अशौच दो प्रकार का होता है (1) जननाशौच जिसे सूतक और (2) मरणाशौच जिसे पातक कहते हैं ।
गर्भस्त्रावादि
अशौच व्यवस्था
चार मास तक गर्भ
के गिरने को 'गर्भस्राव' कहते हैं । पांचवे और छठे
मास में 'गर्भपात' और इस के
उपरान्त 'प्रसव' कहलाता है । तीन मास के
भीतर किसी भी मास में गर्भ के गिराने से गर्भिणी को तीन दिन का और चौथे महीने में
चार दिन का अशौच रहता है, पिता आदि सपिण्ड केवल स्नान मात्र से
शुद्ध हो जाते हैं
। पांचवें और छठे महीने में गर्भपात हो तो क्रम से 5 और 6 दिन का
गर्भिणी को अशौच रहता है, पितादि सपिण्ड को 3 दिन का 'सूतक'
होता है ।
जनना शौच व्यवस्था
सात महीने से
लेकर किसी भी महीने में जन्म हो तो मातापितादि सपिण्डों को अपने - अपने वर्ण के
अनुसार पूरा अशौच (सूतक) होता है । जैसे ब्राह्मण को 10 दिन, क्षत्रिय
को 12 दिन, वैश्य को 15 दिन और शूद्र को एक मास का सूतक
रहता है, किन्तु माता को सूतक निकालने के बाद भी पुत्र
जन्मा हो तो 20 दिन और कन्या उत्पन्न होने 1 मास तक धर्म कार्य करने का अधिकार
नहीं होता । नाल - छेदन से पीछे सूतक हो जाने के कारण जात कर्म का अधिकार नहीं
होता ।
जननाशौच दान
भोजन निर्णय दोष
जननाशौच में
पहले तथा छठे - दसवें दिन दान, पति ग्रह का दोष नहीं है । केवल अन्न भोजन का ही निषेध
है ।
मृतौत्पत्ति में
विचार
यदि मरा हुआ
बालक उत्पन्न हो तो पितादि सपिण्डों को अपने – अपने वर्ण के अनुसार पूरा अशौच (सूतक) होता
है । बालक जन्म लेकर नाल - छेदन से पूर्व ही मर जाय तो माता को 10 दिन का सूतक और
पितादि सपिण्डों को 3 दिन का जननाशौच (सूतक)
होता है । नाल - छेदन के बाद 10 दिन के भीतर अर्थात् नाम संस्कार से पूर्व बालक की
मृत्यु हो जाये हो पितादि सपिण्डों को पूर्ण जननाशौच (सूतक) रहता है । पातक में
देवकर्म और पितृकर्म का अधिकार नहीं रहता ।
मृताशौच
व्यवस्था
नामकरण अर्थात 10
दिन के बाद 6 महीने के भीतर अर्थात् दांत आने से पहले बालक के मरने पर माता और
पिता को 3 दिन का मृताशौच (पातक) होता है किन्तु सपिण्ड स्नानमात्र से शुद्ध हो
जाते हैं । कन्या मरने पर पिता को एक दिन का पातक लगता है । स्मरण रखना चाहिए 7वें
महीने से अर्थात दांत
निकलने के पीछे 3 वर्ष तक अर्थात् चूड़ाकरण संस्कार न होने पर बालक के मरने पर
माता - पिता को 3 दिन,सपिण्डों
को 1 दिन तक पातक हो जाता है, और 3 वर्ष तक मुण्डन - संस्कार हो गया
हो तो बालक को जलाना चाहिए ।
कन्या अशौच
व्यवस्था
सगाई होने से
पहले कन्या मरने पर तीन पुरुषों तक 1 दिन का पातक होता है, सगाई
हो जाने के बाद और विवाह से पहले कन्या मरने पर पिताकुल के और पतिकुल को 7 पुरुषों
तक 3 दिन का पातक रहता है ।
यदि विवाह हुई
कन्या पिता के घर में मर जाये व प्रसूता हो तो माता पिता और सहोदर भाइयों को 3 दिन का पातक,
चाचा आदि को 1 दिन का अशौच होता है परन्तु पतिकुल में पूर्ण अशौच
होता है ।
विवाहित कन्या
को 10 दिन के भीतर माता पिता की मृत्यु की खबर मिले तो 3 दिन का पातक, 10 दिन
के बाद सुने तो 1 दिन का पातक होता
हैं ।
मातामह मातामही
दौहित्र मरण पर विचार
नाना मरे तो
दौहित्र को 3 दिन, नानी मरने पर 1 दिन का पातक होता है ।
यज्ञोपवीत संस्कार हुए दौहित्र के मरने पर नाना की 3 दिन, बिना
यज्ञोपवीत के 1 दिन का पातक होता है ।
सास ससुर तथा
जामातृ मरण पर अशौच विचार सास और ससुर यदि मर जायें तो जामातृ पास होने से 3 दिन,
बिना समीप होने से 1 दिन का पातक लगता है । जमाई के मरने से 1 दिन का
पातक होता है ।
बुआ,पिता की बुआ के पुत्रों को
पितॄ बांधव कहते हैं,मासी और मामी के
पुत्रों को आत्मबांधव कहते हैं । माता की बुआ, मासी और मामी के
पुत्रों को मातृबांधव कहते हैं । इन तीन प्रकार के बांधवों में से किसी की मृत्यु
हो जाये तो 3 दिन का पातक होता है । इनकी बहिन मरे तो 1 दिन का पातक होता है,
और विवाहित कन्या मरने पर 1 दिन का पातक होता है ।
अशौच - सम्पात
पर निर्णय
10 दिन के अशौच
में यदि 5 दिन के भीतर दूसरा 10 दिन का अशौच हो जावे तो पहले के अशौच की समाप्ति
पर दूसरे अशौच की भी समाप्ति हो जाती है । 5 दिन के बाद 8 दिन के भीतर हो तो पिछले
के साथ शुद्धि हो जाती है । यदि 10वें दिन की रात्रि में दूसरा अशौच हो जाय तो दो
दिन अशौच और बढ़ जाता है । जननाशौच में मृताशौच अथवा मृतशौच में जननाशौच हो जावे
तो मृताशौच के साथ शुद्धि होती है ।
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