शुक्रवार, 30 मई 2014

शनि मंगल का विध्वंशक संबंध

शनि मंगल का विध्वंशक संबंध

कालपुरुष की पत्रिका मे शनि दशम व एकादश भाव तथा मंगल प्रथम व अष्टम भाव का प्रतिनिधित्व करते हैं किसी की भी पत्रिका मे इन दोनों ग्रहो का युति अथवा दृस्टी संबंध जातक विशेष को गुप्त रूप से कर्म कर लाभ प्राप्त करने जैसे फलो की पुष्टि करता हैं जिससे जातक विशेष के चरित्र पर एक प्रश्न चिह्न लग जाता हैं इसके अतिरिक्त प्रत्येक कुंडली मे इन दोनों ग्रहो के भाव स्थान व उनके संबन्धित कारको को भी देखा जाना चाहिए | प्रस्तुत लेख मे हमने ऐसी ही लगभग 200 कुंडलियो का अध्ययन कर कुछ इस प्रकार के नतीजे प्राप्त किए |

ज्योतिष का हर जानकार शनि ग्रह को धरती पर होने वाली सभी बुरी घटनाओ का प्रतीक व कारक मानता हैं संसार मे होने वाले कष्ट,दुख,संताप,मृत्यु,अपंगता,विकलता,दुष्टता,पतन,युद्ध,क्रूरता भरे कार्य,अव्यवस्था,विद्रोह इत्यादि का कारक ग्रह यह शनि ही माना जाता हैं किसी की भी कुंडली मे इसकी स्थिति बहुत महत्व रखती हैं जैसे यह कहा जा सकता हैं की दूसरे भाव मे शनि वैवाहिक जीवन व धन हेतु अशुभ होता हैं जबकि चतुर्थ भाव मे यह कष्टपूर्ण बचपन का प्रतीक बनता हैं इसी प्रकार दशम भाव का शनि पाप प्रभाव मे होने से अपनी दशा मे जातक को ऊंचाई से गिराता हैं अथवा ऊंचे पद से धरातल मे ले आता हैं | इस शनि का सूर्य चन्द्र से सप्तम मे होना हमेशा बुरे परिणाम देता हैं वही गुरु के साथ होने पर यह शनि गुरु दशा मे परेशानी अवश्य प्रदान करता हैं |

इसी प्रकार मंगल ग्रह को धरती पर होने वाले विस्फोटो,हमलो,अग्निकांडों,युद्धो,भूकंपो इत्यादि का कारक माना जाता हैं जातक विशेष की पत्रिका मे यह मंगल दोष के अतिरिक्त कुछ अन्य भावो मे भी हानी ही करता हैं जैसे तृतीय भाव मे यह भात्र सुख मे कमी प्रदान कर अत्यधिक साहसी प्रवृति देता हैं तथा पंचम भाव मे यह तुरंत निर्णय लेने की घातक सोच प्रदान करता हैं |

हमारे ज्योतिष शास्त्रो मे शनि मंगल के संबंध वाले जातक के विषय निम्न बातें कही गयी हैं “ऐसा जातक वक्ता,जादू जानने वाला,धैर्यहीन,झगड़ालू,विष व मदिरा बनाने वाला,अन्याय से द्रव प्राप्ति करने वाला,कलहप्रिय,सुख रहित,दुखी निंदित,झूठी प्रतिज्ञा करने वाला अर्थात झूठा होता हैं | हमने अपने अध्ययन मे काफी हद तक यह बातें सही पायी हैं इसके अतिरिक्त भी कुछ अन्य बातें हमें अपने इस अध्ययन के दौरान प्राप्त हुयी |

इन दोनों ग्रहो का एक अजीब सा रिश्ता हैं मंगल जहां शनि के घर मे ऊंच का होता हैं वही शनि मंगल के घर मे नीच का हो जाता हैं यह दोनों एक मात्र ऐसे ग्रह हैं जो समसप्तक हुये बिना भी एक दूसरे से दृस्टी संबंध बना सकते हैं | ऐसे मे इन दोनों ग्रहो की युति अथवा दृस्टी जातक विशेष की कुंडली मे क्या परिणाम देती हैं आइए कुछ कुंडलियो द्वारा जानने का प्रयास करते हैं |

