मंगलवार, 10 मई 2022

वास्तु दोष और रोग परेशानी

 वास्तु दोष और रोग परेशानी

वास्तु शास्त्र इतना उन्नत विषय है कि उसके अनुरूप भवन बनाकर व्यक्ति सुख समृद्धि प्राप्त कर सकता है साथ ही मान प्रतिष्ठा को प्राप्त कर गुणवान पुत्र पौत्र आदि प्राप्त कर सकता है उचित प्रकार के भवन का निर्माण करने से जातक का संसार में ना केवल यश बढ़ता है बल्कि उसके समूचे परिवार के स्वास्थ्य में वृद्धि होती है | यहां हम आपको वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन ना करने से परिवारिक सदस्य को किस प्रकार से परेशानियों एवं रोगो का सामना करना पड़ता है बताने का प्रयास कर रहे हैं|

पूर्व दिशा में दोष

यदि भवन में पूर्व दिशा का स्थान ऊंचा हो तो व्यक्ति का सारा जीवन आर्थिक अभावों, परेशानियों में ही व्यतीत होता रहेगा और उसकी सन्तान अस्वस्थ, कमजोर स्मरणशक्ति वाली, पढाई-लिखाई में जी चुराने तथा पेट और यकृत के रोगों से पीडित रहेगी.

यदि पूर्व दिशा में रिक्त स्थान न हो और बरामदे की ढलान पश्चिम दिशा की ओर हो, तो परिवार के मुखिया को आँखों की बीमारी, स्नायु अथवा हृदय रोग की समस्या का सामना करना पड़ता है.

घर के पूर्वी भाग में कूड़ा-कर्कट, गन्दगी एवं पत्थर, मिट्टी इत्यादि के ढेर हों, तो गृहस्वामिनी में गर्भहानि का सामना करना पड़ता है.

भवन के पश्चिम में नीचा या रिक्त स्थान हो, तो गृहस्वामी यकृत, गले, गाल ब्लैडर इत्यादि किसी बीमारी से परिवार को मंझधार में ही छोडकर अल्पावस्था में ही मृत्यु को प्राप्त हो जाता है.

यदि पूर्व की दिवार पश्चिम दिशा की दिवार से अधिक ऊँची हो, तो संतान हानि का सामना करना पड़ता है.

अगर पूर्व दिशा में शौचालय का निर्माण किया जाए, की बहू-बेटियाँ अवश्य अस्वस्थ रहेंगी.

बचाव के उपाय:

पूर्व दिशा में पानी, पानी की टंकी, नल, हैंडापम्प इत्यादि लगवाना शुभ रहेगा.

 पूर्व दिशा का प्रतिनिधि ग्रह सूर्य है, जो कि कालपुरूष के मुख का प्रतीक है. इसके लिए पूर्वी दिवार पर / सूर्य यन्त्र / स्थापित करें और छत पर इस दिशा में लाल रंग का ध्वज (झंडा) लगायें.

पूर्वी भाग को नीचा और साफ-सुथरा खाली रखने से घर के लोग स्वस्थ रहेंगें. धन और वंश की वृद्धि होगी तथा समाज में मान प्रतिष्ठा बढ़ेगी.

पश्चिम दिशा में दोष :

पश्चिम दिशा का प्रतिनिधि ग्रह शनि है. यह स्थान कालपुरुष का पेट, गुप्ताँग एवं प्रजनन अंग है.

यदि पश्चिम भाग के चबूतरे नीचे हों, तो परिवार में फेफडे,मुख, छाती और चमडी इत्यादि के रोगों का सामना करना पड़ता है.

यदि भवन का पश्चिमी भाग नीचा होगा, तो पुरूष संतान की रोग बीमारी पर व्यर्थ धन का व्यय होता रहेगा.

यदि घर के पश्चिम भाग का जल या वर्षा का जल पश्चिम से बहकर, बाहर जाए तो परिवार के पुरूष सदस्यों को लम्बी बीमारियों के का शिकार होना पडेगा.

यदि भवन का मुख्य द्वार पश्चिम दिशा की ओर हो, तो अकारण व्यर्थ में धन का अपव्यय होता रहेगा.

यदि पश्चिम दिशा की दिवार में दरारें आ जायें, तो गृहस्वामी के गुप्तांग में अवश्य कोई बीमारी होगी. , .

यदि पश्चिम दिशा में रसोईघर अथवा अन्य किसी प्रकार से अग्नि का स्थान हो, तो पारिवारिक सदस्यों को गर्मी, पित्त और फोडेफिन्सी, मस्से इत्यादि की शिकायत रहेगी.

