मंगलवार, 30 मई 2023

इच्छा पूर्ति के लिए क्या करे ?


कहा जाता है, यदि हमारी इच्छाएं रथ के घोड़े हैं तो मन उसका साथी है । मन के चाहने से ही इच्छाएं उत्पन्न होती हैं, बलवती होती हैं व परेशान या खुश करती हैं । साधारणतया, इच्छाओं को हम निम्न प्रकार से विभाजित कर सकते हैं -

1) धन या धन से प्राप्त होने वाली इच्छा ।

2) स्वस्थ शरीर या बीमारी दूर करने की इच्छा।

3) मधुर संबंध या सुखी व खुश परिवार की इच्छा व मान व प्रतिष्ठा प्राप्ति की इच्छा ।

4) आध्यात्मिक उन्नति की इच्छा ।

5) किसी का बुरा न करने की इच्छा ।

इच्छाएं कैसे पैदा होती हैं ?

हमारे शरीर में पांच कर्म इन्द्रियां हैं व पांच ज्ञान इन्द्रियां हैं । इन्द्रियां यानी इन्द्र (देवताओं का राजा ) की बहनें । यह सदा सुख सामग्री मांगती रहती हैं । जब मन बाह्य मुखी होता है तो दूसरों को देखकर अपनी इन्द्रियों को भी वैसा सुख देना चाहता है । वही इच्छा की उत्पत्ति का कारण है । इससे बचने का एकमात्र उपाय संतोष है तभी कहा गया है 'संतोषः परमं सुखम् ।

इच्छाएं कैसे पूरी करें -

(i) वर्गीकरण इसके लिए पहले हमें अपनी इच्छाओं को जरूरी, कम जरूरी व गैर जरूरी इच्छाओं की श्रेणी में विभाजित करना होगा । जितने भी नकारात्मक विचार हैं या किसी का बुरा करने की इच्छा है, उसे गैर जरूरी श्रेणी में लेना होगा । तत्पश्चात हमें जरूरी व कम जरूरी इच्छाओं की भी तीन श्रेणियां बनानी होंगी -

1. अभी इसी क्षण की जरूरत

2. एक दो साल के अंदर की जरूरत

3. सब कुछ प्राप्त होने के बाद की इच्छा

इनमें से स्वस्थ शरीर, मधुर संबंध, धन इत्यादि पहली श्रेणी (तत्क्षण जरूरत) में आते हैं। ऐश्वर्य,परीक्षा में मनोवांछित अंक, कॉलेज, विवाह इत्यादि दूसरी श्रेणी में आते हैं व आध्यात्मिक उन्नति इत्यादि तीसरी श्रेणी में आते हैं ।

(ii) आलेखीकरण (Documentation ) - ऐसी सलाह दी जाती है कि एक नई नोटबुक (कापी) लेकर अपनी तीनों श्रेणियों की इच्छाओं को भिन्न-भिन्न पृष्ठों पर लिख लें। यह बात महत्वपूर्ण है कि हम एक साथ कई इच्छाएं लिख सकते हैं व जरूरत पड़ने पर इनमें और भी जोड़ सकते हैं ।

दुनिया में कुछ भी मुफ्त मे नहीं आता इस नियम को समझते हुए हमें हर इच्छा के आगे यह लिखना होगा कि यदि यह इच्छा पूरी हो जाए तो हमें क्या-क्या लाभ व खुशी होगी व इस इच्छा को पूरा करने के लिए हमें क्या मोल चुकाना होगा । यह मोल नियमों के रूप में हो सकता है जो कि कुछ स्वयं पर ही लागू होंगे । उदाहरण के लिए परीक्षा में अच्छे अंक लेने के लिए हमें अधिक पढ़ाई करने का मोल चुकाना होगा ।

(iii) कल्पना शक्ति (Visualization) - यदि हम ऐसा महसूस करें कि जो हम चाहते थे, हमें वर्तमान में मिल चुका है व हम उसके मिलने पर खुशी मना रहे हैं तो इच्छापूर्ती सरल व सुगम हो जाती है । इनके अंदर कुछ अन्य प्रक्रियाएं भी सम्मिलित हैं –

