जन्म कुण्डली जातक के जन्म समय, स्थान तथा दिन के अनुसार ब्रह्माण्ड का सम्पूर्ण नक्शा होती है, जिसमें ब्रह्माण्ड में स्थित ग्रह राशि तथा नक्षत्र की स्थिति का सम्पूर्ण चित्रण होता है, जन्म के समय पूर्वी क्षितिज में जो राशि उदय हो रही होती है वह 'लग्न' के नाम से जानी जाती है, वैदिक कालीन ज्योतिष के अनुसार चंद्रमा जिस राशि में होता है उसे 'जन्म राशि' कहते है तथा चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है वही जन्म-नक्षत्र के अनुसार नाम प्रथमाक्षर कहलाता है।
जन्म कुण्डली में अवकहड़ा चक्र का
विशेष महत्व है, अवकहड़ा चक्र में वर्णित वर्ण, वश्य, योनि, गण आदि के आधार पर हम यह पता लगा पाते
है कि क्या अमुक कुंडली सम्बंधित जातक की है अथवा वास्तविकता के निकट है । वर्ण, वश्य, योनी, गण, आदि में वर्णित विभिन्न लक्षणों से
जातक के लक्षण जितने अधिक मिलते है वह कुंडली वास्तविकता के उतनी ही अधिक निकट
होती है, हम किसी भी जातक की कुंडली को पूर्ण
रूप सत्य नहीं कह सकते क्योंकि प्रत्येक जातक के जन्म के समय में दो मिनट से लेकर 28 मिनट अन्तर पाया जाता है लग्भग 30 से अधिक महिला चिकित्सकों (जो प्रजनन
कार्य कराती है) से जानकारी लेकर अनुसंधान में यह
निष्कर्ष निकला कि लगातार कोई भी चार महिला चिकित्सक नहीं मिली जिनके जन्म के समय
में एकरूपता हो अर्थात् कोई चिकित्सक बच्चे के बाहर से होने को जन्म का समय मानती है,कुछ बच्चे के पूर्ण रूप
से बाहर आने के समय को मानती हैं कुछ बच्चे के रोने के समय को जन्म का समय मानती हैं
तथा
अधिकांश महिला चिकित्सक नाल छेदन को जन्म का समय मानती हैं | यहीं मत सर्वम्मत है तथा ज्योतिषियों
के मत से मेल खाता है अर्थात जब बच्चा माँ के संपर्क से हटकर
प्रकृति के संपर्क मे आता हैं वही जन्म का समय मानना
सत्यता के अधिक निकट होना चाहिए |
मानव के अधिकांश लक्षण पशु - पक्षियों
के लक्षण से मेल खाते है | अब हम यह जानने का प्रयास करेंगे कि
अवकहड़ा चक्र के आधार पर किसी भी जातक की कुंडली की सत्यता किस प्रकार जानी जा
सकती है उसके लिए वर्ण,गण,वर्ग तथा योनि का अलग-अलग करना आवश्यक
है जो निम्न प्रकार है |
वर्ण चार प्रकार के होते हैं |
1)क्षत्रिय वर्ण - क्षत्रिय वर्ण में
जन्मा जातक हिम्मती साहसी वीर कथाओं का प्रेमी,दानी,उग्र
स्वभाव वाला,आक्रामक तथा विवेकी होता है क्षत्रिय वर्ण में
मेष,सिंह
तथा धनु राशि में जन्मे जातक आते हैं|
2)वैश्य वर्ण - इस वर्ण में जन्मा जातक
व्यवसायी,व्यापार में लीन,सदा दूसरों के कार्य में उधत,निर्मोही, चतुर,व्यय में निपुण,कायदे से खर्च करने वाला,हर
काम मे लाभ देखने वाला,कुछ अड़ियल प्रकृति वाला तथा मितव्ययी होता है | वैश्य वर्ण में वृषभ,कन्या तथा मकर राशि में जन्मे जातक आते
हैं |
3)शुद्र वर्ण- शुद्र वर्ण में जन्म लेने
वाले जातक निष्ठुर,कार्य में चतुर भाषी,विद्या तथा विनय से रहित खुशामदी
प्रवृत्ति वाला,हठी,मिलनसार,अनिश्चित व्यवहार वाला तथा सेवा भाव से परिपूर्ण होता है | शुद्र वर्ण में मिथुन,तुला तथा कुंभ राशि वाले जातक आते हैं |
4)ब्राह्मण वर्ण- इस वर्ण में जन्मा जातक धार्मिक कार्यों में लीन, नम्रता पूर्ण सभी कार्यों को करने वाला, सभी का सम्मान करने वाला,शुभ कार्य करने वालों से प्रेम रखने वाला,भावुक,आध्यात्मिक,सब का भला चाहने वाला कहने का तात्पर्य है कि ब्राह्मणोंचित गुणों से परिपूर्ण होता है । ब्राह्मण वर्ण में कर्क, वृश्चिक तथा मीन राशि में जन्में जातक आते है ।
