शनिवार, 29 जुलाई 2023

राहू गोचर अनुसार अशुभ समय कब होगा ?

जब भी गोचर मे इस प्रकार की स्थिति बनती हैं जातक विशेष को अशुभता ही प्राप्त होती हैं | आप भी इन 3 सूत्रो को अपनी अपनी कुंडलियों मे लगाकर देखे और बताए |

आप इस लेख को हमारे यूट्यूब चैनल मे भी देख सकते हैं |

https://youtu.be/7wf4ctsPpGc

1)जब भी कभी जन्मकालीन शनि के उपर राहू का गोचर हो रहा हो |

जैसे वर्तमान मे देखे तो यदि आपका जन्म कालीन शनि मेष राशि का हैं और उसके ऊपर राहु का गोचर चल रहा हैं तो आपको अशुभ फलो की प्राप्ति होगी |

2)जब भी कभी जन्म कालीन राहू के ऊपर शनि का गोचर चल रहा हो |

जैसे वर्तमान मे देखे तो यदि आपका जन्मकालीन राहु कुंभ राशि का हो और उसके ऊपर शनि का गोचर चल रहा हैं |

इन दोनों के प्रभाव से आपको वर्तमान समय अस्पताल,कोर्ट – कचहरी,थाना आदि के चक्कर लगाने पड़ सकते हैं |  

3)यदि आपकी पत्रिका के अष्टम भाव के स्वामी अर्थात अष्टमेश के ऊपर से राहु का गोचर हो अथवा राहु उससे त्रिकोण में गोचर कर रहा हो |

उदाहरण के लिए जैसे यदि आपका मेष अथवा कन्या लग्न है और मंगल के ऊपर से राहु का गोचर हो रहा हो |

यदि आपका वृषभ और सिंह लग्न है और गुरु के ऊपर से राहु का गोचर हो रहा हो |

यदि आपका मिथुन व कर्क लग्न है शनि के ऊपर से राहु का गोचर हो रहा हो |

तुला व मीन लग्न हो और शुक्र के ऊपर से राहु का गोचर हो रहा हो |

वृश्चिक या कुंभ लग्न हो तथा बुध के ऊपर से राहु का गोचर हो रहा हो |

धनु लग्न में चंद्रमा के ऊपर से तथा मकर लग्न में सूर्य के ऊपर से राहु का गोचर हो रहा हो तो यह समय आपके लिए अशुभता लिए हुए होगा |

 

शुक्रवार, 28 जुलाई 2023

के एन राव जी से साक्षात्कार (अंतिम भाग)

 


प्रश्न: तो क्या ज्योतिष के उपाय बेकार होते हैं?

श्री रावः मैं ऐसा नहीं कहता। मेरा मानना है कि सभी धर्मों में अपने अनुसार तकलीफ दूर करने के उपाय होते हैं और उपायों का फल स्वयं करने से ही मिलता है। किसी ज्योतिषी को पैसा देकर अपने या अपने रिश्तेदारों का भाग्य बदलने के लिए उपाय करने का ठेका दे दिया जाए तो उसका असर नहीं होता। पंडित जी ईश्वर तो हैं नहीं कि आपका भाग्य बदल देंगे। गुप्तकाशी के एक संन्यासी थे। उन्हें सब भगवान कहा करते थे। उनका कहना था जब कोई ब्राह्मण अपनी फीस मांगता है तो वह बनिया या महाजन हो जाता है। शनि को अनुकूल बनाने के लिए हनुमान चालीसा का पाठ सबसे सरल उपाय है। ज्योतिषी के पास जाओ तो अपना रोना मत रोओ और न ही अपने सभी पत्ते खोलो। ऐसे कर्मकांडी ब्राह्मण आज नहीं हैं जो मनोयोग और निःस्वार्थ भावना से किसी के लिए कुछ करें। 1931 की जनगणना में कर्मकांडी ब्राह्मणों की संख्या कुल हम जनसंख्या का तीन प्रतिशत थी। अब पता नहीं यह संख्या घटकर कितनी रह गई है

एक रोचक घटना है। 1986 में जब राजा दिनेश सिंह बीमार पड़े तो राजा आनंद सिंह ने एक ज्योतिषी की मदद ली। उनके बीमार होने की जानकारी केवल राजा आनंद सिंह, मुझे और परिवार के कुछ सदस्यो को ही थी कुछ विशेष कारणों से उनकी बीमारी को गुप्त रखा गया था। गांव के उस पंडित ने कुश के आसन पर बैठ कर उपाय किया। जिस मनोयोग से उसने उपाय किया, उसके बाद गांव में ही उसे आभास हो गया कि राजा दिनेश सिंह को कुछ नहीं होगा। उसने संदेश भेजा कि अब सब ठीक हो जाएगा और राजा दिनेश सिंह ठीक हो गए। बाद में फिर मंत्रिमंडल में शामिल हुए। 1993 में वह फिर बीमार पड़े, लेकिन इस बार अनुष्ठान सफल नहीं हो पाया। अनुष्ठान तभी सफल होगा जब अनुष्ठान करने वाला निःस्वार्थ भाव से उसे करे। उसे किसी प्रकार का लालच न हो। 1978 से हम कुछ लोग मिल कर विष्णु सहस्त्रनाम और नारायण कवच का पाठ करते आए हैं। मेरे एक मित्र श्री मदनगोपाल अरोड़ा कनाडा में मृत्युशैया पर थे। अरोड़ा जी ने बताया कि उन्होंने यमदूत को आते हुए देखा, लेकिन वह उन्हें लिए बगैर वापस लौट गया। हमने उनके लिए सामूहिक पाठ किया और वह मृत्युशैया से उठ कर स्वस्थ हो गए ।

प्रश्न: आप बचपन से ज्योतिष का अध्ययन कर रहे हैं। ज्योतिष पर आपका अनुभव क्या है? यह किस प्रकार मानव जीवन के लिए उपयोगी है?

श्री रावः मेरा अनुभव है कि ज्योतिष को अंधविश्वासों से जोड़कर दुःख दूर करने के उपायों के नाम पर लोगों को ठगा और लूटा जाता है। इसी से ज्योतिष जैसी पवित्र विद्या के प्रति लोगों का विश्वास समाप्त होता जा रहा है। सच्चा, ईमानदार और विद्वान ज्योतिषी लोगों के जीवन की परेशानियों को दूर करने के लिए मार्गदर्शक का काम करता है।

प्रश्न: क्या भविष्य के बारे में हर प्रकार की भविष्यवाणी की जा सकती है?

श्री रावः भारतीय विद्या भवन में 1987 से ज्योतिष का नियमित पाठ्यक्रम चलाते हुए अब तक हजारों लोगों को इस विद्या का ज्ञान उपलब्ध कराया गया है। लेकिन इसके बावजूद मेरा दावा है कि ज्योतिषी हर क्षेत्र में सही भविष्यवाणी नहीं कर सकते।

प्रश्नः एक ही स्थान पर एक ही समय पैदा हुए बच्चों का भविष्य अलग क्यू होता हैं ?

श्री रावः बच्चों की कुंडलियां अपने मां-बाप से आंतरिक रूप से जुड़ी होती हैं अर्थात् वे इंटरलिंक्ड होती हैं। बच्चे की कुंडली देखने से पूर्व माता-पिता की कुंडली भी देखनी चाहिए। उदाहरण के तौर पर राहुल गांधी की तुलना में सैंकड़ों ऐसे लोग भी हो सकते में सैंकड़ों ऐसे लोग भी हो सकते हैं जिनकी कुंडली राहुल गांधी की कुंडली से सशक्त हो सकती है लेकिन राहुल गांधी की कुंडली के साथ उनके परिवार से जुड़ी डाइनेस्टी का भी ध्यान रखना होगा।

इंग्लैंड में जॉर्ज पंचम और एक लुहार के घर एक ही समय में बेटे पैदा हुए। उनका विवाह भी एक ही समय पर हुआ। उनकी कुंडलियां एक जैसी होने के बावजूद जॉर्ज पंचम का बेटा इंग्लैंड के सम्राट की गद्दी का वारिस बना क्योंकि वह शाही परिवार का हिस्सा था।

प्रश्न: आप ज्योतिष का उद्देश्य क्या मानते हैं?

श्री रावः ज्योतिष का उद्देश्य लोगों का मार्गदर्शन करना है और उन्हें उनके जीवन का उद्देश्य बताना है। ज्योतिषी भगवान नहीं है और न ही वह किसी का प्रारब्ध बदल सकता है। वह सही मार्गदर्शन कर सकता है जिससे किंकर्तव्यविमूढ़ व्यक्ति को सही दिशा मिल सके। एक घटना बताता हूं। मेरी शिष्या अखिला के पास एक महिला अपने बेटे की जन्मपत्री लेकर आई। वह लड़का शक्तिशाली है और चंचल भी है। उसकी शैतानियों से उसके मां-बाप परेशान रहते थे। अखिला ने उस लड़के की कुंडली देख कर उसकी मां को परामर्श दिया कि वह अपने बेटे को मार्शल आर्ट का प्रशिक्षण दिलाए। मां ने अखिला की बात मान कर अपने बेटे को मार्शल आर्ट का प्रशिक्षण दिलाया। उसके बाद तो लड़के ने अनेक पुरस्कार जीते। वह अनुशासित हो गया और पढ़ाई में भी उसका मन लगने लगा।

इसी प्रकार से जवाहर लाल नेहरु यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली एक लड़की की कुंडली देख कर मैंने उसे परामर्श दिया कि वह विदेश जा कर अपना कैरियर बनाए। उसने चीनी भाषा सीखी। उसने एक विदेशी से विवाह किया और अब वह विदेश में बहुत अच्छा काम कर रही है।

प्रश्नः कुल मिला कर वर्तमान ज्योतिष पर क्या टिप्पणी की जा सकती है?

श्री रावः ज्योतिष नकारात्मक हो गया है, सकारात्मक नहीं रह गया है। ज्योतिषियों के पास तीन-चार हथियार हैं जिनसे वे आम जनता को उल्लू बनाकर उन्हें लूटते हैं। इनमें शनि की साढ़ेसाती, पूर्ण-कालसर्प योग, अर्ध-कालसर्प योग जैसे तरीके शामिल हैं। ये सब निराधार हैं। पराशर से लेकर वराहमिहिर या अन्य किसी बड़े प्रामाणिक ज्योतिष विद्वान के किसी ग्रंथ में इनका उल्लेख नहीं मिलता। इसलिए मुझे ये सब निराधार और आम जनता को लूटने के लिए ज्योतिषियों के हथकंडे ही लगते हैं। ज्योतिषी भाग्य नहीं बदल सकता, वह केवल मार्गदर्शन कर सकता है। यदि कोई व्यक्ति विद्वान ज्योतिषी के मार्गदर्शन में अपने जीवन को आगे बढ़ाता है तो उसके जीवन में होने वाली तरक्की से उसे लगता है कि ज्योतिषी ने उसके भाग्य को बदल दिया। जबकि याद रखना चाहिए कि ज्योतिषी ब्रह्मा नहीं है।

गुरुवार, 27 जुलाई 2023

सूर्य सक्रांति का ज्योतिष मे प्रयोग


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https://youtu.be/x9XwvZiFX00

सूर्य संक्रांति के दिन कितने बजे बदल रहे हैं उसी समय चंद्र का गोचर नक्षत्र देखें |

चंद्र का गोचरिय नक्षत्र संक्रांति के समय का देखें इसके पीछे वाला नक्षत्र लिखले |

उदाहरण के लिए सूर्य सक्रांति के समय चंद्र नक्षत्र अनुराधा होतो इससे पहले वाला नक्षत्र विशखा होगा जिसे “आ” माना जाएगा |

आपका अपना जन्म नक्षत्र देखें माना आपका जन्म नक्षत्र भरणी है इसे “ब” माने |

अब इस “आ” से “ब” तक गिने यानी विशाखा को एक मानकर अपने जन्म नक्षत्र भरनी तक गिने अर्थात अनुराधा से भरनी तक गिने | अनुराधा से ज्येष्ठा मूल श्रवण से चलते हुए भरणी 14वा नक्षत्र आएगा |

जिसका परिणाम कुछ नया पुरस्कार प्राप्त होना अथवा कोई नया काम होना हैं |

उत्तर इस प्रकार से देखना है |

1,2,3 आने पर जातक को सफर पर दूसरी जगह जाना पड़ेगा |

4,5,6,7,8,9 आने पर अगले 30 दिन सुखमय बीतेंगे |

10,11,12 आने पर कुछ परेशानी होगी |

13,14,15,16,17,18 आने पर कुछ नया उपहार मिलेगा अर्थात कुछ नया कर्म होगा |

19,20,21 आने पर नुकसान होगा |

22,23,24,25,26,27 आने पर कुछ आर्थिक लाभ होगा |

इस प्रकार से आप सक्रांति से आने वाले महीने का अनुमान लगा सकते हैं |

उदाहरण के लिए दिल्ली मे इस महीने 17 जुलाई को सुबह 4:34:22 मे सूर्य ने कर्क राशि मे प्रवेश किया था अर्थात कर्क संक्रांति थी उस समय चंद्रमा चंद्रमा पुनर्वसु नक्षत्र मे था उसके पहले वाला नक्षत्र आर्द्र हुआ | इसे आ माना

मान लेते हैं हमे जिसके लिए देखना हैं उसका जन्म नक्षत्र रेवती हैं इसे ब लिखेंगे |

अब हमें आर्द्र से रेवती तक गिनना हैं जो की 22वा नक्षत्र हुआ |

जिसका परिणाम आर्थिक लाभ होना आया हैं अर्थात इस माह जातक को धन का लाभ होगा |

के एन राव जी से साक्षात्कार ...2

 


प्रश्नः शनि के राशि बदलने से क्या प्रभाव होता है?

श्री रावः शनि के राशि परिवर्तन का प्रभाव मेदिनी ज्योतिष में देखा जाता है। मेदिनी ज्योतिष में शनि के राशि बदलने का प्रभाव बहुत प्रत्यक्ष और व्यापक है। शनि का किसी नक्षत्र विशेष में प्रवेश मेदिनी ज्योतिष का मुख्य आधार होता है। जैसे 'कन्या' राशि में 'हस्त' नक्षत्र में शनि का जब प्रवेश हुआ था, उसके आधार पर किसी विख्यात अभिनेता के लिए मुसीबत आने की भविष्यवाणी की गई थी। उस वक्त सदी के नायक अमिताभ बच्चन के साथ गंभीर दुर्घटना घटी थी। विशाखा नक्षत्र में शनि का प्रवेश होने से पूर्व मैंने भविष्यवाणी की थी कि वह वक्त श्रीमती इन्दिरा गांधी के लिए भारी होगा। जून 1984 में की गई उस भविष्यवाणी का भयावह रूप देश को अक्टूबर 1984 में देखने को मिला जब श्रीमती गांधी की हत्या कर दी गई ।

प्रश्न: 15 नवम्बर, 2011 को शनि के तुला राशि प्रवेश से सैंकड़ों लोगों की कुंडलियों में शनि की साढ़ेसाती शुरू हो चुकी है लोग चिन्तित हैं कि उनके जीवन में अगले साढ़े सात साल क्या होगा? क्या शनि के राशि परिवर्तन से हमेशा बुरा ही होता है?