1)यह संबंध जातक विशेष को आत्महत्या करने पर मजबूर करता हैं | उदाहरण के लिए निम्न कुण्डलिया देखी जा सकती हैं |

1)श्री राम जी की कर्क लग्न की पत्रिका मे शनि और मंगल (सप्तमेश-अष्टमेश व पंचमेश-कर्मेश ) की लग्न व दशम भाव पर दृस्टी हैं जिनके मिले जुले प्रभावों से सभी जानते हैं की श्री राम ने जलसमाधि लेकर आत्महत्या करी थी |

2)29/4/1837 को मिथुन लग्न मे जन्मे इस ने जातक फ्रांसीसी सेना मे जनरल के पद पर रहते हुये फ्रांस के युद्धो मे बहुत नाम कमाया था 1889 मे इन्हे शत्रुतापूर्ण कारवाई के चलते पद से हटा दिया गया 1890 मे इनकी पत्नी की भी मृत्यु हो गयी जिससे निराश होकर इन्होने 30/9/1891 मे आत्महत्या कर ली थी | इनकी पत्रिका मे भी मंगल शनि का दृस्टी संबंध हैं |

3)हिटलर (20/4/1889) तुला लग्न की इस पत्रिका मे शनि मंगल का दृस्टी संबंध हैं जो सप्तमेश चतुर्थेश का संबंध हैं जिससे हिटलर को सिंहासन व पद प्राप्ति की अदम्य असंतुष्टि की भावना प्राप्त हुई और वह अपनी तानाशाही प्रवृति की और उन्मुख होकर विश्व मे विवादित व्यक्ति के रूप मे जाना गया इन्ही ग्रहो के लग्न पर प्रभाव ने उसे आत्महत्या करने को मजबूर किया |

इसी प्रकार 4)25/7/1966 सिंह लग्न,5)27/4/1967 मीन लग्न,6)18/3/1957 कर्क लग्न,7)31/1/1973 कन्या लग्न,8)9/3/1989 कन्या लग्न,9)6/10/1985                कर्क लग्न,10)18/12/1959 वृश्चिक लग्न,11)25/7/1966 सिंह लग्न,12)11/9/1905 मकर लग्न,13)20/10/1912 तुला लग्न,14)9/3/1894 धनु लग्न,15)27/12/1974 मीन लग्न,16)25/12/1917 कन्या लग्न,17)5/9/1967 मीन लग्न,18)23/7/1931 वृश्चिक लग्न,19)13/11/1970 मीन लग्न,20)2/4/1929 मिथुन लग्न,21)20/4/1934 मकर लग्न,22)28/10/1994 कर्क लग्न इन सभी जातको की पत्रिका मे शनि मंगल का संबंध हैं अथवा शनि मंगल किसी एक भाव पर दृस्टी दे रहे हैं जिसके कारण इन सभी जातको ने आत्महत्या करी |

2) यह संबंध हिंसात्मक रूप से हत्या या दुर्घटना द्वारा मृत्यु प्रदान करता हैं |

1)ईसा मसीह (25/12/7बी सी) कन्या लग्न की इस पत्रिका मे शनि और मंगल की दृस्टी लग्न मे हैं सर्वविदित हैं की इनकी मृत्यु हत्या के रूप मे हुई थी |

2)मुसोलिनी 29/7/1883 वृश्चिक लग्न की इस पत्रिका मे शनि मंगल की सप्तम भाव मे युति होने से इनका प्रभाव लग्न पर हैं इनका कार्य व व्यक्तित्व भी काफी विवादास्परूपद रहा तथा इनकी 28/4/1945 को हिंसात्मक रूप से गोली मार कर हत्या कर दी गयी |

