सोमवार, 3 जुलाई 2023

गृह वास्तु के 51 सूत्र : घर बनाने से पहले परखें


1) सफेद रंग की सुगंधित मिट्टी वाली भूमि ब्राह्मणों के निवास के लिए श्रेष्ठ मानी गई है ।

2) लाल रंग की कसैले स्वाद वाली भूमि क्षत्रिय, राजनेता, सेना व पुलिस के अधिकारियों के लिए शुभ मानी गई है । 

3) हरे या पीले रंग की खट्टे स्वाद वाली भूमि व्यापारियों, व्यापारिक स्थलों, वित्तीय संस्थानों के लिए शुभ मानी गई है ।

4) काले रंग की कड़वे स्वाद वाली भूमि अच्छी नहीं मानी जाती । यह भूमि शूद्रों के योग्य है ।

5) मधुर समतल व सुगंधित व ठोस भूमि भवन बनाने के लिए उपयुक्त है ।

6) खुदाई में चींटी, दीमक, अजगर, सांप, हड्डी, कपड़े, राख, कोड़ी, जल, लकड़ी व लोहा मिलना शुभ नहीं माना जाता ।

7) भूमि की ढलान उत्तर और पूर्व की ओर, छत की ढलान ईशान कोण में होनी चाहिए ।

8) भूखण्ड के दक्षिण या पश्चिम में ऊचें भवन, पहाड़, टीले या पेड़ शुभ माने जाते हैं ।

9) भूखण्ड से पूर्व या उत्तर की ओर कोई नदी या नहर हो और उसका प्रवाह उत्तर या पूर्व की ओर हो तो शुभ होता है ।

10) भूखण्ड के उत्तर, पूर्व या ईशान में भूमिगत जल स्रोत, कुंआ, तालाब एवं बावड़ी शुभ होता हैं

11) भूखण्ड दो बड़े भूखण्डों के बीच होना अशुभ होता हैं |

12) भवन दो बड़े भवनों के बीच होना शुभ नहीं ।

13) आयताकार, वृताकार व गोमुखी भूखण्ड गृह वास्तु में शुभ होता है । वृताकार भूखण्ड में निर्माण भी वृताकार ही होना चाहिए ।

14) सिंहमुखी भूखण्ड व्यवसायिक वास्तु के लिए शुभ होता हैं

15) भूखण्ड का उत्तर या पूर्व या ईशान कोण में विस्तार शुभ माना जाता है ।

16) भूखण्ड के उत्तर और पूर्व में मार्ग शुभ होता हैं |

17) दक्षिण व पश्चिम में मार्ग व्यापारिक स्थल में लाभदायक माने जाते हैं |

18) भवन के द्वार के सामने मंदिर, खंभा व गड्ढ़ा शुभ नहीं माने जाते ।

19) आवासीय भूखण्ड में बेसमेन्ट नहीं होनी चाहिए ।

20) बेसमेन्ट बनानी आवश्यक हो तो उत्तर पूर्व में ब्रह्म स्थान को बचाते हुए बनानी चाहिए ।

21) बेसमेन्ट की ऊंचाई कम से कम 9 फीट हो और 3 फीट तल से ऊपर हो ताकि प्रकाश और हवा आ जा सके ।

22) कुआ, बोरिंग व भूमिगत टंकी उत्तर पूर्व या ईशान में बना सकते हैं । वास्तु पुरुष के अतिमर्म स्थानों को छोड़ कर ।

23) भवन की प्रत्येक मंजिल में छत की ऊंचाई 12 फुट रखें,10 फुट से कम नहीं ।

24) भवन का दक्षिणी भाग हमेशा उत्तरी भाग से ऊंचा होना चाहिए

25) भवन का पश्चिमी भाग हमेशा पूर्वी भाग से ऊंचा होना चाहिए

26) भवन में नैऋत्य सबसे ऊंचा और ईशान सबसे नीचा होना चाहिए |

27) भवन का मुख्य द्वार ब्राह्मणों को पूर्व में, क्षत्रियों को उत्तर में, वैश्य को दक्षिण में तथा शूद्रों को पश्चिम में रखना चाहिए । इसके लिए 81 पदों 4 का वास्तु चक्र बना कर निर्णय करना चाहिए ।