श्री रावः ऐसा नहीं है कि शनि के राशि परिवर्तन से हमेशा बुरा ही होता है। यह धारणा गलत है। वैसे शनि के राशि परिवर्तन से लोगों के जीवन में कोई बड़ी उल्लेखनीय घटना या घटनाएं जरूर घटती हैं लेकिन वह अच्छी होंगी या बुरी इसकी भविष्यवाणी दशा-अंतर्दशा देख कर ही की जा सकती है। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की जब दूसरी साढ़ेसाती शुरू हुई तो वह प्रधानमंत्री बने। श्री मोरारजी देसाई अपने जीवन में जब पहली बार सरकार में आए तब उनकी पहली साढ़ेसाती शुरू हुई थी। उस समय अंग्रेजों का जमाना था। जब उनकी दूसरी साढ़ेसाती शुरू हुई तो वह महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने। तीसरी साढ़ेसाती में वह देश के प्रधानमंत्री बने । चौधरी चरण सिंह भी शनि की साढ़े साती में ही देश के प्रधानमंत्री बने थे। श्रीमती सोनिया गांधी की कुंडली में लग्न पर विवाद है लेकिन उनकी चन्द्र राशि " मिथुन " के बारे में कोई संदेह नहीं है। जब शनि ने 'मिथुन' राशि में प्रवेश किया था तो वह यूपीए की अध्यक्ष बनी थीं और विश्व की लौह महिलाओं की सूची में उनका नाम दर्ज हुआ था। परन्तु श्रीमती इन्दिरा गांधी की साढ़ेसाती का अनुभव अलग है। उनकी जब पहली साढ़ेसाती आई तो उनकी मां की मृत्यु हो गई। वह खुद तपेदिक से पीड़ित हो गईं। दूसरी साढ़ेसाती में भी दशा खराब थी इसलिए 1960 में उनके पति का स्वर्गवास हो गया और बाद में 1964 में उनके पिता की मृत्यु हो गई। जब दशा सुधरी तो वह श्री लाल बहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में शामिल हुईं और साढ़ेसाती समाप्त होने से पहले ही देश की प्रधानमंत्री बन गई।

प्रश्न: क्या शनि ग्रह केवल परेशानी पैदा करता है?

श्री रावः 1984 में नटवर सिंह मेरे पास आए थे। उनकी जन्मपत्री का अध्ययन करने पर पता चला कि उनके कर्म स्थान पर शनि का प्रभाव है। मैंने उनसे कहा कि वह चुनाव लड़ें। वह जीतेंगे और मंत्री भी बनेंगे। मैं खुद शनि की साढ़ेसाती में अखिल क्षेत्र में विख्यात हुआ। यह कहना उचित नहीं है कि शनि की साढ़े भारतीय प्रतियोगिता में सफल हुआ। दूसरी साढ़ेसाती में ज्योतिष के साती केवल परेशानी और समस्याएं लाती है। नेहरू और मोरारजी देसाई जैसे कई राजनीतिज्ञों के उदाहरण मिल जाएंगे जो शनि की साढ़ेसाती में शीर्ष पद पर पहुंचे। वास्तव में कोई ग्रह अच्छा या बुरा नहीं होता। ग्रहों का असर तो वही होता है जैसे मनुष्य के कर्म होते हैं। मनुष्य के कर्मों से ही उसे अच्छे-बुरे फल मिलते हैं इन ग्रहों के बारे में जो पौराणिक कथाएं हैं, उन्हें केवल कथा मानकर उनकी अवहेलना नहीं करनी चाहिए। यदि ऐसा करेंगे तो हम ज्योतिष के भविष्यवाणी करने के सिद्धान्त को नजरअंदाज कर देगे। शनि के असर से व्यक्ति एक से नाता तोड़ कर दूसरे से जोड़ सकता हैं | आध्यात्मिक जीवन में संसार के मोह का विनाश केवल शनि ही कर सकता है। शनि की मदद के बगैर बैरागी नहीं बना जा सकता | वैराग्य का कारक शनि होता है।

आज हम प्रजातंत्र की बात करते हैं। प्रजातंत्र का सबसे मुख्य ग्रह शनि है। शनि जनता का प्रतिनिधित्त्व करता है। शनि का प्रभाव क्या होगा, या किसी अन्य ग्रह का विशेष परिस्थितियों में क्या प्रभाव होगा यह बात दशा-अन्तर्दशा देख कर बताई जानी चाहिए। शनि जन्मकालीन चन्द्रमा से चतुर्थ में जाए तो 'कंटक शनि' होता है जिससे उत्तर भारत के लोगों में भय पैदा होता है, लेकिन यह कंटक शनि बेहतरीन कैरियर भी दे सकता है।

प्रश्नः लोग शनि, राहु-केतु आदि से बहुत भयभीत क्यों रहते हैं ?

