टी सीरीज द्वारा निर्मित रामायण पर बनी फिल्म "आदिपुरुष" को देखकर सबसे ज्यादा दुख स्वर्गीय गुलशन कुमार की आत्मा को हो रहा हो रहा होगा जिस गुलशन कुमार के लिए यह माना जाता था कि उनके रहते बॉलीवुड मे इस्लामीकरण नहीं हो पाएगा आज उनके बैनर के नीचे बनी इस 600 करोड़ की फिल्म के प्रदर्शन के बाद यह स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि t-series अथवा भूषण कुमार द्वारा निर्मित इस फिल्म में ना सिर्फ हिंदुओं की महान ग्रंथ रामायण का घटिया रूपांतरण दिखाया गया है बल्कि इसमें 600 करोड़ रुपए भी बर्बाद किए गए हैं |निर्देशक ओम राऊत द्वारा निर्देशित व गीतकार मनोज मुंतशिर द्वारा लिखित इस फिल्म मे जिस प्रकार के दृश्य व संवाद रखे गए हैं उन्हे देख व सुनकर ना सिर्फ इन दोनों के दिमाग के दिवालियेपन का पता चलता हैं बल्कि इनकी सोच मे हिन्दुओ के प्रति कितना घटियापन हैं ये भी पता चलता हैं,भूषण कुमार के लिए क्या कहा जाए बिना मेहनत से कमाया हुआ धन इस प्रकार की घटिया फिल्म मे निवेश करना ना सिर्फ उनकी बचकानी व अपरिपक्व सोच को दर्शाते हैं बल्कि ये भी बताते हैं की व्यावसायिकता की अंधी दौड़ में व्यक्ति किस हद तक नीचे गिर सकता है,जिन आदर्शों के लिए उनके पिता गुलशन कुमार ने अपने प्राणों की आहुति दी चंद पैसे के लिए उसने आज उन्हें बेच डाला,यह फिल्म ना सिर्फ हिन्दुओ का बल्कि उनके आदर्श राम का तथा रामायण का सबका अपमान करती हैं,फिल्म में ना सिर्फ कास्टिंग घटिया है बल्कि पटकथा भी बेहद घटिया तरीके से लिखी हुई है ज्यादा वीएफएक्स के चलते आधी से ज्यादा फिल्म अंधेरे में फिल्माई गई है जबकि रामायण में एक आध घटनाओं को छोड़कर कही भी रात का उल्लेख नहीं मिलता है विशेष तौर से युद्ध के समय रात्रि दिखाया जाना हास्यप्रद ही नजर आता है केवल संगीत को छोड़कर यह फिल्म सभी प्रकरणों में बेहद घटिया नजर आती है इससे अच्छा होता की इसे आज के संदर्भ में आधुनिक रूप में फिल्माया जाता जिसमें सब कुछ आज के दौर का शामिल किया जाता जैसा कि राजश्री वालों ने अपनी फिल्म "हम साथ साथ हैं" के साथ किया था,इस घटिया फिल्म में काम कर कर अभिनेता प्रभास ने उत्तर भारत व हिन्दी फिल्मों मे अपने आने के रास्ते लगभग बंद कर दिए हैं,वही नायिका की बात की जाए तो कृति सेनोन ने अभी तक कोई भी ऐसा काम नहीं किया है जिससे उसे एक अच्छी अभिनेत्री का दर्जा दिया जा सकता है वैसे इस फिल्म में उनके लिए करने लायक कुछ था भी नहीं,रावण बने सैफ की बात करें तो अपने को राक्षस दिखाने के चक्कर में वो कई बार अति नाटकीयता का शिकार होकर ओवर एक्टिंग करते नजर आते हैं,हनुमान बने अभिनेता ने केवल अपने शरीर को दिखाने के अलावा कुछ भी उल्लेखनीय नहीं किया है रही सही कसर फिल्म मे अत्याधिक रूप से बीएफएक्स तथा अजीबोगरीब जीव जंतुओं का दिखाया जाना ना सिर्फ बचकाना लगता है बल्कि कहीं-कहीं यह भी सोचने पर मजबूर कर देता है कि हिंदुस्तान जैसे देश में एक पवित्र शास्त्र को किस प्रकार से चंद पैसों के चलते घटिया रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है इस पर ना कोई सेंसर बोर्ड चर्चा करता है ना ही कोई हिंदू समाज के रखवाले ही कोई विरोध प्रकट करते हैं,हिंदू समाज की उदारता की हद यह देखिए की फिल्म एक साथ कई जगह पर प्रदर्शित हुई है और कहीं पर भी कोई भी प्रदर्शन उसके खिलाफ नहीं हुआ है बावजूद इसके दर्शक केवल राम नाम के चलते इस फिल्म को देखना चाह रहे हैं यही हिंदू धर्म की महानता को दर्शाता है परंतु महानता और कायरता में भी फर्क होना चाहिए अगर इस तरह से भविष्य में भी ग्रंथों के साथ खिलवाड़ होता रहा तो आने वाली पीढ़ी को हम क्या दे संदेश दे पाएंगे यह हमें सोचना पड़ेगा |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें