व्रत करने के नियम -व्रत करने वाले व्यक्ति को क्रोध,लोभ,मोह,आलस्य,चोरी,ईर्ष्या आदि नही करनी चाहिए |व्रती को क्षमा,दया,दान,शौच,इन्द्रिय निग्रह देव पूजा,हवन और संतोष से काम करना उचित व आवश्यक हैं |
-व्रती को आचमन करना ज़रूरी होता हैं नहाते-धोते, खाते- पीते,सोते,बाहर से आने पर,छींक लेते समय यदि आचमन किया हुआ हो तो भी दुबारा आचमन करना चाहिए |यदि जल ना मिले तो अपने दाये कान का स्पर्श कर लेना चाहिए| आचमन हाथ के पौरुओ को बराबर करके हाथ को गाय के कान जैसा बनाकर करना चाहिए |
-किसी विपत्ति,रोग,यात्रा के कारण यदि स्वयं धर्म-कर्म कर पाने में असमर्थ हो तो वायु पुराण के अनुसार पति-पत्नी,पुत्र,भाई,पुरोहित,अथवा मित्र को अपना प्रतिनिधि बनाकर उससे धर्म कर्म व व्रत करवाया जा सकता हैं| यदि इनमे से कोई भी उपलब्ध ना हो तो यह काम किसी ब्राह्मण से भी करवा सकते हैं |
-व्रत में,तीर्थयात्रा में,अध्ययन काल में तथा श्राद्ध में दुसरे का अन्न लेने से जिसका अन्न होता हैं उसी को पुण्य फल प्राप्त होता हैं, अतः अन्न स्वयं का ही प्रयोग करे |
-बहुत दिनों में समाप्त होने वाले व्रत का पहले संकल्प कर लिया हो तो उसमे सूतक व पातक नही लगता हैं|
-बड़े व्रतों का आरम्भ करने पर स्त्री रजस्वला हो जाए तो उसमे भी कोई दोष नही माना जाता हैं |
-व्रत काल में वायु के निकल जाने पर,किसी भी जानवर के छू जाने पर,रोने,हंसने,क्रोध करने व झूठ बोलने पर जल का स्पर्श करना आवश्यक होता हैं|
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