इनके अतिरिक्त 3) जॉन केनेडी (29/5/1917) कन्या लग्न,4) महात्मा गांधी (2/10/1869) तुला लग्न,5) राजीव गांधी (20/8/1944) सिंह लग्न,6) मैरी एंटोनिटी फ्रांसीसी रानी (2/11/1755)मिथुन लग्न,7) नाथु राम गोडसे (19/5/1910) मिथुन लग्न, 8) 3/8/1911 कन्या लग्न  की पत्रिकाओ मे अष्टम भाव पर तथा 9) ओसामा बिन लादेन 10/3/1957 वृषभ लग्न प्रथम भाव,10) बेनज़ीर भुट्टो 21/6/1953 धनु लग्न दशम भाव,11) 17/10/1951 वृषभ लग्न सप्तम भाव,12)अब्राहम लिंकन 12/2/1809 कुम्भ लग्न,13)ज़ुल्फिकर अली भुट्टो (5/1/1928)मिथुन लग्न,14)2/2/1923 तुला लग्न,15)मुजीब उर रहमान 17/3/1920 वृश्चिक लग्न,16)फूलन देवी (15/9/1959) मकर लग्न,इन सभी के द्वादश भाव पर मंगल शनि की दृस्टी थी जबकि 17)झांसी की रानी,18)नेपाल नरेश दोनों तुला लग्न व दोनों के लग्न पर इन दोनों ग्रहो का प्रभाव था 19)मार्टीन लूथर किंग 15/1/1929 मेष लग्न की पत्रिका मे भी मंगल की शनि पर दृस्टी थी हम सब जानते ही हैं की इन सबकी भी हत्या की गयी थी | वही  संजय गांधी 14/12/1946 मकर लग्न सप्तम भाव,माधव राव सिंधिया (9/3/1945)वृश्चिक लग्न दशम भाव पर इन दोनों ग्रहो की दृस्टी होने से इनकी दोनों की वायुयान दुर्घटना मे हिंसात्मक मृत्यु हुई तथा 24/7/1911 को तुला लग्न (सप्तम भाव ) मे जन्मे इस जातक की भी वाहन दुर्घटना मे मौत हुयी थी |

3)यह संबंध जातक को हिंसात्मक व तानाशाही प्रवृति देता हैं |

1)औरंगजेब 3/11/1618 कुम्भ लग्न की इस पत्रिका मे लग्न व दशम पर शनि मंगल का प्रभाव हैं जातक की प्रवृति हिंसात्मक व तानाशाही थी |

2)चंगेज़ खान 14/9/1186 कर्क लग्न,3)तैमुर लंग 9/4/1336 धनु लग्न,4)फिडेल कास्त्रों 13/8/1926 मिथुन लग्न,5)निकोलस जार 19/5/1868 धनु लग्न,6)ओसामा बिन लादेन 10/3/1957 वृषभ लग्न,7) हिटलर तुला लग्न, सभी की हिंसात्मक व तानाशाही प्रवृति थी |   

4)यह संबंध जातक विशेष को आपराधिक कार्य करने पर मजबूर करता हैं जिससे यह जातक हत्या,चोरी व बलात्कार जैसे कार्य कर सकते हैं |

1)12/2/1944 तुला लग्न के इस जातक ने अपनी प्रेमिका की हत्या करी |

2)5/4/1959 मिथुन लग्न के इस जातक ने दुश्मनी के चलते अपने शत्रु की हत्या करी |

3)1/2/1946 सिंह लग्न का यह जातक एक आपराधिक गैंग का सरगना था जिसकी हत्या कर दी गयी |

4)27/4/1965 मीन लग्न के इस जातक को बलात्कार करने पर सजा हुई |

5)10/1/1958 वृश्चिक लग्न मे जन्मे इस जातक को गमन के आरोप मे अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा |

6)11/9/1862 वृषभ लग्न बैंक फ़ंड मे गड़बड़ी के कारण 1898 मे 5 वर्ष की जेल हुई |

7)19/8/1946 कर्क लग्न मे जन्मे बिल क्लिंटन के दशम भाव मे मंगल शनि का प्रभाव हैं जिसके कारण इन्हे अपने जीवन के स्वर्णिम काल मे राष्ट्रपति रहते हुये भी सेक्स स्केण्डल का सामना करना पड़ा और इन्होने बाद मे अपना गुनाह कबुल भी किया |

इस प्रकार यह स्पष्ट रूप से कहाँ जा सकता हैं की जातक की पत्रिका मे मंगल शनि का संबंध उसे किसी न किसी प्रकार से संदेहास्पद व शंकालु चरित्र अवश्य प्रदान करता हैं और इन दोनों ग्रहो के प्रभाव मे आकर वह कुछ भी अनैतिक तथा असामाजिक कार्य कर सकता हैं |

 

इन सब प्रभावों के अतिरिक्त गोचर मे भी जब इन दोनों ग्रहो का किसी भी प्रकार से संबंध बनता हैं तब धरती पर बहुत ही विध्वंसकारी प्रभाव पड़ते हैं हमने यहाँ कुछ प्रभावों के विषय मे जानकारी देने का प्रयास किया हैं |

1)13/4/1919 को अमृतसर जालियावाला बाग कांड हुआ |

2)22/11/1933 को जॉन कैनेडी की हत्या हुई |

3)1/4/1939 विश्व युद्ध आरंभ हुआ |

4)18/10/1962 चीन ने भारत पर हमला किया |

5)5/6/1984 अमृतसर स्वर्ण मंदिर मे ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया गया |

6)2/5/2011 ओसामा बिन लादेन की हत्या अमरीकी फौज के द्वारा की गयी |

7)24/4/1974 भारत मे रेलवे की हड़ताल कारण ट्रेने रद्द कर दी गयी |

8)30/4/1945 हिटलर ने आत्महत्या करी |

9)23/8/1939 रूस व जर्मनी के बीच समझौता हुआ |

10)15/6/1973 को अमरीका व वियतनाम के बीच शांति समझौता रोक दिया गया |

11)10/2/2014 केजरीवाल की सरकार दिल्ली मे बनी व ज्यादा नहीं चली |

12)8/2/2014 मलेशिया का विमान लापता हो गया |


इन सभी उदाहरणो से यह स्पष्ट हो जाता हैं की शनि मंगल का संबंध सच मे ही एक विध्वंशक संबंध हैं जो कुंडली मे जातक विशेष के अतिरिक्त धरती पर भी अपना विध्वंशक प्रभाव ही देता हैं |

शुक्रवार, 23 मई 2014

राहू व केतू

राहू व केतू 

राहू केतू छाया गृह माने जाते हैं हिन्दू ज्योतिष मे इन्हे दैत्य माना जाता हैं जो सूर्य व चन्द्र को भी ग्रहण लग देते हैं यह दोनों हमेशा वक्रावस्था मे रहते हुये एक दूसरे के विपरीत भावो मे रहते हैं राहू को केतू से ज़्यादा भयानक माना गया हैं पुरानो के अनुसार कश्यप ऋषि की 13 पत्नियों मे से एक सिंहिका का पुत्र राहू था जिसके अमृतपान कर लेने से भगवान विष्णु ने अपने चक्रो से दो हिस्से कर दिये थे राहू ऊपर का हिस्सा तथा केतू नीचे का हिस्से कहलाता हैं |

यह दोनों 12 राशियो का भ्रमण 18 वर्षो मे करते हैं तथा एक राशि मे 18 माह रहते हैं राहू को विध्वंशक तथा केतू को मोक्षकर्ता माना गया हैं राहू जिस भाव मे स्थित होता हैं उस भाव से संबन्धित कारकत्वों को ग्रहण लगा देता हैं अर्थात कमी कर देता हैं जबकि केतु उस भाव विशेष से विरक्ति प्रदान करता हैं राहू को स्त्रीलिंग तथा केतू को नपुंशक माना गया हैं | राहू केतू के मित्र बुध,शुक्र व शनि हैं तथा मंगल इनसे समता रखता हैं | यह दोनों छायाग्रह होने के कारण जिस राशि मे होते हैं उसके स्वामी के जैसे ही फल प्रदान करते हैं | केंद्र,त्रिकोण मे होने से यह कई शुभ योग प्रदान करते हैं | विशोन्तरी दशा मे राहू को 18 तथा केतू को 7 वर्ष दिये गए हैं |