बचाव के उपाय:

ऐसी स्थिति में पश्चिमी दिवार पर /वरूण यन्त्र/ स्थापित करें.

परिवार का मुखिया न्यूनतम ११ शनिवार लगातार उपवास रखें और गरीबों में काले चने वितरित करे.

पश्चिम की दिवार को थोडा ऊँचा रखें और इस दिशा में ढाल न रखें.

पश्चिम दिशा में अशोक का एक वृक्ष लगायें.

उत्तर दिशा मे दोष

उत्तर दिशा का प्रतिनिधि ग्रह बुध है और भारतीय वास्तुशास्त्र में इस दिशा को कालपुरूष का हृदय स्थल माना जाता है. जन्मकुंडली का चतुर्थ सुख भाव इसका कारक स्थान है.

यदि उत्तर दिशा ऊँची हो और उसमे चबूतरे बने हों, तो घर में गुर्दे का रोग, कान का रोग, रक्त संबंधी बीमारियाँ, थकावट, आलस, ही घुटने इत्यादि की बीमारियाँ बनी रहेंगी.

यदि उत्तर दिशा अधिक उन्नत हो, तो परिवार की स्त्रियों को रूग्णता का शिकार होना पड़ता है.

बचाव के उपाय :

यदि उत्तर दिशा की ओर बरामदे की ढाल रखी जाये, तो पारिवारिक सदस्यों विशेषतयः स्त्रियों का स्वास्थय उत्तम रहेगा. रोग-बीमारी पर यो अनावश्यक व्यय से बचे रहेंगे और उस परिवार में किसी को भी अकाल मृत्यु का सामना नहीं करना पडेगा.

इस दिशा में दोष होने पर घर के पूजास्थल में /बुध यन्त्र स्थापित करें.

 

परिवार का मुखिया २१ बुधवार लगातार उपवास रखे.

भवन के प्रवेशद्वार पर संगीतमय घंटियाँ लगायें.

 उत्तर दिशा की दिवार पर हल्का हरा रंग करवायें.

दक्षिण दिशा में दोष:

दक्षिण दिशा का प्रतिनिधि ग्रह मंगल है, जो कि कालपुरूष के बायें सीने, फेफडे और गुर्दे का प्रतिनिधित्व करता है. जन्मकुंडली का दशम भाव इस दिशा का कारक स्थान होता है.

यदि घर की दक्षिण दिशा में कुआँ, दरार, कचरा, कूड़ादान, कोई पुराना सामान इत्यादि हो, तो गृहस्वामी को हृदय रोग, जोडों का दर्द, खून की कमी, पीलिया, आँखों की बीमारी, कोलेस्ट्राल बढ जाना अथवा हाजमे की खराबीजन्य विभिन्न प्रकार के रोगों का सामना करना पड़ता है.

दक्षिण दिशा में उत्तरी दिशा से कम ऊँचा चबूतरा बनाया गया हो, तो परिवार की स्त्रियों को घबराहट, बेचैनी, ब्लडप्रेशर, मूर्छाजन्य रोगों से पीडा का कष्ट भोगना पड़ता है.

यदि दक्षिणी भाग नीचा हो, ओर उत्तर से अधिक रिक्त स्थान हो, तो परिवार के वृद्धजन सदैव अस्वस्थ रहेंगे.

रक्तचाप,पाचन क्रिया में गड़बड़ी,खून की कमी,अचानक मृत्यु एवं दुर्घटना का शिकार होना पड़ेगा दक्षिण दिशा पीशाच का निवास है इसलिए इस तरह थोड़ी खाली जगह छोड़कर ही भवन का निर्माण कराना चाहिए|

यदि किसी का घर दक्षिणमुखी हो और प्रवेश द्वार नैऋत्यभिमुख बनवा लिया जाए तो ऐसा भवन दीर्घ व्याधियाँ एवं किसी परिवारिक सदस्य को अकाल मृत्यु देने वाला होता है|

बचाव के उपाय

यदि दक्षिणी भाग ऊंचा हो तो घर परिवार के सभी सदस्य पूर्ण रूप से स्वस्थ एवं संपन्नता प्राप्त करेंगे इस दिशा में किसी प्रकार का वास्तु दोष होने की स्थिति में छत पर लाल रंग का एक झंडा लगाएं|

घर के पूजन में श्री मंत्र यंत्र स्थापित करें|

दक्षिण मुखी द्वार पर एक तांबे की धातु का मंगल यंत्र लगाएं|

प्रवेश द्वार के अंदर बाहर दोनों तरफ दक्षिणावर्ती सूंड वाले गणपति जी की प्रतिमा लगाएं|

 

 

 

 

 

कोई टिप्पणी नहीं: