मंगलवार, 31 मई 2022

हमारे शरीर के 6 चक्र



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https://youtu.be/6ziyi810ohw

ज्योतिष शास्त्र से हमें ग्रह - नक्षत्रों का परिचय व जीवन पर पड़ने वाले उनके प्रभावों का ज्ञान होता है, इन ग्रह-नक्षत्रों के संदर्भ में विशेष बात यह है कि इन ग्रहों का हमारे शरीर से सूक्ष्म संबंध होता है, इसी कारण ये हमारे जीवन व व्यक्तित्व को प्रभावित कर पाते हैं ।

हमारे शरीर में ग्रहों से संबंध सूत्र स्थापित करने का माध्यम बनते हैं - हमारे सूक्ष्मशरीर में स्थित चक्र | इन चक्रों में ऊर्जा होती है । यदि यह ऊर्जा स्वस्थ, सकारात्मक व क्रियाशील है, तो इसका सकारात्मक लाभ व्यक्ति को प्राप्त होता है, लेकिन यदि इन चक्रों में स्थित ऊर्जा दूषित, नकारात्मक व अवरुद्ध है, तो इससे व्यक्ति का व्यक्तित्व प्रभावित होने के साथ-साथ वह इनसे संबंधित बीमारियों से भी ग्रसित हो जाता है ।

प्राण-ऊर्जा चिकित्सा एक ऐसा माध्यम है, जिसके द्वारा रोगी को बिना स्पर्श किए उसके सूक्ष्मशरीर में स्थित चक्रों की दूषित ऊर्जा को हटाकर उसे स्वस्थ ऊर्जा से ऊर्जान्वित किया जाता है और उस ऊर्जा को स्थिर किया जाता है । वर्तमान में ऐसी तकनीकें विकसित हो गई हैं, जिनके माध्यम से हमारे ऊर्जा शरीर का प्रतिबिंब भी लिया जा सकता है और अपने शरीर में प्रवाहित होने वाली ऊर्जा के स्वरूप व आकार-प्रकार को देखा जा सकता है।

शरीर में स्थित चक्रों की ऊर्जा को यदि जाग्रत किया जा सके, तो व्यक्ति विभूतियों व सिद्धियों से संपन्न हो जाता है, इसके लिए प्राय: व्यक्ति साधना करता है, तपस्या करता है। अनेकों साधु-तपस्वी व ऋषि-मुनि साधना के माध्यम से यह प्रयास करते हैं। सामान्य व्यक्ति भी अपने सूक्ष्मशरीर में स्थित चक्रों की ऊर्जा का सामान्य लाभ ले सकता है और अपने जीवन में विशेष ढंग से आगे बढ़ पाता है, लेकिन सबसे पहले हमें इन चक्रों के बारे में जानना जरूरी है।

हमारे शरीर में वैसे तो कई सूक्ष्मचक्र हैं, लेकिन विशेष रूप से कुल छह चक्र हैं, योग की भाषा मे इन्हे षटचक्र कहा गया हैं 1) मूलाधार चक्र,2)स्वाधीस्थान चक्र, (3) मणिपुर चक्र, (4) अनाहत चक्र, (5) विशुद्धि चक्र एवं (6) आज्ञा चक्र

इन षट्चक्रों के जाग्रत होने पर व्यक्ति का सहस्रार चक्र जाग्रत होता है। षट्चक्रों की बात इसलिए कही गई है कि हमारे स्थूलशरीर की सीमा रेखा आज्ञा चक्र तक सीमित है और सहस्रार चक्र के जागने पर व्यक्ति शरीर के दायरे से पार चला जाता है । इसलिए हमारा स्थूलजीवन मुख्य रूप से षट्चक्रों के दायरे में रहता है |

हमारे सूक्ष्मशरीर में स्थित हर चक्र में विशेष प्रकार की ऊर्जा सुप्त रूप में निहित होती है और हर चक्र किसी एक ग्रह से संचालित है । जो ग्रह हमारी जन्मपत्रिका में कमजोर है, उस ग्रह से जुड़ा हुआ चक्र भी कमजोर होता है और उस चक्र के द्वारा संचालित विषय भी हमारे जीवन में कमजोर होते हैं ।

