शनिवार, 31 अक्टूबर 2009
व्रत कथाये
बुधवार, 28 अक्टूबर 2009
चार ऋण
पितृ ऋण-पुत्र के द्वारा श्राद करने से निवारण होता हैं इसलिए पुत्र की कामना की जाती हैं |
देवता ऋण -यज्ञ या हवन आदि करके निवारण होता हैं |
ऋषि ऋण -स्वाध्याय व तपस्या से निवारण होता हैं |
मनुष्य ऋण -परोपकार करने से निवारण होता हैं |
यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह हैं की इन सभी ऋणों का निवारण बिना गृहस्थ जीवन जीए नही हो सकता हैं| इसलिए गृहस्थ जीवन को सबसे बड़ा कहा गया हैं |.........इति
पाँच शत्रु
अज्ञान -अच्छे बुरे का भान ना होना
अभाव-जीवन में अति आवश्यक वस्तुओ का अभाव होना
आलस्य-कुछ काम इत्यादि ना करने की चाह होना
अन्याय -असंगत व्यव्हार सहना व करना
आसक्ति -किसी विशेष पर ज्यादा स्नेह रखना
इन स्थानों में बिना बुलाये जा सकते हैं
१)अपने माता- पिता के यहाँ
२)अपने गुरु के यहाँ
३)ईश्वर के सद्कार्यों में
४)मित्र के यहाँ प्रसंग इत्यादि होने पर ...............जारी
कुछ हमारे शास्त्रों से
गृहस्थ हेतु किए जाने वाले छह कर्म -शास्त्र कहते हैं की हर गृहस्थ व्यक्ति को यह छह कर्म अवश्य करने चाहिए जिससे उसे आने वाले भावी जीवन में परेशानियो का सामना करना ही ना पड़े |
दान्नेती गृहस्थानां षटकर्माणि दिने दिने
सोमवार, 26 अक्टूबर 2009
तिलक का महत्व
तिलक लगाने से एक तो स्वभाव में सुधार आता हैं व देखने वाले पर सात्विक प्रभाव पड़ता हैं|तिलक जिस भी पदार्थ का लगाया जाता हैं उस पदार्थ की ज़रूरत अगर शरीर को होती हैं तो वह भी पूर्ण हो जाती हैं इसी कारण से पंडित व गुणीजन व्यक्ति विशेष को देखकर उसे किस पदार्थ का तिलक लगाना हैं यह बताते हैं|
तिलक किसी खास प्रयोजन के लिए भी लगाये जाते हैं जैसे यदि मोक्षप्राप्ती करनी हो तो तिलक अंगूठे से,शत्रुनाशकरना हो तो तर्जनी से,धनप्राप्ति हेतु मध्यमा से,तथा शान्ति प्राप्ति हेतु अनामिका से लगाया जाता हैं |आमतौर से तिलक अनामिका द्वारा लगाया जाता हैं और उसमे भी केवल चंदन ही लगाया जाता हैं तिलक संग चावल लगाने से लक्ष्मी को आकर्षित करने का तथा ठंडक व सात्विकता प्रदान करने का निमित छुपा हुआ होता हैं |अतः प्रत्येक व्यक्ति को तिलक ज़रूर लगाना चाहिए .............................
