जन्म कुण्डली में यदि राहु और केतु के बीच एक ही तरफ में सभी सातों ग्रह पड़ जाएँ, तो कालसर्प नामक योग बनता है । इस योग में उत्पन्न जातक (पुरुष अथवा स्त्री) को व्यवसाय, धन, परिवार एवं सन्तानादि के कारण विविध परेशानियों एवं दुःखों से पीड़ित रहना पड़ता है |
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भानांषट्के राहुकेत्वो न खेटः।
योगः प्रोक्तः कालसर्पश्च तस्मिन्जातो
जाता वाऽर्थपुत्रर्तिमीयात्॥
वास्तव में राहु-केतु छाया ग्रह हैं जिनमे राहु का देवता 'काल' तथा केतु का
देवता सर्प होने से इस योग की उत्पत्ति कालसर्प
कही जाती हैं । इस कालसर्प योग
के प्रभाव के कारण प्रत्येक कार्य में विघ्न - बाधाएँ तथा आर्थिक उन्नति में
बाधाएं रहती हैं परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि कुण्डली में केवल कालसर्प योग ही
प्रभावित कर रहा हो । कुंडली में बैठे अन्य शुभ योग जातक को आश्चर्यजनक सफलताएं
दिला सकते है । ये कालसर्प योग अत्यन्त समृद्ध साधन सम्पन्न
अमीर व्यक्ति की कुंडली में भी हो सकता है अथवा दीन, अभावग्रस्त गरीब व्यक्ति की कुण्डली में
भी हो सकता है । मुख्यतः इस योग के प्रभावस्वरूप मनुष्य अपनी अन्तर्मन की शक्तियों
का पूर्णतया उपयोग नहीं कर पाता अथवा सब सुख-साधन सम्पन्न होते हुए भी मानसिक तनाव
एवं असन्तोष बना रहता है तथा अज्ञातभय एवं असुरक्षा की भावना उसमे व्याप्त रहती है ।
लक्षण - इस योग के
कारण जातक को स्वप्नों में सर्प दिखाई देते हैं, पानी दिखना, अपने-आप को उड़ते हुए देखना, परिवार के किसी सदस्य पर विपत्ति आना, पितृ देखना, सर्प और नेवेले की लडाई दिखे तो निश्चय ही ये सब लक्षण है कि
आपकी कुण्डली में कालसर्प या आंशिक कालसर्प योग होने की पुष्टि करते है ।
कालसर्प दोष केवल ग्रह - जनित पीड़ा है, इसलिए इसकी शान्ति मुख्य रूप से (१)
द्वादश ज्योर्तिलिंगों में से किसी एक ज्योर्तिलिंग के निकट (२) क्योंकि इस योग के
अधिष्ठाता श्री महाकाल हैं अतएव यदि
प्रसिद्ध महाकालेश्वर ज्योतिलग एवं सिद्ध शक्ति पीठ, कलिया नाग के निवास स्थल पुण्य सलिला
क्षिप्रा गंगा के तट पर उज्जैन नगर में है । (३) प्रयागराज (४) नासिक में (५) अथवा
यदि सम्भव न हो तो शिव मन्दिर में द्वादश ज्योतिलग का ध्यान करते हुए करें ।
कालसर्प दोष शान्ति के लिए दिये गए कुछ अन्य उपाय
कालसर्प दोष की शान्ति के लिए मुख्य रूप
से (१) ग्रह शान्ति (२) सर्प दोष (३) पितृ दोष शान्ति च एवं नागबलि एवं शिव पूजन
वैदिक पुराणोक्त विधि से किसी योग्य ब्राह्मण द्वारा करवानी चाहिए । (४)
विधिपूर्वक महामृत्युञ्जय का जप करें ।
यदि कुण्डली में कालसर्पयोग पड़ा हो, तो निम्नलिखित उपाय करने शुभ एवं
कल्याणकारी साबित होंगे -
(1) कालसर्प की
अरिष्ट शान्ति के लिए शिव मन्दिर में सवा लाख ॐ नमः शिवाय मन्त्र का पाठ करना तथा
पाठोपरान्त रूद्राभिषेक करवाने का विशेष महत्त्व है साथ ही शिवलिंग पर चांदी का
सर्प युगल-नाग स्तोत्र एवं नाग पूजनादि करके चढ़ाना शुभ होगा ।
नाग गायत्री मन्त्र - ॐ नव कुलाय विद्महे
विषदंताय धीमहि तन्नो सर्पः प्रचोदयात्॥
(2) प्रत्येक
