जन्म कुंडली के किस ग्रह से जातक के जीवन मे परेशानी आ रही है ? यह जानने के लिए जन्मपत्री के फलादेश में देखकर योग्य विद्वान बता सकता हैं की कौन सा ग्रह जातक विशेष को कब क्या कष्ट,रोग व बीमारी आदि दे सकता हैं उन्हे जानकर व उनके शान्त्यर्थ उपाय कर कर जातक विशेष को लाभ पहुंचाया जा सकता हैं |
ग्रहों की
प्रतिकूलता अथवा नेष्टफलप्रद
स्थिति में किन परेशानियों (रोगों) का सामना करना पड़ता है,इस
प्रतिकूलता की स्थिति में क्या उपाय
आदि करना चाहिए प्रस्तुत इस लेख में स्पष्ट किया गया है ।
सूर्य - यदि
ग्रहाधिपति सूर्य जन्माङ्ग या गोचर में अनुकूल न हो, तो जातक को
पित्तज्वर,प्लीहा,
सुजाक, गर्मी, अतिसार, सूखा
रोग, यकृत् विकार, सिर व
नेत्रपीड़ा, प्रमेह, आन्त्रशूल,
हृदयरोग, निसूचिका एवं दाहक ज्वर, विषज-व्याधियां
एवं हिक्का (हिचकी) आदि कष्टों का सामना करना पड़ता है ।
उपाय – 1)सूर्य
नेष्ट फलप्रद हो तो जातक को माणक रत्न 5 -7 रत्ती इतवार
वाले दिन सोने की अंगूठी में धारण करना चाहिए ।
2)रविवार के 11
व्रत (बिना नमक खाए) एवं इतवार को अन्न दान करना चाहिए एवं विद्वान् पण्डित से 'आदित्य
हृदय' स्तोत्र का पाठ करायें ।
चन्द्र – चन्द्रमा
जन्माङ्ग या गोचर में नीच या क्रूर ग्रहों की सन्निधि में हो तो जातक शीत प्रकोप,
मोतीझरा, कफ-विकार, कुत्ता
खांसी, सूखी खांसी, दमा, अन्य
श्वास रोग, निमोनिया, मधुमेह, जलघात,
जलगण्ड, गण्डमाला, वमन,
क्षयरोग (T.B.), कफशूल, जलोदर, आमदोष,
आमातिसार आदि रोगों से कष्ट होता है ।
उपाय – 1)सोमवार
वाले दिन सफेद मोती 8 रत्ती चांदी की अंगूठी में गंगाजल/दूध
से धोकर धारण करें ।
2)सोमवार को
चन्द्र की होरा में चांदी की अंगूठी धारण करें । चन्द्रमन्त्र का जाप अवश्य
करावें ।
मंगल – मंगल अथवा भौम नीच व पाप
ग्रहों के प्रभाव में हो तो कुष्ठ रोग, रक्तविकार,
दाद आदि चर्मरोग, खाज, खुजली, मस्सा,
छाजन, स्त्रियों को रक्त किंवा श्वेत प्रदर,
अग्निकाण्ड से हानि, अचानक दुर्घटना से कष्ट, रक्त-पित्तविकार,
नासूर, प्रमेह, अस्थिविकार व
हड्डियों की विकृति, बवासीर,भगंदर,रक्तातिसार
आदि रोग होते हैं ।
उपाय – 1)मंगल
ग्रह-शान्त्यर्थ मूंगा नग 4 से 8 रत्ती पीतल की
अंगूठी में मंगलवार को धारण करें ।
2)विद्वान्
पण्डित जी से भौम ग्रह शान्ति पाठ कराएं एवं गाय को 11
मंगलवार गुड खिलाएं ।
बुध – बुध ग्रह
नेष्ट फलप्रद हो तो मानसिक विकार, शीतप्रकोप, हृद्रोग,
पागलपन, मिर्गी (अपस्मार), जलोदर,
पेशाब सम्बन्धित परेशानी, वायुविकार,
जिह्वारोग, वमन, कफ़रोग व
सन्निपात आदि से परेशानी संभव है ।
उपाय – 1)बुधवार
को पन्ना नग 3/6 रत्ती सोने या सीसे की अंगूठी में विधिपूर्वक
धारण करें ।
2)किसी विद्वान्
से बुधमन्त्र जाप करायें एवं हरा घास प्रत्येक बुधवार को गायों को डालें ।
गुरु - देवगुरु
बृहस्पति नेष्टस्थिति में हो तो गठिया, वायुरोग,
उदरविकार, अनावश्यक चर्बी वृद्धि (मोटापा),
आन्त्ररोग, राजयक्ष्मा, श्वास,
