दशा ही फल कथन का आधार होती हैं |
प्रत्येक ग्रह अपने स्वभाव और स्थिति के अनुसार दशा आने पर निम्न 18 तरीको से फल
प्रदान करता हैं |
(01) परम
ऊंच-इस अवस्था का ग्रह अपनी दशा मे श्रेष्ठ फल देता हैं |
(02) ऊंच
–ऊंच राशि का ग्रह अपनी दशा मे प्रत्येक प्रकार का सुख प्रदान करता हैं |
(3)
आरोही-अपनी ऊंच राशि से एक राशि पहले का ग्रह अपनी दशा आने पर धन्य धान्य की वृद्दि एवं आर्थिक दृस्ती से संपन्नता देता
हैं |
(04)
अवरोही-अपनी ऊंच राशि से अगली राशि पर स्थित ग्रह अपनी दशा मे रोग,परेशानी,मानसिक
व्यथा व धन हानी प्रदान करता हैं |
(05)
नीच- नीच राशि का ग्रह अपनी दशा मे मान व
धन हानी करवाता हैं |
(06) परम
नीच –इस अवस्था का ग्रह अपनी दशा मे ग्रह क्लेश,परिवार
से अलगाव,दिवालियापन,चोरी
व अग्नि का भय प्रदान करता हैं |
(07) मूल
त्रिकोण –इसमे स्थित ग्रह अपनी दशा आने पर भाग्यवर्धक एवं धन लाभ कराने वाला होता
हैं |
(08)
स्वग्रही-इसमे स्थित ग्रह अपनी दशा आने पर विद्या प्राप्ति,यश
बढ़ोतरी व पदोन्नति करवाता हैं |
(09) अति
मित्र-अति मित्र ग्रह स्थित ग्रह अपनी दशा मे वाहन व स्त्री सुख देने वाला तथा
विभिन्न मनोरथ पूर्ण करवाने वाला होता हैं |
(10)
मित्र ग्रह-इसका ग्रह अपनी दशा मे सुख,आरोग्य
व सम्मान प्रदान करने वाला होता हैं |
(11) सम
ग्रह- इसमे बैठा ग्रह अपनी दशा मे सामान्य फल प्रदान करने वाला व विशेष भ्रमण
करवाने वाला होता हैं |
(12)
शत्रु ग्रह-इसमे बैठे ग्रह की दशा मे स्त्री से झगडे के कारण मानसिक अशांति प्रदान
करता हैं |
(13) अति
शत्रु- इसमे बैठा ग्रह अपनी दशा मे मुकद्दमेबाजी,व्यापार
मे हानी,व बंटवारा करवाने वाला होता
हैं |
(14) ऊंच
ग्रह संग ग्रह –यह ग्रह अपनी दशा मे तीर्थ यात्रा वा भूमि लाभ करवाने वाला होता
हैं |
(15) पाप
ग्रह संग ग्रह- यह ग्रह अपनी दशा मे घर मे मरण,धन
हानी प्रदान करता हैं |
(16) शुभ
ग्रह के साथ ग्रह –यह ग्रह अपनी दशा आने पर धन धन्य की वृद्धि,धनोपार्जन
व स्वजन प्रेम आदि का लाभ देता हैं |
(17) शुभ
द्रस्ट ग्रह-यह ग्रह अपनी दशा मे विधा लाभ,परीक्षा
मे सफलता,तथा
ख्याति प्राप्त करवाता हैं |
(18) अशुभ
द्रस्ट-इस ग्रह की दशा मे संतान बाधा,अग्निभय,तबादला
तथा माता पिता मे से एक की मृत्यु होती हैं |
इनके अलावा
कुंडली मे दशाओ का फलादेश करते समय कई अन्य बातों का भी ध्यान रखना चाहिए जिनमे
कुछ बाते निम्न हैं |
1)लग्न
से 3,6,10,व 11वे
भाव मे स्थित ग्रह की दशा उन्नतिकारक व सुखवर्धक होती हैं |
2)दशानाथ
यदि लग्नेश,नवांशेश,होरेश,द्वादशेश
व द्रेष्कानेश हो तो उसकी दशा जीवन मे मोड या बदलाव लाने मे सक्षम होती हैं |
3)मांदी
जिस स्थान मे हो उस राशि के स्वामी की दशा रोग प्रदान करने वाली होती हैं |
4)अस्त/वक्री/युद्ध
मे सम्मिलित ग्रह की दशा अशुभ फल प्रदान करती हैं
5)संधिगत
ग्रह,6,8,12 वे भाव
के स्वामी की दशा अनिश्चय प्रधान होने से पतन की ओर ले जाती हैं |
6)नीच और
शत्रु ग्रह की दशा मे परदेश मे निवास,शत्रुओ
व व्यापार से हानी तथा मुकदमे मे हार होती हैं परंतु नीच कार्यो से लाभ मिलता हैं |
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