रविवार, 25 अक्टूबर 2009
तुलसी नामाष्टक
एत नाम अष्टकं चैव स्त्रोत्र नामार्थ संयुतम |
य:पठेत तां सम्पूज्य सोभवमेघ फलं लभेत ||
शुक्रवार, 23 अक्टूबर 2009
छठ पूजा की बधाई
इस दिन के निकलने से पूर्व रात्रि को नदी,तालाब इत्यादि के किनारे सामूहिक पूजा की जाती हैं व जोश व उल्लास से भगवान् के गीत गाए,बजाये जाते हैं प्रात:सूर्य निकलने पर उसे अर्ध चढाकर फलो से,सत्तू की बनी मिठाई व गन्ने से भोग लगाया जाता हैं उसके बाद प्रसाद वितरण कर व्रत को तोडा जाता हैं|कही कही स्त्रिया यह व्रत पुत्र प्राप्ति के सन्दर्भ में भी रखती हैं परन्तु यह व्रत मुख्यतः सूर्य भगवान् से ही सम्बंधित माना जाता हैं |
बुधवार, 21 अक्टूबर 2009
नवम्बर माह का आंकलन
इस माह ५ रविवार व ५ सोमवार होंगे जिनसे कुछ राज्यों में राजनितिक उथल पुथल,फसल बरबाद,प्राकतिक आपदाये तथा शान्ति प्रयासो व धन्य धान्य में वृद्दि होगी|
शुरू में मंगल राहू व गुरु का समसप्तक योग विघटन व विस्फोटक योग बना रहा हैं जिससे जन धन की हानि सम्भव हैं|
१६ तारीख को सूर्य का शनि से दृष्ट होना तथा मंगल राहू का समसप्तक होना देश के पूर्वी राज्यों में हिंसा व हानि का संकेत देते हैं|
१७ तारीख को राहू केतु का बदलना शनि से चतुर्दश योग को जन्म देगा जिससे जिससे महंगाई बढेगी प्राकतिक प्रकोप बढेंगे जनता में बगावत होगी व अशांति पैदा होगी|
सोना व चांदी -३,१२, व १६ तारोख को तेजी तथा ८व १४ को मंदी दर्शाएंगे|
शेयर मार्केट -५,१०,16,२६,३० को बढ़त तथा १९,20 को घाटा दर्शायेगा
राशियो का भविष्य -सामान्य -मेष,मिथुन,कन्या, तुला,वृश्चिक
मिश्रित -कर्क,कुम्भ
लाभदायक -वरिश,सिंह,धनु,मकर,व मीन
इस माह की भविष्यवाणी -किसी बड़े खिलाड़ी को चोट लगने के आशार नज़र आ रहे हैं|
रविवार, 18 अक्टूबर 2009
शुभकामनाये
जिन व्यक्तियो की बहने हैं उन्हें भईया दूज के दिन अपनी बहनों के घर पर भोजन करना चाहिए तथा बहनों को भेंट व उपहार आदि देने चाहिए माना जाता हैं की ऐसा करने से उन्हें अकाल मृत्यु का सामना करना नही पड़ता ऐसा हमारे शास्त्रों में भी वर्णित हैं की इस दिन यमुना नदी के भाई यमराज जी ने उनके घर उनके निमंत्रण पर भोजन किया था तथा उनके वरदान मांगने पर उन्हें यह वरदान दिया था की कोई भी भाई अगर इस दिन अपनी बहन के घर भोजन कर उसे भेंट आदि देगा व यमुना नदी पर स्नान करेगा उसे यमराज अकाल मृत्यु से मुक्त कर देंगे तभी से यह प्रथा चली आ रही हैं
शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2009
सम्पूर्ण कार्यसिद्दी हेतु होरा मुहूर्त
