोण भाव का स्वामी होकर केन्द्रीय भावो मे होना चाहिए जबकि अशुभ ग्रहो को केंद्र का स्वामी होकर त्रिकोण मे होना चाहिए | 3,6,8,12 भावो के स्वामी कमजोर होने चाहिए और 2,4,5,7,9,10,11 भावो के स्वामी बली होने चाहिए | चन्द्र गुरु व शुक्र केंद्र स्वामी होकर शुभ फल नहीं देते | लग्न जो पूर्व का प्रतिनिधित्व करता हैं उसमे बुध व गुरु दिग्बली होते हैं चतुर्थ भाव (उत्तर) मे शुक्र व चन्द्र,सप्तम भाव (पश्चिम) मे शनि तथा दसम भाव (दक्षिण) मे सूर्य व मंगल बली होते हैं |

जो जातक रात मे जन्म लेते हैं उनके लिए चंद्र,मंगल व शनि तथा जो दिन मे जन्म लेते हैं उनके लिए सूर्य,गुरु व शुक्र बली होते हैं जबकि बुध दोनों हेतु बली होता हैं |

स्वग्रही ग्रह शुभता देते हैं मुलत्रिकोण मे स्थित ग्रह भी ऊंच ग्रह की तरह ही शुभ फल देते हैं केंद्र मे स्थित ग्रह लग्नानुसार शुभाशुभ फल देते हैं 2,5,8,11 मे ग्रह अपना कम प्रभाव तथा 3,6,9,12 मे बहुत कम प्रभाव देते हैं |

अंतर्दशा नाथ जब शानाथ से 2,4,5,9,10,11 भाव मे होतो शुभफल,यदि 3,6,8,12 भाव मे होतो अशुभफल तथा 1-7 होने पर साधारण फल और एक दूसरे से 6/8 होने पर बहुत बुरा फल देते हैं |

शनि सूर्य से 6,शुक्र चन्द्र से 5,बुध मंगल से 12,गुरु बुध से 4,मंगल गुरु से 6,सूर्य गुरु से 12 वे भावो मे होतो शत्रुता रखते हैं | शुक्र से शनि 4 तथा गुरु 12 होतो शत्रुता रखते हैं जबकि गुरु शनि से 6 होने पर शत्रुता रखता हैं |

त्रिकोण व केंद्र स्वामियों की युति राजयोग बनती हैं दसवा भाव मजबूत केंद्र व नवा भाव मजबूत त्रिकोण होता हैं यदि नवमेश व दसमेश मे किसी भी प्रकार का संबंध हो,परिवर्तन तो यह एक बड़ा राजयोग होता हैं और यदि यह युति नवम या दसम भाव मे होतो बहुत ही शुभ फल मिलता हैं |

चन्द्र से 6,7,8, भावो मे शुभ ग्रह का होना भी राजयोग प्रदान करता हैं और यदि यह तीनों ग्रह लग्नेश के मित्र भी होतो जातक को ऊंच सफलता मिलती हैं |

लग्नेश का पंचम मे होना पंचमेश का नवम मे होना तथा नवमेश का लग्न मे होना एक बहुत ही बड़ा राजयोग देता हैं | यदि पाप प्रभाव ना होतो 3,6,8,12 भावो के स्वामियो की युति भी राजयोग देती हैं |

गुरु शुक्र युति राजाओ से मान सम्मान,अच्छी शिक्षा व बुद्दि तथा समाज मे बड़ा रुतबा देती हैं |

लग्न मे चन्द्र,गुरु छठे भाव मे,शुक्र दसवे भाव मे हो,शनि ऊंच अथवा स्वग्रही होतो जातक निर्विवाद रूप से राजा होता हैं |

          


    

शुक्रवार, 26 जनवरी 2018

विवाह हेतु वर्जित नक्षत्र व मास


1)पुष्य नक्षत्र इस नक्षत्र में ब्रह्मा मूर्छित हुए थे इसलिए विवाह हेतु यह नक्षत्र वर्जित होता है |

