मुखमण्डल तथा सम्पूर्ण शरीर के अध्ययन की विद्या है,भारत में यह विद्या वैदिक काल से ही प्रचलित रही है, गरुड पुराण में सामुद्रिक शास्त्र का वर्णन किया गया है !
मानव - शरीर के
विभिन्न अंगों की बनावट के आधार पर उसके गुण – कर्म - स्वाभावादि का निरूपण करने
वाली विद्या आरम्भ में लक्षण शास्त्र के नाम से प्रसिद्ध थी |
हाथ की परीक्षा
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प्रातःकाल
शौच-स्नानादि से निवृत्त होकर देवपूजनोपरांत अपने हाथ में श्रीफल (नारियल),
ऋतुफल, मिष्ठान्न, पुष्प
एवं दक्षिणा आदि लेकर हस्त परीक्षक की सेवा में उपस्थित होना चाहिए ! सामान्यतः
पुरुषों का दायाँ तथा स्त्रियों का बायाँ हाथ देखना चाहिए ! अतः वर्तमान जीवन की
जानकारियाँ दाएँ हाथ से तथा पूर्व-जन्मार्जित कर्म-फल विषयक ज्ञातव्य बाएँ हाथ से
प्राप्त करना चाहिए ! स्त्रियों के विषय में इससे विपरीत समझना चाहिए !
हस्त - परीक्षा
का सर्वोत्तम समय प्रातःकाल का है ! ग्रहण के समय, श्मशान में,
मार्ग में चलते समय तथा भीड़-भाड़ में हाथ नहीं देखना चाहिए ! हाथ
दिखाने वाले के अतिरिक्त यदि कोई अन्य व्यक्ति भी उपस्थित हो तो उस समय हाथ नहीं
देखना चाहिए,जल्दबाजी में हाथ देखना वर्जित है ! यदि
किसी रेखा के साथ-साथ कोई और रेखा चले तो उस रेखा को शक्ति मिलती है । अतः उस रेखा
का विशेष प्रभाव समझना चाहिए ! कमजोर, दुर्बल अथवा
मुरझाई हुई रेखाएँ बाधाओं की सूचक होती हैं !
अस्पष्ट और
क्षीण रेखाएँ बाधाओं की पूर्व सूचना देती हैं ! ऐसी रेखाएँ मन के अस्थिर होने तथा
परेशानी का संकेत देती हैं ! यदि कोई रेखा आखिरी सिरे पर जाकर कई भागों में बँट
जाए तो उसका फल भी बदल जाता है । ऐसी रेखा को प्रतिकूल फलदायी समझा जाता है !
टूटी हुई रेखाएँ
अशुभ फल प्रदान करती हैं । यदि किसी रेखा में से कोई रेखा निकलकर ऊपर की ओर बढ़े
तो उस रेखा के फल में वृद्धि होती है ! वैज्ञानिक अध्ययन से यह पता चलता है कि
मस्तिष्क की मूल शिराओं का हाथ के अंगूठे से सीधा सम्बंध है ! स्पष्टतः अंगुष्ठ बुद्धि
की पृष्ठ भूमि और प्रकृति को दर्शाने वाला सबसे महत्वपूर्ण अंग है ! बाएं हाथ के
अंगूठे से विरासत में मिली मानसिक वृति का आकलन किया जाता है और दायें हाथ के
अंगूठे से स्वअर्जित बुद्धि-चातुर्य और निर्णय क्षमता का अंदाजा लगाना सम्भव है !
अंगूठे और हथेली का मिश्रित फल व्यक्ति को अपनी प्रकृति के अनुसार ढाल पाने में
सक्षम है ! व्यक्ति के स्वभाव और बुद्धि की तीक्ष्णता को अंगुष्ठ के बाद अंगुलियों
की बनावट और मस्तिष्क रेखा सबसे अधिक प्रभावित करती है !
अमेरिकी विद्वान
विलियम जार्ज वैन्हम के अनुसार व्यक्ति के हाव-भाव और पहनावे से उसके स्वभाव के
बारे में आसानी से बताया जा सकता है !