शनिवार एक नारियल को तैल एवं काले तिलों का तिलक लगाकर, मौली लपेटकर अपने शिर से तीन बार घुमा कर
ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः मन्त्र कम-से-कम तीन बार पढ़कर चलते पानी में
बहा देवें-ऐसे कम-से-कम पाँच शनिवार करें ।
(3) प्रत्येक
शनिवार कुत्तों को दूध और चपाती डालनी तथा गौओं, कौओं को तैल के छीटें देकर रसोई की प्रथम
चपातियां डालना शुभ है ।
(4) कालसर्प योग
के कारण यदि वैवाहिक जीवन में बाधा आती हो, तो जातक
पत्नी के साथ दोबारा विवाह करें एवं घर के चौखट द्वार
पर चांदी का स्वस्तिक चिन्ह बनवा कर लगवाएं ।
(5) घर में मयूर
पंख का पंखा पवित्र स्थान पर रखें तथा भगवान् शिव का ध्यान करते हुए प्रातः उठते
ही तथा सोने से पूर्व मयूर पंखे द्वारा हवा करें ।
(6) प्रत्येक
संक्रान्ति को गंगा जल सहित गोमूत्र का छिड़काव घर के सभी कमरों में करें ।
(7) कालसर्प योग
शान्ति के लिए नवनाग देवताओं के नाम का उच्चारण करना चाहिए |
नवनाग स्तोत्र - अनंतं
वासुकिं शेष पद्मानाभम् च कंबलम्।
शंखपालं कर्कोटकं कालियं तक्षकं तथा॥
एतानि संस्मरेन्नित्यं आयुः कामार्थ
सिद्धये।
सर्पदोष क्षयार्थं च पुत्रपौत्रान्
समृद्धये॥
तस्मै विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी
भवेत्॥
(8) महाकुम्भ
पर्व के अवसर पर प्रमुख स्नान करें और कुम्भ में स्थित शिव मन्दिर में जाकर कि
विधिपूर्वक पूजन करें । चाँदी के बने नाग-नागिन के कम-से-कम ११ जोड़ों को प्रतिदिन
शिवलिंग में तपा चढ़ाएँ तथा महादेव से इस कुयोग से मुक्ति प्रदान करने की
प्रार्थना करें ।
(9) सोना – 7 रत्ती, चाँदी -12 रत्ती, तांबा –16 रत्ती ये तीनों मिलाकर
सर्पाकार अंगूठी अनामिका अंगुली में धारण करने से वांछित लाभ प्राप्त होता है ।
जिस दिन धारण करें, उस दिन राहु
की सामग्री का आंशिक दान भी करना चाहिए ।
(10) नागपंचमी का
व्रत करें तथा नवनाग स्तोत्र का पाठ करें 'अनन्त
चतुर्दशी' का व्रत भी
विधिपूर्वक रखें ।
(11) प्रत्येक
बुधवार को काले वस्त्र में उड़द या मूंग एक मुट्ठी डालकर, राहु का मन्त्र जाप कर किसी भिखारी को देवें । यदि दान लेने वाला कोई नहीं मिले तो
बहते पानी में उस अन्न को छोड़ देना शान्ति चाहिए । इस प्रकार 72 बुधवार करते रहने से अवश्य लाभ होता है ।
(12) यदि किसी
स्त्री की कुंडली इस योग से दूषित है तथा संतति का अभाव है, पूजन-विधि नहीं करवा सकती
तो किसी अश्वत्थ (बट) के वृक्ष से नित्य 108 प्रदक्षिणा (घेरे) लगाने चाहिए । तीन
सौ दिन में जब 27000 प्रदक्षिणा पूरी होगी तो दोष दूर होकर स्वतः ही संतति की
प्राप्ति होगी ।
(13) इसके
अतिरिक्त महाकाल रुद्र स्तोत्र, मनसादेवी
नाग स्तोत्र, महामृत्युञ्जय
आदि स्तोत्रों का का सर्प विधि-विधान से पूजन, हवन करने से कालसर्प दोष की शान्ति हो
जाती है।
कालसर्प योग से पीड़ित कुछ उल्लेखनीय
महत्त्वपूर्ण कुण्डलियाँ इस प्रकार से हैं - स्वतन्त्र भारतवर्ष एवं पाकिस्तान की
जन्म कुण्डली,पं० जवाहर
लाल नेहरू,पाकिस्तान
के भूतपूर्व शासक जुल्फकार भुट्टो,हिटलर(जर्मनी),सुश्री लता मंगेशकर इत्यादि
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