2)पूर्व फाल्गुनी – इस नक्षत्र में माता सीता का विवाह हुआ था इसलिए विवाह हेतु यह नक्षत्र वर्जित होता है |

3)अभिजीत नक्षत्र में दमयंती का विवाह हुआ था अतः यह भी विवाह हेतु वर्जिहै |

इनके अतिरिक्त अश्विनी,चित्रा,श्रवण और धनिष्ठा नक्षत्रो मे भी कतिपय कारणो से विवाह वर्जित किया गया है |

अश्विन मास में विवाह होने से स्त्री को सुख नहीं मिलता |

श्रावण मास में विवाह होने से स्त्री को गृह सुख नहीं मिलता |

कार्तिक मास में विवाह होने से तेज व शक्ति की हानि होती है |

चैत्र मास में विवाह नशे में आसक्ति देता है |

मार्गशीर्ष मास मे विवाह अन्न का भाव देता हैं |

भाद्रपद मास मे विवाह पुरुष को स्त्री के सुख की समाप्त करवाता हैं |

पौष मास में विवाह स्त्री को पति सुख में कमी प्रदान करता है |

इनके अतिरिक्त कर्क लग्न,जन्मलग्न,जन्मनक्षत्र,जन्म मास अथवा जन्मदिन भी विवाह हेतु वर्जित माने जाते हैं |
अतः इन सब मुहूर्तों का ध्यान रखकर ही विवाह किए जाने चाहिए |

मंगलवार, 23 जनवरी 2018

वास्तु और प्रवेश द्वारा (लाल किताब)

वास्तु और प्रवेश द्वारा लाल किताब के अनुसार कुंडली मे गुरु जिस भाव/घर में हो उसी अनुसार घर का प्रवेशद्वार अथवा दरवाजा बनाना चाहिए |

लग्न में हो तो पूर्व से उत्तर की ओर |

दूसरे भाव में उत्तर से पश्चिम की ओर |

तीसरे भाव में दक्षिण से पश्चिम की ओर |

चतुर्थ भाव में उत्तर से पूर्व की ओर |

पंचम भाव में पूर्व की ओर |

छठे भाव में उत्तर की ओर |

सातवें भाव में पश्चिम से दक्षिण की ओर |

अष्टम भाव में दक्षिण की ओर |

नवम भाव में परिवार के अन्य सदस्य की कुंडली के गुरु द्वारा |

दशम भाव में पश्चिम से उत्तर की ओर |

ग्यारहवें भाव में पश्चिम की ओर |

बारहवें भाव में गुरु हो तो पूर्व से दक्षिण की ओर दरवाजा बनाना चाहिए |




रविवार, 21 जनवरी 2018

कर्ज़ निवृत्ति (लाल किताब)

कर्ज़ निवृत्ति लाल किताब के अनुसार कर्ज़ निवृति के लिए निम्न उपाय करने चाहिए |

मेष लग्न वालों को शुक्र शनि का दान नहीं लेना चाहिए,चंद्र का दान देना चाहिए तथा बुध की पूजा करनी चाहिए |

वृषभ लग्न वाले को बुध और गुरु का दान नहीं लेना चाहिए,सूर्य वस्तुएं दान करनी चाहिए तथा शुक्र की पूजा करनी चाहिए |

मिथुन लग्न वालों को चंद्र मंगल का दान नहीं लेना चाहिए,बुध का दान देना चाहिए तथा मंगल की पूजा करनी चाहिए |

कर्क लग्न वालों को सूर्य का दान नहीं लेना चाहिए,शुक्र का दान देना चाहिए तथा शुक्र की ही पूजा करनी चाहिए |

सिंह लग्न वालों को बुध का दान नहीं लेना चाहिए,मंगल का दान देना चाहिए तथा शनि की पूजा करनी चाहिए |

कन्या लग्न वालों को शुक्र चंद्र का दान नहीं लेना चाहिए,गुरु का दान लेना चाहिए और शनि की पूजा करनी चाहिए |

