गुरुवार, 28 दिसंबर 2023

एंटीऑक्सीडेंट्स के भरे श्रोत

एंटीऑक्सीडेंट्स मे हमारे शरीर को मुक्त कणों के हानिकारक प्रभावों से बचाने की क्षमता होती हैं । ऐसा करने पर, वे संभावित रूप से हृदय संबंधी बीमारियों, कैंसर और ऑक्सीडेटिव तनाव से जुड़ी पुरानी स्थितियों की संभावना को कम कर देते हैं । हम मे से अधिकतर लोग नहीं जानते है कि ये फायदेमंद यौगिक विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों में मौजूद होते हैं, जिनमें फल और सब्जियां उल्लेखनीय स्रोत हैं |

आहार विशेषज्ञ कहते हैं, "ऐसे खाद्य पदार्थों को अक्सर उनकी बढ़ी हुई फाइबर सामग्री, संतृप्त वसा और कोलेस्ट्रॉल के न्यूनतम स्तर और आवश्यक विटामिन और खनिजों की प्रचुरता से पहचाना जाता है । दिलचस्प बात यह है कि आप स्नैकिंग के अधिक विकल्प चुनते समय एंटीऑक्सिडेंट का सेवन बढ़ा सकते हैं ।

आइए जानते हैं कुछ ऐसे ही पदार्थ जो हमारे शरीर को फायदा पहुँचाते हैं |

डार्क चॉकलेट

इसमें ऐसे यौगिक होते हैं जो खराब कोलेस्ट्रॉल (एलडीएल) के ऑक्सीकरण से बचाते हैं, जिससे हृदय रोग का खतरा कम हो जाता है । यह लोहा, तांबा,मैगनीज जैसे खनिज भी प्रदान करता है जो शरीर मे स्वस्थ रक्त कोशिकाओं के निर्माण में भूमिका निभाते हैं, प्रतिरक्षा को मजबूत करते हैं और हड्डियों को स्वस्थ बनाते हैं | कोको और डार्क चॉकलेट में पाए जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट हमारे शरीर मे सूजन में कमी और हृदय रोग के जोखिम में कमी के साथ भी जुड़े हुए हैं ।

ब्लूबेरी

पोटेशियम और विटामिन सी से भरपूर ब्लूबेरी, को एंटी-इंफ्लेमेटरी गुणों के अलावा हृदय रोग और कैंसर के खतरे को कम करने में मदद करने के लिए जाना जाता है । इन्हें मस्तिष्क की कार्यक्षमता में उम्र से संबंधित गिरावट को विलंबित करने की क्षमता से भी जोड़ा गया है । ब्लूबेरी में विटामिन और खनिज भी प्रचुर मात्रा में होते हैं । इसके अलावा ये एंथोसायनिन से भरपूर होते हैं, जो शक्तिशाली एंटीऑक्सिडेंट के रूप में कार्य करते हैं ।

अखरोट

फाइबर से भरपूर. प्रोटीन और असंतृप्त वसा के कारण, ये नट्स स्नैकिंग के लिए एक उत्कृष्ट विकल्प होते हैं । पारंपरिक चीनी चिकित्सा में, मानव मस्तिष्क के समान दिखने वाले अखरोट का उपयोग मस्तिष्क के स्वास्थ्य को बढ़ावा देने और यहां तक कि स्मृति में सुधार के लिए किया जाता है । अखरोट की सबसे खास बात इसकी बढ़ी हुई पॉलीफेनोल सामग्री है जो ऑक्सीडेटिव तनाव को दूर करने के लिए एंटीऑक्सिडेंट के साथ सहयोग करते हैं, संभावित रूप से ये अखरोट अन्य लाभों के साथ सूजन में कमी और वजन प्रबंधन में सहायता करते हैं |

