ज्योतिष के महाग्रंथ बृहत्पाराशर होरा शास्त्र में कुण्डली में 14 प्रकार के शापित योग कहे गए हैं । इनमें पितृ श्राप, मातृ श्राप, भ्रातृ श्राप, मातुल श्राप, ब्राह्मण श्राप, प्रेत श्राप आदि योग प्रमुख हैं । प्रस्तुत लेख मे हम केवल पित्र व मात्र श्राप अथवा दोष के विषय मे जानकारी दे रहे हैं |
अशुभ
पितृदोषों योगों के प्रभाव स्वरूप जातक/जातिका के स्वास्थ्य की हानि, सुख में कमी, आर्थिक - संकट, आय में बरकत न होना, संतान कष्ट अथवा वंशवृद्धि में
बाधा, विवाह में विलम्ब, गुप्त रोग,
लाभ व उन्नति में बाधाएं, तनाव आदि अशुभ फल
प्रकट होते हैं ।
जन्म कुण्डली के प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम व दशम भावों में से किसी भी एक भाव पर सूर्य -राहु अथवा सूर्य - शनि
का योग हो तो जातक को पितृदोष होता है । यह योग कुण्डली के जिस भाव में होता है जातक के भावी जीवन मे उस भाव के अनुसार ही
अशुभ फल घटित होते हैं जैसे |
यदि लग्न
अथवा प्रथम भाव में सूर्य - राहु अथवा सूर्य - शनि का अशुभ योग हो तो जातक के जीवन मे
अशांति, गुप्त
चिन्ता, दो दाम्पत्य
एवं स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियां होती रहती हैं ।
दूसरे भाव में यह योग बने तो परिवार में
वैमनस्य व आर्थिक समस्या, चतुर्थ भाव में इस पितृ योग के कारण भूमि, मकान, माता - पिता एवं गृह-सुख में कमी या कष्ट
होते प्राप्त होते रहते हैं ।
पंचम भाव में यह योग होतो उच्च विद्या में विघ्न व सन्तान सुख में
कमी होने के संकेत मिलते हैं ।
सप्तम में यह योग वैवाहिक सुख में बाधकता देता हैं, नवम में हो तो पैतृक सुख में कमी अथवा पिता
के सम्बन्ध में चिन्ता,भाग्योन्नति में बाधाएं तथा दशम भाव में यह पितृ दोष हो तो नौकरी अथवा कार्य
व्यवसाय सम्बन्धी परेशानियां खड़ी होती रहती हैं ।
ऐसे मे
यदि सूर्य अपनी नीच राशि का
होकर राहु या शनि के साथ पड़ा हो तो पितृदोष कृत अशुभ फलों और भी अधिक वृद्धिकारक
होते है ।
किसी कुण्डली में लग्नेश ग्रह यदि त्रिक
(6, 8 या 12) वें भाव में स्थित हो तथा राहु लग्न भाव
में हो, तो भी
पितृदोष होता है ।
पितृयोग कारक ग्रह पर यदि त्रिक (6, 8, 12) भावेश एवं भावों के स्वामी की दृष्टि
अथवा युति आदि का सम्बन्ध भी हो जाए, तो जीवन मे अचानक वाहनादि के कारण दुर्घटना का भय, भूत-प्रेत बाधा, ज्वर, चक्षु रोग, तरक्की में रुकावट या बनते कार्यों में
विघ्न, अपयश, धन हानि आदि अनिष्ट फल प्राप्त होते हैं ।
उपाय - जातक की
जन्म कुण्डली सूर्य - राहु, सूर्य - शनि आदि योगों के कारण पितृ दोष
हो, तो उसके लिए
नारायण बलि, नाग - बलि, त्रिपण्डी
श्राद्ध गया क्षेत्र मे आश्विन कृष्ण पक्ष में अपने दिवंगत पितरों का श्राद्ध, पितृ तर्पण, ब्राह्मण
भोजन, दानादि कर्म
करवाने चाहिएं । यथाशक्ति संकल्पपूर्वक गोदान करवाने से पित्रो की शान्ति होती हैं
।
चन्द्र - राहु, चन्द्र - केतु, चन्द्र - बुध, चन्द्र - शनि आदि योग भी पितृ दोष की
भांति मातृ दोष कहलाते हैं । इनमें चन्द्र - राहु एवं सूर्य - राहु योगों को ग्रहण
योग तथा बुध - राहु को जड़त्व योग भी कहते हैं ।
इन योगों के प्रभावस्वरूप भी भावेश की स्थिति अनुसार ही जातक को जीवन मे अशुभ फल प्राप्त होते हैं । सामान्यतः चन्द्र -राहु आदि
योगों के प्रभाव से माता अथवा पत्नी को कष्ट, मानसिक तनाव, आर्थिक परेशानियां, गुप्त रोग, भाई -बन्धुओं से विरोध, अपने भी परायों जैसे व्यवहार करे आदि जैसे फल मिलते होते हैं ।
इस दोष की
शान्ति के लिए गो - दान अथवा चांदी के पात्र में गोदुग्ध भर कर दान देना शुभ होता
हैं । इसके अलावा एक लाख गायत्री मंत्र का जप करवा कर हवन, ब्राह्यण भोजन, वस्त्रादि का दान एवं
शेष दशमांश का तर्पण आदि करने से पित्र शान्ति होती है । पीपल वृक्ष की अट्ठाईस
हज़ार परिक्रमा करने का विधान भी शास्त्रो मे बतलाया गया है ।
इनके अतिरिक्त
निम्न स्थितियो मे भी पित्रदोष देखने मे आता हैं |
दशम भाव का स्वामी छठे, आठवें या बाहरवें भाव में राहु से दृष्टि
या योग द्वारा सम्बन्ध बनाए तो भी पितृदोष होता है ।
आठवें या बारहवें भाव में गुरु - राहु का
योग और पंचम भाव में सूर्य - शनि या मंगल आदि क्रूर ग्रहों की स्थिति हो तो पितृ -
दोष के कारण संतान कष्ट या सन्तान सुख में कमी रहती है ।
व्ययेश लग्न भाव में, अष्टमेश पंचम भाव में तथा दशमेश अष्टम
भाव में हो तो भी पितृदोष के कारण धन हानि अथवा संतान के कारण कष्ट होते हैं ।
पितृ दोष की
शान्ति हेतु विशेष उपाय
1. अपने गृह की
दक्षिण दिशा की दीवार पर अपने दिवंगत पूर्वजों के फोटों लगाकर व उन पर हार चढ़ाकर
सम्मानित करना चाहिए तथा उनकी मृत्यु तिथि पर ब्राह्मणों को 5 भोजन,
वस्त्र एवं
दक्षिणा सहित दान, पितृ तर्पण एवं श्राद्ध कर्म करने चाहिए ।
2. जीवित माता -
पिता एवं भाई - बहनों का भी आदर - सत्कार और धन,
वस्त्र,
भोजनादि से सेवा
करते हुए उनके आशीर्वाद ग्रहण करते रहें ।
3. हर अमावस को
अपने पितरों का ध्यान करते हुए पीपल पर कच्ची लस्सी,
गंगाजल,
थोड़े काले तिल,
चीनी,
चावल,
जल,
पुष्पादि चढ़ाते
हुए “ॐ पितृभ्यः नमः”
मन्त्र तथा पितृ
सूक्त का पाठ करना शुभता प्रदान करता हैं ।
4. हर अमावस के
दिन दक्षिणीभिमुख होकर दिवंगत पितरों के लिए पितृ तर्पण करना तथा अमावस को पितृ
स्तोत्र या पितृ सूक्त का पाठ करना, त्रयोदशी को नीलकण्ठ स्तोत्र का पाठ करना,
पंचमी तिथि को
सर्पसूक्त का पाठ करना तथा पूर्णमासी के दिन श्री नारायण कवच का पाठ करने के
पश्चात् ब्राह्मणों को मिष्ठान्न व दक्षिणा सहित भोजन करवाना पितृदोष की शान्ति के
लिए शुभ होता है ।
5. हर संक्रान्ति,
अमावस एवं रविवार
को सूर्य देव को ताम्र बर्तन में लाल-चन्दन.गंगाजल,
शुद्ध जल डालकर
बीज मंत्र पढ़ते हुए तीन बार अर्घ्य देवें ।
6. नियमित श्राद्ध
के अतिरिक्त श्राद्ध के दिनों में गौओं को चारा तथा कव्वो कुत्तो ब भूखों को खाना
खिलाना चाहिए |
7. श्राद्ध के
दिनों विशेषकर अण्डा, मीट, शराब आदि तामसिक भोजन तथा पराये अन्न से परहेज
करना चाहिए ।
8. सोमवार के दिन
आक के 21 पुष्पों, कच्ची लस्सी,
बिल्व पत्रादि
सहित श्रीशिवजी की पूजा करने से पितृ दोष का शमन होता है ।
9. पीपल वृक्ष पर
मध्याह्न को जल, पुष्पाक्षत,
दूध,
गंगाजल,
काले तिल आदि
चढ़ाएं सायं को दीप जलाएं तथा नाग स्तोत्र, महामृत्युञ्जय मंत्र,
या रूद्र सूक्त या
पितृ स्तोत्र, वग्रह स्त्रोत का पाठ करने से तथा ब्राह्मण
भोजन कराने से पितृ आदि दोष की शान्ति होती है ।
10. कुल देवता एवं
इष्ट देव की भी पूजा अर्चना करनी चाहिए ।
11. किसी गरीब
कन्या के विवाह या बीमारी में सहायता करें ।
12.
रविवार की संक्रान्ति या रवि वासरी अमावस को ब्राह्मणों को भोजन तथा लाल वस्तुओं
का दान कर उचित दक्षिणा प्रदान करने,पितरों का तर्पण करने आदि से
पितृ आदि दोषों की शान्ति होती है ।
इसके अतिरिक्त सर्प पूजा, ब्राह्मणों को गोदान, कुआं खुदवाना, पीपल व बरगद के वृक्ष लगवाना, विष्णु मंत्रों का जप
करना, श्रीमद्भगवद् गीता का पाठ करना, माता-पिता
का आदर करना, पितरों के नाम से अस्पताल, मंदिर, विद्यालय, धर्मशाला आदि
बनवाने से भी पितृ आदि दोषों की शांति होती है ।
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