तुला लग्न वालों को मंगल सूर्य का दान नहीं लेना चाहिए,शनि का दान देना चाहिए तथा शुक्र की पूजा करनी चाहिए |

वृश्चिक लग्न वालों को गुरु बुध का दान नहीं लेना चाहिए,शनि का दान देना चाहिए तथा मंगल की पूजा करनी चाहिए |

धनु लग्न वालों को शनि और गुरु का दान नहीं लेना चाहिए,गुरु का दान देना चाहिए तथा शुक्र की पूजा करनी चाहिए |

मकर लग्न वालों को शनि का दान नहीं लेना चाहिए,मंगल का दान देना चाहिए और बुध की पूजा करनी चाहिए |

कुंभ लग्न वालों को गुरु का दान नहीं देना चाहिए,शुक्र का दान देना चाहिए तथा चंद्र की पूजा करनी चाहिए |

मीन लग्न वालों को मंगल और शनि का दान नहीं लेना चाहिए,बुध का दान देना चाहिए तथा सूर्य की पूजा करनी चाहिए |


शुक्रवार, 19 जनवरी 2018

सामान्य ज्योतिष.... 2



ज्योतिष के मुख्यत: 3 विद्यालय पराशरी,जैमिनी व ताजिक हैं जिनके द्वारा किसी भी जातक की कुंडली अथवा जन्मपत्री देखी जा सकती हैं यदि इनमे से किसी भी एक विद्या का ज्योतिषी को अच्छा ज्ञान होतो वो पूर्णरूप से भलीभाँति किसी भी तरह की कुंडली का केवल आयु साधन को छोड़कर सटीक फलित कर सकता हैं | आयु के लिए जैमिनी ज्योतिष द्वारा दी गयी विधि बेहतरीन व काफी हद तक सही साबित होती हैं |

हिन्दू ज्योतिष जातक विशेष के लिए उसके चरित्र चित्रण के अतिरिक्त कुछ और नहीं बताता हैं जो की कुंडली मे मुख्य रूप से चन्द्र ( मानसिकता ) व सूर्य (व्यक्तित्व) के द्वारा देखा जाता हैं जिससे जातक विशेष के भावी जीवन मे होने वाली शुभाशुभ घटनाओ को दशाओ व गोचर के माध्यम द्वारा देखा या जाना जा सकता हैं |

भविष्यवाणी ज्ञान व अनुभव के अतिरिक्त पूर्वानुमान से भी की जाती हैं ये माना जाता हैं की कोई भी अच्छा ज्योतिषी यदि प्राचीन विद्वानो द्वारा दिये गए सूत्रो का सही प्रयोग व उपयोग करे तो वह एक अच्छा व सफल भविष्यवक्ता हो सकता हैं |

पाश्चात्य ज्योतिष ग्रहो की केन्द्रीय दृस्टी को बुरा व त्रिकोणिय दृस्टी को शुभ बताता हैं परंतु हिन्दू ज्योतिष ग्रह के स्वभाव अनुसार दृस्टी को देखकर उसकी शुभता या अशुभता का निर्धारण करता हैं जैसे चन्द्र का गुरु से केंद्र मे होना गजकेसरी योग का निर्माण करता हैं जिसे ज्योतिष मे बहुत शुभ योग माना जाता हैं जो जातक को काफी ऊंचाई प्रदान कर उसे सफल व प्रसिद्द बनाता हैं बहुत से नेताओ की पत्रिका मे ऐसा देखा जा सकता हैं |

हिन्दू ज्योतिष मे ग्रहो के बल को षडबल सिद्दांत द्वारा देखा जाता हैं जिसमे सूर्य व मंगल के बली होने पर जातक को ऊंच मान-सम्मान वाला तथा बलहीन होने पर निम्न मान सम्मान वाला माना व देखा जाता हैं |

बली चन्द्र जहां जातक को खुशदिल,खुले विचारो वाला होकर सभी से मित्रता करने वाला बनाता हैं वही नीच चन्द्र जातक को कमजोर स्तर का पद प्रतिष्ठा की परवाह ना करने वाला बनाता हैं |

बुध शुक्र का बली होना जातक को सरल स्वभाव वाला बुद्दिमान व्यक्तित्व प्रदान करता हैं | बली गुरु जहां सबका भला चाहने वाला,धार्मिक व ईश्वर भक्त बनाता हैं वही बली शनि जातक विशेष को जनता का प्रिय नेता बनाता हैं | इन सभी को ग्रहो की मजबूती के सासाथ उनकी कुछ अन्य विशेषताओ जैसे मित्रक्षेत्री,स्वक्षेत्री आदि के लिहाज से भी देखा जाना चाहिए

किसी भी जातक की पत्रिका मे किस भी भाव से संबन्धित होने वाली भावी घटना दुर्घटना को फलित करने के लिए भाव,भावस्वामी व कारक को ध्यान से देखा जाना चाहिए यदि स्वामी व कारक शुभ होतो जातक को उस नियत भाव का फल अवश्य ही मिलता हैं यदि भाव कमजोर होतो उस भाव से संबन्धित फलो को मिलने मे परेशानी आती हैं यदि भाव स्वामी व कारक सही होतो संबन्धित भाव के फल कुछ हद तक कम प्राप्त होते हैं |

प्रत्येक भाव कई कारको का होता हैं जैसे पंचम भाव प्रतिभा के अतिरिक्त संतान का भी  होता हैं ऐसे मे यह भी देखा जाना चाहिए की नियत भाव कब,किसका व क्या फल प्रदान करेगा |

मानसिक स्वास्थ्य हेतु पंचम भाव तथा शारीरिक स्वास्थ्य हेतु छठा भाव देखा जाना चाहिए ऐसे मे यदि पंचमेश व अष्टमेश का दुष्प्रभाव भी शामिल होतो बीमारी की जड़ जहां  मन,गुस्सा,दर,इच्छा व शोक से संबंधित हो तो मानसिक रूप की हो जाती हैं वही षष्ठेश का अस्तमेश से संबंध होतो परेशानी शरीर से संबन्धित हो सकती हैं इसलिए कुंडली का स्वास्थ्य के लिए ध्यान पूर्वक आंकलन किया जाना चाहिए |

भारतीय हिन्दू ज्योतिष मे योग व दशा का बड़ा महत्व हैं एक अच्छा ज्योतिष किसी की भी पत्रिका मे आयु के बाद योगो को पहले तथा दशा को बाद मे देखता हैं |

योगो का अर्थ संस्कृत मे ग्रहो की ऐसी स्थिति से होता हैं जो जातक को धनी,सफल,सामाजिक व राजनीतिक सत्ता प्राप्त या कर्जे या बीमारी से पीड़ित,कर्जदार,बुरे आचरण वाला होना दर्शाती हैं इन योगो को लगभग सभी ही कुंडलियों मे ध्यान से देखा जाना चाहिए |

अच्छे शुभ योग जहां जातक विशेष को सफल,धनी,प्रसिद्द व महान बनाते हैं वही बुरे व अरिष्ट योग जातक को असफल व निम्न स्तर वाला बनाते हैं यह योग कई प्रकार के हो सकते हैं जिनमे से कुछ योग धन योग,राज योग,ज्ञान योग,सन्यास योग तथा अरिष्ट योग के रूप मे हैं जिन्हे देश अथवा काल के हिसाब से देखा जाना चाहिए जैसे सन्यास योग भारत मे जहां जातक को पीले वस्त्र धारण कर ईश्वर की राह मे जाना बताता हैं वही अमरीका मे सन्यास योग का अर्थ जातक का समाज सेवी दार्शनिक सोच वाला होना बताता हैं |

ज्ञान संबन्धित लोगो की कुंडली मे ज्ञान योगो को देखना चाहिए जो गौतम बुद्द,शंकराचार्य व ईसा मसीह की कुंडली मे देखा जा सकता हैं |

हमारा हिन्दू ज्योतिष पंच महापुरुष योगो के बारे मे भी बहुत कुछ जानकारी प्रदान करता हैं जो मुख्यत: पाँच ग्रह मंगल,बुध,गुरु,शुक्र व शनि के द्वारा कुंडली के केन्द्रीय स्थिति मे अपनी  स्वराशी या अपनी ऊंच राशि मे होने से बनते हैं |

तुला लग्न मे यदि मंगल ऊंच या स्वराशी का होकर केंद्र मे होतो रुचक योग का निर्माण होता हैं जो जातक को प्रसिद्द व राजा के समान बनाता हैं परंतु यह योग जब सप्तम भाव को प्रभावित करता हैं तब जातक दूसरों को दबाने वाला,गुस्सैल व दबंग होता हैं हिटलर व स्टेलिन की कुंडलियों मे हम ऐसा स्पष्ट रूप से देख सकते हैं |     

गुरु जब केंद्र मे स्वराशि या ऊंच का होकर विराजित होता हैं तो हर्ष योग बनता हैं जो शुद्दता का प्रतीक होता हैं ऐसा जातक अच्छे आचरण वाला ईश्वर भक्त होता हैं अंग्रेज़ राजा जॉर्ज षष्ठ के दशम भाव मे यह योग देखा जा सकता हैं |

ऐसे ही कई नीच योग भी हैं जो जातक को एकाएक ऊंचे स्थान से गिरा देते हैं अमरीकी राष्ट्रपति रूज़वेल्ट की सिंह लग्न की पत्रिका मे गुरु पंचमेश-अष्टमेश होकर शनि षष्ठेश- सप्तमेश संग मेष राशि का होकर नवम भाव मे हैं जिस कारण जहां एक तरफ रूज़वेल्ट अपने जीवन मे इतना ऊंचा उठ सके वही दूसरी तरफ शनि महादशा मे इन्हे लकवा भी हुआ जो यह स्पष्ट दर्शाता हैं की शनि ग्रह ने जहां इन्हे इतनी ऊंचाई दी वही बीमारी भी प्रदान करी |  

ऐसे ही कई अन्य योग भी हैं जो हिन्दू ज्योतिष को दुनिया मे अलग ही महत्व वाला ज्योतिष बनाते हैं |

समय का निर्धारण जिससे किसी के जीवन मे आने वाले कल का पता चल सके हमारे भारतीय ज्योतिष मे बहुत ही सरलता व सटीकता से दशाओ के रूप मे मिलता हैं जिससे जातक के जीवन मे होने वाली भावी घटनाओ का पता आसानी से लगाया जा सकता हैं जबकि पाश्चात्य ज्योतिष मे ऐसा कोई भी सिद्दांत नहीं मिलता हैं |

कुंडली मे चन्द्र की स्थिति जातक के जन्म समय के बाद से आने वाला समय का दशा अनुसार पता बताती हैं जैसे यदि हिटलर की कुंडली देखे तो उसे जन्म समय से 16 वर्ष की शुक्र की महादशा मिली थी शुक्र लग्नेश होकर नवमेश बुध संग हैं जो पिता के विषय मे बताता हैं शुक्र स्वनक्षत्र का होकर मंगल केतू से संबन्धित हैं जिसपर शनि की भी दृस्टी हैं शुक्र महादशा के अंत से पहले ही पिता की मृत्यु हो गयी थी |

1,6,व 7 अथवा 1,7, व 8 भावो का संबंध जातक को जेल पहुंचाता हैं यहाँ शुक्र लग्नेश के साथ साथ अष्टमेश भी हैं जिसके संग मंगल सप्तमेश हैं जिसे गुरु षष्ठेश तीसरे भाव से देख रहा हैं कोई आश्चर्य नहीं की मंगल की दशा मे हिटलर को जेल जाना पड़ा था |

राहू दशा जो की 1933 से 1945 तक रही हिटलर के जीवन की सबसे बेहतरीदशा रही, राहू नवम भाव मे हैं राहू के गुरु (तृतीयेश व षष्ठेश) के नक्षत्र मे होने तथा सूर्य के संवेदन बिन्दु मे होने से इसी राहू दशा मे उसका अंत भी हुआ |