आलूबुखारे

आलूबुखारे में मौजूद फाइटोकेमिकल्स और पोषक तत्व सूजन को कम करने में योगदान करते हैं, जो हृदय रोग को ट्रिगर करने में एक प्रमुख कारक बनता है । आलूबुखारा पाचन नियमितता बनाए रखने में सहायता करता है। उनकी उच्च सोर्बिटोल सामग्री, एक चीनी शराब की तरह प्राकृतिक रेचक के रूप में कार्य करता है, जो पाचन तंत्र के माध्यम से सुचारू गति प्रदान करता है ।

एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर आहार के स्वास्थ्य लाभ हृदय रोग के जोखिम कारकों को कम करता है उम्र से संबंधित परेशानियों से लड़ने में मदद करता है |एथेरोस्क्लेरोसिस त्वचा के स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है (कोलेजन संश्लेषण, झुर्रियों में कमी) रक्त वाहिकाओं की रक्षा करता है |ऑक्सीडेटिव तनाव और सेलुलर क्षति को कम कर रक्तचाप और कोलेस्ट्रॉल के स्तर को नियंत्रित करता है जिससे रक्त वाहिका कार्य में सुधार होता है और हमारे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली सही से काम कर पाती हैं |

हमारा हाथ और उंगलियाँ

 


हम रोज़मर्रा के लगभग सभी कामो के लिए अपने हाथों का उपयोग करते हैं, चाहे भोजन का स्वाद लेना हो, वीडियो गेम खेलना हो, या कोई कलाकृति बनाना हो, हर समय हमारे हाथ काम करते रहते हैं लेकिन क्या आपने कभी उंगलियों के बारे मे जानने का प्रयास किया है |

आइए आज हम आपको इन उँगलियो के बारे मे बताते हैं हमारे हाथ की प्रत्येक अंगुली का अपना एक अनूठा नाम व इतिहास है |

अँगूठा (थंब)

"अंगूठा" शब्द जिसे अंग्रेजी में “थंब” नाम से पुकारा जाता हैं, माना जाता है कि यह 12वीं शताब्दी से पहले ही सार्वजनिक बोलचाल में आ गया था और यह प्रोटो-इंडो-यूरोपीय शब्द तुम से आया है जिसका अर्थ "सूजन करना" होता हैं । विभिन्न भाषाएँ अंगूठे के छोटे आकार के बावजूद उसकी ताकत को उजागर करती हैं । चिकित्सा जगत में.इसे पोलेक्स कहा जाता था, जो एक लैटिन शब्द से बना हैं जिसका अर्थ "मजबूत और शक्तिशाली होना होता  हैं । कुर्दिश (ईरानी भाषा) में, अंगूठे को चंचलतापूर्वक "राम उंगली" कहा जाता है । इसकी कॉम्पैक्टनेस और ताकत के बीच एक मजेदार संबंध दर्शाया गया है । इस बात पर अक्सर बहस चलती रहती है कि क्या अंगूठे को आधिकारिक तौर पर उंगली कहा जा सकता है |

तर्जनी (पहली उंगली)

तर्जनी, पंक्ति में दूसरे अंक मे होने के कारण अंगुलियों में प्रथम मानी जाने की अनूठी विशिष्टता रखती है, इसका नाम लैटिन शब्द इंडिको से आया है जिसका अर्थ है "इशारा करना।" अंग्रेजी मे इसे इंडेक्स अथवा फॉर फिंगर  कहते हैं । यह अंगूठे को छोड़कर अन्य उंगलियों से आगे की स्थिति को दर्शाती है। इतिहास में इसके कई नाम हैं। मध्ययुगीन काल में, इसे "अभिवादक" और "शिक्षक" के रूप में सम्मानित किया गया था, जो अपनी संचार और मार्गदर्शक भूमिकाओं को प्रदर्शित करने हेतु प्रयोग होता था । धनुष की डोरियों को पीछे खींचने में इसकी भूमिका के कारण इसे अक्सर “शूटिंग उंगली” भी कहा जाता हैं |

बीच की ऊँगली (मध्यमा)