28) द्वार की चौड़ाई उसकी ऊंचाई से आधी होनी चाहिए

29) बरामदा घर के उत्तर या पूर्व में होना चाहिए ।

30) खिड़कियां घर के उत्तर या पूर्व में अधिक तथा दक्षिण या पश्चिम में कम बनानी चाहिए ।

31) ब्रह्म स्थान को खुला साफ, हवादार रखना चाहिए ।

32) गृह निर्माण में 81 पद वाले वास्तु चक्र में 9 स्थान ब्रह्म स्थान के लिए नियत किए गये हैं ।

33) चार दीवारी के अंदर सबसे ज्यादा खुला स्थान पूर्व में छोड़ें । उससे कम उत्तर में, उससे कम पश्चिम में सबसे कम दक्षिण में छोड़ें ।

34) दीवारों की मोटाई सबसे ज्यादा दक्षिण में, उससे कम पश्चिम में, उससे कम उत्तर में, सबसे कम पूर्व में रखें । 35) घर के ईशान कोण में पूजा घर, कुंआ, बोरिंग, बच्चों का कमरा, भूमिगत वाटर टैंक, बरामदा, लिविंग रूम, ड्राइंग रूम व बेसमेंट बनायें ।

36) घर की पूर्व दिशा में स्नान घर, तहखाना, बरामदा, कुंआ, बगीचा व पूजा घर बनायें ।

37) घर के आग्नेय कोण में रसोई घर, बिजली के मीटर, जेनरेटर, इन्वर्टर व मेन स्विच लगाएं ।

38) घर की दक्षिण दिशा में मुख्य शयन कक्ष,भंडार, सीडियां व ऊंचे वृक्ष लगाएं ।

39) घर के नैऋत्य कोण में शयन कक्ष, भारी व कम उपयोगी सामान का स्टोर, सीढ़ियां, हैड वाटर टैंक व शौचालय बनाए जा सकते हैं ।

40) घर की पश्चिम दिशा में भोजन कक्ष, सीढियां, अध्ययन कक्ष, शयन कक्ष, शौचालय व ऊंचे वृक्ष लगाए जा सकते हैं ।

41) घर के वायव्य कोण में अतिथि घर, कुंवारी कन्याओं का शयन कक्ष, रोदन कक्ष, लिविंग रूम, ड्राइंग रूम, सीढ़ियां, अन्न भण्डार व शौचालय बनाये जा सकते हैं ।

42) घर की उत्तर दिशा में कुंआ, तालाब, बगीचा,पूजा घर, तहखाना, स्वागत कक्षु, कोषागार व लिविंग रूम बनाये जा सकते हैं ।

43) घर का भारी सामान नैऋत्य कोण, दक्षिण या पश्चिम में रखना चाहिए ।

44) घर का हल्का सामान उत्तर-पूर्व व ईशान में रखना चाहिए ।

45) घर के नैऋत्य भाग में किरायेदार या अतिथि को नहीं ठहराना चाहिए ।

46) सोते समय सिर पूर्व या दक्षिण की तरफ होना चाहिए । (मतान्तर से अपने घर में पूर्व दिशा में, ससुराल में दक्षिण सिर करके, परदेश में , पश्चिम सिर करके और उत्तर दिशा में सिर करके कभी नहीं सोना चाहिए।)

47) दिन में उत्तर की ओर तथा रात्रि में दक्षिण की ओर मुख करके मल मूत्र का त्याग करना चाहिए ।

48) घर के पूजा गृह में बड़ी मूर्तियां नहीं होनी चाहिए । दो शिवलिंग, तीन गणेश, दो शंख, दो सूर्य प्रतिमा, तीन देवी प्रतिमा, दो गोमती चक्र व दो शालिग्राम नहीं रखने चाहिए ।

49) भोजन सदा पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके, ही करना चाहिए ।

50) सीढ़ियों के नीचे पूजा घर, शौचालय व रसोई घर नहीं बनाना चाहिए ।

51) धन की तिजोरी का मुंह उत्तर दिशा की और होना चाहिए |

 


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