हिन्दू ज्योतिष का अकाट्य सूत्र हैं की यदि दशम भाव का शनि मंगल/राहू/केतू से दृस्ट होतो जातक का अचानक पराभव होता हैं हिटलर की पत्रिका मे के अलावा ऐसा कई कुंडली मे सटीकता से देखा जा सकता हैं | इस प्रकार देखे तो हिटलर का चढ़ना,प्राप्ति करना व गिरना हिन्दू ज्योतिष द्वारा दशा पद्दती से सपष्ट रूप से देखा जा सकता हैं |

यहा गोचरीय प्रभाव को भी नकारा नहीं जा सकता हिटलर की मृत्यु के समय शनि राहू की राशि/नक्षत्र से ही गुजर रहा था |

दशा अंतर्दशा को 4 माह से 3 वर्ष तक निश्चित देखा जा सकता हैं जैसे यदि किसी को तीसरे/छठे भाव के ग्रह की दशा मे अष्टम भाव मे स्थित ग्रह की अंतर्दशा आ जाये तो उसे दुख,पीड़ा जैसी परेशानी का सामना करना ही पड़ेगा |

भारतीय ज्योतिष मे 16 वर्गो को बहुत महत्व दिया गया हैं इनमे से भी मुख्यत: 10 वर्गो को ज़्यादा प्रयोग किया जाता हैं यदि कोई ग्रह एक से ज़्यादा वर्गो मे स्वक्षेत्री होता हैं तो उसका जातक की कुंडली मे बहुत महत्व हो जाता हैं जैसे सूर्य यदि 15 वर्गो मे स्वक्षेत्री होतो उसे वल्लभ अंश का ग्रह कहते हैं जिसमे जन्मा जातक राजनीति के क्षेत्र मे सबसे ऊंची पदवी पाता  हैं |

यदि मंगल 11वर्गो मे स्वक्षेत्री होतो उसे धन्वन्तरी अंश का ग्रह कहते हैं जिसमे जन्मा जातक चिकित्सा के क्षेत्र मे सबसे ऊंची पदवी प्राप्त करता हैं |

इन वर्गो मे सबसे ज़्यादा महत्व नवांश वर्ग का होता हैं यदि कोई ग्रहा कुंडली मे अच्छा शुभ व बली हो परंतु नवांश वर्ग मे वो नीच अथवा शत्रु क्षेत्री होतो उस ग्रह की दशा शुभता नहीं देती इसके विपरीत कुंडली का निर्बल,नीच ग्रह यदि नवांश वर्ग मे ऊंच हो गया हो उस ग्रह की दशा जातक को बहुत शुभता देती हैं |

नवांश द्वारा आयु निर्णय हेतु अंशायु निकालने का विधानभी हैं जिसमे ग्रह अपने अपने नवांश राशि द्वारा आयु के वर्ष प्रदान करते हैं भचक्र मे 12 नवांश के 9 चक्र होते हैं इस कारण मेष राशि का ग्रह नवांश मे 1 वर्ष तथा मीन राशि का ग्रह नवांश मे 12 वर्ष प्रदान करता हैं जिन्हे स्थिति व भाव अनुसार चक्रपाथ हरण कर आयु मे जोड़ अथवा घटाया जाता हैं |

अन्य वर्ग जिनके द्वारा भी बहुत कुछ देझा व जाना जा सकता हैं |

होरा-इससे जातक का धन,चरित्र,प्रकृति,धैर्य,स्वभाव,त्वचा का रंग,दबाव मे कार्य करने की क्षमता व 
तनाव सहने की क्षमता |

द्रेषकोण-इससे जातक के भाई बहन,परिवारिक ढांचा,मौत की प्रकृति जो अष्टम भाव के द्रेस कोण द्वारा पता चलती हैं जैसे आयुध ड्रेसकोण होतो शस्त्र द्वारा तथा सर्प ड्रेसकोण होतो ज़हर,हत्या,आत्महत्या अथवा दुर्घटना द्वारा मृत्यु होती हैं |

