गुरुवार, 27 अगस्त 2015

ज्योतिष का मूल्यांकन

ज्योतिष का मूल्यांकन

ज्योतिष किसी भी जातक के विषय मे वह रहस्य उजागर कर सकता हैं जो आधुनिक विज्ञान कभी भी किसी भी रूप मे नहीं कर सकता हमारे ऋषि मुनि अपनी बंद आँखों द्वारा जो हजारो वर्ष पूर्व देख सकते थे आज का विज्ञान उसे खुली आँखों व बहुत से प्रयोगो के द्वारा भी नहीं देख सकता हैं योग्य व विद्वान ज्योतिषी के लिए किसी भी जातक की कुंडली शीशे के समान होती हैं जो जातक के विषय मे वह सब बता सकती हैं जो किसी भी प्रकार का विज्ञान अथवा स्वयं जातक भी नहीं बता सकता | हमारे शास्त्रो मे विवाह के विषय मे बहुत सी बातें कहीं गयी हैं इसके संदर्भ मे ऋग्वेद के सूर्य सावित्री मंत्र मे इस प्रकार से प्रार्थना की गयी हैं की मुझे ऐसी पत्नी प्राप्त हो जो यशस्वी,पतिव्रता,सुभगा इत्यादि हो,जैसे इंद्र की इंद्राणी,शिव की गौरी,श्रीधर की श्री । यहाँ सिर्फ विवाह होना पूर्णता नहीं हैं आप यदि अच्छी नौकरी,अच्छी पत्नी व संतान वाले हैं तो आप अवश्य ही भाग्यवान हैं |

विवाह हेतु कुछ सूत्र इस प्रकार से हैं |

1)यदि छठे भाव मे शनि,सातवे मे राहू तथा आठवे मे मंगल अथवा सूर्य हो तो जातक का विवाह ऐसी स्त्री से होता हैं जो उसके शरीर का स्पर्श भी नहीं करती हैं |

2)यदि सप्तम भाव मे नीच गृह ऊंच गृह संग हो और उनमे मित्रता हो तो नीच भंग हो जाता हैं परंतु यदि ऊंच गृह लग्नेश का शत्रु हो व सप्तम भाव मे राहू भी हो तो पति पत्नी से आनंद प्राप्त नहीं कर पाता हैं |

3)यदि सप्तमेश अष्टमेश की ऊंच राशि मे हो अथवा सप्तमेश अष्टमेश मे राशि परिवर्तन हो और अष्टमेश लग्नेश का शत्रु हो तो जातक का विवाह अपने से अमीर घराने की स्त्री से होता हैं परंतु यह विवाह नाम मात्र का होता हैं |

19/5/1944 23:29 मुंबई प्रस्तुत जातक का विवाह 1975 मे स्वयं से अमीर घराने की स्त्री से हुआ परंतु विवाह समय स्त्री के राजस्वला होने से इनका उस स्त्री से वैवाहिक संबंध नहीं बन पाया आज तक दोनों अलग रहते हैं यहाँ सप्तमेश चन्द्र अष्टमेश सूर्य की ऊंच राशि मे हैं तथा अष्टमेश लग्नेश का शत्रु भी हैं | सप्तमेश वर्गोत्तम हैं तथा लग्नेश ऊंच नवांश मे हैं और शनि द्वारा दृस्ट भी नहीं हैं इस कारण विवाह स्त्री हेतु खानापूर्ति हैं वह ना तो संग रहती हैं नाही तलाक देती हैं |

4)रिक्षा शीलाध्याय का पंचांग संग्रह जो होरा शास्त्र मे भी लिया गया हैं उसमे कहाँ गया हैं की यदि जातक मकर लग्न का हो तथा चन्द्र वर्गोत्तम होकर मेष का हो तो जातक पत्नी द्वारा दुत्कारा  जाता हैं तथा वेश्याए भी उससे शारीरिक सबंध नहीं बनाती वह स्त्री सुख से वंचित रहता हैं ऐसा ही मांदी के कुम्भ राशि मे होने से तथा सप्तम का नवांश स्वामी नवांश की नवम राशि मे होने पर भी  होता हैं |    

5)स्त्री की पत्रिका मे सप्तम भाव से शुक्र अथवा बुध का संबंध हो तथा सप्तमेश पाप ग्रह संग द्वादश भाव मे हो तो वैवाहिक जीवन अच्छा नहीं होता |

9/9/1945 2:50 नागपुर कर्क लग्न मे जन्मी इस एम एससी पास स्त्री की पत्रिका मे शुक्र सप्तम भाव को देख रहा हैं तथा सप्तमेश शनि मंगल व राहू संग द्वादश भाव मे हैं जातिका का पति कलक्टर हैं जातिका के चार बच्चे हैं परंतु वैवाहिक जीवन अच्छा नही रहा हैं |

कुछ अन्य सूत्र जो आज के संदर्भ मे बिलकुल सही प्रतीत नहीं होते हैं |

6)स्त्री की पत्रिका मे गुरु की सप्तम भाव मे दृस्टी संस्कारी पति देती हैं तथा दशम भाव मे शुक्र होने से उसे प्रेम करने वाला पति प्राप्त होता हैं और उसका जीवन शानदार होता हैं |