श्री रावः शनि, राहु-केतु आदि ग्रहों के बारे में भी ज्योतिषियों ने ही भ्रान्तियां फैलाई हैं जिससे लोग उनकी जेबें भर सकें। असल में शनि को 'काल' कहते हैं और ज्योतिषी लोगों को बेवकूफ बनाने के लिए 'काल' का अर्थ 'मृत्यु' बताकर उसका सही अर्थ छुपा जाते हैं। वास्तव में 'काल' का अर्थ "समय" से भी है। लोगों को ज्योतिषी बताते हैं कि गोचर का शनि लग्न से सप्तम हो जाए शादी मत करो। मैं इसे नहीं मानता। इसी प्रकार गोचर के शनि का पंचम अथवा पंचमेश से संबंध हो जाए तो संतान का समय हो जाता हैं ऐसे ही शनि का दशम अथवा दशमेश से संबंध हो तो वह समय कार्यक्षेत्र में किसी विशेष घटना के घटने का होता है। लेकिन वह घटना अच्छी होगी अथवा खराब, इसकी भविष्यवाणी दशा-अन्तर्दशा देखने के बाद ही की जा सकती है।

बुधवार, 26 जुलाई 2023

के.एन. राव जी से साक्षात्कार ....1


ज्योतिषी भाग्य नहीं बदल सकता

वरिष्ठ पत्रकार श्रीकान्त शर्मा ने 'ज्योतिष' पर श्री के.एन. राव से महत्त्वपूर्ण बातचीत की थी जो विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई । उसी बातचीत के कुछ अंश आवश्यक संशोधन तथा संपादन के साथ पुनः प्रकाशित किए जा रहे हैं ।

प्रश्न: क्या ज्योतिष विज्ञान है? यदि हां, तो किस तरह? यदि नहीं, तो ज्यातिषियों की भविष्यवाणी पर क्यों विश्वास किया जाए ?

श्री रावः ज्योतिष निश्चित रूप से विज्ञान है, लेकिन विज्ञान की तरह इसकी भी सीमाएं हैं। विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में लगातार अनुसंधान चल रहे हैं जबकि ज्योतिष में ऐसा नहीं है । ज्योतिषी अनुसंधान करने की बजाय इसे धन कमाने का साधन बनाए हुए हैं । इसे अंधविश्वासों से जोड़ कर कष्ट दूर करने के उपायों के नाम पर लोगों को लूटा जाता है । इससे इस पवित्र विद्या के प्रति लोगों का विश्वास समाप्त होता जा रहा है । जहां तक इस बात का प्रश्न है कि एक ही कुंडली या घटना पर विद्वान ज्योतिषियों की भी अलग भविष्यवाणियां होती हैं तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं करना चाहिए । एक रोगी यदि कई डॉक्टरों के पास जाता है तो उनकी भी राय अलग-अलग ही होती है । विद्वान ज्योतिषी एकाग्रचित्त होकर किसी कुंडली का विश्लेषण कर कोई भविष्यवाणी करता है तो वह 90 प्रतिशत से अधिक सही हो सकती है ।

प्रश्नः यदि ज्योतिष विज्ञान है तो इसे देश के विश्वविद्यालयों में सुव्यवस्थित ढंग से क्यों नहीं पढ़ाया जाता ?

श्री रावः एनडीए के शासन के दौरान जब डॉ. मुरली मनोहर जोशी मानव संसाधन विकास मंत्री थे, तब विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा ज्योतिष को डिग्री के रूप में शामिल किया गया था, लेकिन उसे अदालत में चुनौती दी गई । मैंने ज्योतिषियों को उस संबंध में आगे आने के लिए कहा लेकिन कोई नहीं आया। मैंने सुप्रीम कोर्ट में अकेले खड़े होकर इस विषय को अदालत के सामने रखा सुप्रीम कोर्ट ने 22 मिनट तक मेरी बात सुनी और फैसला दिया कि जो विश्वविद्यालय इस विषय को कोर्स में शामिल करना चाहता है, कर सकता है ।

प्रश्नः ज्योतिष ग्रहों-नक्षत्रों व राशियों पर आधारित है परंतु ये तकलीफ कम कर सकते हैं पर दूसरी तरफ कहते हैं कि वे लूटते सब पृथ्वी से लाखों मील दूर हैं । फिर इनका हम पर असर कैसे होता हैं?

श्री रावः अंग्रेजी के 'प्लैनेट' शब्द को लेकर उसे हिन्दी में 'शनि की साढ़े साती' से डरा कर और 'मांगलिक दोष' दूर करने 'ग्रह' कह दिया गया है जबकि ज्योतिष में उन ग्रहों का प्रभाव नहीं के उपायों का नाम लेकर परेशान लोगों से हजारों रुपये ऐंठ लेते देखा जाता। शब्दकोश में 'ग्रह' का अर्थ है 'पकड़ना'

ज्योतिष में ग्रह लाखों मील दूर ब्रह्मांड में घूम रहे पिण्ड नहीं बल्कि, ग्रह का अर्थ 'कर्म' भी है । व्यक्ति के कर्मों का असर उस पर पड़ता है । यदि व्यक्ति के कर्मों को ग्रह नहीं मानते और आकाश में घूम रहे सूर्य-चंद्रमा को ज्योतिष में ग्रह मानते तो राहु-केतु कहां से आ गए । राहु-केतु का प्रयोग ज्योतिष में होता है, लेकिन वे पिण्ड नहीं हैं । पिछले जन्मों में किए गए कर्म व्यक्ति को भोगने ही पड़ते हैं और उसी के आधार पर व्यक्ति का प्रारब्ध होता है । नियति या प्रारब्ध व्यक्ति के संचित कर्मों के अनुसार होता है ।