गण - गण तीन प्रकार के होते है ।
देव गण - देव गण में जन्में जातक बुद्धिमान्, विद्वानों में श्रेष्ठ, अल्पाहारी, सरल हृदय तथा परिवार में मानी जाने वाली सभी धर्मिक रीति - रिवाजों का सम्मान करने वाले होते है |देवगण में जन्म लेने वाले जातक सुंदर और आकर्षक व्यक्तित्व के होते हैं। इनका दिमाग काफी तेज होता है। ये जातक स्वभाव से सरल और सीधे होते हैं। दूसरों के प्रति दया का भाव रखना और दूसरों की सहायता करना इन्हें अच्छा लगता है। जरूरतमंदों की मदद करने के लिए इस गण वाले जातक तत्पर रहते हैं।
इस गण में जन्में जातकों का जन्म
अश्विनी, मृगशिरा, पुनर्वसु,पुष्य, हस्त,स्वाति, अनुराधा,श्रवण तथा रेवती नक्षत्रों में होता है
।
मनुष्य गण - मनुष्य गण में जन्मे जातक
विशाल नेत्र,ठीक निशाने को भेदने वाला,गौर वर्ण,लोगों को वश में रखने वाला तथा किसी के
दबाव में कार्य न करने वाला होता है | ऐसे जातक किसी समस्या या नकारात्मक स्थिति में भयभीत हो जाते
हैं। परिस्थितियों का सामना करने की क्षमता कम होती है।
भरणी,रोहिणी,आर्द्रा,पूर्वफाल्गुनी, उत्तर फाल्गुनी,पूर्वषाढ़ा,उत्तराषाढ़ा,पूर्व भाद्रपद,उत्तर भाद्रपद नक्षत्र में जन्मे जातक
मनुष्य गण होते हैं|
राक्षस गण - राक्षस गण में जन्मे जातक
उन्मादी,झगड़ालू,कठोर वचन बोलने वाले,भयंकर स्वरूप,प्रमेही, तथा जिद्दी प्रवृत्ति के होते हैं | ये अपने आस-पास मौजूद नकारात्मक शक्तियों को आसानी से पहचान
लेते हैं। भविष्य में होने वाली घटनाओं का पूर्वाभास इन्हें पहले ही हो जाता है।
इनका सिक्स सेंस जबरदस्त होता है। ये परिस्थितियों से डरकर भागते नहीं हैं, बल्कि उनका
मजबूती से मुकाबला करते हैं।
इस गण में जन्मे जातकों का जन्म कृतिका,अश्लेषा,मघा,चित्रा,विशाखा, ज्येष्ठा,मूल,धनिष्ठा तथा शतभिषा नक्षत्र में होता
है |
वश्य 5 प्रकार के होते है,
1) चतुष्पाद - मेष तथा वृष राशि में जन्मे जातक इस श्रेणी के
अंतर्गत आते है, ऐसे जातक या तो पशु-पालन के शौकिन पाए
जाते हैं अथवा कार आदि वाहन उनको प्रिय होते है, यदि यह साधन उनके पारा नहीं होते हैं
तो वे बेचैन बने रहते हैं, उनके
मन में एक विचित्र सी अशांति सी बनी रहती है।
2)मानव - मिथुन कन्या तुला धनु तथा कुंभ राशि के
अंतर्गत आने वाले जातक इस श्रेणी में आते हैं,ऐसे जातक मानवीय गुणों से परिपूर्ण
होते हैं इस प्रकार के जातक किसी के भी दबाव में आकर कोई कार्य करना पसंद नहीं
करते हैं इनमे सेवा भाव में भरपूर होता है प्रेम के वशीभूत होकर यह प्रत्येक कार्य
पूर्ण लग्न के साथ करते हैं|
3)जलचर - कर्क मकर तथा मीन राशि के
संबंधित जातक जलचर श्रेणी में आती हैं यह जातक जल अथवा जल से संबंधित वस्तुओं से
विशेष लगाव रखते हैं ऐसे जातक बार-बार स्नान करना पसंद करते हैं नदी किनारे जाने
पर नौका विहार अथवा मछली आदि देखना इन्हें अधिक अच्छा लगता है|
4)कीटक - वृश्चिक राशि में जन्मे जातक
इस श्रेणी में आते हैं ऐसे जातक प्रत्येक कार्य को मन लगाकर करते हैं काम से मन
नहीं चुराते यदि कोई इनको हानि पहुंचाए तो यह बदला लेकर ही चैन से बैठते हैं इस
राशि वाले जातकों की अपनी राशि वाले जातकों से कभी भी नहीं निभती किसी का भी