6/5/1959 12:25 वृश्चिक लग्न मे जन्मी इस धनी परिवार की जातिका ने 17 वर्ष की आयु मे एक नीच जाति के अनाथ युवक से प्रेमविवाह किया जो ना तो सेहतवान था और नहीं उसका समाज मे कोई स्तर था माँ बाप ने इस कन्या का विवाह एक आइ ए एस लड़के से तय किया तब इसने उन्हे अपने प्रेम विवाह के बारे मे बताया जिस कारण माँ बाप ने इसे त्याग दिया तब से यह अपने पति संग झुग्गी मे रहती हैं जहां इसे वैवाहिक सुख के अतिरिक्त कोई सुख नहीं हैं |

एक अन्य सूत्र जिसके अनुसार शनि का दूसरे भाव मे होना व्यक्ति को दूसरे के घर मे दूसरों के द्वारा तिरस्कृत व अपनों से दूर रखता हैं परंतु उसके पास सभी संपन्नता के साधन,वाहन इत्यादि  होते हैं ये सूत्र भी यहाँ पर पूर्ण रूप से लागू नहीं होता हैं |

7)वराहमिहिर के अनुसार यदि शुक्र-मंगल सप्तम भाव से पाप ग्रह द्वारा देखे जा रहे होतो जातक को धातु संबंधी यौन रोग हो सकता हैं चूंकि यह रोग शारीरिक भूख के बिना हो नहीं सकता जिससे मानसिकता भी प्रभावित होती हैं जिसके कारक चन्द्र बुध होते हैं अत: इनका भी अध्ययन करना चाहिए जहां नैतिकता कम हो वहाँ ऐसी बीमारी (गोनोरिया,सिफ़लिस आदि ) हो सकती हैं | जब मानसिक द्वंद ना होतो इस प्रकार की बीमारी से बचा जा सकता हैं मंगल शुक्र अलग ड्रेसकोण मे होने चाहिए तथा चन्द्र-बुध मंगल के प्रभाव से मुक्त होने चाहिए | चन्द्र शुक्र की युति निसंदेह जातक को भोगी बनाती हैं परंतु उसका भोग अपनी पत्नी तक सीमित होता है ऐसा कोई भी प्रमाण नहीं हैं जो विवाहित स्त्री पुरुष को भोग की इच्छा से मुक्त बताता हो |

7/7/1925 8:00 जयपुर प्रस्तुत कुंडली का जातक 20 वर्ष की आयु मे मंगल दशा लगने पर अपनी बुरी आदतों के चलते यौन रोग का शिकार हुआ इलाज़ करने के बाद इसका बड़े घर की कन्या से विवाह हुआ राहू शुक्र दशा मे इसका रोग फिर बढ़ा जिससे पत्नी भी संक्रमित हो गयी उसकी शल्य चिकित्सा करनी पड़ी परंतु पति पर विश्वास खोने तथा बीमारी कारण मानसिक तनाव मे आने से उसकी क्षयरोग से मौत हो गयी अपनी आत्मग्लानि के चलते इस जातक को भी क्षयरोग हो गया | समय रहते यदि इस जातक को सुधार लिया गया होता तो संभवत; ऐसा नहीं होता यह कुंडली विचित्र दाम्पत्य का प्रबल उदाहरण हैं | इस प्रकार देखे तो कुंडली भावी जीवन की संभावना बताती हैं निश्चित रूप से क्या होगा यह नहीं बताती |

8)एक अन्य सूत्र यह बताता हैं की कुंडली मे यदि शनि-मंगल संग हो तथा लग्न सप्तम मे राहू केतू अक्ष होतो जातक को पक्षाघात होता हैं |

24/7/1902 00:30 मेष लग्न के इस जातक की पत्रिका मे शनि दशमेश होकर गुरु संग राजयोग बना रहा हैं 1948 मे जब जातक को शनि मे सूर्य दशा थी शनि का गोचर जन्मकालीन सूर्य पर होने वाला था जातक की पदोन्नति हुयी उसे कार्यालय का प्रभारी बनाया गया परंतु सूर्य अंतर्दशा लगते ही इसे दुर्भाग्य ने आ घेरा इस जातक को पद से हटा दिया गया ( सूर्य पंचमेश होकर चतुर्थ मे हैं तथा चन्द्र से सूर्य सप्तमेश होकर उससे छठे भाव मे हैं महादशानाथ शनि चन्द्र से द्वादश हैं ) जिससे इस जातक के दिमाग पर घातक असर हुआ जैसे ही मंगल ने गोचर मे मकर राशि मे प्रवेश किया इस जातक को पक्षाघात हुआ एक माह बाद इसकी 47 वर्ष की आयु मे मौत हो गयी |

इस प्रकार हम देखते हैं की ज्योतिष मे बहुत सी समभावनाए हैं जिनसे जीवन सार्थक व सफल बनाया जा सकता हैं यदि हम इसे सही प्रकार से फलित कर जान सके और सामने वाले को समझा सके की जीवन को किस प्रकार से जिया जाये तो यह ज्योतिष की बड़ी सफलता सफलता होगी |


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