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार एक अहोरात्र (दिन-रात)में २४ होराएँ होती हैं जिन्हें हम २४ घंटो के रूप में जानते हैं जिसके आधार पर हर एक घंटे की एक होरा होती हैं जो किसी ना किसी ग्रह की मानी जाती हैं|प्रत्येक वार की प्रथम होरा उस ग्रह की होती हैं जिसका वो वार होता हैं जैसे यदि रविवार हैं तो पहली होरा सूर्य की ही होगी तथा २४ वी होरा अगले दिन सूर्योदय के साथ समाप्त होती हैं|
होराओ का क्रम- प्रत्येक ग्रह की पृथ्वी से जो दुरी हैं उस हिसाब से ही होरा चक्र बनाया गया हैं आईये देखते हैं की होरा कैसे देखी जातीं हैं|मान लेते हैं की हमें रविवार के दिन किसी भी ग्रह की होरा देखनी हो तो हम उसे इस प्रकार से देखेंगे|
दूसरी होरा -शुक्र ग्रह की होगी
तीसरी होरा -बुध ग्रह की होगी
चौथी होरा-चंद्र ग्रह की होगी
पांचवी होरा -शनि ग्रह की होगी
छठी होरा -गुरु ग्रह की होगी
सातवी होरा -मंगल ग्रह की होगी
विभिन्न ग्रहों की होरा में कुछ निश्चित कार्य किए जाए तो सफलता निश्चित ही प्राप्त होती हैं |
सूर्य की होरा -सरकारी नौकरी ज्वाइन करना,चार्ज लेना और देना,अधिकारी से मिलना,टेंडर भरना व मानिक रत्न धारण करना|
चंद्र की होरा -यह होरा सभी कार्यो हेतु शुभ मानी जाती हैं |
मंगल की होरा -पुलिस व न्यायालयों से सम्बंधित कार्य व नौकरी ज्वाइन करना, जुआ सट्टा लगाना,क़र्ज़ देना, सभा समितियो में भाग लेना,मूंगा एवं लहसुनिया रत्न धारण करना|
बुध की होरा -नया व्यापार शुरू करना,लेखन व प्रकाशन कार्य करना,प्रार्थना पत्र देना,विद्या शुरू करना,कोष संग्रह करना,पन्ना रत्न धारण करना |
गुरु की होरा -बड़े अधिकारियो से मिलना,शिक्षा विभाग में जाना व शिक्षक से मिलना,विवाह सम्बन्धी कार्य करना,पुखराज रत्न धारण करना |
शुक्र की होरा -नए वस्त्र पहनना,आभूषण खरीदना व धारण करना,फिल्मो से सम्बंधित कार्य करना ,मॉडलिंग करना,यात्रा करना,हीरा व ओपल रत्न पहनना|
शनि की होरा -मकान की नींव खोदना व खुदवाना,कारखाना शुरू करना,वाहन व भूमि खरीदना,नीलम व गोमेद रत्न धारण करना|
इस प्रकार विभिन्न ग्रह की होरा में विभिन्न कार्य सफलता हेतु किए जा सकते हैं |
गुरुवार, 15 अक्टूबर 2009
दीपावली की शुभकामनाये
दीपमालाओ की अनोखी ज्योति इष्ट्देवो की मंगल स्तुति|
और पुष्पों के अनेक हार, लाये लक्ष्मीजी को आपके द्वार ||
यश सदैव तिलक करे,समृद्दी की सतत् सरिता बहे|
प्रियजनों का साथ रहे,संग बुजुर्गो का आर्शीवाद रहे ||
आपके घर समृद्दी छाये, संग गणेशजी के श्रीलक्ष्मी आए|
इस दीपावली की आपको हमारी लख लख शुभकामनाये ||
बुधवार, 14 अक्टूबर 2009
अष्ट सिद्दी व नव निधि
अष्ट सिद्दिया -
अणिमा-इस के सिद्द होने पर व्यक्ति सूक्ष्म रूप का होकर कही भी आ जा सकता हैं|
महिमा -इससे साधक अपने आकार को कई गुना बड़ा कर सकता हैं|
गरिमा-इससे व्यक्ति अपने को जितना चाहे भारी बना सकता हैं|