मध्य उंगली को इसका नाम इसके केंद्रीय स्थान के कारण मिला है - "आधी उंगली चोक्टाव (एक मूल अमेरिकी भाषा) में अंक के लिए एक वैकल्पिक शीर्षक है, इसे "मध्य पुत्र" नाम दिया गया है और कुछ तुर्क भाषाओं में, इसे मध्य चिनार "कहा जाता है । इस उंगली की तुलना पेड़ों के खड़े होने से की जाती हैं । इस मध्य उंगली की एक और विशेषता इसकी लंबाई है। जिससे इसे "लंबी उंगली" जैसे नाम भी दिए गए हैं

रिंग फिंगर (अनामिका)

21वीं सदी की शुरुआत के बाद से, छोटी उंगली के पास वाली उंगली को "अनामिका उंगली" नाम दिया गया है, जो आज तक व्यापक रूप से अपनाया गया शब्द है। जबकि कभी-कभी यह नाम विशेष रूप से बाएं हाथ की तीसरी उंगली से जुड़ा होता है, जहां पारंपरिक रूप से सगाई और शादी की अंगूठियां रहती हैं, यह किसी भी हाथ की तीसरी उंगली को संदर्भित कर सकता है। पूरे इतिहास में, अनामिका उंगली को कई नाम मिले, जिनमें से अधिकांश 18वीं शताब्दी के अंत तक लुप्त हो गए। सबसे शुरुआती शब्दों में इसे "लीच फिंगर (पुरानी अंग्रेजी लेस फिंगर), कहते थे जो इस विश्वास के कारण था कि एक सीधी नस थी जो इसे हृदय से जोड़ती थी। इसे "चिकित्सा उंगली" भी कहा जाता हैं और "चिकित्सक इस कारण चिकित्सा विद्या और अभ्यास में यही उंगली उठाते हैं ।

कनिष्ठा  (छोटी अंगुली)

स्कॉटिश अंग्रेजी में. "पिंकी" शब्द छोटी उंगली को संदर्भित करता है, जो हमारे हाथ की सबसे छोटी उंगली है। यह शब्द डच शब्द "पिंक" से आया है, जिसका अर्थ "छोटी उंगली" है। स्कॉटलैंड में लोगों ने 1808 के आसपास "पिंकी" का उपयोग करना शुरू कर दिया था। ईमानदारी से कहें तो, छोटी उंगली में बहुत अधिक बड़े काम नहीं होते हैं, यही कारण है कि इसके कार्य के आधार पर इसे अधिक नाम नहीं दिए गए हैं हालाँकि, इसे लंबे समय से "ऑरिकुलर फिंगर" कहा जाता है, जिसका लैटिन अर्थ "कान की उंगली" है। कानों से जुड़ी उंगलियां अभी भी आधुनिक फ्रेंच में गूंजती हैं, शायद इसलिए कि इसकी सबसे अनूठी क्षमताओं में से एक कान का मैल निकालना है |

गुरुवार, 21 दिसंबर 2023

रत्न धारण की वैज्ञानिकता

 


प्राचीन समय से रत्न जवाहरात मानव जाति पर अपना विशेष प्रभाव डालते रहे हैं साधारणतयह भी माना जाता है कि जब भी ग्रहों के विपरीत ऊर्जा का प्रभाव किसी जातक पर पड़ता है तो उसके अच्छे या बुरे दिन आरंभ होते हैं इसके विषय में अलग-अलग विद्वान की अपनी-अपनी राय हो सकती है पर साधारण मनुष्य जो भगवान से डरता है उसके लिए शास्त्रों में ग्रहों से बचने के लिए बहुत से रत्न अथवा जवाहरातो के विषय में बताया गया है जो ग्रह की किरणों अथवा उनसे आने वाली ऊर्जाओं को घटा बढ़ा कर जातक विशेष पर पड़ने वाले शुभाशुभ प्रभाव को घटा बढ़ा लेती हैं | ग्रहों को ग्रह इसलिए कहा जाता है कि वह किसी भी वस्तु अथवा चीज को आसानी से पकड़ सकते हैं |

धरती पर इंसान को अन्य जीवो की भांति ही माना जाता है जिसके साथ ग्रहों का प्रभाव पड़ने पर अच्छे बुरे कर्म होते चले जाते हैं ज्योतिष यह मानता है कि जातक के शरीर में होने वाली बीमारियां अथवा पीड़ा उसे उसके पूर्व जन्मों के कर्मों के कारण भुगतनी पड़ती है जो ग्रहो के द्वारा ही संचालित होते हैं जिसे कोई भी अच्छा ज्योतिषी कुंडली और दशा देखकर जातक विशेष को स्पष्ट रूप से कई वर्ष पहले ही बता सकता है | मानव जाति ग्रहों की ऊर्जा के इस शुभाशुभ प्रभाव से अपने को नहीं बचा सकती पर उसको सही या गलत दिशा में भेजने का प्रयास कर सकती है जिसमें ज्योतिष उनकी मदद करता है बहुत से ग्रहों की ऊर्जा को शांत करने के लिए मंत्र,रत्न अथवा मणि आदि का उपयोग किया जाता है जिनका उल्लेख हमारे शास्त्रों में भी है | ग्रहो से संबन्धित रत्नों को धारण करने से एक अलग प्रकार की ऊर्जा जातक विशेष को अपने अच्छे बुरे प्रभाव से बचा लेती है | 9 ग्रह और उनसे संबंधित रत्न निम्न प्रकार से हैं सूर्य के लिए माणिक,चंद्र मोती,मंगल मूंगा,बुध पन्ना,गुरु पुखराज,शुक्र हीरा,शनि नीलम,राहु गोमेद तथा केतु लहसुनिया |

विज्ञान के अनुसार कोई भी चीज जो महसूस की जाती है वह किसी किसी तत्वों से बनी होती है जिसमें एक विशेष प्रकार के ऊर्जास्रोत होते हैं जब यह ऊर्जास्रोत किसी भी कारण से कम या ज्यादा हो जाते हैं तो उनमें कोई अधिकता अथवा कमी हो जाती है जिसको हम रेडिएशन अथवा विकिरण कह सकते हैं जिसे मापा जा सकता है जब इन रत्नों पर विकिरण डाला जाता है तो बहुत ही दिलचस्प नतीजे सामने आते हैं यह रत्न जो धरती पर ऊर्जा के स्रोत अथवा भंडार कहे जा सकते हैं अच्छी व बुरी ऊर्जा से धरती पर कुछ भी करवा पाने में सक्षम होते हैं ध्यान रखें कि पाप ग्रह पाप ऊर्जा तथा शुभ ग्रह शुभ ऊर्जा भेजते हैं जब शुभ अशुभ उर्जा टकराती हैं तो दोनों का प्रभाव नष्ट हो जाता है |

रत्नो पर जब विकिरणें डाली गई तो प्रत्येक रत्न की वेवलेंथ निम्न प्रकार से पायी गयी माणिक मोती पन्ना नीलम गोमेद और लहसुनिया की तरंग धैर्य 70000 एंगस्टोर्म,मूंगा 65000 एंगस्टोर्म,सुनहला 50000 एंगस्टोर्म  तथा हीरा 80000 एंगस्टोर्म जो यह साबित करता है कि इन रत्नों में ऊर्जा का भंडार इन से संबंधित ग्रह के द्वारा ही आता है | जिस प्रकार दवा खाने से हमारी बीमारी का नाशरीर में होता है इसी प्रकार से यह रत्न भी अपनी इन ऊर्जाओं के कारण ग्रहों के पाप प्रभाव को नष्ट कर देते हैं यह जानने के लिए कि रत्न किस प्रकार से किरणों के माध्यम से अपनी उर्जा को भेजते हैं इनको ग्रहो से निकालने वाली किरणों से तुलना करने पर पाया गया की सूर्य चन्द्र व शनि 65000 एंगस्टोर्म,मंगल व बुध 85000 एंगस्टोर्म,गुरु व शुक्र 130000 एंगस्टोर्म,राहु केतू 35000 एंगस्टोर्म की ऊर्जा वाली तरंग धैर्य अथवा वेवलेंथ धरती पर भेजते हैं |

