शुक्रवार, 23 मई 2014

राहू व केतू

राहू व केतू 

राहू केतू छाया गृह माने जाते हैं हिन्दू ज्योतिष मे इन्हे दैत्य माना जाता हैं जो सूर्य व चन्द्र को भी ग्रहण लग देते हैं यह दोनों हमेशा वक्रावस्था मे रहते हुये एक दूसरे के विपरीत भावो मे रहते हैं राहू को केतू से ज़्यादा भयानक माना गया हैं पुरानो के अनुसार कश्यप ऋषि की 13 पत्नियों मे से एक सिंहिका का पुत्र राहू था जिसके अमृतपान कर लेने से भगवान विष्णु ने अपने चक्रो से दो हिस्से कर दिये थे राहू ऊपर का हिस्सा तथा केतू नीचे का हिस्से कहलाता हैं |

यह दोनों 12 राशियो का भ्रमण 18 वर्षो मे करते हैं तथा एक राशि मे 18 माह रहते हैं राहू को विध्वंशक तथा केतू को मोक्षकर्ता माना गया हैं राहू जिस भाव मे स्थित होता हैं उस भाव से संबन्धित कारकत्वों को ग्रहण लगा देता हैं अर्थात कमी कर देता हैं जबकि केतु उस भाव विशेष से विरक्ति प्रदान करता हैं राहू को स्त्रीलिंग तथा केतू को नपुंशक माना गया हैं | राहू केतू के मित्र बुध,शुक्र व शनि हैं तथा मंगल इनसे समता रखता हैं | यह दोनों छायाग्रह होने के कारण जिस राशि मे होते हैं उसके स्वामी के जैसे ही फल प्रदान करते हैं | केंद्र,त्रिकोण मे होने से यह कई शुभ योग प्रदान करते हैं | विशोन्तरी दशा मे राहू को 18 तथा केतू को 7 वर्ष दिये गए हैं |

चन्द्र से केंद्र मे राहू यदि 1 से 8 भावो मे हो तो जातक लंबा होता हैं और यदि केतू चन्द्र से केंद्र मे होकर 1 से 8  भावो मे होतो जातक कद मे छोटा होता हैं राहू 1,7,9,11 राशियो के अतिरिक्त सभी राशियो मे शुभफल प्रदान करता हैं कन्या राशियो मे इसे अंधा माना जाता हैं जिस कारण इस राशि मे यह कोई फल नहीं देता हैं |

लग्न मे राहू बहुत शुभ होने पर जातक लंबा व पतला,बहुत घूमने वाला तथा तकनीकी ज्ञान वाला होता हैं परंतु किसी ना किसी रोग से पीडित ज़रूर रहता हैं यदि राहू चन्द्र संग होतो जातक स्वार्थी व लालची प्रवृति का तथा मानसिक विकार वाला होता हैं ऐसे मे यदि चन्द्र केंद्र का स्वामी होतो जातक माता व परिवार का वफादार नहीं होता हैं राहू उसे हावभाव पूर्ण वाणी,बहुत तरक्की तथा दो पत्नीयो का सूख प्रदान कर्ता हैं | केतू लग्न मे जातक को छोटा कद,विकलांगता तथा अन्य अशुभ प्रभाव देता हैं |

दूसरे भाव मे राहू जातक को धन व पैतृक संपत्ति देता हैं परंतु जातक का धन बचता नहीं हैं अर्थात जातक को बरकत नहीं होती ऐसा जातक किसी के मामले मे हस्तक्षेप नहीं करता,वाणी संबंधी विकार से ग्रस्त हो सकता हैं परिवार से भी ऐसे जातक की कम निभती हैं बहुधा विवाह बाद परिवार से अलग रहते हैं केतू यहाँ पर जातक की पूश्तैनी संपत्ति को कर्जे द्वारा नष्ट कर देता हैं जातक को बड़ा परिवार परंतु आमदनी कम देता हैं |

तीसरे भाव मे सम राशि का राहू शुभ माना जाता हैं यहाँ राहू जातक को परिवार मे सबसे छोटा बनाता हैं जो सहोदरो हेतु अशुभ होता हैं | केतू यहाँ कर्ण रोग तथा कमजोर दिमाग देता हैं बहुधा जातक के परिवार मे 3 सदस्य होते हैं |

चतुर्थ भाव मे राहू भूमि अथवा मकान के सुख मे कमी करता हैं जातक मानसिक रूप से व्याकुल व परेशान रहता हैं उसकी माँ का स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता उसके मकान मे वस्तु अथवा प्रेत दोष अवश्य होता हैं | केतू यहाँ जातक को घर से उचाट रखता हैं अर्थात जातक घर से बाहर रहना ज़्यादा पसंद करता हैं तथा उसके अपनी माँ से संबंध अच्छे नहीं होते |

