बुधवार, 14 अक्टूबर 2009

अष्ट सिद्दी व नव निधि

हमारे ग्रंथो में" अष्ट सिद्दियो" व" नव निधियो "के बारे काफी कुछ कहा गया हैं|पुरातन काल से यह माना जाता हैं की धन यानि" अर्थ" के बिना जीवन के किसी भी आयाम को सार्थक रूप देना सम्भव नही हैं| इसलिए धन अर्थात" लक्ष्मी" को धर्म के बाद दूसरा स्थान दिया गया हैं|शास्त्रों में बताया गया हैं की प्रत्येक व्यक्ति को" श्री" संपन्न होना ही चाहिए जिसके लिए हर व्यक्ति प्रयत्नशील भी रहता हैं, आईये इस दीपावली पर आपको इसी से सम्बंधित अष्ट सिद्धियो व नव निधियो के बारे में अवगत कराये|

अष्ट सिद्दिया -

अणिमा-इस के सिद्द होने पर व्यक्ति सूक्ष्म रूप का होकर कही भी आ जा सकता हैं|

महिमा -इससे साधक अपने आकार को कई गुना बड़ा कर सकता हैं|

गरिमा-इससे व्यक्ति अपने को जितना चाहे भारी बना सकता हैं|

लघिमा -इससे साधक अपने को जितना चाहे हल्का बना सकता हैं|

प्राप्ति -इसके सिद्ध होने पर इच्छित पदार्थ की प्राप्ति होती हैं|

प्राकाम्य -इसके सिद्द होने पर व्यक्ति पृथ्वी के भीतर जा सकता हैं व आकाश में उड़ सकता हैं|

ईशित्व -इसके सिद्द होने पर सब पर शासन करने की सामर्थता आती हैं|

वशित्व -इसके सिद्द होने पर दुसरो को वश में किया जा सकता हैं|

इन सभी सिद्दियो का प्राप्ति काफी दुष्कर हैं तथा यह माना जाता हैं की केवल भगवान हनुमान जी को यह सिद्दिया उनकी माता अंजनी के वरदान से मिली थी जिसका उल्लेख इस श्लोक में किया गया हैं|
अष्ट सिद्दी नव निधि के ज्ञाता(दाता)|
अस वर दीन जानकी माता||

नव निधिया
नौ निधियों में केवल खर्व निधि को छोड़कर शेष आठ निधिया पद्मिनी नामक विद्या के सिद्ध होने पर प्राप्त हो जाती हैं परन्तु इन्हे प्राप्त करना भी काफी दुष्कर हैं|

पद्म निधि- यह सात्विक प्रकार की होती हैं जिसका उपयोग साधक के परिवार में पीढी दर पीढी चलती रहती हैं|

महापद्म निधि - यह भी सात्विक प्रकार की निधि हैं जिसका प्रभाव सात पीढियो के बाद नही रहता|

नील निधि -यह सत्व व राज गुण दोनों से मिश्रित होती हैं जी व्यक्ति को केवल व्यापार हेतु ही प्राप्त होती हैं|

मुकुंद निधि -राजसी स्वभाव वाली निधि जिससे साधक का मन भोग इत्यादि में ही लगा रहता हैं|एक पीढी बाद नष्ट हो जाती हैं|

नन्द निधि-यह रजो व तमो गुण वाली निधि होती हैं जो साधक को लम्बी आयु व निरंतर तरक्की प्रदान करती हैं|

मकर निधि -यह तामसी निधि हैं जो साधक को अस्त्र शास्त्र से सम्पन्नता प्रदान करती हैं परन्तु उसकी मौत भी इसी कारण होती हैं|

कच्छप निधि-इसका साधक अपनी सम्पति को छुपा के रखता हैं ना तो स्वयं उसका उपयोग करता हैं ना करने देता हैं|

शंख निधि -इस निधि को प्राप्त व्यक्ति स्वयं तो धन कमाता हैं परन्तु उसके परिवार वाले गरीबी में जीते हैं वह स्वयं पर ही अपनी सम्पति का उपयोग करता हैं|

खर्व निधि -इस निधि को प्राप्त व्यक्ति विकलांग व घमंडी होता हैं जो समय आने पर लूट के चल देता हैं|

सात्विक सिद्दिया प्राप्त होना मुश्किल हैं परन्तु किसी भी व्यक्ति के पास तामसिक निधिया आसानी से आ जा सकती हैं|

4 टिप्‍पणियां:

Arshia Ali ने कहा…

धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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Unknown ने कहा…

ज्ञानवर्धक .... धन्यवाद ....

Laxman Kumar Malviya,Advocate ने कहा…

आलेख जानकारीपरक एवं ज्ञानवर्धक है. . आभार

Laxman Kumar Malviya,Advocate ने कहा…

आलेख जानकारीपरक एवं ज्ञानवर्धक है. . आभार