शनिवार, 29 मार्च 2014

2014 नक्षत्र अनुभव

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स्तन कैंसर



मानव शरीर के अंगो की रचना विज्ञान के अनुसार कोशिकाओ से होती हैं जो की स्वाभाविक रूप से बनती व नष्ट होती रहती हैं इन कोशिकाओ के निर्माण मे जल व रक्त का बहुत महत्व रहता हैं जब किसी भी कारण से इस जल या रक्त मे कमी आती हैं तब यह कोशिकाए सुचारु रूप से नष्ट ना होकर असामान्य व अनियंत्रित रूप से विभाजित या विभक्त होकर शरीर के किसी भी भाग मे गांठ का रूप ले लेती हैं तब उसे कैंसर कहा जाता हैं | इन गाँठो मे एक विशेष प्रकार के प्रोटीन का निर्माण होता हैं जो अन्य स्वस्थ कोशिकाओ के लिए विष का काम करता हैं जिससे वह भी सुचारु रूप से अपना कार्य नहीं कर पाती हैं ओर यह रोग फैलने लगता हैं | शरीर के जिस अंग या हिस्से मे यह गांठ होती हैं उसे वैसे ही नाम से जाना जाता हैं जैसे रक्त कैंसर,त्वचा कैंसर,मुख कैंसर,गुर्दा कैंसर,आमाशय कैंसर स्तन कैंसर आदि |

प्रस्तुत लेख मे स्तन कैंसर के विषय मे ज्योतिषीय दृस्टिकोण रखने का प्रयास किया गया हैं | स्तन कैंसर आज पूरे विश्व मे महिलाओ मे पायी जाने वाली गंभीर व खतरनाक बीमारीयो मे से एक बड़ी बीमारी का रूप लेता जा रहा हैं | इस बीमारी के होने के वैसे तो बहुत से कारण हो सकते हैं परंतु लेख मे सिर्फ ज्योतिषीय कारण ही समझने का प्रयास किया गया हैं | इस ज्योतिषीय शोध मे करीब 200 कुंडलियों का अध्ययन किया गया जिसमे पाया गया की कुंडली मे निम्न तत्वो के प्रभावी होने से स्तन कैंसर हो सकता हैं |

भाव-लग्न ,चतुर्थ,षष्ठ
ग्रह –लग्नेश,चतुर्थेश,षष्ठेश,गुरु,बुध चन्द्र  
लग्न भाव-यह भाव स्वयं का अथवा जातक-जातिका विशेष का होता हैं | जब तक यह भाव पीड़ित ना हो (किसी भी प्रकार से ) तब तक जातक को अथवा उसके शरीर को कुछ भी अच्छा या बुरा प्रभाव मिल नहीं सकता |
चतुर्थ भाव –यह भाव छाती अथवा वक्षस्थल(महिलाओ) का प्रतिनिधित्व करता हैं चूंकि स्तन कैंसर को इसी भाव से देखा जाता हैं इसलिए इस भाव का अध्ययन व इस भाव की स्थिति को अवश्य देखा जाना चाहिए |
षष्ठ भाव-यह भाव रोग भाव भी कहलाता हैं | वृहत पाराशर होरा शास्त्र के 18वे अध्याय के श्लोक 12,13 मे कहाँ गया हैं की इस भाव अर्थात रोग स्थान मे पाप गृह हो तथा षष्ठेश पाप ग्रह युक्त हो तो जातक रोगी होगा और यदि इस भाव मे शनि राहू होतो दीर्घकालिन रोगी होगा |
ग्रह गुरु-गुरु ग्रह का किसी भी रूप मे पीड़ित बलहीन व अशुभ प्रभाव मे होना इस रोग की कुंडलियों मे पाया गया | गुरु ग्रह पोषकता व वृद्दि का कारक माना जाता हैं तथा यह हमारे शरीर मे मेटबौलिज़्म का कारक भी होता हैं जिससे हार्मोन्स प्रभावित होते हैं जिनके पूर्ण प्रभाव से कैंसर हो सकता हैं |

बुध-चमड़ी का कारक यह ग्रह कोशिकाओ के विभिन्न आवरणो का नियंत्रण करता हैं जिनके क्षतिग्रस्त होने से यह रोग होता हैं वही सबसे पहले चमड़ी पर इस रोग के लक्षण उभार अथवा गांठ (विशेषकर स्तन अथवा वक्षस्थल पर ) दिखाई देते हैं इसलिए यह ग्रह पूर्ण रूप से पाप प्रभाव,अशुभावस्था अथवा बलहीन होना चाहिए

चन्द्र –चन्द्र ग्रह कालपुरुष की कुंडली मे चतुर्थ भाव का स्वामी व कारक दोनों होता हैं इस चंद्रमा से हमारे मन,तरलता,शरीर मे जलतत्व आदि का अध्ययन किया जाता हैं | महिलाओ मे इसे उनके मासिक धर्म व वक्ष प्रदेश( दूध प्रदाता ) के अनुसार भी देखा जाता हैं |इस चन्द्र का किसी भी प्रकार से पीड़ित,बलहीन व अशुभ होना इस रोग हेतु आवशयक हैं |