1. स्वयं पर विश्वास

2. भगवान पर विश्वास

3. जी तोड़ मेहनत

(iv) सुविचार - इस प्रक्रिया में हम स्वयं को सुविचार देकर प्रोत्साहित करते हैं व स्वयं से सफलता की बातें करते हैं । सब बातें ध्यान देने की हैं कि हमारा स्वयं का वार्तालाप केवल सकारात्मक होना चाहिए।

(v) कर्म (लेन-देन) का सिद्धांत किसी भी वस्तु प्राप्ति से पहले यह अनिवार्य है कि हम जो चीज प्राप्त करना चाहते हैं, उसे समाज में बांटना शुरू कर दें । यह प्रकृति का सिद्धांत है कि हम जो भी प्रकृति को या दूसरों को देते हैं वही कई गुणा होकर हमारे पास वापिस आता है । उदाहरण के लिए-

1.अधिक धन चाहिए तो दान देना शुरू करें व जरूरतमंदों की मदद करें ।

2.इज्जत चाहिए तो दूसरों का सम्मान करें ।

3.प्यार चाहिए तो दूसरों से प्रेम करें ।

4॰ सहायता चाहिए तो दूसरों की सहायता करे |

5. मानसिक शांति चाहिए तो ध्यान करे |

सोमवार, 29 मई 2023

चंचल मन पर नियन्त्रण कैसे करे ?

 हमारे जीवन मे योग साधना के द्वारा शारीरिक स्वास्थ्य के साथ साथ मानसिक स्वास्थ्य भी प्राप्त होता है, इस योग के निरंतर अभ्यास से हमारा चंचल मन शान्त और संयमी हो जाता है, जीवन अनुशासित हो जाता है तथा हम और हमारा व्यक्तित्व कल्याणकारी भावना से ओत-प्रोत हो जाता है ।

मन का स्वभाव हमेशा चंचलता लिए रहता है और इसका नियंत्रण मे होना हमारी विवेक शक्ति पर निर्भर करता है आमतौर पर हम सब अपने दैनिक कार्यकलापों के दौरान मन के वश में आकर अपना विवेक भुला बैठते हैं, और अक्सर जीवन में गलतियों को न्योता देते रहते है ।

अपने मन को वश में रखना एक कठिन कार्य है, पर असम्भव नहीं । हमारे इस मन की आन्तरिक शुद्धि राग, द्वेष आदि को त्याग कर मन की वृत्तियों को निर्मल करने से होती है । नियमित योगाभ्यास करने से शारीरिक शुद्धि के साथ हमारा चित्त भी शुद्ध हो जाता है । दैनिक यौगिक जीवन जीने से सच्चिदानन्द प्राप्त होता है जीवन में प्रत्येक कार्य ईश्वरीय लगने लगता है । ऐसी अवस्था में वाणी भी ईश्वरीय हो जाती है, जो सम्पर्क में आए लोगों को भी यौगिक जीवन जीने के लिए प्रेरित करती रहती है ।

मन को संयमित एवं नियन्त्रित करने के उपाय

1) गम्भीर विषय पर कार्रवाई प्रौढ़ता (maturity) से करें ।

2) किसी भी विषय अथवा समस्या का गहराई से विश्लेषण करें तथा सोचें समझें और निर्णय पर अमल करें ।

3) आवेश अथवा जल्दबाज़ी में कोई कार्रवाई न करें ।

4) यदि मनःस्थिति अशान्त हो तो तुरन्त कार्रवाई को टाल दें ।

5) मन की बात को विवेक की कसौटी पर कसें ।

अष्टांग योग में पहली सीढ़ी है यम अर्थात् सामाजिक अनुशासन की बातें - सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, और दूसरी सीढ़ी है - नियम अर्थात् व्यक्तिगत अनुशासन - शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान । मन, वचन और कर्मों से पवित्र रहे । इसका तात्पर्य है कि सोच - विचार, बोली - भाषा तथा व्यवहार में शुद्धता लाएं । मन अक्सर भटकेगा लेकिन उसे सही राह दिखाना हमारे विवेक का कार्य है ।

जब कभी जीवन में किसी कार्य में शंका उत्पन्न हो जाए तो उसका औचित्य अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनकर जानें । अपनी अंतरात्मा (conscience) की आवाज से आप सही निर्णय ले पाएंगे तथा सोच-विचार व कर्त्तव्य / व्यवहार में संयमी एवं नियन्त्रित रहेंगे । यही सच्चिदानन्द का मार्ग है ।