महाभारत को पढ़ें तो उसमें स्पष्ट कहा गया है कि जिस प्रकार गायों के झुण्ड में बछड़ा अपनी मां को पहचान लेता है उसी प्रकार विगत जन्मों में किए गए कर्म अपने कर्त्ता को पहचान कर उस तक पहुंच जाते हैं । भीष्म ने महाभारत में कहा है कि पुरूषार्थ नहीं किया तो प्रारब्ध नहीं मिलेगा। जो भोगने के लिए है, उसे भोगना ही पड़ेगा ।

प्रश्न: कहते हैं कि समय से पूर्व और भाग्य से ज्यादा नहीं मिलता । फिर भविष्य के बारे में जानकर किसी व्यक्ति को क्या लाभ हो सकता है ?

श्री रावः व्यक्ति अतीत की स्मृति में, वर्तमान की उत्तेजना और भविष्य की अनिश्चितता के कारण ज्योतिषी के पास जाता है । भविष्य के बारे में जानने का लाभ यह है कि प्रारब्ध को समझकर कर्मों के शुभ फलों में वृद्धि और खराब फलों को कम किया जा सकता है । प्रारब्ध को पूरी तरह नहीं, कुछ हद तक बदला जा सकता है । प्रारब्ध में मिलने वाले फलों की सीमाएं कम-ज्यादा की जा सकती हैं । कुछ उपायों से तकलीफ थोड़ी 'घट' सकती है और यदि 'मिट' नहीं सकती है तो उसे सहने की शक्ति अवश्य मिल सकती है ।

प्रश्न: एक ओर आप कहते हैं कि ज्योतिषी उपाय बता कर तकलीफ कम कर सकते हैं पर दूसरी तरफ कहते हैं वे लूटते हैं ?

श्री रावः तथाकथित ज्योतिषी 'कालसर्प', 'शनि की ढैया',शनि इंसाढ़ेसाती से डरा कर और मागलिक दोष दूर करने के उपायो का नाम लेकर परेशान लोगो से हजारो रुपये ऐंठ लेते हैं । मैंने ज्योतिष के शास्त्रों का अध्ययन किया है लेकिन मुझे कहीं 'कालसर्प' का जिक्र नहीं मिला । मैंने कई ज्योतिषियों को चुनौती दी कि वे मुझे वह शास्त्र दिखाएं जिसमें कालसर्प दोष का उल्लेख हो । लेकिन किसी ने आज तक कालसर्प दोष के लिए कोई शास्त्र नहीं दिखाया। यहां तक कि प्रसिद्ध तिरूपति मंदिर से लगभग पचास किलोमीटर दूर काल हस्ती शिव मंदिर में भी मैं अपने कुछ साथियों के साथ गया जहां कालसर्प दोष दूर करने के लिए विशेष पूजा की जाती है। वहां भी मैंने उन ज्योतिषियों से उन शास्त्रों के बारे में जानना चाहा जिनमें कालसर्प दोष का उल्लेख है, लेकिन मुझे वहां भी किसी ने नहीं बताया । उनका कहना था कि जब लोग कालसर्प दोष दूर कराने के लिए खुद चल कर यहां आते हैं तो हमें क्या परेशानी है ।

वास्तव में ज्योतिष सांकेतिक होता है । यदि ज्योतिषी उपाय करके भाग्य बदल सकते होते तो वे ईश्वर ही न बन जाते ।

मैं कुछ उदाहरण देता हूं जिन्हें कोई नकार नहीं सकता। मैं आपको ऐसे लोगों के बारे में बता सकता हूं जिनकी कुंडली में तथाकथित कालसर्प योग' होने के बावजूद वे अपने जीवन में शीर्ष स्थान तक पहुंचे। मार्गरेट थैचर की तुला लग्न की कुंडली है और चतुर्थ भाव में मकर राशि में केतु और दशम भाव में कर्क राशि में राहु के मध्य सारे ग्रह हैं। पांचवें से नौवें घर में कोई ग्रह नहीं है। वह इंग्लैंड की प्रधानमंत्री बनीं। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू. बुश की कर्क राशि की कुंडली में केतु पंचम भाव में वृश्चिक राशि में है और राहु एकादश भाव में वृषभ राशि में है तथा सारे ग्रह राहु-केतु के मध्य द्वादश भाव से लेकर तृतीय भाव के बीच हैं। धीरूभाई अंबानी की धनु लग्न की कुंडली में भी राहु कुंभ राशि में तृतीय भाव में है और केतु नवम भाव में है। उन्हीं के बीच सारे ग्रह हैं। तीनों की कुंडली में काल सर्प दोष बताते हैं लेकिन तीनों ने अपने जीवनकाल में उच्च पद तथा प्रतिष्ठा को प्राप्त किया।

मंगलवार, 25 जुलाई 2023

ग्रहों की शान्ति हेतु सप्तवार व्रत

ग्रहों की शान्ति हेतु सप्तवार व्रत विधि यदि किसी जातक की जन्म कुण्डली में अशुभ ग्रह की स्थिति हो अथवा अशुभ ग्रह की दशा अन्तर्दशा चल रही हो तो निम्नलिखित विधि अनुसार अनिष्ट ग्रह की शान्ति हेतु व्रत रखने से कल्याण होगा ।

रविवार के व्रत की विधि समस्त कामनाओं की सिद्धि नेत्र रोग और कुष्ठादि चर्म व्याधियों के नाश एवं आयु व सौभाग्य की वृद्धि के लिए रविवार का व्रत किया जाता है । यह व्रत शुक्ल पक्ष के प्रथम रविवार से प्रारम्भ करके एक वर्ष पर्यन्त अथवा कम से कम बारह व्रत करें । व्रत के दिन केवल गेहूं की रोटी अथवा गुड़ से बना दलिया घी शक्कर के साथ भोजन करें । भोजन से पूर्व स्नानान्तर शुद्ध वस्त्र धारण करके "ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः" बीज मन्त्र का पाठ पांच माला करें । फिर रविवार की कथा पढ़ें । तत्पश्चात् सूर्य को गन्धाक्षत, लाल फूल, दूर्वायुक्त जल से निम्न मंत्र पढ़ते हुए अर्ध्य दें ।

नमः सहस्रकिरण सर्वव्याधि विनाशन ।

गृहाणार्घ्य मया दत्तं संज्ञया सहितो रवे ॥

फिर प्रदक्षिणा करके लाल चन्दन का तिलक लगाएं अन्तिम रविवार को हवन के पश्चात् ब्राह्मण दम्पत्ति को भोजन कराकर यथाशक्ति लाल वस्त्र फल पुष्पादि एवं दक्षिणा से प्रसन्न करें ।

सोमवार के व्रत की विधि - यह व्रत श्रावण, चैत्र, बैशाख, कार्तिक या मार्गशीर्ष के महीनों के शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार से प्रारम्भ करें । इस व्रत को पांच वर्ष, चौदह वर्ष अथवा सोलह सोमवार पर्यन्त श्रद्धा के साथ विधिपूर्वक करें । इस व्रत को चैत्र शुक्लाष्टमी तिथि आर्द्रा नक्षत्र सोमवार को अथवा श्रावण मास के प्रथम सोमवार को प्रारम्भ करने का विशेष महात्म्य है । व्रतारम्भ करने वाले स्त्री पुरुष को चाहिए कि प्रात:काल जल में कुछ काले तिल डालकर स्नान करें । स्नानान्तर "ॐ नमः शिवायआदि शिव मन्त्रों द्वारा तथा श्वेत फूलों, सफेद चन्दन, पंचामृत, अक्षत, सुपारी, फल, गंगाजल, बिल्व पत्रादि से शिव-पार्वती का पूजन करें और पूजनोपरान्त ब्राह्मण को दान दक्षिणा देकर स्वयं भोजन करें । भोजन एक समय नमक रहित होना चाहिये । व्रत का उद्यापन भी इन्ही उपरोक्त महीनों में करना श्रेयस्कर होता है । उद्यापन में दशमांश जप का हवन करके सफेद पदार्थ, दूध, दही, क्षीर, चांदी सफेद फलों का दान करना चाहिए । इस व्रत को करने से मानसिक शान्ति, धन पुत्रादि सुखों की प्राप्ति होती है तथा सर्व प्रकार के कष्टों की निवृत्ति होती है ।

 

मंगलवार के व्रत की विधि - सर्वप्रकार के सुख, रक्तविकार, शत्रुदमन, स्वास्थ्य रक्षा, पुत्र प्राप्ति के लिए मंगलवार का व्रत उत्तम हैं । यह व्रत शुक्ल पक्ष के प्रथम मंगलवार से प्रारम्भ प्रारम करके 21 सप्ताह तक अथवा यथा शक्ति जीवन पर्यन्त रखें । इस दिन व्रत में गेहूं और गुड़ सहित भोजन करें । भोजन नमक रहित एक समय ही करना चाहिए । इस व्रत से मंगल ग्रह के अरिष्ट दोष भी शान्त हो जाते हैं । व्रत में श्री हनुमान जी की लाल पुष्पों, फलों, लिए ताम्र वर्तन व नारियल द्वारा पूजा व दान करना चाहिए तथा हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए । भौम ग्रह की शान्ति के लिए' ॐ क्रां क्रीं, क्रौं सः भौमाय नमः' की 5 मालाएं करनी चाहिए और गुड़, पीले लड्डुओं व लाल वस्त्र दान करना चाहिए ।

बुधवार के व्रत की विधि - बुधवार का व्रत बुध ग्रह की शान्ति तथा धन, बुद्धि, विद्या और व्यापार में वृद्धि हेतु किया को प्रारम्भ का जाता है । यह व्रत विशाखा नक्षत्र कालीन बुधवार करके सात अथवा हर बुधवार का करें । व्रत के दिन स्नानोपरान्त हरे वस्त्र पहिनकर श्री विष्णु सहस्रनाम का पाठ तथा ग्रह शान्ति के लिए बीजमंत्र 'ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः' का पाठ करना चाहिए । इस दिन एक समय नमक रहित भोजन, घी, मूंग अथवा मूंग की दाल से बने मिष्ठान्न का दान करें तथा स्वयं भी इन्हीं वस्तुओं का बना भोजन करें,अन्तिम बुधवार मधुसर्पी, दधि और घृत के साथ हवन करें और हरे वस्त्र, दो फल और मूंग का दान करें । गाय को हरा घास डालें ।

वृहस्पतिवार के व्रत की विधि - यह व्रत गुरु ग्रह की शान्ति तथा वैवाहिक सुखों, विद्या, पुत्र संतान एवं धन प्राप्ति के लिए श्रेष्ठ है । यह व्रत शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरुवार को अनुराधा नक्षत्र हो उस दिन से प्रारम्भ करें । यह व्रत 13 मास अथवा सात मास तक रख सकते हैं । व्रत के दिन स्नानोपरान्त पीले वस्त्र, पीला यज्ञोपवीत धारण करके बृहस्पति की पूजा स्वयं अथवा श्रेष्ठ ब्राह्मण द्वारा करवानी चाहिए । पादुका, उपानह, छाता, कमण्डलु रखें, पीले रंग के पुष्प, चने की दाल, पीले कपड़े, पीला चन्दन, हल्दी व पीले चावल, लड्डू आदि का भोग लगाना चाहिए । दान करके ही स्वयं एक समय भोजन करें । नमक का प्रयोग न करें,इस दिन केले के वृक्ष का पूजन शुभ होता है । गुरु गुरवे नमः' मंत्र की 5 माला शान्ति के लिए 'ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः का जाप करें । उद्यापन में दशमांश भाग का 28 समिधा व मधु सर्पी, घृत, दधि के साथ हवन करना चाहिए ।

शुक्रवार के व्रत की विधि - यह व्रत धन, विवाह, संतानादि भौतिक सुखों को देने वाला है । श्रावण मास के प्रथम शुक्रवार को प्रारम्भ करने से विशेष रूप से लक्ष्मी की कृपा रहती है । व्रत के दिन स्नानोपरान्त सफेद वस्त्र धारण करके श्री लक्ष्मी देवी की धूप, दीप, श्वेत चन्दन, चावल, श्वेत पुष्प, चीनी, सुपारी से पूजा करके बच्चों में श्वेत मिठाई, क्षीर, फलादि बांट दें । ग्रह शान्ति के लिए 'ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः' की तीन माला का पाठ करें । स्वयं भी एक समय क्षीरादि श्वेत वस्तुओं का सेवन करें । नमक का प्रयोग ना करें । उद्यापनोपरान्त हवनादि के पश्चात् ब्राह्मण बालकों को क्षीर चावलादि से युक्त भोजन कराने तथा श्वेत वस्त्र, खाण्ड, चावल, चाँदी, फलादि फेद पदार्थों का दान करें ।

शनिवार के व्रत की विधि - यह व्रत शनि ग्रह की अरिष्ट शान्ति तथा जीर्ण रोग, शत्रुभय, आर्थिक संकट, मानसिक संताप का निवारण करता है, धन धान्य और व्यापार में वृद्धि करता है । यह व्रत शुक्ल पक्ष के शनिवार विशेषकर श्रावण मास लौह निर्मित शनि की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान कराकर धूप गंध,नीले पुष्प, फल और नैवेद्य आदि से पूजन करें और 'ॐ शं वा शनैश्चराय नमः' मंत्र की तीन माला का जाप करें, व्रत के दिन नीले वस्त्र धारण करें । एक वर्तन में शुद्ध जल, काले तिल, नीले उत पुष्प, लौंग, तेल, गंगाजल, दूध डालकर पश्चिम दिशा की ओर अभिमुख होकर पीपल वृक्ष की जड़ में डाल दें । तत्पश्चात् शिवोपासना करें । १९ शनिवार करने के बाद उद्यापन के समय की शनि स्त्रोत का पाठ जूते, जुराब, नीले रंग का वस्त्र, के चाकू और तेल से निर्मित वस्तुओं का दान किसी वृद्ध ब्राह्मण को दें और स्वयं भी उड़दादि तथा तैल निर्मित पदार्थों का सेवन करें ।

राहु की शान्ति के लिए भी शनिवार का व्रत उपरोक्त विधि अनुसार करें और दान में नारियल, भूरा कम्बल या वस्त्र दें तथा थवा पक्षियों को बाजरा डालना चाहिए । राहु के बीज मंत्र का पाठ करना श्रेयकर होता है ।

केतु ग्रह की शान्ति हेतु - केतु के बीज मंत्र 'ॐ स्त्रां स्त्रीं ना त्रौं सः केतवे नमः' की पांच माला का जाप तथा पूजा मंगलवार का के व्रत जैसे करनी चाहिए ।

सप्तधान्य (सतनाजा) - काले मा(उड़द), मूंग,गेहूं, चने, जौ, चावल, कंगनी ।

अष्टगंध - अगर, तगर, कस्तूरी, कुंकुम, कपूर, चन्दन,लौंग और गोरोचन ।