इन सब अवयवो के अतिरिक्त लग्नेश ( शरीर का स्वामी ) चतुर्थेश (चतुर्थ भाव का स्वामी) तथा षष्ठेश(छठे भाव का स्वामी) की स्थितियो का आकलन भी आवशयक हैं |

आईए अब कुंडलियों पर यह सब प्रभाव देखकर इस स्तन कैंसर नामक रोग के होने की पुष्टि करते हैं |

1)6/1/1968 12:12 भोपाल को मीन लग्न मे जन्मी जातिका की कुंडली मे लग्नेश गुरु(व)छठे भाव मे मंगल से दृस्ट हैं | लग्न मे चन्द्र शनि हैं | चतुर्थ भाव मे षष्ठेश सूर्य की दृस्टी हैं चतुर्थेश षष्ठेश सूर्य व बुध पर शनि की दृस्टी हैं इस प्रकार सभी अवयव प्रभावित हैं जातिका को केतू मे मंगल दशा मे स्तन कैंसर हुआ जिससे इनकी 12/12/2004 को केतू बुध मे मृत्यु हुई |

2)6/6/1949 8:00 दिल्ली मिथुन लग्न मे जन्मी इस जातिका की पत्री मे भी गुरु (व)तथा नीचावस्था मे अष्टम भाव मे हैं  बुध षष्ठेश मंगल संग द्वादश भाव ने हैं | चन्द्र चतुर्थ भाव मे पाप कर्तरी मे हैं |लग्नेश बुध वक्री होकर द्वादश भाव मे हैं वही लग्न नीच व वक्री गुरु के नक्षत्र मे हैं इस प्रकार सभी अवयव प्रभावित हैं जातिका को स्तन कैंसर रहा हैं जिसका औपेरशन कर एक स्तन निकाला गया |

3)5/11/1970 23:15 दिल्ली कर्क लग्न मे जन्मी इस जातिका का लग्न व लग्नेश शनि के प्रभाव मे हैं  (लग्न शनि के नक्षत्र मे हैं ) शनि अष्टमेश होकर नीच राशि का हैं | चतुर्थ भाव,चतुर्थेश,षष्ठ भाव षष्ठेश,बुध,गुरु सभी अवयव पीड़ित हैं | जातिका को दोनों स्तनो मे कैंसर रहा

4)3/1/1982 7:35 फ़रीदाबाद को धनु लग्न मे जन्मी इस जातिका शुरुआत मे हो स्तन कैंसर पकड़ा गया |

5)2/9/1943 2:35 दिल्ली मे कर्क लग्न मे जन्मी इस जातिका का स्तन कैंसर भी शुरू मे ही पकड़ा गया |

6)1/11/1973 4:45 दिल्ली मे कन्या लग्न मे जन्मी इस जातिका का एक स्तन काटकर निकाला गया |


7) 13/4/1981 11:25 दिल्ली मे जन्मी इस मिथुन लग्न की जातिका को स्तन कैंसर हैं जिसका आजकल भी इलाज चल रहा हैं |

शुक्रवार, 28 मार्च 2014

हमारे 7 चक्र व रंग



मानव शरीर मे 7 चक्र पाये जाते हैं जिनसे हमारे शरीर को ऊर्जा मिलती हैं अगर किसी भी चक्र का किसी भी कारण से संतुलन बिगड़ जाता हैं तो हमारे शरीर मे बीमारियाँ हो जाती हैं चूंकि हर चक्र का अपना एक विशेष रंग होता हैं जिसके द्वारा उसके अच्छे व बुरे प्रभाव को घटाया बढ़ाया जा सकता हैं जिससे कई तरीको से लाभ प्राप्त किया जा सकता हैं |

1)मूलाधार चक्र- हमारी रीढ़ की हड्डी के नीचे स्थित यह चक्र हमे बाहरी दुनिया से जोड़ता हैं लाल रंग से जुड़ा यह चक्र मुख्यत; शरीर मे रक्तसंचार व लाल रक्त कणिकाओ को बनाने का कार्य करता हैं जो शरीर मे ताकत,जुनून,उत्तेजना,साहस व इच्छाशक्ति को दर्शाता हैं | इस चक्र मे किसी भी प्रकार की रुकावट होने पर आत्मविश्वास की कमी,स्वार्थीपना,कमर व पैर मे दर्द होता हैं |

2)स्वाधिष्ठान चक्र-यह चक्र प्रजनन अंगो के पास होता हैं जो हमारी कामसंबंधों व काम इच्छाओ को दर्शाता हैं जिसका रंग संतरी होता हैं यह शरीर मे भावनाओ,खुशी क्रियाशीलता व सेक्सुयल्टी बढाता हैं जिससे हमारी काम करने की क्षमता व कामोतेजना नियंत्रित होती हैं | इस चक्र मे रुकावट होने पर प्रजनन अंगो की बीमारियाँ होती हैं |