कास, हृदयरोग, पीलिया, वायुरोग,
आमवात रोग आदि से व्यक्ति परेशान रहता है ।
उपाय – 1)सोने
की अंगूठी में पीला पुखराज 3 से 5 रत्ती वीरवार
के विधिवत् धारण करें ।
2)पीले फल अथवा पीले चावल दान
करें गुरु का मन्त्रजाप करना विशेष फलप्रद रहेगा ।
शुक्र -
दैत्याचार्य शुक्र के नेष्ट फलप्रद होने से हृदयगति अवरोध, नेत्र
कष्ट, वीर्य (शुक्राणु) दोष, प्रदर,
पौरुष निर्बलता, कुण्ठित बुद्धि, मानसिक
परेशानियां, कफ वास, दमा गुदा रोग, प्रमेहादि
गुप्त रोग, सुजाक, शोथ, वीर्यक्षय,
गुल्म, गर्भाशय-शूलादि रोगों से जातक परेशान
रहता है ।
उपाय – 1)शुक्र दोष
शान्त्यर्थ हीरा या बंग 3 से 5 रत्ती की
अंगूठी शुक्रवार को विधिपूर्वक धारण करें ।
2)दूध,अन्न,श्वेत वस्तु का दान एवं शुक्र मन्त्रजाप अवश्य करावें ।
शनि - शनि लम्बी
अवधि तक परेशान करता है । यदि शनि ग्रह मंगल या सूर्य के साथ मेल करे तो विशेष
सावधान रहें । शनिनेष्टफलप्रद हो तो गठिया व अन्य पैरालाईसिस, उदरविकार,
ऑपरेशन, कैंसर, विषबाधा,
सर्पदंश, राजयक्ष्मा, जलोदर,
मूर्छा, स्नायु विकार, प्लीहोदर,
कृमिरोग, हाथ,सिर आदि का काँपना आदि से जातक
कष्ट पाता है ।
उपाय – 1)शनिवार
को तेल में मुँह देखकर दान करें ।
2)काले घोड़े के
दाएं पावं की नाल की अंगूठी शनिवार को मध्यमा अंगुली में धारण करें या नीलम नग 3/5
रत्ती शनिवार को पहनें । शनि का मन्त्रजाप अवश्य कराएं ।
राहु - राहु का
मेल शनि - मंगल के साथ विशेष कष्टप्रद होता है । ऐसी स्थिति में जातक को मृगी
(अपस्मार), अस्थिरोग, टीबी., कुष्ठरोग, कैंसर,
गठिया, रीढ़ की हड्डी व उदरविकार, कफ़रोग,
त्वचारोग, हैजा आदि से परेशानी होती है ।
उपाय – 1)इस
कष्ट में कांसे की अंगूठी बुधवार सायंकाल में या शनिवार को दिन में धारण करें ।
2)राहु ग्रह - शान्त्यर्थ
मन्त्र जाप कराना न भूलें ।
केतु – केतु ग्रह
की विषमता के कारण रक्त - पित्तविकार, पित्तरोग,
पाण्डुरोग, प्रसवपीड़ा में परेशानी, निमोनिया,
श्वासरोग, कफ़, खांसी, मुखरोग,
बवासीर आदि रोगों से परेशानी होती है ।
उपाय – 1)शनिवार
एवं बुधवार को सायंकाल तेलदान करें एवं केतु मन्त्र जाप कराएं |
2)अयस्कान्त या
लौह निर्मित अंगूठी शनिवार को दूध से धोकर मध्यमा अंगुली में धारण करें ।
किस रत्न को किस धातु मे पहनना चाहिए इसके लिए शास्त्रो मे
निम्न श्लोक कहा गया हैं |
शार्ङ्गधर
संहिता के अनुसार
"ताम्र-तारार-नागश्च
हेम-बंगौ च तीक्ष्णकम् ।
कांस्यकं
कान्त-लौहं च धातवो नव ये स्मृताः ।।
सूर्यादीनां
ग्रहाणामेते कथिता नामभिः क्रमात् ।।"
तांबा, चांदी, पीतल, सीसा, सोना, बंग, लौह, कांसी, कान्त लौह ये नौ ग्रहों की धातुएं क्रम से अंकित हैं ।
ताम्र का सूर्य से, रजत
का चन्द्र से, पीतल या तांबा का मंगल से, सीसे
का बुध से, सोने का बृहस्पति से, बंग
का शुक्र से, लोहे का शनि, कांसे का राहु
एवं अयस्कान्त का केतु से सम्बन्ध होता है ।
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