पंचम भाव मे राहू शिक्षा पूर्ण नहीं होने देता परंतु बुद्दिमान बनाता हैं उसे कला,फोटोग्राफी व लेखन का शौक देता हैं जातक को विवाह सुख मे किसी ना किसी रूप मे परेशानी ज़रूर देता हैं पत्नी यदि सुंदर होती हैं तो जातक उस पर शक करता हैं उसे गर्भविकार रहते हैं जिससे संतान संबंधी कष्ट जातक के जीवन मे रहते हैं अथवा पहली संतान मे परेशानी होती हैं बहुधा जातक की पुत्र संतान नहीं होती | केतू यहाँ संतान हेतु अशुभता देता हैं तथा शिक्षा मे रुकावट ज़रूर देता हैं | संक्षेप मे कहे तो इस भाव मे राहू केतू शिक्षा व संतान हेतु अशुभ रहते हैं संतान पर रूखा व्यवहार रखवाते हैं परंतु संतान से बेहद लगाव भी करवाते हैं |

छठे भाव मे राहू जातक को ताकतवर बना उसे अच्छी नौकरी प्रदान करता हैं उसे मामा से लाभ प्राप्त कराता हैं पाप प्रभाव मे होने से जातक की कलाई पर निशान,नेत्र रोग तथा उसके मामा को पुत्र नहीं देता केतू यहाँ जातक को शत्रुता से बचाता हैं अर्थात जातक के शत्रु नहीं होते |

सातवे भाव मे राहू जातक को विवाह सूख मे किसी न किसी प्रकार से कमी प्रदान करता हैं मंगल संग होने पर राहू यहाँ जातक की पत्नी को मासिक धर्म संबंधी बीमारी देता हैं जिससे जातक के अन्य स्त्रीयों से संपर्क बन जाते हैं मंगल,चन्द्र संग राहू यहाँ नेत्रा व गुप्त रोग देता हैं शुक्र से केंद्र मे राहू यहाँ पत्नी भक्त बनाता हैं जो दूसरों को हमेशा भला बुरा कहता रहता हैं | केतू यहाँ जातक को पत्नी से समय समय पर दूर करता रहता हैं अर्थात जातक व उसकी पत्नी किसी भी कारण से अलग अलग रहते हैं बहुधा जातक की पत्नी वाचाल प्रवृति की होती हैं जिस कारण जातक उसे जातक बात बात पर टोकता अथवा जलील करता रहता हैं |

अष्टम भाव मे राहू जातक को लंबी बीमारी द्वारा मृत्यु देता हैं | 2,4,5,6,8,10,12 राशियो का राहू होने पर जातक की पत्नी सुंदर व मृत्यु सुखद अर्थात बेहोशी या सोते हुये होती हैं जातक को अपने जीवन काल मे उदर रोग रहता हैं | केतू यहाँ दंतरोग,चर्मरोग इत्यादि देता हैं तथा जातक को आत्महत्या हेतु भी उकसाता रहता हैं |

नवम भाव मे राहू सरकार द्वारा लाभ प्रदान करता हैं परंतु संतान देर से देता हैं राहू यदि समराशि मे को कष्ट तथा जवानी मे जुआ खेलने की आदत देता हैं उसकी इस आदत की वजह से अच्छे लोग उससे दूर रहते हैं तथा वह ग़लत दोस्तों के कारण अपयश पाता हैं |

दशम भाव मे 2,4,5,6,8,10,12 राशियो का राहू जातक को शुभता,अधिकार व प्रसिद्दि देता हैं ऐसा जातक छोटा काम नही करते प्राय 30 वर्ष बाद इनके जीवन मे बदलाव आता हैं यह राजनीति करने मे बड़े गुणी होते हैं केतू यहाँ जातक से निम्न कार्य कराता हैं स्वयं का व्यापार करने नहीं देता जातक का चरित्र शंकालु होता हैं तथा पिता को शुभता नहीं देता |

एकादश भाव मे राहू धन व पद दोनों देता हैं परंतु पुत्र केवल एक ही देता हैं ऐसा जताक कर्ण रोग से पीड़ित होता हैं तथा शीघ्र धनवान बनने की चाह मे जातक सट्टा,लॉटरी इत्यादि मे धन लगता हैं केतू यहाँ गजेट्स का शौकीन बनाता हैं तथा जाक अपने बड़ो से दूर रहना पसंद करता हैं |

द्वादश भाव मे राहू नेत्र रोग,एक से अधिक विवाह,नींद मे परेशानी तथा डींगे मारने वाला व्यक्तित्व देता हैं ऐसा जातक करता कुछ नहीं हैं परंतु बातें बड़ी बड़ी करता हैं चन्द्र संग होने पर जातक का रुझान आध्यात्मिकता की और बढ़ा देता हैं केतू यहाँ जातक को मस्तमौला व्यक्तित्व देता हैं ऐसा जातक किसी की भी परवाह नहीं करता |


आचार्या किशोर घिल्डियाल 

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