यदि हमारी दृढ़ इच्छा शक्ति हो तो विचलित मन को हम नियंत्रित कर संयमित एवं शान्त जीवन जी सकते हैं तथा समाज में सकारात्मक योगदान कर सकते हैं । विचलित मन को नियंत्रित करने के लिए जीवन में अनुशासन आवश्यक है जो कि नियमित योगाभ्यास द्वारा संभव है और प्राप्त किया जा सकता हैं

हमें स्वस्थ जीवन जीने की कला सीखनी चाहिए तथा सम्पर्क में आए सभी लोगों को योग द्वारा जीवन जीने की कला सिखानी भी चाहिए

रविवार, 28 मई 2023

ध्यान के लिए उपयोगी मुद्राएं

मुद्रा विज्ञान, तत्व विज्ञान पर आधारित है । हमारा शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना है - अग्नि, वायु, आकाश, पृथ्वी व जल तत्व । हाथ की पांचों भिन्न-भिन्न अंगुलियां भिन्न-भिन्न तत्वों का प्रतिनिधित्व करती हैं; जैसे कि अंगूठा अग्नि तत्व, तर्जनी अंगुली वायु तत्व, मध्यमा आकाश तत्व, अनामिका पृथ्वी तत्व तथा कनिष्ठिका जल तत्व का प्रतिनिधित्व करती है । हमारा स्वास्थ्य शरीर में पाए जाने वाले पांचों तत्वों के सन्तुलन पर निर्भर करता है । जब ये पांचों तत्व सम अवस्था में होते हैं तब हम स्वस्थ होते हैं । यदि शरीर में इनका सन्तुलन बिगड़ता है तो हम अस्वस्थ हो जाते हैं । आसनों की भांति मुद्राएं हमारे शरीर में इन तत्वों को सन्तुलित कर हमें स्वस्थ रखने में सहायक हैं ।

दूसरी ओर ध्यान के अभ्यास में भी मुद्राओं का एक विशेष महत्व है । हमारे शरीर में रीढ़ पर सुषुम्ना नाड़ी पर पांच चक्र - मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत व विशुद्धि चक्र स्थित हैं । ये चक्र सूक्ष्म ऊर्जा के केन्द्र कहलाते हैं । यहां से असंख्य सूक्ष्म नाड़ियां व उपनाड़ियां निकल कर हमारे स्थूल व सूक्ष्म शरीर में ब्रह्माण्डीय ऊर्जा को प्रवाहित करती हैं । हमारे ये पांचों चक्र क्रमशः पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु व आकाश तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं । जब शरीर में पांचों तत्व सन्तुलित होते हैं तो साधक इन चक्रों को जाग्रत कर ध्यान की गहराई में डूबने लगता है । इस महान कार्य में सफलता पाने के लिए हमारे आध्यात्मिक जीवन में मुद्राएं एक बड़ी भूमिका निभा सकती हैं । साधक पहले पांचों तत्व मुद्राओं का अभ्यास अपनी जरूरत के अनुसार शरीर में तत्वों का सन्तुलन करने के लिए कर सकता है पश्चात्, पांचों प्राणों - समान प्राण, अपान प्राण, उदान प्राण, व्यान प्राण, मुख्य प्राण को सम अवस्था में रखने के लिए प्राण-मुद्राओं का अभ्यास करना चाहिए । ध्यान में जाने के लिए इसके अतिरिक्त कुछ विशेष आध्यात्मिक मुद्राएं हैं जैसे कि ज्ञान मुद्रा, ध्यान मुद्रा, ब्रह्मांजलि मुद्रा, चिन मुद्रा, चिन्मय मुद्रा, आदि मुद्रा, षण्मुखी मुद्रा, खेचरी मुद्रा, शाम्भवी मुद्रा, अगोचरी मुद्रा तथा आकाशी मुद्रा व नमस्कार मुद्रा इनके सन्तुलित होने पर साधक को शारीरिक व मानसिक स्थिरता प्राप्त होती है । जब साधक तत्व व प्राण-मुद्राओं का अभ्यास कर शारीरिक व मानसिक स्थिरता प्राप्त कर लेता है तो उसके लिए ध्यान में जाना सहज हो जाता है । तत्व मुद्राओं में ज्ञान मुद्रा, वायु मुद्रा, आकाश मुद्रा, शून्य मुद्रा, पृथ्वी मुद्रा, सूर्य मुद्रा, वरुण मुद्रा व जलोदर नाशिनी मुद्रा आती हैं । इस प्रकार प्राण मुद्राओं में प्राण मुद्रा, अपान मुद्रा, व्यान मुद्रा, उदान मुद्रा व समान मुद्राओं का अभ्यास किया जाता है । यहां पर हम कुछ महत्वपूर्ण उन आध्यात्मिक मुद्राओं की चर्चा करेंगे जो साधक को ध्यान में ले जाने में सहायक हैं, जिनका विवरण नीचे दिया गया है |

ज्ञान मुद्रा - ज्ञान मुद्रा की गिनती तत्व मुद्रा तथा आध्यात्मिक मुद्रा दोनों में होती हैं । अंगूठा परमात्मा का प्रतीक है और तर्जनी आत्मा की । ज्ञान मुद्रा से आत्मा का परमात्मा से मिलन होता है । अंगूठे और तर्जनी अंगुली के अग्रभाग को मिलाएं बाकी तीनों अंगुलियां सीधी रखें । दोनों हाथों से यह बनाते हुए हथेलियों का पृष्ठ भाग घुटनों पर रख लें। मुद्रा लगाने का सर्वोत्तम आसन पद्मासन, सिद्धासन व सुखासन हैं । इसे 15 मिनट से 45 मिनट तक करें। जितना अधिक समय लगाएंगे, उतना ही लाभ भी मिलेगा। अंगूठे के अग्रभाग में मस्तिष्क व पिच्यूटरी ग्रन्थि के दबाव बिन्दु होते हैं और तर्जनी के अग्रभाग पर मन का बिन्दु है । जब इन दोनों का हल्का-सा स्पर्श करते ही हल्का दबाव बनता है तो मन, मस्तिष्क और पिच्यूटरी ग्रन्थि-तीनों जाग्रत होते हैं । फलस्वरूप मानसिक स्वच्छता आती है तथा मन शान्त होता है । इस मुद्रा के अभ्यास से ध्यान में जाना सहज हो जाता है ।

नमस्कार मुद्रा - नमस्कार मुद्रा का प्रयोग प्रार्थना, ध्यान, मन्त्रोच्चारण या किसी अतिथि/ परिचित के स्वागत-सम्मान हेतु किया जाता है । किसी भी ध्यान के आसन जैसे कि पद्मासन, सिद्धासन या सुखासन में बैठें । दोनों हाथ नमस्कार मुद्रा में जोड़ लें । अंगूठे का मूल भाग छाती से लगा हो । अंगुलियां ऊपर की ओर सीधी रहें। नेत्र सहजता से बंद हों। ध्यान आज्ञा चक्र में रखें। गहरे-लम्बे श्वास लें । नमस्कार मुद्रा से विनम्रता का भाव उत्पन्न होता है। एकाग्रता का विकास होता है । नमस्कार मुद्रा से साधक में ईश्वर प्रणिधान का भाव जाग्रत होता है जो कि चित्त को निर्मल करता है और समर्पण के भाव को बढ़ाता है । ऐसा होने पर चित्त की एकाग्रता बढ़ती है ।

3. ब्रह्मांजलि मुद्रा - यह ध्यान की मुद्रा है। इसमें बाएं हाथ की हथेली को नाभि के निकट रखें और दाएं हाथ की हथेली को इसके ऊपर रखें तथा अंगूठे एक-दूसरे पर रहेंगे । इस मुद्रा का साधक एक समय पर 15 मिनट से 45 मिनट तक का अभ्यास कर सकता है । इसके लिए पद्मासन, सुखासन या सिद्धासन में बैठें । इस मुद्रा से शारीरिक व मानसिक स्थिरता प्राप्त होती है । मन शान्त होता है यह मुद्रा साधक को ध्यान की गहन अवस्था में ले जाती है ।

4. षण्मुखी मुद्रा - किसी भी ध्यान के आसन में बैठें। दोनों हाथों के अंगूठे कानों में, तर्जनी आंखों पर, मध्यमा अंगुली नासिका पर तथा अनामिका अंगुली होंठ पर तथा छोटी अंगुली होंठ के नीचे रखें। इस तरह सभी छिद्र (ज्ञानेन्द्रियों के) बंद हो जाएं । मध्यमा अंगुलियों को उठा कर नासा छिद्रों से नाड़ी शोधन की तरह श्वास भरें, रोकें व छोड़ें । जितनी देर श्वास को रोक कर कुम्भक लगाया जाता है, उस समय ध्यान का केन्द्र, बिन्दु चक्र रहना चाहिए । इस मुद्रा के अभ्यास से ध्यान लगने लगता है । अनहद नाद सुनाई देता है यह आन्तरिक साधना को आगे बढ़ाने वाली मुद्रा है ।

5. खेचरी मुद्रा - ध्यान की गहराई में जाने के लिए खेचरी मुद्रा का अभ्यास एक महत्वपूर्ण अभ्यास है । खेचरी मुद्रा का अभ्यास कुण्डलिनी जागरण के जिज्ञासुओं के लिए भी सहायक है । खेचरी मुद्रा के दो रूप हैं - राज योग पद्धति एवं हठ योग पद्धति । हठ योग पद्धति अधिक कठिन होने के कारण गुरु एवं निपुण व्यक्ति की देखरेख में ही सीखी जाती है, जिसका विवरण यहां नहीं दिया जा रहा है,पर राज योग पद्धति, गृहस्थ योगियों के लिए बहुत सहायक है । इस पद्धति के अनुसार ध्यान के एक आसन में बैठें। मुंह को बन्द कर जिह्वा को ऊपर की ओर मोड़ कर ऊपर वाले तालू में पीछे से स्पर्श करें । कुछ मिनट क्षमता के अनुसार रुकें । प्रतिदिन जिवा के अग्रभाग को अधिक से अधिक पीछे की और तालू के ऊपरी छिद्र की ओर बढ़ाने का प्रयास करते रहें । अभ्यास में एकाग्रता बढ़ाने के लिए इस मुद्रा में उज्जायी प्राणायाम का अभ्यास किया जा सकता है । धीरे-धीरे श्वासों की गति को कम करते जाएं । एक मिनट में लिए जाने वाले श्वासों की संख्या कम से कम हो जाए । ऐसा करने पर इस मुद्रा के अभ्यास में साधक स्थूल से सूक्ष्म शरीर में प्रवेश करने की क्षमता में आ जाता है । सोम चक्र प्रभाव में आने से वहां टपकने वाले सोम रस का वह रसास्वादन करता है । कुण्डलिनी का जागरण सहज होता है ।

शाम्भवी मुद्रा - शाम्भवी मुद्रा से हमारा अभिप्राय भ्रूमध्य दृष्टि है । एक स्थिर आसन में बैठकर रीढ़, गर्दन, सिर को सीधा करें । दोनों हाथ ज्ञान मुद्रा में; एक से दो मिनट तक अपने से कुछ दूरी पर एकाग्र दृष्टि से देखें अब गर्दन व सिर को स्थिर रखते हुए आसमान की ओर अधिक से अधिक ऊपर की ओर देखें पश्चात्, दोनों भौहों के मध्य दृष्टि को टिका दें । एकटक नजर से भ्रूमध्य को देखते जाएं । ऐसा करने से साधक का क्रोध व तनाव खत्म होता है । चित्त एकाग्र होने लगता है । मन शान्त होता है ।

अगोचरी मुद्रा - पद्मासन, सिद्धासन, स्वस्तिकासन या सुखासन में बैठें। कमर, गर्दन, सिर एक सीध में हों। दोनों हाथ ज्ञान मुद्रा में, दोनों आंखें खोल कर दृष्टि को नासिका के अग्रभाग पर लगाएं। कुछ देर एकटक नजर से ऐसा करते रहें । धीरे-धीरे समय की वृद्धि करें। शाम्भवी मुद्रा की भांति, अगोचरी मुद्रा चित्त की एकाग्रता को बढ़ाने वाली है । इससे इन्द्रियां अन्तर्मुखी होती हैं, जिससे ध्यान में जाना सहज हो जाता है । 

शनिवार, 27 मई 2023

मूलांक और रोग उपाय

 

मूलांक व्यक्ति के जीवन को बहुत प्रभावित करते हैं ।

आइए, जानें कि विभिन्न मूलांक वालों को किन रोगों के आक्रमण हो सकते हैं तथा उनसे बचाव के क्या उपाय हैं ।