उदाहरण के लिए - मूलाधार चक्र मानव शरीर में गुदा के पास होता है और शरीर का यह अंग ही पूरे शरीर को सँभालता है। इस चक्र का स्वामी शनि ग्रह और इसकी दोनों राशियाँ मकर और कुंभ होती हैं। यदि किसी व्यक्ति का शनि ग्रह व इसकी दोनों राशियाँ पीड़ित हैं, तो इस चक्र के माध्यम से उसके शरीर में रोग उत्पन्न होते हैं । इस चक्र का वर्ण रक्त है और इसके चार वर्ण दल यानी –'व सश ष' हैं । इस चक्र में मुख्यतः श्री गणेश जी की स्थापना मानी जाती है । 

स्वाधिष्ठान चक्र का स्थान व्यक्ति के शरीर में लिंग के समीप है । इसके स्वामी बृहस्पति और इसकी राशियाँ धनु व मीन हैं । बृहस्पति संतान कारक ग्रह है, इसलिए संतान की उत्पत्ति में इस चक्र की विशेष भूमिका रहती है । यदि कोई व्यक्ति बृहस्पति ग्रह या धनु- मीन राशि से पीड़ित है तो उसे इस चक्र संबंधी समस्याएँ होती हैं । इस चक्र के अधिष्ठात्र देव भगवान विष्णु हैं ।

मणिपुर चक्र का स्थान शरीर में नाभि के पास होता है और इस चक्र का स्वामी मंगल व उसकी राशियाँ मेष व वृश्चिक हैं। इस चक्र से शरीर को अग्नि प्राप्त होती है तथा भोजन की पाचन क्रिया इसी चक्र पर निर्भर करती है । मंगल ग्रह या मेष- वृश्चिक राशि के पीड़ित रहने पर व्यक्ति की नाभि प्रायः अपने स्थान से हटती रहती है और इसके कारण पाचन क्रिया खराब होती है । इस चक्र के अधिष्ठात्र देव हनुमान जी हैं ।

अनाहत चक्र का स्थान हृदय के समीप है और इसका स्वामी शुक्र ग्रह व इसकी राशियाँ वृषभ व तुला हैं । शुक्र प्रेमकारक ग्रह है, यदि किसी व्यक्ति का शुक्र ग्रह व इसकी राशियाँ पीड़ित हैं, तो इस चक्र के माध्यम से हृदय रोग उत्पन्न होता है और ऐसे व्यक्ति प्रायः अधिक तनावग्रस्त देखे जाते हैं । इस चक्र की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी जी हैं ।

विशुद्धि चक्र कंठ में स्थित होता है। इस चक्र का स्वामी बुध ग्रह व इसकी राशियाँ-मिथुन व कन्या हैं । बुध वाणीकारक ग्रह होता है। यदि किसी व्यक्ति का बुध ग्रह व उसकी राशियाँ पीड़ित हैं तो उसे कंठ के साथ-साथ वाणी दोष भी लगता है। इस चक्र की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती जी हैं । इसलिए किसी भी तरह के संगीत, गायन, कला आदि में माँ सरस्वती की आराधना की जाती है ।

आज्ञा चक्र शरीर में मस्तिष्क की दोनों भौंहों के बीच स्थित होता है । इस चक्र के स्वामी सूर्य और चंद्रमा हैं और उनकी राशियाँ कर्क व सिंह हैं। यदि कोई व्यक्ति सूर्य ग्रह से पीड़ित है, तो उसकी दूर देखने की क्षमता प्रभावित होती है और यदि चंद्रमा से पीड़ित है, तो उसकी निकट की दृष्टि प्रभावित होती है । यदि सूर्य और चंद्रमा दोनों पीड़ित हों तो उसे नेत्र रोग के साथ-साथ मस्तिष्क रोग भी उत्पन्न होते हैं । इस चक्र के स्वामी देवता शिव व पार्वती हैं ।

सहस्रार चक्र का स्थान सिर के सबसे ऊपरी भाग में माना गया है। इस चक्र में व्यक्ति का प्रवेश होने पर उसे समाधि प्राप्त होती है, ऐसा व्यक्ति जीवनमुक्त अवस्था में रहता है और परमेश्वर से उसका सतत संपर्क रहता है ।

इस तरह शरीर में स्थित चक्र - ग्रहों, नक्षत्रो राशियो के माध्यम से हमारे शरीर व मन को प्रभावित करते हैं लेकिन इन चक्रो मे प्रभावित होने वाली प्राण ऊर्जा को आसान,प्राणायाम,ध्यान व अन्य विधियो के माध्यम से संतुलित करके हम अपने शरीर व मन को स्वस्थ्य रख सकते हैं |

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