हमारे जीवन मे योग साधना के द्वारा शारीरिक स्वास्थ्य के साथ साथ मानसिक स्वास्थ्य भी प्राप्त होता है, इस योग के निरंतर अभ्यास से हमारा चंचल मन शान्त और संयमी हो जाता है, जीवन अनुशासित हो जाता है तथा हम और हमारा व्यक्तित्व कल्याणकारी भावना से ओत-प्रोत हो जाता है ।
मन का स्वभाव हमेशा
चंचलता
लिए रहता है और इसका नियंत्रण मे
होना हमारी
विवेक शक्ति पर निर्भर करता है आमतौर पर हम सब अपने दैनिक कार्यकलापों के
दौरान मन
के वश में आकर अपना विवेक भुला बैठते हैं, और अक्सर जीवन में गलतियों को न्योता देते
रहते है ।
अपने मन को वश में रखना एक कठिन कार्य
है, पर असम्भव नहीं । हमारे
इस मन
की आन्तरिक शुद्धि राग, द्वेष
आदि को त्याग कर मन की वृत्तियों को निर्मल करने से होती है । नियमित योगाभ्यास करने
से
शारीरिक शुद्धि के साथ हमारा चित्त भी शुद्ध हो जाता है । दैनिक यौगिक जीवन
जीने से सच्चिदानन्द प्राप्त होता है जीवन में प्रत्येक कार्य ईश्वरीय लगने लगता
है । ऐसी अवस्था में वाणी भी ईश्वरीय हो जाती है, जो सम्पर्क में आए लोगों को भी यौगिक
जीवन जीने के लिए प्रेरित करती रहती है ।
मन को संयमित एवं नियन्त्रित करने के
उपाय
1) गम्भीर विषय पर कार्रवाई प्रौढ़ता (maturity) से करें ।
2) किसी भी विषय अथवा समस्या का गहराई से
विश्लेषण करें तथा सोचें समझें और निर्णय पर अमल करें ।
3) आवेश अथवा
जल्दबाज़ी में
कोई कार्रवाई न करें ।
4) यदि मनःस्थिति अशान्त हो तो तुरन्त
कार्रवाई को टाल दें ।
5) मन की बात को विवेक की कसौटी पर
कसें ।
अष्टांग योग में पहली सीढ़ी है यम
अर्थात् सामाजिक अनुशासन की बातें - सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, और दूसरी सीढ़ी है - नियम अर्थात्
व्यक्तिगत अनुशासन - शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान । मन, वचन और कर्मों से पवित्र रहे
।
इसका तात्पर्य है कि सोच - विचार, बोली - भाषा तथा व्यवहार में शुद्धता लाएं । मन अक्सर
भटकेगा
लेकिन उसे सही राह दिखाना हमारे विवेक का कार्य है ।
जब कभी जीवन में किसी कार्य में शंका
उत्पन्न हो जाए तो उसका औचित्य अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनकर जानें । अपनी
अंतरात्मा (conscience)
की
आवाज से आप सही निर्णय ले पाएंगे तथा सोच-विचार व कर्त्तव्य / व्यवहार में संयमी
एवं नियन्त्रित रहेंगे । यही सच्चिदानन्द का मार्ग है ।
यदि हमारी दृढ़ इच्छा शक्ति हो तो
विचलित मन को हम नियंत्रित कर संयमित एवं शान्त जीवन जी सकते हैं तथा समाज में
सकारात्मक योगदान कर सकते हैं । विचलित मन को नियंत्रित करने के लिए जीवन में
अनुशासन आवश्यक है जो कि नियमित योगाभ्यास द्वारा संभव है और
प्राप्त किया जा सकता हैं ।
हमें स्वस्थ जीवन जीने की कला सीखनी
चाहिए तथा सम्पर्क में आए सभी लोगों को योग द्वारा जीवन जीने की कला सिखानी
भी चाहिए ।
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