ज्योतिषी भाग्य नहीं बदल सकता
वरिष्ठ पत्रकार श्रीकान्त शर्मा ने 'ज्योतिष' पर श्री के.एन. राव से महत्त्वपूर्ण बातचीत की थी जो विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई । उसी बातचीत के कुछ अंश आवश्यक संशोधन तथा संपादन के साथ पुनः प्रकाशित किए जा रहे हैं ।
प्रश्न: क्या
ज्योतिष विज्ञान है? यदि हां, तो किस तरह?
यदि नहीं, तो ज्यातिषियों की भविष्यवाणी पर क्यों
विश्वास किया जाए ?
श्री रावः
ज्योतिष निश्चित रूप से विज्ञान है, लेकिन विज्ञान
की तरह इसकी भी सीमाएं हैं। विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में लगातार अनुसंधान चल
रहे हैं जबकि ज्योतिष में ऐसा नहीं है । ज्योतिषी अनुसंधान करने की बजाय इसे धन
कमाने का साधन बनाए हुए हैं । इसे अंधविश्वासों से जोड़ कर कष्ट दूर करने के
उपायों के नाम पर लोगों को लूटा जाता है । इससे इस पवित्र विद्या के प्रति लोगों
का विश्वास समाप्त होता जा रहा है । जहां तक इस बात का प्रश्न है कि एक ही कुंडली
या घटना पर विद्वान ज्योतिषियों की भी अलग भविष्यवाणियां होती हैं तो इसमें कोई
आश्चर्य नहीं करना चाहिए । एक रोगी यदि कई डॉक्टरों के पास जाता है तो उनकी भी राय
अलग-अलग ही होती है । विद्वान ज्योतिषी एकाग्रचित्त होकर किसी कुंडली का विश्लेषण
कर कोई भविष्यवाणी करता है तो वह 90 प्रतिशत से अधिक सही हो सकती है ।
प्रश्नः यदि
ज्योतिष विज्ञान है तो इसे देश के विश्वविद्यालयों में सुव्यवस्थित ढंग से क्यों
नहीं पढ़ाया जाता ?
श्री रावः एनडीए
के शासन के दौरान जब डॉ. मुरली मनोहर जोशी मानव संसाधन विकास मंत्री थे, तब विश्वविद्यालय
अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा ज्योतिष को डिग्री के रूप में शामिल किया गया था,
लेकिन उसे अदालत में चुनौती दी गई । मैंने ज्योतिषियों को उस संबंध
में आगे आने के लिए कहा लेकिन कोई नहीं आया। मैंने सुप्रीम कोर्ट में अकेले खड़े
होकर इस विषय को अदालत के सामने रखा सुप्रीम कोर्ट ने 22 मिनट तक मेरी बात सुनी और
फैसला दिया कि जो विश्वविद्यालय इस विषय को कोर्स में शामिल करना चाहता है,
कर सकता है ।
प्रश्नः ज्योतिष ग्रहों-नक्षत्रों व राशियों पर आधारित है परंतु
ये तकलीफ कम कर सकते हैं पर दूसरी तरफ कहते हैं कि वे लूटते सब पृथ्वी से लाखों
मील दूर हैं । फिर इनका हम पर असर कैसे होता हैं?
श्री रावः अंग्रेजी के 'प्लैनेट' शब्द को लेकर उसे हिन्दी में 'शनि की साढ़े साती'
से डरा कर और 'मांगलिक दोष'
दूर करने 'ग्रह'
कह दिया गया है जबकि ज्योतिष में
उन ग्रहों का प्रभाव नहीं के उपायों का नाम लेकर परेशान लोगों से हजारों रुपये ऐंठ
लेते देखा जाता। शब्दकोश में 'ग्रह'
का अर्थ है 'पकड़ना'।
ज्योतिष में
ग्रह लाखों मील दूर ब्रह्मांड में घूम रहे पिण्ड नहीं बल्कि, ग्रह
का अर्थ 'कर्म' भी है । व्यक्ति
के कर्मों का असर उस पर पड़ता है । यदि व्यक्ति के कर्मों को
ग्रह नहीं मानते और आकाश में घूम रहे सूर्य-चंद्रमा को ज्योतिष में ग्रह मानते तो
राहु-केतु कहां से आ गए । राहु-केतु का प्रयोग ज्योतिष में होता है, लेकिन
वे पिण्ड नहीं हैं । पिछले जन्मों में किए गए कर्म व्यक्ति को भोगने ही पड़ते हैं
और उसी के आधार पर व्यक्ति का प्रारब्ध होता है । नियति या प्रारब्ध व्यक्ति के
संचित कर्मों के अनुसार होता है ।
महाभारत को
पढ़ें तो उसमें स्पष्ट कहा गया है कि जिस प्रकार गायों के झुण्ड में बछड़ा अपनी
मां को पहचान लेता है उसी प्रकार विगत जन्मों में किए गए कर्म अपने कर्त्ता को
पहचान कर उस तक पहुंच जाते हैं । भीष्म ने महाभारत में कहा है कि पुरूषार्थ नहीं
किया तो प्रारब्ध नहीं मिलेगा। जो भोगने के लिए है, उसे भोगना ही
पड़ेगा ।
प्रश्न: कहते
हैं कि समय से पूर्व और भाग्य से ज्यादा नहीं मिलता । फिर भविष्य के बारे में
जानकर किसी व्यक्ति को क्या लाभ हो सकता है ?