लघिमा -इससे साधक अपने को जितना चाहे हल्का बना सकता हैं|
प्राप्ति -इसके सिद्ध होने पर इच्छित पदार्थ की प्राप्ति होती हैं|
प्राकाम्य -इसके सिद्द होने पर व्यक्ति पृथ्वी के भीतर जा सकता हैं व आकाश में उड़ सकता हैं|
ईशित्व -इसके सिद्द होने पर सब पर शासन करने की सामर्थता आती हैं|
वशित्व -इसके सिद्द होने पर दुसरो को वश में किया जा सकता हैं|
इन सभी सिद्दियो का प्राप्ति काफी दुष्कर हैं तथा यह माना जाता हैं की केवल भगवान हनुमान जी को यह सिद्दिया उनकी माता अंजनी के वरदान से मिली थी जिसका उल्लेख इस श्लोक में किया गया हैं|
अष्ट सिद्दी नव निधि के ज्ञाता(दाता)|
अस वर दीन जानकी माता||
नव निधिया
पद्म निधि- यह सात्विक प्रकार की होती हैं जिसका उपयोग साधक के परिवार में पीढी दर पीढी चलती रहती हैं|
महापद्म निधि - यह भी सात्विक प्रकार की निधि हैं जिसका प्रभाव सात पीढियो के बाद नही रहता|
नील निधि -यह सत्व व राज गुण दोनों से मिश्रित होती हैं जी व्यक्ति को केवल व्यापार हेतु ही प्राप्त होती हैं|
मुकुंद निधि -राजसी स्वभाव वाली निधि जिससे साधक का मन भोग इत्यादि में ही लगा रहता हैं|एक पीढी बाद नष्ट हो जाती हैं|
नन्द निधि-यह रजो व तमो गुण वाली निधि होती हैं जो साधक को लम्बी आयु व निरंतर तरक्की प्रदान करती हैं|
मकर निधि -यह तामसी निधि हैं जो साधक को अस्त्र शास्त्र से सम्पन्नता प्रदान करती हैं परन्तु उसकी मौत भी इसी कारण होती हैं|
कच्छप निधि-इसका साधक अपनी सम्पति को छुपा के रखता हैं ना तो स्वयं उसका उपयोग करता हैं ना करने देता हैं|
शंख निधि -इस निधि को प्राप्त व्यक्ति स्वयं तो धन कमाता हैं परन्तु उसके परिवार वाले गरीबी में जीते हैं वह स्वयं पर ही अपनी सम्पति का उपयोग करता हैं|
खर्व निधि -इस निधि को प्राप्त व्यक्ति विकलांग व घमंडी होता हैं जो समय आने पर लूट के चल देता हैं|
सात्विक सिद्दिया प्राप्त होना मुश्किल हैं परन्तु किसी भी व्यक्ति के पास तामसिक निधिया आसानी से आ जा सकती हैं|
लक्ष्मी पूजन( हिन्दी में)
सर्वप्रथम पूजन सामग्री को एकत्रित करले |पूजा का कलश स्थापित कर ले |एक थाली में स्वस्तिक बनाकर,पुष्प का आसन लगाकर गणेश जी विराजित करले|अब हाथ जोड़कर गणेश जी का ध्यान करे|
यहाँ पधारो,मूर्ति में,जाओ आप विराज ||
वरुण देव आओ यहाँ,सब तीर्थो के साथ|
पूजा के इस कलश में, आप विराजो नाथ||
शोभित षोडश मातृका जाओ यहाँ पधार|
गणपति सूत के साथ करके, कृपा अपार||
सूर्य आदि ग्रह भी करो,यहाँ आगमन आज |
लक्ष्मी पूजा पूर्ण हो ,जिससे सहित समाज ||
पहले वरुण पूजा फ़िर गणेश,षोडश मातृका,नवग्रह पूजन करके हाथ में अक्षत लेकर माँ लक्ष्मी का "आह्वान" करे |
आह्वान -
आदि शक्ति मातेश्वरी,जय कमले जगदम्ब |