शत्रुवत व्यवहार इन्हे बिल्कुल पसंद नहीं
आता है|
5)वनचर - सिंह राशि में जन्मे जातक
वनचर श्रेणी में आते हैं ऐसे जातक स्वच्छंद प्रकृति के पाए जाते हैं किसी का आदेश
मानना इन्हें रास नहीं आता,अपनी प्रत्येक इच्छा को मनवाना इन्हें
बखूबी आता है इस प्रकार के जातक घुमक्कड़ प्रवृत्ति के होते हैं अधिकतर घूमते
फिरते रहना इन्हें पसंद होता है ऐसे जातक पतले दुबले व इकहरे बदन के नहीं पाए जाते
उनके कंधे उठे हुए होते हैं तथा स्वभाव रोबीला होता है
योनि चौदह प्रकार की होती है
अश्व योनि - अश्व योनि में जन्मा जातक
स्वतंत्र, वीर, प्रतापी, घर्घर स्वर वाला, स्वामी भक्त, एक जगह न टिकने वाला होता है, अश्वनी तथा शतभिषा नक्षत्र में जन्में
जातक इस श्रेणी में आते है।
गज - गज योनि वाला जातक राजा का प्रिय, भोगी, उत्साही, मस्त चाल वाला, बलवान होता है | भरणी तथा रेवती नक्षत्र में जन्में
जातक इस श्रेणी में आते है ।
मेष - इस योनी वाला जातक उत्साही, पराक्रमी, परोपकारी, ऐश्वर्यवान् तथा मुहंफट होता है ।
कृतिका तथा पुष्य नक्षत्र इस श्रेणी में आते है ।
सर्प - सर्प योनि वाला जातक महा क्रोधी, महा क्रूर, उपकार न मानने वाला, चंचल, जीभ का लोलुप होता है, रोहिणी तथा मृगशिरा नक्षत्र इस श्रेणी
में आते है ।
श्वान (कुक्कुर) - इस 'योनी वाला जातक उद्योगी, शूर, उत्साही, अपने बंधुओं से लड़ने वाला, माता-पिता का भक्त तथा असंतोषी जीव
होता है, आर्द्रा तथा मूल नक्षत्र इस श्रेणी
मे आते हैं |
मार्जर योनि वाला जातक अपने कार्य में
समर्थ,मिष्ठान प्रिय,निर्भय तथा दुष्ट स्वभाव वाला होता है
पुनर्वसु तथा अश्लेषा नक्षत्र इस श्रेणी में आते हैं|
मूषक मूषक योनि वाला जातक बुद्धिमान,धनवान,अपने कार्य में तत्पर,सदा सावधान होता है ऐसा जातक सभी पर
विश्वास नहीं करेगा इस योनि में मघा तथा पूर्व फाल्गुनी नक्षत्र आते हैं|
गौ योनि वाला जातक स्त्रियों का प्रिय,बोलने में चतुर,अल्पायु तथा सर्वदा उत्साह युक्त होता
है | उत्तराफाल्गुनी तथा उत्तराभाद्रपद
नक्षत्र ईस श्रेणी में आते हैं |
महिष - इस योनी
वाला
जातक युद्ध में विजयी, योद्धा, कामी, बहुसंतान वाला, वात रोगी तथा मंदबुद्धि होता
हैं ऐसा
जातक मुंह की मुंह पर कहने वाला अर्थात मुँहफट होता है,इस योनि
मेहस्त तथा स्वाति नक्षत्र आते हैं |
व्याध - व्याध योनी वाला जातक स्वतंत्र,धनोपार्जन मे
तत्पर, दीक्षित, कार्य—दक्ष तथा अपनी प्रशंसा करने वाला होता है, इस योनी में चित्रा तथा विशाखा नक्षत्र
आते है।
मृग- मृग
योनि वाला
जातक स्वतंत्र, शांतचित्त, सद्व्यवहारी, सत्यवक्ता, बंधु-प्रिय, धर्मात्मा तथा आग
से डरने
वाला होता है, अनुराधा तथा ज्येष्ठा नक्षत्र इस
श्रेणी में आते है ।
वानर - इस योनी वाला जातक चंचल स्वभाव, मिष्ठान्न भोक्ता, धन का लोभी, झगड़ालू कामी, संतानयुक्त तथा शूरवीर होता है, इस योनी में पूर्वा षाढ़ा तथा श्रवण
नक्षत्र आते है।
नकुल - नकुल योनी वाला जातक परोपकारी,कार्य में कुशल,धनवान, पंडित, माता - पिता का भक्त
होता
है इस योनी का नक्षत्र उत्तराषाढ़ा है ।
सिंह - सिंह योनी वाला जातक धर्मात्मा, सदाचारी, सद्गुणों से युक्त, कुटुम्बों का पोषक होता है धनिष्ठा तथा
पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र इस श्रेणी में आते है ।
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