श्री रावः
व्यक्ति अतीत की स्मृति में, वर्तमान की उत्तेजना और भविष्य की
अनिश्चितता के कारण ज्योतिषी के पास जाता है । भविष्य के बारे में जानने का लाभ यह
है कि प्रारब्ध को समझकर कर्मों के शुभ फलों में वृद्धि और खराब फलों को कम किया
जा सकता है । प्रारब्ध को पूरी तरह नहीं, कुछ हद तक बदला
जा सकता है । प्रारब्ध में मिलने वाले फलों की सीमाएं कम-ज्यादा की जा सकती हैं ।
कुछ उपायों से तकलीफ थोड़ी 'घट' सकती है और यदि 'मिट'
नहीं सकती है तो उसे सहने की शक्ति अवश्य मिल सकती है ।
प्रश्न: एक ओर
आप कहते हैं कि ज्योतिषी उपाय बता कर तकलीफ कम कर सकते हैं पर दूसरी तरफ कहते हैं वे लूटते हैं ?
श्री रावः
तथाकथित ज्योतिषी 'कालसर्प', 'शनि
की ढैया',शनि इंसाढ़ेसाती से डरा कर और
मागलिक दोष दूर करने के उपायो का नाम लेकर परेशान लोगो से हजारो रुपये ऐंठ लेते हैं
। मैंने ज्योतिष के शास्त्रों का अध्ययन किया है लेकिन मुझे कहीं 'कालसर्प'
का जिक्र नहीं मिला । मैंने कई ज्योतिषियों को चुनौती दी कि वे मुझे
वह शास्त्र दिखाएं जिसमें कालसर्प दोष का उल्लेख हो । लेकिन किसी ने आज तक कालसर्प
दोष के लिए कोई शास्त्र नहीं दिखाया। यहां तक कि प्रसिद्ध
तिरूपति मंदिर से लगभग पचास किलोमीटर दूर काल हस्ती शिव मंदिर में भी मैं अपने कुछ
साथियों के साथ गया जहां कालसर्प दोष दूर करने के लिए विशेष पूजा की जाती है। वहां
भी मैंने उन ज्योतिषियों से उन शास्त्रों के बारे में जानना चाहा
जिनमें कालसर्प दोष का उल्लेख है, लेकिन मुझे वहां भी किसी ने नहीं बताया
। उनका कहना था कि जब लोग कालसर्प दोष दूर कराने के लिए खुद चल कर यहां आते हैं तो
हमें क्या परेशानी है ।
वास्तव में
ज्योतिष सांकेतिक होता है । यदि ज्योतिषी उपाय करके भाग्य बदल सकते होते तो वे
ईश्वर ही न बन जाते ।
मैं कुछ उदाहरण
देता हूं जिन्हें कोई नकार नहीं सकता। मैं आपको ऐसे लोगों के बारे में बता सकता
हूं जिनकी कुंडली में तथाकथित ‘कालसर्प योग' होने
के बावजूद वे अपने जीवन में शीर्ष स्थान तक पहुंचे। मार्गरेट थैचर की तुला लग्न की
कुंडली है और चतुर्थ भाव में मकर राशि में केतु और दशम भाव में कर्क राशि में राहु
के मध्य सारे ग्रह हैं। पांचवें से नौवें घर में कोई ग्रह नहीं है। वह इंग्लैंड की
प्रधानमंत्री बनीं। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू. बुश की कर्क राशि
की कुंडली में केतु पंचम भाव में वृश्चिक राशि में है और राहु एकादश भाव में वृषभ
राशि में है तथा सारे ग्रह राहु-केतु के मध्य द्वादश भाव से लेकर तृतीय भाव के बीच
हैं। धीरूभाई अंबानी की धनु लग्न की कुंडली में भी राहु कुंभ राशि में तृतीय भाव
में है और केतु नवम भाव में है। उन्हीं के बीच सारे ग्रह हैं। तीनों की कुंडली में
काल सर्प दोष बताते हैं लेकिन तीनों ने अपने जीवनकाल में उच्च पद तथा प्रतिष्ठा को
प्राप्त किया।
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