ग्रहो से निकालने वाले सभी विकिरण नकारात्मक हैं जो कि बहुत ही विध्वंसक होते हैं इन नकारात्मक प्रभाव वाली किरणों को सकारात्मक प्रभाव मे बदलने के लिए रत्नों का प्रयोग किया जाता हैं | जब कोई रत्न धारण किया जाता हैं तो रत्न की ऊर्जा जातक के शरीर में प्रवेश करती है जो बाहर से आ रही ऊर्जा को इस रत्न के द्वारा विस्थापित कर देती है जिससे उस जातक विशेष को सुविधा प्राप्त होने लग जाती है परंतु यदि इन रत्नो के चुनाव में किसी भी प्रकार की त्रुटि की गई तो भारी नुकसान भी हो सकता है |

रत्न पहनने से पहले यह पता कर लेना जरूरी होता है कि 9 ग्रहो मे से कौन सा ग्रह आपके लिए अशुभ ऊर्जा भेज रहा हैं और उस ऊर्जा को सही करने के लिए कौन सा रत्न धारण करना बढ़िया रहेगा | हमने यहा ग्रहों के नकारात्मकता अथवा अशुभ ऊर्जा के अनुसार उनसे होने वाले नुकसान से बचने व लाभ पाने के लिए कौन सा रत्न पहनना चाहिए ये बताने का प्रयास किया है |

सूर्य के लिए माणिक |

चंद्र के लिए लहसुनिया |

मंगल के लिए मूंगा |

बुध हेतु सुनहेला |

गुरु हेतु मोती |

शुक्र हेतु हीरा |

शनि हेतु नीलम |

राहु हेतु गोमेद तथा केतु हेतु पन्ना |

जब सूर्य कुंडली में खराब अवस्था में बैठा हो समझ लेना चाहिए की सूर्य के द्वारा दी जा रही शुभ ऊर्जा उस जातक के शरीर तक नहीं पहुंच रही है जिससे उसको सूर्य की ऊर्जा कम मिल रही है और उसका शरीर सुचारु रुप से काम नहीं कर पा रहा है सूर्य जो की हड्डियों और आंखों का कारक होता है जातक विशेष को हड्डी और आंखों से संबंधित बीमारी दे सकता है ऐसे मे माणिक पहनने से उसको सूर्य की शुभ उर्जा मिलने लगेगी जिससे वह सूर्य संबंधी मिलने वाले दुष्प्रभाव से बच पाएगा |

इसी प्रकार यदि बृहस्पति कुंडली मे अशुभ या गलत भाव में बैठा हो तो जातक को बृहस्पति की ठंडी उर्जा नहीं मिल पाती और उसका खून गर्म रहता है इसको सही करने के लिए चन्द्र का रत्न मोती धारण कराया जाता है क्यूंकी गुरु का रत्न सुनहेला इस काम को नहीं कर सकता,इसी प्रकार यदि बुध खराब हो तो उसके अशुभ प्रभाव से बचने के लिए बुध का रत्न पन्ना ना पहना कर उसके शत्रु ग्रह गुरु का सुनहेला रत्न पहनाया जाता है जोकि बुके नकारात्मक प्रभावों को शुभता में बदल देता है,इसी प्रकार यदि केतु खराब हो तो उसके नकारात्मक प्रभाव से बचने के लिए उसका रत्न लहसुनिया ना पहनाकर बुध का रत्न पन्ना पहनाया जाता है |

इन सब के अतिरिक्त रत्नों का अन्य उपयोग भी है इनको पहनने से जातक विशेष के व्यक्तित्व में भी फर्क पड़ता है जैसे कोई जातयदि अपने आप को अन्य लोगों से मानसिक रुप से कमजोर पाता हो तो वह बुध ग्रह का रत्न पन्ना धारण कर अपनी मानसिक सोच को बढ़ा सकता है क्योंकि बुबुद्धि का कारक माना गया है |