मूलांक -1

रोग : हृदयाघात, हृदय रोग, सिरदर्द, दांत संबंधी रोग, नेत्र रोग, बुढ़ापे में कम सुनाई देना ।

क्या करें : उगते सूर्य को जल चढ़ाएं । रविवार को व्रत करें बिना नमक का भोजन करें ।

रंग : पीला, सुनहरा, हल्का भूरा, नारंगी, लाल । काले रंग से बचें |

रत्न : ढाई रत्ती या उससे अधिक का माणिक्य सोने या तांबे में रविवार को धारण करें ।

मूलांक - 2

रोग : मंदाग्नि, मानसिक दुर्बलता, अनिद्रा, फेफड़ों संबंधी रोग आदि ।

क्या करें : शिव की नित्य उपासना ।

रंग : हल्का हरा, अंगूरी, दूधिया सफेद, क्रीमी ।

रत्न : 4 रत्ती या उससे अधिक वजन का मोती सोमवार को धारण करें ।

मूलांक - 3

रोग : हड्डियों का दर्द, गले का रोग, शुगर, गैस, घुटनों एवं पीठ का दर्द, आदि ।

क्या करें : विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें । पूर्णिमा और गुरुवार का व्रत करें ।

रंग : पीला, गुलाबी, हल्का, जामुनी, सफेद ।

रत्न : साढ़े 5 रत्ती का पुखराज गुरुवार को पहनें ।

मूलांक - 4

रोग : खून की कमी, सिरदर्द, पीठदर्द, नेत्र रोग, टांग में चोट, अपच आदि ।

क्या करें : गणेश जी की आराधना करें । गणेश चतुर्थी का व्रत करें ।

रंग : नीला, भूरा, धूप-छांव । यदि अंक 4 अशुभ है तो नीले वस्त्र न पहनें ।

रत्न : साढ़े 6 रत्ती का गोमेद पंचधातु की अंगूठी में बुधवार को धारण करें ।

मूलांक - 5

रोग : जुकाम-नजला, याददाश्त बिगड़ना, नेत्र रोग, अपच, हाथों में दर्द, कंधों में दर्द, सिर दर्द, लकवा ।

क्या करें : गणेश जी की उपासना करें ।

रंग : हल्का भूरा, हल्का हरा, सफेद । गहरे रंगों से बचें ।

रत्न : 3 रत्ती से अधिक का पन्ना बुधवार को धारण करें ।

मूलांक - 6

रोग : फेफड़ों के रोग, मूत्र-विकार, गला और नाक के रोग, शुगर, पथरी, गुप्त रोग, गुर्दे संबंधी रोग ।

क्या करें : शुक्रवार का व्रत करें ।

रंग : हल्का नीला, गुलाबी, सफेद । गहरे बैंगनी और काले रंग से बचें ।

रत्न : ढाई रत्ती का हीरा चांदी या प्लेटिनम में शुक्रवार को धारण करें |

मूलांक - 7

रोग : रोग, थकावट, अपच, नेत्र-रोग, उल्टी-दस्त, रक्तचाप सिरदर्द, फेफड़ों संबंधी रोग ।

क्या करें : हनुमान की उपासना करें ।

रंग : सफेद, गुलाबी, हल्का हरा। काले रंग से बचें |

रत्न : सवा 6 रत्ती का लहसुनिया पंचधातु या चांदी में मंगलवार को धारण करें ।

मूलांक - 8

रोग : लीवर संबंधी रोग, मानसिक रोग, दुर्घटनाएं, आंतरिक चोटें, जोड़ों का दर्द, अपच, रक्त-विकार आदि ।

क्या करें : शनि की उपासना ।

रंग : काला, नीला, गहरा भूरा, बैंगनी ।

रत्न : सवा 4 रत्ती का नीलम सोने में शनिवार को धारण करें । पंचधातु या काले घोड़े की नाल की अंगूठी भी पहनी जा सकती है ।

मूलांक - 9

रोग : मांसपेशियों के रोग, दुर्घटनाएं, रक्तविकार, सिरदर्द, दांतदर्द, गुप्त रोग, मूत्र रोग, मस्सा (पाइल्स) ।

क्या करें : हनुमान जी की उपासना ।

रंग : लाल (रक्त जैसा), गहरा गुलाबी । लाल रूमाल रखें ।

रत्न : 5 रत्ती का मुंगा सोने में मंगलवार को पहनें ।