चन्द्र से केंद्र मे राहू यदि 1 से 8 भावो मे हो तो जातक लंबा होता हैं और यदि केतू चन्द्र से केंद्र मे होकर 1 से 8  भावो मे होतो जातक कद मे छोटा होता हैं राहू 1,7,9,11 राशियो के अतिरिक्त सभी राशियो मे शुभफल प्रदान करता हैं कन्या राशियो मे इसे अंधा माना जाता हैं जिस कारण इस राशि मे यह कोई फल नहीं देता हैं |

लग्न मे राहू बहुत शुभ होने पर जातक लंबा व पतला,बहुत घूमने वाला तथा तकनीकी ज्ञान वाला होता हैं परंतु किसी ना किसी रोग से पीडित ज़रूर रहता हैं यदि राहू चन्द्र संग होतो जातक स्वार्थी व लालची प्रवृति का तथा मानसिक विकार वाला होता हैं ऐसे मे यदि चन्द्र केंद्र का स्वामी होतो जातक माता व परिवार का वफादार नहीं होता हैं राहू उसे हावभाव पूर्ण वाणी,बहुत तरक्की तथा दो पत्नीयो का सूख प्रदान कर्ता हैं | केतू लग्न मे जातक को छोटा कद,विकलांगता तथा अन्य अशुभ प्रभाव देता हैं |

दूसरे भाव मे राहू जातक को धन व पैतृक संपत्ति देता हैं परंतु जातक का धन बचता नहीं हैं अर्थात जातक को बरकत नहीं होती ऐसा जातक किसी के मामले मे हस्तक्षेप नहीं करता,वाणी संबंधी विकार से ग्रस्त हो सकता हैं परिवार से भी ऐसे जातक की कम निभती हैं बहुधा विवाह बाद परिवार से अलग रहते हैं केतू यहाँ पर जातक की पूश्तैनी संपत्ति को कर्जे द्वारा नष्ट कर देता हैं जातक को बड़ा परिवार परंतु आमदनी कम देता हैं |

तीसरे भाव मे सम राशि का राहू शुभ माना जाता हैं यहाँ राहू जातक को परिवार मे सबसे छोटा बनाता हैं जो सहोदरो हेतु अशुभ होता हैं | केतू यहाँ कर्ण रोग तथा कमजोर दिमाग देता हैं बहुधा जातक के परिवार मे 3 सदस्य होते हैं |

चतुर्थ भाव मे राहू भूमि अथवा मकान के सुख मे कमी करता हैं जातक मानसिक रूप से व्याकुल व परेशान रहता हैं उसकी माँ का स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता उसके मकान मे वस्तु अथवा प्रेत दोष अवश्य होता हैं | केतू यहाँ जातक को घर से उचाट रखता हैं अर्थात जातक घर से बाहर रहना ज़्यादा पसंद करता हैं तथा उसके अपनी माँ से संबंध अच्छे नहीं होते |

पंचम भाव मे राहू शिक्षा पूर्ण नहीं होने देता परंतु बुद्दिमान बनाता हैं उसे कला,फोटोग्राफी व लेखन का शौक देता हैं जातक को विवाह सुख मे किसी ना किसी रूप मे परेशानी ज़रूर देता हैं पत्नी यदि सुंदर होती हैं तो जातक उस पर शक करता हैं उसे गर्भविकार रहते हैं जिससे संतान संबंधी कष्ट जातक के जीवन मे रहते हैं अथवा पहली संतान मे परेशानी होती हैं बहुधा जातक की पुत्र संतान नहीं होती | केतू यहाँ संतान हेतु अशुभता देता हैं तथा शिक्षा मे रुकावट ज़रूर देता हैं | संक्षेप मे कहे तो इस भाव मे राहू केतू शिक्षा व संतान हेतु अशुभ रहते हैं संतान पर रूखा व्यवहार रखवाते हैं परंतु संतान से बेहद लगाव भी करवाते हैं |