इसी प्रकार आत्मिक शक्ति के प्रभाव को बढ़ाने के लिए माणिक,मानसिक शक्ति के प्रभाव को बढ़ाने के लिए मोती,अपने को अच्छा दिखाने के लिए हीरा तथा अपनी दूरदर्शिता बढ़ाने के लिए पुखराज रत्न पहनना चाहिए परंतु ध्यान रहे हैं यदि जातक बुरे कर्म करता है बुरे विचार रखता हैं अथवा बुरी आदतों का शिकार है तो पर इन ग्रहों की शुभता देने वाले ऐसे रत्नो का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा ग्रह कभी भी बुरे व्यक्तियों को उनके बुरे कर्मों के लिए मदद नहीं करते हैं ऐसे में उनके लिए किसी भी प्रकार का रत्न धारण करना अच्छा नहीं होता यदि वो रत्न धारण कर भी ले तो अशुभता ही प्राप्त होती हैं असिए अनुभव मे देखने मे आता हैं |

हमेशा याद रखे की ग्रह हमारे शरीर मे सभी कारको व हिस्सो पर अपना प्रभाव रखते हैं वराहमिहिर ने अपने ग्रंथ वृहद जातक में ऐसे कई रत्न एवं ग्रहों की जानकारी दी है जो कि बिल्कुल सही सटीक पाई जाती है |

आयुर्वेद के अनुसार मानव शरीर में सात प्रकार की धातुएं होती है जिन पर 7 ग्रहों का आधिपत्य होता है जैसे चंद्र हमारे रक्त,गुरु मे,सूर्य अस्थि,मंगल मज्जा तथा शुक्र वीर्य में संचालन करता है बुहमारी नसों और शनि हमारे स्नायु का संचालन कर्ता होता है | जब भी हम भोजन खाते हैं तो वह विभिन्न ग्रहो द्वारा संचालित चक्रों से होता हुआ सभी धातुओं के रूप में बदलता चला जाता है आयुर्वेद के अनुसार खाये हुये भोजन को पहली धातु से अंतिम धातु बनने मे 28 दिन का पूर्ण समय लगता हैं और ठीक 28 दिन में ही चंद्रमा भचक्र की सभी राशियों का एक चक्कर लगा लेता है |

ग्रह अपने पने देवताओं के अनुसार शांति प्रयोग कर साधारण मनुष्य को अपने दुष्प्रभाव से बचाते हैं परंतु यदि पत्रिका में वह गलत स्थिति में या गलत प्रभाव में हो तो जातक की आदतों को खराब कर उसे बीमारी भी लगा देते हैं,बेहद खतरनाक बीमारी राज्यक्षमा जिसे आज के संदर्भ मे टीबी कहा जाता हैं रक्त संचालक चंद्र के खराब होने अथवा गलत स्थिति में होने पर होती है जो हमारे शरीर में खून को नियंत्रण करता है खून का सही प्रकार से नियंत्रण ना होने से इससे अगली धातु मांस शरीर में ठीक से नहीं बन पाता है यह सभी धातुओं को आरोही और अवरोही क्रम में प्रभावित करता है क्यूंकी सभी धातुए एक दूसरे से संबन्धित हैं रक्त में गर्मी होने से शरीर का तापमान बढ़ जाता है इससे अत्यधिक पसीना आता है डायरिया हो सकता है जिससे शारीरिक शक्ति का ह्रास होता है तथा अन्य नुकसान भी होते हैं यह सिर्फ एक उदाहरण है जो यह बताता है कि केवल एक चन्द्र के अशुभ होने से क्या क्या बीमारिया हमारे शरीर मे हो सकती हैं |

