गुरुवार, 26 मई 2022

गर्भाधान का सही मुहूर्त या समय




हमने अपने आसपास अनेक परिवार ऐसे देखे है जिनके बच्चे शारीरिक रूप से स्वस्थ्य नही होते है और हम यह सोचते है कि भगवान ने उनके नसीब ही ऐसा लिखा है । परन्तु वास्तव मे ऐसा नही है यदि हम ज्योतिष दृष्टीकोण से सही मुहूर्त पर गर्भधारण करते है तो जन्म लेने वाला बच्चा पूर्ण रूप से स्वस्थ होगा |

नव दंपतियों को गर्भधारण करने से पूर्व किसी अच्छे ज्योतिषी से सलाह अवश्य लेनी चाहिये आप चाहे तो निम्नलिखित बातों को ध्यान मे रखकर भी गर्भधारण कर सकते है ।

1 – यदि सिंह लग्न हो तथा चन्द्रमा और सूर्य लग्न में युति कर रहे हों तो जातक की भावी संतान के नेत्रहीन होने की संभावना रहती है । अतः इस समय संभोग करने से बचें |

2 - यदि संभोग के समय सभी ग्रह निर्बल हों तथा बुध पंचम या नवम भाव में हो तो बड़ी विचित्र आकार वाले शिशु के जन्म की संभावना रहती है ।

3 – यदि संभोग के समय चन्द्रमा किसी राशि के अंतिम नवांश अर्थात् 26-40 से 30-00 के मध्य हो,पाप ग्रह से युक्त या दृष्ट हो तथा कर्क, वृश्चिक और मेष नवांश की शुभ दृष्टि से वंचित हो तो शिशु के मूक और बधिर होने की संभावना रहती है ।

4 - यदि लग्न में कर्क, वृश्चिक एंव मीन राशि का अंतिम नवांश हो तथा लग्न पाप युक्त तथा चन्द्रमा वृष राशि में हो तो इस समय किया गया संभोग मूक शिशु को जन्म देता है |

5 - यदि मकर लग्न की कन्या नवांश से सूर्य चन्द्रमा तथा शनि का दृष्टि या युति सम्बन्ध हो तो उक्त गर्भाधान विकलांग शिशु को जन्म देता है ।

6 - यदि संभोग काल में मीन लग्न शुभ ग्रह की दृष्टि युति से वंचित हो परन्तु चन्द्र या मंगल या शनि से दृष्ट हो तो लंगड़े शिशु का जन्म संभावित होता है ।

7 - संभोग काल में यदि शनि या मंगल की युति सूर्य से सप्तम भाव में हो और पति के सप्तम भाव में मंगल और शनि स्थित है तो पत्नी असाध्य रोगिणी बन जाती है ।

8 - गर्भस्थ शिशु का मासाघिपति मंगल या शनि हो तो उसे मृत्यु तुल्य कष्ट होता हैं |

9 – यदि संभोग के समय लग्न व चन्द्र दोनों ही पाप ग्रहो के मध्य हो तथा शुभ ग्रह संबंध से वंचित हो तो गर्भस्थ शिशु व उसकी आता दोनों ही जीवित नहीं रहते |

10 – संभोग के समय यदि राहू केतू का संबंध चतुर्थ या नवम भाव अथवा इनके स्वामियों से हो तथा शुभ ग्र्फ़ह की दृस्टी/युति का अभाव हो तब भी शिशु की मृत्यु की संभावना रहती हैं |

11 – यदि संभोग के समय लगनस्थ चन्द्र,हीन बली होकर मंगल तथा शनि से दृस्ट हो अथवा लग्न हीन बली व शुभ प्रभाव से वंचित हो तथा द्वादश भाव के द्रेष्कोण मे दो पाप ग्रहो की युति हो तो महिला गर्भस्थ शिशु को जन्म देने पहले की मृत्यु को प्राप्त कर सकती हैं |    

वर्जित एवं अनुशंसित संभोग काल

स्त्रीयों के लिए स्वाभाविक रूप से 10 दिन ऐसे माने जाते हैं जिनमे गर्भाधान करना शुभ रहता हैं | 

मान्यता हैं की युग्म जैसे 2 - 4 - 6 - 8 इत्यादि संख्या वाली रात्रि मे गर्भाधान करने से पुत्र तथा अयुग्म जैसे 1 - 3 - 5 - 7 संख्या वाली रात्रि को संभोग करने से पुत्री का जन्म होता हैं |  

चौथी रात्रि में हुये गर्भाधान से जो पुत्र पैदा होता है वह अल्पायु वाला,गुणरहित एंव उच्छृंखल,दरिद्र और दुखी रहने वाला होता है ।

पाँचवी रात्रि को गर्भाधान होने से कन्या उत्पन्न होने की संभावना बनेगी ।

छठवी रात्रि में गर्भाधान करने से पुत्र उत्पन्न होता है और सातवीं रात्रि मे गर्भाधान से कन्या होने की संभावना रहती हैं जिसकी शीघ्र मृत्यु की संभावना रहती है इसलिए उसे वर्जित ही रखें ।

आठवीं रात्रि में गर्भदान होने से सौभाग्यवती कन्या उत्पन्न होती है ।

दशमीं रात्रि में गर्भाधान से श्रेष्ठ पुत्र की प्राप्ति होती हैं परन्तु ग्यारहवीं रात्रि को संभोग से हुये गर्भाधान से धार्मिक आचरण  करने वाली कन्या उत्पन्न होती है ।

बारहवीं रात्रि को गर्भाधान से श्रेष्ठ आचरण वाला पुत्र किन्तु 13 वीं रात्रि को दुखदायी, कन्या का जन्म होता है ।

चौदहवीं रात को गर्भाधान करना सर्वोत्तम रहता है क्योंकि इस रात्रि के संभोग से धर्मात्मा,कृतज्ञ,संयमी,तपस्वी,पिता के आज्ञाकारी पुत्र के उत्पन्न होने की संभावना अधिक रहती है | 

जो कन्या प्राप्ति के इच्छुक दम्पत्ति हों उन्हें श्रेष्ठ, सुन्दर, भाग्यशालिनी कन्या प्राप्ति के लिए पन्द्रहवीं रात्रि में संभोग करना चाहिए ।

सोलहवीं रात्रि को तीक्षण बुद्धि वाले पुत्र के जन्म की संभावना अधिक रहती है ।

 

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