3)मणिपुर चक्र-नाभिस्थान मे स्थित यह चक्र पीले रंग का होता हैं जो ज्ञान व बुद्दिमानी का प्रतीक होता हैं इससे शरीर को किसी काम करने की स्फूर्ति व सोचने समझने की शक्ति प्राप्त होती हैं | इसके नियंत्रित ना होने से व्यापार मे रुकावट,मधुमेह व अल्सर जैसी बीमारियाँ होती हैं |

4)अनाहत चक्र-हमारी छाती मे स्थित यह हरे रंग का चक्र हमारे शरीर को संतुलन रखने के काम आता हैं | यह चक्र हमारी मानसिक अवस्था,लक्ष्य निर्धारण व गहराई को बताता हैं जिसके प्रभावित होने से अल्सर,अस्थमा,दिल की बीमारी,रक्तचाप व मानसिक विकार होते हैं

5)विषुद्ध चक्र-गले के नीचे स्थित यह चक्र नीले रंग से जुड़ा होता हैं जो सम्प्रेषण व वार्तालाप से संबन्धित हैं यह चक्र शरीर के विषैले तत्वो को दूर कर थायराइड ग्रंथि को नियंत्रित करता हैं | इस चक्र के प्रभावित होने से वाणी संबंधी दोष होते हैं |

6)आज्ञा चक्र-हमारे माथे पर स्थित यह चक्र इंडिगो रंग का होता हैं जो शरीर को शांति व संतोष देता हैं जिससे हमारी सोचने समझने की ताक़त प्रभावित होती हैं इसी चक्र के प्रभाव से हमे सोते हुये सपने आते हैं और हमे हमारी भावनाओ को नियंत्रित करने मे मदद मिलती हैं | इसके प्रभावित होने से एकाग्रता भंग,सिर मे दर्द,बुरे सपने व मानसिक नकारात्मकता आती हैं


7)सहस्त्र्सार चक्र-सिर पर चोटी के स्थान मे स्थित यह चक्र जामुनी रंग से जुड़ा होता हैं जो हमारे शरीर मे सुकून और आध्यात्मिक चेतना को बढ़ाता हैं जिससे मांसपेशियो को राहत व मष्तिस्क को शांति प्राप्त होती हैं | यह चक्र हमे परमात्मा से जोड़ता हैं इसके प्रभावित होने से हम अकेलेपन,निराशा,भ्रम व स्वयं को पहचान पाने मे नाकाम रहते हैं 

गुरुवार, 27 मार्च 2014

आभामंडल के रंग


आभामंडल के रंग-
धरती पर रहनी वाली प्रत्येक ज़िंदा वस्तु का अपना एक आभामंडल होता हैं जिसका रंग उस वस्तु का स्वभाव व उससे संबन्धित बीमारियाँ बताता हैं |

काला-इस रंग का आभामंडल नफरत,नकारात्मकता,विषाद,व अहम को बताता हैं |

नीला-इस रंग का आभामंडल प्यार,सम्मान,समर्पण,प्रशंसा और दिल की आवाज़ सुनने जैसे गुणो को बताता हैं |

गहरा नीला- इस रंग का आभामंडल,स्वार्थ,ज़िद्द,शक,और गुस्से को दिखाता हैं |

भूरा रंग-इस रंग के आभामंडल वाले लोगो मे कडवाहट,स्वार्थ,कंजूसी व कन्फ़्यूजन पाया जाता हैं |

सुनहरा रंग-यह रंग जातक के अध्यात्म और दर्शन की और झुकाव को बताता हैं |

संतरी-रंग-यह रंग जातक के आत्मविश्वास,गर्व व कुछ पाने की ललक को बताता हैं 


पर्पल रंग-इस रंग के आभामंडल वाले लोग ऊंच आदर्श,अध्यात्म व आत्मसम्मान मे विश्वास रखते हैं |

बुधवार, 26 मार्च 2014

रंगो की भाषा


चिकित्सको का मानना हैं की इंसानी शरीर मे किसी न किसी रंग की कमी होने के कारण ही कोई ना कोई बीमारी होती हैं | अगर उस रंग की कमी को पूरा कर दिया जाये तो वह बीमारी खत्म हो जाती हैं | 1666 मे “सर इजहाक न्यूटन” ने प्रिज्म की खोज की और इसमे उन्होने इंद्रधनुष के रंग देखे जिन्हे हम “स्पेक्ट्रम” के रूप मे जानते हैं जिसके लाइट सेक्टर को ही इंसानी आँखें देख पाती हैं जिसमे क्रमश; लाल,संतरी,पीला,हरा,नीला,इंडिगो और वोयलेट रंग होते हैं |

क्रोमोपैथी-रंगो के प्रयोगो द्वारा बीमारियो का इलाज करना “क्रोमोपैथी” कहलाता हैं हर रंग की अपनी एक वेवलेंथ और वाइब्रेसन होती हैं जो अलग अलग स्तर की ऊर्जा पैदा करती हैं जिनसे विभिन्न तरीके से बीमारियो के इलाज किए जाते हैं |  इन तरीकों मे प्रमुख उस रंग की बोतल मे रखा पानी सेवन करना व उस रंग की वस्तुओ का ज़्यादा से ज़्यादा प्रयोग करने के लिए कहाँ जाता हैं |

रंगो की भाषा –कौन सा रंग क्या बताता हैं यह निम्न प्रकार से जाना जा सकता हैं |

सफ़ेद-यह रंग,स्वच्छ,पवित्र व शांति देने वाला होता हैं यह नई शुरुआत का संकेत भी देता हैं अगर आप कुछ नया करने जा रहे हैं तो इस रंग का प्रयोग करे | इस रंग की कमी होने से दिमागी बीमारियाँ,उदर विकार,वातरोग,लकवा तथा सन्निपात हो सकता हैं |

गुलाबी-यह रंग कोमल और रोमांटिक प्यार को दर्शाता हैं यदि प्यार की तलाश हैं तो इसका प्रयोग करे |

नीला -यह रंग ठंडक देने वाला रंग हैं जिसे सम्प्रेषण (कम्यूनिकेशन )के लिए अच्छा माना जाता हैं इसलिए यदि आप चाहते हैं सब आपकी बात ज़रूर सुने तो इस रंग का प्रयोग करे | इस रंग की कमी से बुखार,आँखों के रोग,मूत्र मे जलन,ऊंच रक्तचाप,रक्तविकार जैसी बीमारियाँ हो सकती हैं |

हरा-यह रंग प्रकृति अथवा कुदरत का हैं जिससे सुकून मिलता हैं इसे एक्सट्रा लक व सेहत के लिए प्रयोग किया जाता हैं | इसकी कमी होने से कमजोरी होना,जी घबराना,उल्टियाँ होना,नाड़ी संस्थान के रोग,तिल्ली,जिह्वा संबंधी रोग हो सकते हैं |  

पीला-यह रंग फील गुड करने के लिए होता हैं जिससे आप स्वयं को तरोताजा महसूस कर अपना मूड बदल सकते हैं | इस रंग की कमी से पाचन तंत्र की बीमारिया,लीवर रोग,चोट,घाव, अजीर्ण,अतिसार हो सकते हैं |

लाल रंग-यह रंग बहादुरी,महत्वाकांक्षा व गुस्से का हैं यदि आप जीवन मे कुछ बोल्ड करना चाहते हैं तब इस रंग का प्रयोग अवस्य करे | इस रंग की कमी से मंदाग्नि,शरीर का टूटना,बवासीर,सूजन,खांसी,आदि हो सकते हैं | 


काला रंग –यह रंग सबसे अलग,रहस्यात्मक व अनूठा होने के कारण भीड़ मे सबसे अलग दिखने के लिए प्रयोग किया जाता हैं क्यूंकी इस रंग पर किसी भी रंग का प्रभाव जल्दी से नहीं पड़ता हैं इस रंग का प्रयोग करने वाले लोग भी जल्दी से पहचाने नहीं जाते हैं |

सोमवार, 24 मार्च 2014

हस्ताक्षर से व्यक्तित्व की पहचान



हस्ताक्षर किसी भी व्यक्ति विशेष के बारे मे बहुत कुछ बताते हैं जातक विशेष की आदते,उसकी सोच,रहन-सहन,मानसिकता,उसके विचार,उसका कार्य करने का तरीका तथा और भी बहुत कुछ हस्ताक्षर द्वारा जाना जा सकता हैं प्रस्तुत लेख मे हमने ऐसे ही कुछ हस्ताक्षर संबंधी सूत्र देने का प्रयास किया हैं जिससे जातक विशेष के बारे मे बहुत कुछ जाना जा सकता हैं | 

1)जो व्यक्ति अपनी क्षेत्रीय भाषा अथवा हिन्दी मे हस्ताक्षर करता हैं वह अपने धर्म व संस्कृति का जानकार होता हैं मिलनसार व रसिक स्वभाव रखते हुये समाज की मदद करने को तत्पर रहता हैं इनके जीवन मे आकस्मिक घटनाए बहुत हुयी होती हैं स्थाई काम करने के शौकीन यह लोग बहुधा अपना पैतृक कार्य ही करना पसंद करते हैं जीवन मे खतरा उठाना नहीं चाहते हैं जिस कारण जीवन सरलता से गुजर जाता हैं |

2)जो व्यक्ति अग्रेज़ी भाषा मे हस्ताक्षर करते हैं वह काम के प्रति जागरूक व दिखावा पसंद होते हैं समाज मे दोहरा चेहरा रखते हैं अपनी कार्य योजनाए किसी को पूर्ण होने तक नहीं बताते उत्तम ढंग से रहना व खाना पसंद करते हैं किसी को भी उधार देना नहीं चाहते अपने काम से काम रखते हैं अपने पास पड़ोस की खबर भी नहीं रखते अच्छे मकान वाहन व सामाजिक स्तर की तलाश मे रहते हैं अत्यधिक तनाव भरा जीवन जीने के कारण लंबी बीमारियो से ग्रस्त होते हैं काफी सोच समझकर कोई भी निर्णय करते हैं |

3)बदल बदल कर कभी हिन्दी कभी अँग्रेजी हस्ताक्षर करने वाले संकोची व रहस्यवादी प्रवृति के होते हैं किसी पर भी भरोषा नहीं करते काफी सोचसमझकर अपने विचार दूसरों के सम्मुख रखते हैं बहुधा जन्मस्थान से दूर कामयाब होते हैं स्त्री पक्ष से विशेष लाभ पाते हैं संतान इनका नाम अवस्य ऊंचा करती हैं पारिवारिक जीवन बहुत अच्छा होता हैं परंतु ऐसे लोग आकाशमिक मृत्यु का शिकार ज़्यादा होते हैं |

4)हस्ताक्षर मे केवल अपना नाम लिखने वाले अपने जीवन,काम व धन से संतुष्ट पाये जाते हैं अपने परिवार अथवा समाज मे मुखिया होते हैं बहुधा चाहते हैं की लोग उन्हे उनके ही नाम से जाने इनको नेत्र रोग अवश्य होता हैं परंतु जीवन मे इन्हे मान सम्मान बहुत मात्रा मे मिलता हैं यह अच्छे लेखक व कवि होते हैं इनकी कन्या संतान ज़्यादा होती हैं |

5)हस्ताक्षर ऊपर की तरफ चढ़ते हुये हो तो व्यक्ति आशावादी,प्रगतिशील और नीचे की और होतो निराशावादी व बेचैन होता हैं सीधे व स्पष्ट हस्ताक्षर व्यक्ति के मिलनसार होने का सूचक होता हैं |
अपनी लिखावट से बड़े व अलग हस्ताक्षर व्यक्ति के घमंडी व आत्म प्रशंसी होने के विषय मे बताते हैं साथ ही साथ यह अपने को स्वयं से अलग दिखाना पसंद करते हैं |

6)प्रथम अक्षर बड़ा लिखने वाला व्यक्ति अपने कुल का नाम रोशन करने वाला,विलक्षण प्रतिभा वाला व अपने समाज मे लोकप्रिय होता हैं परंतु सब पर अपना अधिकार जमाने की भावना इनमे बहुत होती हैं समाज मे अपनी छवि की चिंता इन्हे हमेशा लगी रहती हैं |

7)हस्ताक्षर मे प्रथम अक्षर बड़ा व बाकी अक्षर छोटे लिखने वाले स्वयं को हमेशा उन्नति करते देखना चाहते हैं व बड़े दिल वाले होते हैं सबको अपनी बात कहने का अवसर प्रदान करते हैं बहुधा प्रथम अक्षर संबंधी ग्रह से संबन्धित ही इनका स्वभाव होता हैं |ऐसे जातक राजनीति मे विशेष कामयाब होते हैं |

8)हस्ताक्षर का प्रथम व उपनाम का प्रथम अक्षर बड़ा लिखने वाला समाज मे लोकप्रिय व सिद्धांत प्रिय होता हैं

9)अपने कुल का पूरा नाम लिखने वाले अपने कुल के द्वारा जाने जाना चाहते हैं क्यूंकी इन्हे इस कुल से बहुत लाभ हुआ होता हैं जिससे उन्हे जीवन मे कम संघर्ष से ही सफलता मिलने लग  जाती हैं |

10)छोटे हस्ताक्षर करने वाले व्यक्ति तेज व चालाक होते हैं बहुधा ग़लत तरीके से धन कमाना चाहता हैं अपने लाभ के लिए किसी को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं | जीवन मे शॉर्टकट पर यकीन रखते हैं स्वभाव से कंजूस होते हैं जीवन मे एक दो बार बदनाम भी हुआ करते हैं |

11)हस्ताक्षर के नीचे एक लकीर खिचने वाले लोग भावुक व अपने कार्यो के प्रति सजग रहते हैं ये अपने मे विश्वास से भरे तथा थोड़े से स्वार्थी होते हैं | इन्हे जीवन मे किसी ना किसी का सहयोग मिलता रहता हैं |

12)हस्ताक्षर के नीचे यदि दो लकीर होतो व्यक्ति प्रदर्शन की भावना रखता हैं इनकी शिक्षा अधूरी या कम होती हैं वैवाहिक जीवन अच्छा ना होने से एक से अधिक संबंध रखते हैं सभी को संदेह की नज़र से देखते हैं अपना काम निकालना बखूबी जानते हैं काफी हद तक स्वार्थी भी होते हैं |

13)हस्ताक्षर के नीचे एक बिन्दु लगाने वाले जीवन मे पीछे मुड़कर देखना पसंद नहीं करते यदि इन पर विश्वास ना किया जाए तो यह आक्रामक भी हो जाते हैं इनका ज़्यादा झुकाव पुरानी कलाओ की तरफ  रहता हैं |

14)हस्ताक्षर के नीचे दो बिन्दु लगाने वाले रोमांटिक प्रवृति के होते हैं आसानी से अपने आपको कहीं भी किसी भी परिस्थिति मे ढाल लेते हैं सुंदर दिखना व सुंदरता को प्राथमिकता देना पसंद करते हैं दूसरों को आकर्षित जल्दी ही कर लेते हैं |

15)छपे अक्षरो जैसे हस्ताक्षर करने वाले जातक बड़े दयालु किस्म के होते हैं अपने परिजनो को बचाने के लिए अपना बलिदान तक करने को तैयार रहते हैं बहुत अधिक सोच विचार करने वाले तथा जल्दी ही क्रोध मे आ जाने वाले होते हैं

16)नाम से अलग हस्ताक्षर करने वाले लोग अपने विषय मे कई तथ्य छुपाते हैं ठीक से किसी से बात नही करते दूसरों कि बात पर भी ध्यान नहीं देते अपने को औरों से तेज व चालाक दिखाना चाहते हैं |

17)प्रथम अक्षर सांकेतिक व उपनाम पूरा लिखने वाले ईश्वर पर विश्वास करने वाले भाग्यवादी प्रवृति के होते हैं | अपनी पहचान को छिपाना चाहते हैं हमेशा अपने को औरों से बेहतर मानते हैं |

18)स्पष्ट हस्ताक्षर कर उसके नीचे लकीर खिच अंत मे बिन्दु लगाने वाले सामाजिक दिल के साफ तथा समाज मे सम्मानित होते हैं | ऐसे व्यक्ति अध्यापक,वैज्ञानिक,संपादक आदि होते हैं हमेशा आगे बदने की ललक लिए ऊंच अभिलाषा रखते हैं बहुधा आलसी स्वभाव के होने से कपड़ो इत्यादि पर ज़्यादा ध्यान नहीं देते जो मिलता हैं उसी से गुजारा कर लेते हैं |

19)हस्ताक्षर के नीचे लकीर खींच कर दो बिन्दु लगाने अपने पारिवारिक जीवन से नाखुश होते हैं
बहुधा इन्होने प्रेमविवाह किया होता हैं जिससे इनकी पत्नी इनसे बड़ी या दूसरी जाती की होती हैं यह कई तरह के व्यापार व नौकरी करते हैं एक स्थान पर इनका मन नहीं लगता |

20)बीच मे टूटा हुआ हस्ताक्षर व्यक्ति के असफल जीवन के बारे मे बताता हैं इसलिए हस्ताक्षर कभी भी टूटे हुये नहीं करने चाहिए |

21)उलझे हुये अक्षर वाले हस्ताक्षर व्यक्ति को मानसिक रूप से परेशान,चिंतयुक्त व उलझनभरा जीवन जीने वाला बताते हैं  |

22)अपने हस्ताक्षरो मे किसी भी प्रकार का निशान लगाना व्यक्ति के मष्तिस्क मे बसे किसी ठोस विचार के विषय मे बताते हैं बहुधा यह लोग अपने जीवन मे किसी वस्तु की कमी महसूस करते हैं यदि निशान सही या ग़लत के चिन्ह के हो व्यक्ति अपने कार्यो से खुश या नाराज रहता हैं

23)गोलाकार हस्ताक्षर करने वाला अपने कई सारे कामो मे लगा हुआ बताने का प्रयास करता हैं जबकि वास्तव मे वह अपनी समस्याओ से घिरा रहता हैं |

24)नुकीले हस्ताक्षर करने वाला अत्यधिक महत्वाकांक्षी होता हैं व अपनी महत्वकांक्षा के लिए कुछ भी करने को तत्पर रहता हैं |

25)दवाबपूर्ण हस्ताक्षर व्यक्ति के बहिर्मुखी व हल्के दवाब वाले हस्ताक्षर व्यक्ति के अंतर्मुखी होने के विषय मे बताते हैं 

26)तेजी से लिखे हस्ताक्षर व्यक्ति की लापरवाही का प्रतीक होते हैं वह यह बताते हैं की व्यक्ति स्वयं की भी परवाह नहीं करता हैं |

27)हस्ताक्षर के शब्दो को कला का रूप देने वाले किसी ना किसी प्रकार से कला से जुड़े होते हैं यह लोग गायक,चित्रकार,नर्तक इत्यादि होते हैं बहुत जल्द ही जीवन मे धन कमाने लग जाते हैं जिस आसानी से धन कमाते हैं उतनी ही आसानी से खर्चते भी हैं बहुत ज़्यादा भावनात्मक होते हैं जिस कारण कभी कभी आत्महत्या जैसे कदम भी उठा लेते हैं इन्हे जमाने से वह अपने जीवन साथी से हमेशा शिकायत रहती हैं |

28)हस्ताक्षर मे केवल अपने नाम का पहला अक्षर लिख बाकी सिर्फ लकीर खिचने वाले बहुत ज़्यादा आत्मविश्वासी होते हैं इन्हे नए नए वस्त्रो का बहुत लगाव होता हैं यह बहुत ज़्यादा धन कमाना चाहते हैं प्राय; इन्हे अपनी संतान से कष्ट प्राप्त होता हैं जीवन मे कम से कम एक बार इन्हे राष्ट्रिय स्तर का सम्मान अवश्य प्राप्त होता हैं ज़्यादातर यह लोग अपना व्यवसाय ही करते हैं

29)अपने हस्ताक्षर व सरनेम को बड़ा बड़ा लिखने वाले हमेशा कुछ ऐसा करने वाले होते हैं जिनसे लोग इनसे हैरान रह जाये जीवन को पूर्णता की और ले जाने के प्रयास मे लगे रहते हैं समाज व दुनिया मे बहुत लोकप्रिय होते हैं बहुधा ऊंचस्तरीय कलाकार अथवा खिलाड़ी होते हैं |

30)अपने हस्ताक्षर के बाद लकीर खिचने वाले अपने मे मस्त तथा कई सारी नौकरी छोड़ने वाले होते हैं अपने निवास स्थान को साफ रखना पसंद करते हैं स्वयं से श्रेष्ठ पत्नी की सोच रखते हैं अपने सहयोगीयो पर ज़्यादा भरोसा रखते हैं |

31)हस्ताक्षर के आखरी शब्द को नीचे की और खिचने वाले लोग समाज के विभिन्न क्षेत्रो मे रहकर लोगो को जोड़ने का कार्य करते हैं ज़्यादातर मैनेजर सरीखा व्यवसाय करते हैं पत्नी से परेशान हमेशा बॉस की जी हुज़ूरी करना इन्हे पसंद रहता हैं हमेशा कुछ ना कुछ विवादो मे घिरे रहते हैं | अच्छे वस्त्र व भोजन के शौकीन रहते हैं |

32)जो व्यक्ति हस्ताक्षर के नीचे गोला बनाकर बिदु रखते हैं वह विलक्षण प्रतिभा के धनी होते हैं जो भी काम करते हैं उसमे अपनी जबर्दस्त पकड़ रखते हैं जिस कारण अपने क्षेत्र मे काफी लोकप्रिय होते हैं इनसे हर कोई सहयोग की अपेक्षा रखता हैं पूर्ण शिक्षित यह लोग काफी धनी जीवन गुजारते हैं अनेक मकान व वाहन रखना पसंद करते हैं |

इस प्रकार हम व्यक्ति के हस्ताक्षर द्वारा उसके विषय मे बहुत सी बातें ज्ञात कर सकते हैं |
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डॉ॰ किशोर घिल्डियाल

शनिवार, 22 मार्च 2014

दशाफल देखने के नियम –



दशा ही फल कथन का आधार होती हैं | प्रत्येक ग्रह अपने स्वभाव और स्थिति के अनुसार दशा आने पर निम्न 18 तरीको से फल प्रदान करता हैं |

(01) परम ऊंच-इस अवस्था का ग्रह अपनी दशा मे श्रेष्ठ फल देता हैं |

(02) ऊंच –ऊंच राशि का ग्रह अपनी दशा मे प्रत्येक प्रकार का सुख प्रदान करता हैं |

(3) आरोही-अपनी ऊंच राशि से एक राशि पहले का ग्रह अपनी दशा आने पर धन्य धान्य की     वृद्दि एवं आर्थिक दृस्ती से संपन्नता देता हैं |

(04) अवरोही-अपनी ऊंच राशि से अगली राशि पर स्थित ग्रह अपनी दशा मे रोग,परेशानी,मानसिक व्यथा व धन हानी प्रदान करता हैं |

(05) नीच- नीच राशि का ग्रह अपनी  दशा मे मान व धन हानी करवाता हैं |

(06) परम नीच –इस अवस्था का ग्रह अपनी दशा मे ग्रह क्लेश,परिवार से अलगाव,दिवालियापन,चोरी व अग्नि का भय प्रदान करता हैं |

(07) मूल त्रिकोण –इसमे स्थित ग्रह अपनी दशा आने पर भाग्यवर्धक एवं धन लाभ कराने वाला होता हैं |

(08) स्वग्रही-इसमे स्थित ग्रह अपनी दशा आने पर विद्या प्राप्ति,यश बढ़ोतरी व पदोन्नति करवाता हैं |

(09) अति मित्र-अति मित्र ग्रह स्थित ग्रह अपनी दशा मे वाहन व स्त्री सुख देने वाला तथा विभिन्न मनोरथ पूर्ण करवाने वाला होता हैं |

(10) मित्र ग्रह-इसका ग्रह अपनी दशा मे सुख,आरोग्य व सम्मान प्रदान करने वाला होता हैं |

(11) सम ग्रह- इसमे बैठा ग्रह अपनी दशा मे सामान्य फल प्रदान करने वाला व विशेष भ्रमण करवाने वाला होता हैं |

(12) शत्रु ग्रह-इसमे बैठे ग्रह की दशा मे स्त्री से झगडे के कारण मानसिक अशांति प्रदान करता हैं |

(13) अति शत्रु- इसमे बैठा ग्रह अपनी दशा मे मुकद्दमेबाजी,व्यापार मे हानी,व बंटवारा करवाने वाला होता हैं |

(14) ऊंच ग्रह संग ग्रह –यह ग्रह अपनी दशा मे तीर्थ यात्रा वा भूमि लाभ करवाने वाला होता हैं |

(15) पाप ग्रह संग ग्रह- यह ग्रह अपनी दशा मे घर मे मरण,धन हानी प्रदान करता हैं |

(16) शुभ ग्रह के साथ ग्रह –यह ग्रह अपनी दशा आने पर धन धन्य की वृद्धि,धनोपार्जन व स्वजन प्रेम आदि का लाभ देता हैं |

(17) शुभ द्रस्ट ग्रह-यह ग्रह अपनी दशा मे विधा लाभ,परीक्षा मे सफलता,तथा ख्याति प्राप्त करवाता हैं |

(18) अशुभ द्रस्ट-इस ग्रह की दशा मे संतान बाधा,अग्निभय,तबादला तथा माता पिता मे से एक की मृत्यु होती हैं |

इनके अलावा कुंडली मे दशाओ का फलादेश करते समय कई अन्य बातों का भी ध्यान रखना चाहिए जिनमे कुछ बाते निम्न हैं |

1)लग्न से 3,6,10,व 11वे भाव मे स्थित ग्रह की दशा उन्नतिकारक व सुखवर्धक होती हैं |

2)दशानाथ यदि लग्नेश,नवांशेश,होरेश,द्वादशेश व द्रेष्कानेश हो तो उसकी दशा जीवन मे मोड या बदलाव लाने मे सक्षम होती हैं |

3)मांदी जिस स्थान मे हो उस राशि के स्वामी की दशा रोग प्रदान करने वाली होती हैं |

4)अस्त/वक्री/युद्ध मे सम्मिलित ग्रह की दशा अशुभ फल प्रदान करती हैं

5)संधिगत ग्रह,6,8,12 वे भाव के स्वामी की दशा अनिश्चय प्रधान होने से पतन की ओर ले जाती हैं |

6)नीच और शत्रु ग्रह की दशा मे परदेश मे निवास,शत्रुओ व व्यापार से हानी तथा मुकदमे मे हार होती हैं परंतु नीच कार्यो से लाभ मिलता हैं |


7)राहू व केतू यदि कुंडली मे 2,3,6 या 11 वे भावो मे हो ना तो इनकी दशा मे अशुभता ही मिलती हैं |

गुरुवार, 20 मार्च 2014

निशुल्क समस्या समाधान मार्च 2014

निशुल्क समस्या समाधान

1)क्या मैं कभी धनवान बन पाऊँगा,नौकरी करू या व्यवसाय ? संदीप 10/8/1984 22:30 दिल्ली ?
संदीप जी हमारी गणनानुसार आपको नौकरी ही करनी चाहिए | आपके धन भाव का स्वामी यात्रा भाव मे हैं व लाभेष लाभ भाव को देख रहा हैं अत; निश्चित रहे आपकी धन की स्थिति अच्छी रहेगी आप पन्ना रत्न धारण करे शुभ रहेगा |


2)कौन सा रत्न धारण करू जिससे लाभ मिले ?रवि कुमार 23/10/1995 14:34 पटना ?
हमारी गणनानुसार आपको पन्ना व ओपल रत्न धारण करना चाहिए जिससे आपको लाभ मिले,ध्यान रखे वर्तमान समय आपको राहू की महादशा चल रही हैं राहू शुभावस्था मे नहीं हैं अत; गोमेद रत्न कदापि ना पहने |


3)किस विषय मे पढ़ाई करू ?निशा 3/4/1997 19:20 दिल्ली ?
आपके लिए जीव विज्ञान (बायोलोजी) लेना शुभ रहेगा आप मेडिकल क्षेत्र मे जा सकती हैं |


4)गले मे अक्सर एलर्जी व खांसी रहती हैं ? राखी 3/3/1985 8:00 ऋषिकेश ?
आपके दूसरे व तीसरे भाव व कारक बुध तथा लग्नेश गुरु के पीड़ित होने से यह समस्याए लगी रहती हैं | आप गुरुवार के दिन पीली वस्तुए प्रयोग ना करे बल्कि दान करे साथ ही साथ बुध व शनि मंत्र के जाप किया करे