इसी प्रकार अन्य ग्रह भी हमारे शरीर में समय-समय पर कोई ना कोई रोदेते रहते हैं इसलिए आवश्यक हो जाता है कि ग्रह जो बीमारी देते हैं वह किस नक्षत्र में और किस अवस्था में हमारी पत्रिका में बैठे हैं उनका उचित तरीके से संशोधन किया जाए तथा उनकी शांति पूजा करके उनको ठीक किया जाए,कभी कभार चिकित्सा जगत में बहुत सी दवाइयां और इंजेक्शन देकर भी इन रोगो को शरीर में ठीक प्रकार से नियंत्रित किया जाता है परंतु दवा के साथ-साथ यदि ज्योतिषी उपाय भी किए जाएं तो बहुत जल्दी राहत मिल जाती है जब पहले दवाइयां नहीं बनी थी तब इन्ही नौ ग्रहों से उनके लक्षणों के आधार पर होने वाली बीमारी का इलाज किया जाता था | यह सर्वविदित है कि 9 प्रकार की यह ग्रह ही हमारे शरीर में बीमारी देने का काम करते हैं पहले बीमारी के लिए दवाई नहीं बनी थी तो रो से संबंधित रत्न ही जातक विशेष को पहनाए अथवा दवा के रूप में भस्म के तौर पर प्रयोग कराए जाते थे |

यदि किसी जातक का चंद्र खराब हो तो उसे लहसुनिया पहना देने से उसकी मज्जा में ताकत जाती है जिससे नसों को ताकत मिलने से रक्त संचालन ठीक हो जाता है इसके साथ साथ ही मोती की भस्म भी खिलाई जानी चाहिए | एक होम्योपैथिक दवा भी आती है जो मोतियों से बनाई जाती है उसका सेवन भी समान प्रभाव देता है | यदि केतु का रत्न लहसुनिया कुछ देर तक पानी और दूध में रखा जाए तो वह जल अथवा दूध उसके सभी किरणों अथवा ऊर्जा को सोख लेता है जिससे उस पानी अथवा दूध मे रत्न के गुण जाते हैं जब इसको पिया जाता है तो यह भी दवा के रूप में काम करता है | सभी प्रकार के चन्द्र जनित रोगो मे इस जल का सेवन किया जा सकता हैं |

चंद्र के द्वारा अलग अलग होने वाली बीमारियों के लिए अलग-अलग दवा का बनाने का प्रयास चल रहा है | यह निश्चित है कि जब भी कोई ग्रह कोई बीमारी करता है तो वह सभी सातों प्रकार की धातुओं को प्रभावित कर लेता है सभी धातुओं को एक साथ दवा के रूप में दिया जाए तो वह सभी प्रकार की बीमारियों को ठीक किया जा सकता हैं जब विकिरण के रूप में इन ग्रहों की ऊर्जा को मानव शरीर में भेजा जाता है तो उसके शरीर की ऊर्जा कई गुना बढ़ जाती है |

आयुर्वेद दवा की 100000 यूनिट ऊर्जा,एलोपैथिक दवा की 130000 यूनिट ऊर्जा तथा होम्योपैथिक की दवा 2500000 यूनिट ऊर्जा का प्रभाव मानव शरीर मे डालती है से समझा जा सकता है कि दवाओं का असर मानव शरीर मे कितना सशक्त होता है होमियोपैथी दवाएं जो पूरी दुनिया में सबसे बेहतरीन मानी गई है कोई भी शोध जो होम्योपैथी में होता है से मानव जीवन का बहुत भला होता है होम्योपैथी में ही सातों धातुओं को सही करने वाली दवा का निर्माण किया जा सकता है | जब तक की सभी दवाइयों की खोज नहीं हो जाती तब तक यह रत्न बहुत ही शक्तिशाली रूप से बीमारीयो से जातक को बचा सकते हैं परंतु यह ध्यान रखें कि इनको धारण करने से पहले इन ग्रहों के देवताओं को प्रसन्न करना चाहिए और इन ग्रहों से संबंधित दिन में ही इनको पहनना चाहिए जैसे सूर्य के लिए माणिक रविवार को,गुरु के लिए मोती बृहस्पतिवार को,शनि के लिए नीलम शनिवार को ही धारण करना चाहिए कोई भी ग्रह से संबंधित रत्न शरीर में अपना प्रभाव देने के लिए एक माह का वक्त लेता है परंतु जैसे ही हम उसको उतारते हैं उससे मिलने वाले शुभ प्रभाव नष्ट हो जाते हैं |