कहा जाता है, यदि हमारी इच्छाएं रथ के घोड़े हैं तो
मन उसका
सारथी है । मन के चाहने से ही इच्छाएं उत्पन्न होती हैं, बलवती होती हैं व परेशान या खुश करती हैं । साधारणतया, इच्छाओं को हम निम्न प्रकार से विभाजित कर सकते हैं -
1) धन या धन से प्राप्त होने वाली इच्छा ।
2) स्वस्थ शरीर या बीमारी दूर करने की
इच्छा।
3) मधुर संबंध या सुखी व खुश परिवार की
इच्छा व मान व प्रतिष्ठा प्राप्ति की इच्छा ।
4) आध्यात्मिक उन्नति की इच्छा ।
5) किसी का बुरा न करने की इच्छा ।
इच्छाएं कैसे पैदा होती हैं ?
हमारे शरीर में पांच कर्म इन्द्रियां
हैं व पांच ज्ञान इन्द्रियां हैं । इन्द्रियां यानी इन्द्र (देवताओं का राजा ) की
बहनें । यह सदा सुख सामग्री मांगती रहती हैं । जब मन बाह्य मुखी होता है तो दूसरों
को देखकर अपनी इन्द्रियों को भी वैसा सुख देना चाहता है । वही इच्छा की उत्पत्ति
का कारण है । इससे बचने का एकमात्र उपाय संतोष है तभी कहा गया है 'संतोषः परमं सुखम् ।
इच्छाएं कैसे पूरी करें -
(i) वर्गीकरण – इसके लिए पहले हमें अपनी इच्छाओं को
जरूरी, कम जरूरी व गैर जरूरी इच्छाओं की
श्रेणी में विभाजित करना होगा । जितने भी नकारात्मक विचार हैं या किसी का बुरा
करने की इच्छा है,
उसे
गैर जरूरी श्रेणी में लेना होगा । तत्पश्चात हमें जरूरी व कम जरूरी इच्छाओं की भी
तीन श्रेणियां बनानी होंगी -
1. अभी इसी क्षण की जरूरत
2. एक दो साल के अंदर की जरूरत
3. सब कुछ प्राप्त होने के बाद की
इच्छा
इनमें से स्वस्थ शरीर, मधुर संबंध, धन इत्यादि पहली श्रेणी (तत्क्षण
जरूरत) में आते हैं। ऐश्वर्य,परीक्षा में मनोवांछित अंक, कॉलेज,
विवाह
इत्यादि दूसरी श्रेणी में आते हैं व आध्यात्मिक उन्नति इत्यादि तीसरी श्रेणी में
आते हैं ।
(ii) आलेखीकरण (Documentation
) - ऐसी
सलाह दी जाती है कि एक नई नोटबुक (कापी) लेकर अपनी तीनों श्रेणियों की इच्छाओं को
भिन्न-भिन्न पृष्ठों पर लिख लें। यह बात महत्वपूर्ण है कि हम एक साथ कई इच्छाएं
लिख सकते हैं व जरूरत पड़ने पर इनमें और भी जोड़ सकते हैं ।
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नहीं आता इस नियम को समझते हुए हमें हर इच्छा के आगे यह लिखना होगा कि यदि यह इच्छा
पूरी हो जाए तो हमें क्या-क्या लाभ व खुशी होगी व इस इच्छा को पूरा करने के लिए
हमें क्या मोल चुकाना होगा । यह मोल नियमों के रूप में हो सकता है जो कि कुछ स्वयं
पर ही लागू होंगे । उदाहरण के लिए परीक्षा में अच्छे अंक लेने के लिए हमें अधिक
पढ़ाई करने का मोल चुकाना होगा ।
(iii) कल्पना शक्ति (Visualization) - यदि हम ऐसा महसूस करें कि जो हम चाहते
थे, हमें वर्तमान में मिल चुका है व हम
उसके मिलने पर खुशी मना रहे हैं तो इच्छापूर्ती सरल व सुगम हो जाती है । इनके अंदर
कुछ अन्य प्रक्रियाएं भी सम्मिलित हैं –
1. स्वयं पर विश्वास
2. भगवान पर विश्वास
3. जी तोड़ मेहनत
(iv) सुविचार - इस प्रक्रिया में हम स्वयं
को सुविचार देकर प्रोत्साहित करते हैं व स्वयं से सफलता की बातें करते हैं । सब
बातें ध्यान देने की हैं कि हमारा स्वयं का वार्तालाप केवल सकारात्मक होना चाहिए।
(v) कर्म (लेन-देन) का सिद्धांत – किसी भी वस्तु प्राप्ति से पहले यह
अनिवार्य है कि हम जो चीज प्राप्त करना चाहते हैं, उसे समाज में बांटना शुरू कर दें । यह
प्रकृति का सिद्धांत है कि हम जो भी प्रकृति को या दूसरों को देते हैं वही कई गुणा
होकर हमारे पास वापिस आता है । उदाहरण के लिए-
1.अधिक धन चाहिए तो दान देना शुरू करें
व जरूरतमंदों की मदद करें ।
2.इज्जत चाहिए तो दूसरों का सम्मान
करें ।
3.प्यार चाहिए तो दूसरों से प्रेम करें
।
4॰ सहायता
चाहिए तो दूसरों की सहायता करे |
5.
मानसिक शांति चाहिए तो ध्यान करे |
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