शनिवार, 22 मार्च 2014

दशाफल देखने के नियम –



दशा ही फल कथन का आधार होती हैं | प्रत्येक ग्रह अपने स्वभाव और स्थिति के अनुसार दशा आने पर निम्न 18 तरीको से फल प्रदान करता हैं |

(01) परम ऊंच-इस अवस्था का ग्रह अपनी दशा मे श्रेष्ठ फल देता हैं |

(02) ऊंच –ऊंच राशि का ग्रह अपनी दशा मे प्रत्येक प्रकार का सुख प्रदान करता हैं |

(3) आरोही-अपनी ऊंच राशि से एक राशि पहले का ग्रह अपनी दशा आने पर धन्य धान्य की     वृद्दि एवं आर्थिक दृस्ती से संपन्नता देता हैं |

(04) अवरोही-अपनी ऊंच राशि से अगली राशि पर स्थित ग्रह अपनी दशा मे रोग,परेशानी,मानसिक व्यथा व धन हानी प्रदान करता हैं |

(05) नीच- नीच राशि का ग्रह अपनी  दशा मे मान व धन हानी करवाता हैं |

(06) परम नीच –इस अवस्था का ग्रह अपनी दशा मे ग्रह क्लेश,परिवार से अलगाव,दिवालियापन,चोरी व अग्नि का भय प्रदान करता हैं |

(07) मूल त्रिकोण –इसमे स्थित ग्रह अपनी दशा आने पर भाग्यवर्धक एवं धन लाभ कराने वाला होता हैं |

(08) स्वग्रही-इसमे स्थित ग्रह अपनी दशा आने पर विद्या प्राप्ति,यश बढ़ोतरी व पदोन्नति करवाता हैं |

(09) अति मित्र-अति मित्र ग्रह स्थित ग्रह अपनी दशा मे वाहन व स्त्री सुख देने वाला तथा विभिन्न मनोरथ पूर्ण करवाने वाला होता हैं |

(10) मित्र ग्रह-इसका ग्रह अपनी दशा मे सुख,आरोग्य व सम्मान प्रदान करने वाला होता हैं |

(11) सम ग्रह- इसमे बैठा ग्रह अपनी दशा मे सामान्य फल प्रदान करने वाला व विशेष भ्रमण करवाने वाला होता हैं |

(12) शत्रु ग्रह-इसमे बैठे ग्रह की दशा मे स्त्री से झगडे के कारण मानसिक अशांति प्रदान करता हैं |

(13) अति शत्रु- इसमे बैठा ग्रह अपनी दशा मे मुकद्दमेबाजी,व्यापार मे हानी,व बंटवारा करवाने वाला होता हैं |

(14) ऊंच ग्रह संग ग्रह –यह ग्रह अपनी दशा मे तीर्थ यात्रा वा भूमि लाभ करवाने वाला होता हैं |

(15) पाप ग्रह संग ग्रह- यह ग्रह अपनी दशा मे घर मे मरण,धन हानी प्रदान करता हैं |

(16) शुभ ग्रह के साथ ग्रह –यह ग्रह अपनी दशा आने पर धन धन्य की वृद्धि,धनोपार्जन व स्वजन प्रेम आदि का लाभ देता हैं |

(17) शुभ द्रस्ट ग्रह-यह ग्रह अपनी दशा मे विधा लाभ,परीक्षा मे सफलता,तथा ख्याति प्राप्त करवाता हैं |

(18) अशुभ द्रस्ट-इस ग्रह की दशा मे संतान बाधा,अग्निभय,तबादला तथा माता पिता मे से एक की मृत्यु होती हैं |

इनके अलावा कुंडली मे दशाओ का फलादेश करते समय कई अन्य बातों का भी ध्यान रखना चाहिए जिनमे कुछ बाते निम्न हैं |

1)लग्न से 3,6,10,व 11वे भाव मे स्थित ग्रह की दशा उन्नतिकारक व सुखवर्धक होती हैं |

2)दशानाथ यदि लग्नेश,नवांशेश,होरेश,द्वादशेश व द्रेष्कानेश हो तो उसकी दशा जीवन मे मोड या बदलाव लाने मे सक्षम होती हैं |

3)मांदी जिस स्थान मे हो उस राशि के स्वामी की दशा रोग प्रदान करने वाली होती हैं |

4)अस्त/वक्री/युद्ध मे सम्मिलित ग्रह की दशा अशुभ फल प्रदान करती हैं

5)संधिगत ग्रह,6,8,12 वे भाव के स्वामी की दशा अनिश्चय प्रधान होने से पतन की ओर ले जाती हैं |

6)नीच और शत्रु ग्रह की दशा मे परदेश मे निवास,शत्रुओ व व्यापार से हानी तथा मुकदमे मे हार होती हैं परंतु नीच कार्यो से लाभ मिलता हैं |


7)राहू व केतू यदि कुंडली मे 2,3,6 या 11 वे भावो मे हो ना तो इनकी दशा मे अशुभता ही मिलती हैं |

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