छठे भाव मे राहू जातक को ताकतवर बना उसे अच्छी नौकरी प्रदान करता हैं उसे मामा से लाभ प्राप्त कराता हैं पाप प्रभाव मे होने से जातक की कलाई पर निशान,नेत्र रोग तथा उसके मामा को पुत्र नहीं देता केतू यहाँ जातक को शत्रुता से बचाता हैं अर्थात जातक के शत्रु नहीं होते |

सातवे भाव मे राहू जातक को विवाह सूख मे किसी न किसी प्रकार से कमी प्रदान करता हैं मंगल संग होने पर राहू यहाँ जातक की पत्नी को मासिक धर्म संबंधी बीमारी देता हैं जिससे जातक के अन्य स्त्रीयों से संपर्क बन जाते हैं मंगल,चन्द्र संग राहू यहाँ नेत्रा व गुप्त रोग देता हैं शुक्र से केंद्र मे राहू यहाँ पत्नी भक्त बनाता हैं जो दूसरों को हमेशा भला बुरा कहता रहता हैं | केतू यहाँ जातक को पत्नी से समय समय पर दूर करता रहता हैं अर्थात जातक व उसकी पत्नी किसी भी कारण से अलग अलग रहते हैं बहुधा जातक की पत्नी वाचाल प्रवृति की होती हैं जिस कारण जातक उसे जातक बात बात पर टोकता अथवा जलील करता रहता हैं |

अष्टम भाव मे राहू जातक को लंबी बीमारी द्वारा मृत्यु देता हैं | 2,4,5,6,8,10,12 राशियो का राहू होने पर जातक की पत्नी सुंदर व मृत्यु सुखद अर्थात बेहोशी या सोते हुये होती हैं जातक को अपने जीवन काल मे उदर रोग रहता हैं | केतू यहाँ दंतरोग,चर्मरोग इत्यादि देता हैं तथा जातक को आत्महत्या हेतु भी उकसाता रहता हैं |

नवम भाव मे राहू सरकार द्वारा लाभ प्रदान करता हैं परंतु संतान देर से देता हैं राहू यदि समराशि मे को कष्ट तथा जवानी मे जुआ खेलने की आदत देता हैं उसकी इस आदत की वजह से अच्छे लोग उससे दूर रहते हैं तथा वह ग़लत दोस्तों के कारण अपयश पाता हैं |

दशम भाव मे 2,4,5,6,8,10,12 राशियो का राहू जातक को शुभता,अधिकार व प्रसिद्दि देता हैं ऐसा जातक छोटा काम नही करते प्राय 30 वर्ष बाद इनके जीवन मे बदलाव आता हैं यह राजनीति करने मे बड़े गुणी होते हैं केतू यहाँ जातक से निम्न कार्य कराता हैं स्वयं का व्यापार करने नहीं देता जातक का चरित्र शंकालु होता हैं तथा पिता को शुभता नहीं देता |

एकादश भाव मे राहू धन व पद दोनों देता हैं परंतु पुत्र केवल एक ही देता हैं ऐसा जताक कर्ण रोग से पीड़ित होता हैं तथा शीघ्र धनवान बनने की चाह मे जातक सट्टा,लॉटरी इत्यादि मे धन लगता हैं केतू यहाँ गजेट्स का शौकीन बनाता हैं तथा जाक अपने बड़ो से दूर रहना पसंद करता हैं |

द्वादश भाव मे राहू नेत्र रोग,एक से अधिक विवाह,नींद मे परेशानी तथा डींगे मारने वाला व्यक्तित्व देता हैं ऐसा जातक करता कुछ नहीं हैं परंतु बातें बड़ी बड़ी करता हैं चन्द्र संग होने पर जातक का रुझान आध्यात्मिकता की और बढ़ा देता हैं केतू यहाँ जातक को मस्तमौला व्यक्तित्व देता हैं ऐसा जातक किसी की भी परवाह नहीं करता |


आचार्या किशोर घिल्डियाल