शनिवार, 7 नवंबर 2009

पंचदिवसीय महापर्व दीपावली


पं. किशोर घिल्डियाल

दीपावली सनातन धर्म संस्कृति का सर्वाधिक लोकप्रिय पर्व है। धन-समृद्धि, खुशहाली तथा उल्लास का यह पर्व कार्तिक कृष्णपक्ष त्रयोदशी को शुरू होता है और कार्तिक शुक्ल द्वितीया तक चलता है। इसीलिए इसे पंचपर्व की संज्ञा दी गई है। इन पांच दिनों में अलग-अलग मनोकामनाओं की पूर्ति के उद्देश्य से अलग-अलग पर्व मनाए जाते हैं और अलग-अलग देवी देवताओं की पूजा आराधना की जाती है।
धनत्रयोदशी (धनतेरस)
यह पर्व मुख्यतः धन्वन्तरि की जयंती के रूप तथा अकाल मृत्यु से रक्षा हेतु मानाया जाता है। पौराणिक कथानुसार समुद्र मंथन के दौरान १४ रत्नों में एक आयुर्वेद के जनक धन्वन्तरि भी थे जो अमृतकलश लेकर प्रकट हुए थे। धनतेरस के दिन रोगमुक्त जीवन और दीर्घायु की प्राप्ति हेतु धन्वन्तरि के चित्र के समक्ष उनकी पूजा आराधना करना चाहिए और पूजा अर्चना के पश्चात्‌ इस श्लोक का यथाशक्ति पाठ करना चाहिए।
एक अन्य मत के अनुसार यह पर्व अकाल मृत्यु से रक्षा की कामना से भी मनाया जाता है। इसी उद्देश्य से इस दिन लोग आटे का चौमुखी दीया बनाकर घर के बाहर अन्न की ढेरी पर रख कर दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके निम्नलिखित श्लोक का पाठ करते हैं।
मृत्युना दण्डपाशाभ्यां कालेन श्यामया सहं।
त्रयोदश्यां दीपदानात्‌ सूर्यजः प्रीयता मम्‌॥
इस दिन नए बरतन खरीदना शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन बरतन खरीदने से घर में लक्ष्मी का वास होता है। इसीलिए समाज के अमीर-गरीब सभी वर्गों के लोग इस दिन एक न एक बर्तन जरूर खरीदते हैं।
नरक चतुर्दशी (छोटी दीवाली)
इस पर्व को रूप चतुदर्शी भी कहा जाता है। यह पर्व नरक की यातना से बचने और सन्मार्ग पर चलने की कामना से मनाया जाता है। इस दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करने वाले लोगों के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और नरक की यातना से उनकी रक्षा होती है। स्नान से पूर्व अपामार्ग (चिड़चिड़ी) की लकड़ी को ७ बार सिर के चारों ओर घुमाकर निम्नलिखित श्लोक का पाठ किया जाता है।
सितालोष्ठसमायुक्तं सकण्टकलिन्वत्‌।
हर पापमपामार्ग भ्राग्यमाणः पुनः पुनः॥
स्नान के पश्चात्‌ अपामार्ग की लकड़ी को दक्षिण दिशा में विसर्जित कर दिया जाता है। सायंकाल पूर्वाभिमुख होकर चौमुखी दीप का दान किया जाता है। दीपदान करते समय निम्नलिखित श्लोक का पाठ भी किया जाताहै।
दत्तो दीपंश्र्च्चतुदर्शमां नरक प्रीप्तयेभया।
चतुर्वर्तिसमायुक्तः सर्वपापान्मुक्तये॥
हनुमान जी का अवतार भी इसी दिन हुआ था। इसलिए श्रद्धालुजन इस दिन हनुमान मंदिर में चोला चढ़ाते हैं और हनुमान चालीसा व सुंदरकांड का पाठ करते हैं
दीपावली
दीपों का यह पर्व लक्ष्मीकृपा की प्राप्ति का सबसे बड़ा दिन माना जाता है। दीपावली से अनेक कथाएं जुड़ी हैं। एक कथा के अनुसार इस दिन भगवान्‌ विष्णु ने वामनावतार लेकर बड़े कौशल से दैत्यराज बलि से लक्ष्मी को आजाद कराया था तथा दैत्यराज को यह वरदान दिया था कि कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी, चतुर्दशी व अमावस्या के दिन पृथ्वी पर उसका राज्य रहेगा और इन तीन दिनों में जो कोई भी दीपदान कर लक्ष्मी का आवाहन करेगा, लक्ष्मी उस पर अवश्य कृपा करेंगी।
दीपावली पर्व के अवसर पर कमला जयंती मनाई जाती है। इसके अतिरिक्त इस दिन गणेश, लक्ष्मी, इंद्र, कुबेर, सरस्वती, बही खाता, तुला और दीपमालिका का पूजन व आरती करने का विधान है। इससे लक्ष्मी की पूरे वर्ष भर कृपा बनी रहे।
गोवर्धन पूजा
इस दिन भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाकर समस्त गोकुल वासियों को इंद्र के प्रकोप से बचाया था। तभी सेगावर्धन पूजा की शुरुआत हुई। इस दिन विशेषकर गाय, बैल आदि पशुओं की सेवा व पूजा अर्चना की जाती है तथा गोबर से आंगन लीपकर गोवर्धन पर्वत व श्रीकृष्ण भगवान की मूर्तियां बनाकर उनका पूजन कर निम्न मंत्र से प्रार्थना की जाती है और भोग लगाया जाता है।
÷÷गोवर्धन धराधर गोकुलत्राणकारक।''
बहुबाहुकृतच्छाय गवां कोटीप्पदोभवं।''
प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा करने से घर में धन धान्य, पशुधन समृद्धि, घी दूध आदि की कमी नहीं होती तथा अकाल नहीं पड़ता। इसे अन्नकूट पूजन भी कहा जाता है।
भाई दूज
इस पर्व को यम द्वितीया भी कहा जाता है। पौराणिक कथानुसार इस दिन यमराज अपनी बहन यमुना के निमंत्रण पर उनके घर गए, उनके हाथ से बना भोजन किया तथा उनसे वर मांगने को कहा। यमुना ने वर मांगा कि जो भाई आज के दिन अपनी बहन के घर जाकर भोजन करे उसकी रक्षा हो अर्थात वह अकाल मृत्यु को प्राप्त नहीं हो। यमराज ने उन्हें यह वरदान दिया और चले गए। तभी से यह पर्व भाई बहनों के पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस दिन प्रत्येक व्यक्ति को पवित्र नदी में स्नान अवश्य करना चाहिए तथा यम के दस नामों का इस श्लोक से स्मरण करना चाहिए।
यमो निहन्ता पितृ धर्मराजौ, वैवस्त्रतो
दण्डधरश्चकालः।
भूताधियो दन्तकृतानुसारी, कृतांत
एतदशनाममिर्जपेत्‌
स्नान के पश्चात बहन के घर जाकर भोजन करें व उसे यथाशक्ति भेंट इत्यादि दें। यह पर्व वस्तुतः भाई और बहन के प्रेम का प्रतीक है। इससे दोनों के बीच प्रेम प्रगाढ़ होता है और बहन का सौभाग्य तथा भाई की आयु बढ़ती है।

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