अति बुद्धि
संपन्न लोगों का अंगुष्ठ पतला और पर्याप्त लंबा होता है ! यह पहली अंगुली (तर्जनी)
से बहुत पृथक भी स्थित होता है ! यह व्यक्ति के लचीले स्वभाव को व्यक्त करता है !
इस प्रकार के लोग किसी भी माहौल में स्वयं को ढाल सकने में कामयाब हो सकते हैं !
यह काफी सहनशील भी देखे जाते हैं ! इन्हें न तो सफलता का ही नशा चढ़ता है और न ही
विफलता की परिस्थितियों से ही विचलित होते हैं ! इनकी सबसे अच्छी विशेषता या गुण
इनका लक्ष्य के प्रति निरंतरता है !
यदि अंगुष्ठ का
नख पर्व (नाखून वाला भाग) यदि बहुत अधिक पतला है तब व्यक्ति अंततः दिवालिया हो
जाता है और यदि यह पर्व बहुत मोटा गद्दानुमा है तब ऐसा व्यक्ति दूसरों के अधीन रह
कर कार्य करता है ! यदि नख पर्व गोल हो और अंगुलियां छोटी और हथेली में शनि और
मंगल का प्रभाव हो तब जातक स्वभाव से अपराधी हो सकता है !
अंगुलियां कुल
हथेली के चार में से तीन भाग के समकक्ष होनी चाहिए ! इससे कम होने से जातक कुएं का
मेढक होता है ! उसके विचारों में संकीर्णता और स्वभाव में अति तक की मितव्ययता
होती है ! सीमित बुद्धि संपन्न यह जातक भारी और स्थूल कार्यों को ही कर पाते हैं !
बौद्धिक कार्य इनके लिए दूर की कौड़ी होती है ! अक्सर इनको स्वार्थी भी देखा गया
है ! इस प्रकार की अंगुलियां यदि विरल भी हो तो आयु का नाश करती हैं !
अंगुलियां के
अग्र भाग नुकीले रहने से काल्पनिक पुलाव पकाने की आदत होती है ! जिससे व्यक्ति
जीवन की वास्तविकता से अनभिज्ञ रहते हुए एक असफल जीवन जीता है !
अंगुलियां लम्बी
होने से जातक बौद्धिक और सूक्ष्मतम कार्य बड़ी सुगमता से पूर्ण कर लेता है और स्थूल कार्य भी इसकी पहुंच से बाहर
नहीं होते हैं ! बहुत बार इस प्रकार के जातक नेतृत्व करते देखे जाते हैं ! इस
प्रकार की अंगुलियों के साथ हाथ यदि बड़ा और चमसाकार हो तो जातक अपनी क्षमता का
लोहा समाज को मनवा लेता है !
लंबी अंगुलियों
के साथ यदि हथेली में शुक्र मुद्रिका भी हो तब जातक सर्वगुण सम्पन्न होते हुए भी
भावुकतावश प्रगति के मार्ग में पिछड़ जाता है !
शनि मुद्रिका
होने से दुर्भाग्य साथ नहीं छोड़ता है ! इस प्रकार के जातक अपनी योग्यता और क्षमता
का पूर्ण दोहन नहीं कर पाते हैं ! जिसके कारण इनको जीवन में सीमित उपलब्धियों से
ही संतोष करना होता है !
चंद्रमा का बहुत
प्रभाव होने से जातक पर यथार्तता की अपेक्षा कल्पना हावी रहती है !
अंगुलियों के
नाखून जब त्वचा में अंदर तक धंसे हों, साथ ही वह आकार
में सामान्य से छोटे हों तब जातक की बुद्धि कमजोर होती है ! इसकी मनोवृत्ति सीमित
और आचरण बचकाना होता है ! यह जातक आजीविका हेतु इस प्रकार के कार्य करते पाए जाते
हैं, जिनमें बौद्धिक/शारीरिक मेहनत न के बराबर होते
होती है !
कनिष्ठा सामान्य
से अधिक छोटी हो तब जातक मूर्ख होता है। कनिष्ठा के टेढी रहने से जातक अविश्वसनीय
होता है ! टेढ़ी कनिष्ठा को कुछ विद्वान चोरी करने की वृत्ति से भी जोड़ते हैं !
