प्राय:पूजन करते व करवाते समय कर्मकांडी पंडित कुछ ऐसे शब्दों व सामग्रियो का प्रयोग करते हैं जो की समझ में नही आते हैं विशेषकर आजकल की युवा वर्ग के व्यक्तियो को जिससे कई बार अजीब सी स्थिति या परेशानी खड़ी हो जाती हैं इस विषय में कई बार मुझसे भी पूंछा जाता हैं की पंडित जी इस शब्द का क्या अर्थ हैं ? येः वस्तु क्या हैं ? इसका उपयोग व नाम क्या हैं ?आदि यह सभी शब्द आप मंत्र जप,देवपूजन,अर्चन तथा उपासना के सम्बन्ध में प्रयुक्त होते हुए सुनते हैं
प्रस्तुत लेख में मैंने ऐसे कई शब्दों के अर्थ बताने का एक छोटा सा प्रयास किया हैं
त्रिधातु -सोना,चांदी व लोहा इन तीन धातुओ को त्रिधातु कहा जाता हैं
पञ्चधातु -सोना,चांदी,लोहा,ताम्बा व जस्ता पञ्च धातु कहलाते हैं
पंचोपचार -गंध,पुष्प,धुप,दीप तथा नैवैध द्वारा पूजन करने को पंचोपचार कहा जाता हैं
पंचामृत -दूध,दही,घृत(घी),मधु(शहद)तथा शक्कर इनके मिश्रण को पंचामृत कहा जाता हैं
पंचगव्य-गाय के दूध,दही,घी,मूत्र व गोबर इन्हे सम्मिलित रूप में पंचगव्य कहा जाता हैं
पंचांग-किसी वनस्पति के पुष्प,पत्र,फल,छाल व जड़ को पंचांग कहा जाता हैं
षोडशोपचार- आह्वान,आसन,पाद्य,अर्ध्य,आचमन,स्नान,वस्त्र,अलंकार,सुगंध,पुष्प,धुप,दीप,नैवेध, अक्षत,ताम्बुल तथा दक्षिणा इन सोलह वस्तुओ द्वारा पूजा करने को षोडशोपचार कहा जाता हैं
दशोपचार-पद्य,अर्ध्य,आचमन,मधुपक्र,गंध,पुष्प,धुप,दीप,नैवैध तथा दक्षिणा द्वारा पूजन करना दशोपचार कहलाता हैं
नैवैध -खीर,आदि मीठी वस्तुए
नवग्रह-सूर्य,चंद्र,मंगल,बुध,गुरु,शुक्र,शनि,राहू व केतु
नवरत्न-माणिक्य,मोत्ती,मूंगा,पन्ना,पुखराज,हीरा,नीलम,गोमेद व लहसुनिया
गंधत्रय-सिन्दूर,हल्दी व कुमकुम
दशांश-दसवा भाग
आसन -जिस वस्तु के ऊपर बैठा जाता हैं उसे आसन कहते हैं, बैठने के ढंग को भी आसन कहा जाता हैं
भोजपत्र-एक विशेष वृक्ष की छाल जिस पर यन्त्र आदि बनाये जाते हैं
अस्टधातु -सोना,चांदी,लोहा,ताम्बा,जस्ता,रांगा,कांसा और पारा अस्टधातु कहलाते हैं
अस्टगंध-अगर,तगर,गोरोचन,केशर,कस्तूरी,श्वेत चंदन,लाल चंदन,और सिन्दूर (देव पूजन हेतु) अगर,लाल चंदन,हल्दी,कुमकुम,गोरोचन,शिलाजीत,जटामांसी,और कपूर(देवी पूजन हेतु) यह सभी वस्तुए अस्टगंध कहलाती हैं
प्रस्तुत लेख में मैंने ऐसे कई शब्दों के अर्थ बताने का एक छोटा सा प्रयास किया हैं
त्रिधातु -सोना,चांदी व लोहा इन तीन धातुओ को त्रिधातु कहा जाता हैं
पञ्चधातु -सोना,चांदी,लोहा,ताम्बा व जस्ता पञ्च धातु कहलाते हैं
पंचोपचार -गंध,पुष्प,धुप,दीप तथा नैवैध द्वारा पूजन करने को पंचोपचार कहा जाता हैं
पंचामृत -दूध,दही,घृत(घी),मधु(शहद)तथा शक्कर इनके मिश्रण को पंचामृत कहा जाता हैं
पंचगव्य-गाय के दूध,दही,घी,मूत्र व गोबर इन्हे सम्मिलित रूप में पंचगव्य कहा जाता हैं
पंचांग-किसी वनस्पति के पुष्प,पत्र,फल,छाल व जड़ को पंचांग कहा जाता हैं
षोडशोपचार- आह्वान,आसन,पाद्य,अर्ध्य,आचमन,स्नान,वस्त्र,अलंकार,सुगंध,पुष्प,धुप,दीप,नैवेध, अक्षत,ताम्बुल तथा दक्षिणा इन सोलह वस्तुओ द्वारा पूजा करने को षोडशोपचार कहा जाता हैं
दशोपचार-पद्य,अर्ध्य,आचमन,मधुपक्र,गंध,पुष्प,धुप,दीप,नैवैध तथा दक्षिणा द्वारा पूजन करना दशोपचार कहलाता हैं
नैवैध -खीर,आदि मीठी वस्तुए
नवग्रह-सूर्य,चंद्र,मंगल,बुध,गुरु,शुक्र,शनि,राहू व केतु
नवरत्न-माणिक्य,मोत्ती,मूंगा,पन्ना,पुखराज,हीरा,नीलम,गोमेद व लहसुनिया
गंधत्रय-सिन्दूर,हल्दी व कुमकुम
दशांश-दसवा भाग
आसन -जिस वस्तु के ऊपर बैठा जाता हैं उसे आसन कहते हैं, बैठने के ढंग को भी आसन कहा जाता हैं
भोजपत्र-एक विशेष वृक्ष की छाल जिस पर यन्त्र आदि बनाये जाते हैं
अस्टधातु -सोना,चांदी,लोहा,ताम्बा,जस्ता,रांगा,कांसा और पारा अस्टधातु कहलाते हैं
अस्टगंध-अगर,तगर,गोरोचन,केशर,कस्तूरी,श्वेत चंदन,लाल चंदन,और सिन्दूर (देव पूजन हेतु) अगर,लाल चंदन,हल्दी,कुमकुम,गोरोचन,शिलाजीत,जटामांसी,और कपूर(देवी पूजन हेतु) यह सभी वस्तुए अस्टगंध कहलाती हैं
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