यहाँ पधारो मूर्ति में,कृपा करो अविलम्ब ||
अक्षत अर्थात चावल लक्ष्मी के सम्मुख अर्पित कर दे|
आचमन -(तीन बार जल आचमनी में लेकर थाली में छोड़े)
पाद्य अर्ध्य वा आचमन का जल यह तैयार|
उसको भी माँ प्रेम से,करलो तुम स्वीकार||
स्नान -
दूध,दही,घी,शहद,शक्कर इन सभी से बारी बारी से लक्ष्मी को स्नान करवाए|अंत में सभी को एकत्रित कर पंचामृत बनाले,फ़िर पंचामृत से स्नान करवाए|
दूध दही घी शहद तथा शक्कर से कर स्नान|
निर्मल जल से कीजियो,पीछे शुद्ध स्नान||
अब पुनः शुद्ध जल से स्नान करवा,साफ़ वस्त्र से प्रतिमा को पोछकर विराजित करे|
वस्त्र -(माँ महालक्ष्मी को श्रृंगार सामग्री सहित पूर्ण वस्त्र अर्पित करे)
साडी चोली रूप में,वस्त्र द्वय ये अम्ब|
भेंट करू सो लीजियो,मुझको तब अवलंब||
तिलक-( कुमकुम का तिलक करे)
कुमकुम केसर का तिलक और मांग सिंदूर|
लेकर सब सुख दीजियो,करदो माँ दुःख दूर||
अंजन चूड़ी -(श्रृंगार सामग्री अर्पित करे)
नयन सुभग, कज्जल सुभग, लो नेत्रों से डार|
करो चुडियो से जननी, हाथो का श्रृंगार||
पुष्प- धुप- दीप -
(पुष्पों का हार अर्पित करे|हाथ से धुप दीप लक्ष्मी जी की और दिखाए)
गंध, अक्षत के बाद में,यह फूलो का हार|
धुप सुगन्धित,शुद्ध घी का दीपक तैयार||
भोग-
दूध आदि का बना हुआ भोग लक्ष्मी जी के आगे रखकर अपने हाथो से लक्ष्मीजी के मुख तक तीन बार ले जाए|अब जल की तीन बार परिक्रमा कर छोड़े|
भोग लगाता भक्ति से,जीमो रूचि से धाप|
करो चुलू, ऋतुफल सुभग,आरोगो अब आप||
ताम्बुल -
लक्ष्मीजी को पान,लौंग,इलायची आदि का बीडा अर्पित करे|
एला पुंगी लौंगयुक्त,माँ खालो ताम्बुल|
क्षमा करो मुझसे हुई,जो पूजा में भूल||
दक्षिणा -(श्रधा अनुसार दक्षिणा अर्पित करे)
क्या दे सकता दक्षिणा,आती मुझको लाज|
किंतु जान पुजांग यह तुच्छ भेंट हैं आज||
आरती -(कपूर आदि जलाकर आरती करे)
हैं कपूर सुंदर सुरभि:जोकर घी की बाती|
करू आरती आपकी,जो सब भाँती सुहाती||
पुष्पांजलि प्रदक्षिणा -
हाथो में पुष्प लेकर आरती की प्रदक्षिणा कर छोड़े|
पुष्पांजलि देता हुआ,परिक्रमा कर एक|
हाथ जोड़ विनती करू,रखना मेरी टेक||
प्रार्थना पुरूष के लिए -
राष्ट्र भक्ति दे, शक्ति दे, सुखद वृति सम्मान|
पत्नी,सूत-सुख दे मुझे,भिक्षुक अपना जान ||
प्रार्थना स्त्री के लिए -
सदा सुहागिन मैं रहू,पाती सौख्य अपार|
तब पूजा करती रहूँ,श्रधा मन में धार||
माँ महालक्ष्मी से विनती
चहु दिशा हर मोड़ ने मारा|दो लक्ष्मी माँ हमें सहारा ||
मैं मुर्ख बालक अज्ञानी,तुम हो अम्बे अन्तर्यामी |
पाप,क्रोध,अपराध क्षमा कर,उज्जवल कर दो भाग्य सितारा||
चहु दिशा हर मोड़ ने मारा|दो लक्ष्मी माँ हमें सहारा ||
दुःख दारिद्रय ने ह्रदय जलाये,निर्धनता ने मन बिलखाये|
पग पग ठोकर खाऊ अम्बे, नैन बहाए अश्रू धारा ||