लेकिन इसे तभी प्रभावी मानना चाहिए जब हथेली में मंगल विपरीत हो, क्योंकि
ग्रहों में मंगल चोर माना जाता है !
अंगुलियों का
बैंक बैलेंस से सीधा सम्बंध है । केवल
अंगुलियों का निरक्षण कर लेने भर से ही इस तथ्य का अंदाजा लगाया जा सकता है कि
व्यक्ति में धन संग्रह की प्रवृत्ति कहां तक है !
तर्जनी (पहली
अंगुली) और मध्यमा (बीच की अंगुली) यदि बिरल (मध्य में छिद्र) हों तब निश्चित रूप
से जीवन के मध्य काल के बाद ही धन का संग्रह हो पाता है !
यदि कनिष्ठा
विरल हो तो वृद्धावस्था अर्थाभाव में व्यतीत होता है ! यदि अंगुलियों के मूल पर्व
गद्देदार और स्थूल हों तब जीवन में विलास का आधिक्य रहता है !
सभी अंगुलियों
के विरल होने से जीवन पर्यन्त धन की कमी रहती है ! सीधी, चिकनी
और गोल अंगुलियां धन को बढ़ा देती है। सूखी अंगुलियां धन का नाश करती हैं !
वे अंगुलियां
जिनके जोड़ों की गांठें बहुत उभरी हुई हों, संवेदनशील और
कंजूस प्रवृत्ति दर्शाती हैं ! लेकिन ऐसी उंगलियों वाले जातक कड़ी मेहनत कर सकते
हैं । यही इनकी सफलता का रहस्य होता है !
अंगूठे और अंगुलियों के आकार - प्रकार के
अलावा हाथ की बनावट से हमें काफी कुछ जानकारी प्राप्त होती है !
समचौरस हथेली के
स्वामी व्यवहारिक लेकिन ऐसे लोग स्वार्थी भी होंते हैं साथ ही समय आने पर किसी को धोखा भी दे
सकते हैं ! इसके विपरीत लम्बवत हथेली के स्वामी भावुक और कल्पनालोक में विचरण करने
वाले लोग होते हैं ! आमतौर पर यह जीवन में स्वतंत्र रूप से सफल नहीं रहते हैं !
तथापि यह नौकरी में ज्यादा सफल रहते हैं ! ऐसे लोग यदि स्वयं का व्यवसाय स्थापित
करें तो प्रायः लम्बा नुकसान उठाते हैं ! अतः ऐसे लोगों को हमेशा नौकरी को तरजीह
देनी चाहिए !
हथेली का
पृष्ठभाग समतल या कुछ उभार लेते हुए होना चाहिए ! ऐसी हथेली का जातक व्यवहारिक
होता है ! यदि हथेली का करपृष्ठ बहुत अधिक उभार लिए हुए हो तब प्रायः व्यक्ति
कर्कश स्वभाव और झगड़ालू होता है !
हथेली में जब
गहरा गढ़ा हो तो प्रायः जातक अपनी बात पर कायम नहीं रह पाता है। ऐसे लोग जीवन मे
अत्यंत संघर्ष के उपरांत ही कुछ हासिल कर पाते हैं !
हथेली का पृष्ठ
भाग और कलाई हमेशा समतल होनी चाहिए ! यदि दोनों में ज्यादा अंतर है तब यह जातक को
समाज में स्थापित होने से रोकती है ! ऐसे लोग अपने परिजनों से विरोध करते हैं !
समाज में इनकी प्रतिष्ठा कम होती है !
जिन हाथों में
शनि-मंगल का प्रभाव हो वह लोग कानूनी समस्याओं का सामना करते हैं ! कुछ मामलों में
ऐसे लोग अपराधी भी हो सकते हैं !
हथेली में राहु
का प्रभाव होने पर जातक बुरी आदतों का शिकार हो जाता है ! वह धर्मभ्रष्ट भी हो
सकता है ! मदिरापान कर सकता है या अभक्षण का भी भक्षण कर सकता है !
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