चतुर्थाश – इसे जातक की संपत्ति का पता चलता हैं |

पंचांश-इसके द्वारा जातक की भक्ति देखी जाती हैं |

षशठांश-इससे जातक के परिवार की आनुवांशिक बीमारी का पता चलता हैं |

सप्तमांश- जातक की संतान बताता हैं |

अष्टमांश-जातक की आयु का पता बताता हैं |

नवांश –जातक के वैवाहिक जीवन के अलावा जातक के जीवन मे आने वाले तनाव व विवाद के बारे मे भी बताता हैं |

दशमांश-जातक के काम करने के तरीके व काम के स्तर को बताता हैं |

संवेदनशील बिन्दु (2940-30कुमारांश)- वृष लग्न हो और लग्नेश शुक्र वृष मे ही हो,जन्म नक्षत्र पूर्वाषाढ़ा हो (चन्द्र 253’20 से 266’40) तिथि कृष्ण पक्ष की अष्टमी हो,दिन सोमवार का हो तो जब शनि वृष राशि के अंतिम अंशो से गुजरेगा तो जातक अपनी माँ को खो देगा ऐसे ही पिता की मृत्यु शनि के धनु राशि के अंतिम अंशो से गुजरने पर होगी | मंगल अंतर्दशा मे जातक राजनीतिज्ञ बनेगा | तीसरी मुख्य दशा के सूर्य अंतर्दशा मे जातक घर खरीदेगा राहू अंतर मे जब गुरु त्रिकोण से गुजरेगा तब जातक के घर बेटी पैदा होगी | इस प्रकार से कई अन्य संवेदनशील बिन्दु देखे जा सकते हैं जिनहे सूत्र के रूप मे लिखा जा सकता हैं |

जैमिनी मे सबसे ज्यादा अंश के ग्रह को आत्मकारक कहा जाता हैं जिसे कुंडली का नियंत्रक ग्रह भी कहते हैं ये ग्रह नवांश मे जहां होता हैं उसे लग्न बनाने पर जो हमें लग्न मिलता उसे कारकांश लग्न कहा जाता हैं जिससे जातक को होने वाली बीमारियो का पता चल जाता हैं | जैसे यदि आत्मकारक ग्रह यदि मिथुन नवांश मे होतो त्वचा रोग,धनु नवांश मे होतो हथियारो द्वारा दुर्घटना,मकर नवांश मे होतो डूबने का खतरा,तथा मीन नवांश होतो जल संबंधी बीमारी हो सकती हैं जिनमे शोध किए जाने की ज़रूरत हैं |

कारकांश लग्न से छठे भाव मे पाप प्रभाव जातक को गंभीर बीमारी तथा कारकांश लग्न से अष्टम भाव मे पाप प्रभाव जातक के जीवन मे आत्महत्या व दुर्घटना आदि का होना बताता हैं | कारकांश लग्न से अष्टम भाव मे राहु-केतू जातक के जीवन मे एक अलग ही अनुभव देते हैं जिससे उसकी मृत्यु ज़हर,आत्महत्या,अथवा हत्या के रूप मे होती हैं |पागल व्यक्तियों के कारकांश लग्न से अष्टम भाव मे बुध होता हैं |


नवांश द्वादशांश – जन्म समय यदि सही होतो स्त्री पुरुष की कुंडली का पता लग सकता हैं | नवांश द्वादशांश - जिसके अनुसार पुरुष राशि व स्त्री राशि द्वारा लिंग निर्धारण हो सकता हैं | नवांश द्वादशांश - हर नवांश 12 भागो मे बट जाता हैं जिससे प्रत्येक भाग 16’43 अर्थात 1 मिनट 6 सेकंड का होता हैं | ऐसे मे यदि लग्न मेष 4का होतो नवांश द्वादशांश सिंह का होगा जो पुरुष का जन्म बताएगा |