चहु दिशा हर मोड़ ने मारा|दो लक्ष्मी माँ हमें सहारा ||
दया करो सुख सम्पति साजो,गणपति,शारदे,संग विराजो |
रिद्दी सिद्दी मेरे संग समाके, स्वयं से लगादो ह्रदय हमारा||
चहु दिशा हर मोड़ ने मारा|दो लक्ष्मी माँ हमें सहारा ||
मंद बुद्दी हूँ भाग्य विधाती,ज्ञान की कुंजी दे,सुखदाती|
राह न हमें माँ कोई दिखाए, मार्गदर्शक तुम बनो हमारा ||
चहु दिशा हर मोड़ ने मारा|दो लक्ष्मी माँ हमें सहारा ||
इतना करम इस दास पर कर दे,पुत्र मान धन-जन सुख भरदे|
जन्म जन्म का दास बनाले,बस यही मिले वरदान तुम्हारा ||
चहु दिशा हर मोड़ ने मारा|दो लक्ष्मी माँ हमें सहारा ||
अब जहाँ खड़े हैं,वहां खड़े खड़े ही परिक्रमा करले|हाथ जोड़कर पूजा में किसी भी प्रकार की भूल के लिए क्षमा याचना करे|
क्षमा प्रार्थना -
ब्रह्म विष्णु शिवरूपिणी परमब्रह्म की शक्ति |
मुझ सेवक को दीजिये श्रीचरणों की भक्ति ||
मैं अपराधी नित्य का पापो का भण्डार|
मुझ सेवक को कीजिये दुःख सागर से पार||
हो जाते हैं पुत तो, कई कपूत अज्ञान|
पर माता तो कर दया,रखती उनका ध्यान||
ऐसा मन में धार कर कृपा करो अविलम्ब |
बिना कृपा तेरी मुझे और ना हैं अवलंब ||
और प्रार्थना क्या करू तू करुणा की खान |
त्राहि त्राहि मातेश्वरी मैं मूरख अज्ञान||
धरती पर जब तक जिउ रटु आपका नाम |
तब दासो के सिद्द सब हो जाते हैं काम ||
इसके बाद लक्ष्मी चालीसा,कनकधारा श्रोत्र,अष्ट लक्ष्मी श्रोत्र,श्रीसूक्त का पाठ आदि कर प्रणाम कर जल हाथ में लेकर छोड़े तथा सब बडो को नमस्कार कर चरणामृत तथा प्रसाद वितरण करे |
इस प्रकार आप माँ लक्ष्मी का पूजन करे, पूजन समय घर के सदस्यों को,बच्चो को निरंतर पटाखे आदि छोड़ते रहने को कहे |माँ लक्ष्मी का स्वागत हर्ष व उल्लास से करे ..................................
सोमवार, 12 अक्टूबर 2009
आपके सवाल
मेरी एक पाठिका ने करवा चौथ के दिन करने वाले उपायों की काफ़ी तारीफ लिखी हैं जिसके लिए मैं उनका काफ़ी शुक्रगुजार हूँ आप सभी से एक निवेदन और हैं की यदि किसी खास विषय में ज्योतिष से सम्बंधित कोई जानकारी चाहते हैं तो मुझे अवश्य सूचित करे तथा यह भी बताये की आपको कौनसा लेख चाहे वह किसी ज्योतिषीय पत्रिका में छपा हो चाहे वह इस ब्लॉग में लिखा हो आपको अच्छा या बुरा लगा ...........शेष फ़िर
मेरा फ़ोन नंबर ओ९८१८५६४६८५ हैं
शुक्रवार, 9 अक्टूबर 2009
मिलेगी स्वाइन फ्लू से मुक्ति
आइये ज्योतिषीय दृष्टी से इस बीमारी का आंकलन करते हैं|
"स्वाइन फ्लू" नामक यह बीमारी वास्तव में" सूअर" में पाए जाने वाले "इन्फ़्लुएन्ज़ा" नामक बीमारी के वायरस" एच वन एन वन" का ही बदला हुआ रूप हैं |ज्योतिष शास्त्र में इस बीमारी का सम्बन्ध मंगल व शनि ग्रह से हैं यहाँ यह भी देखने योग्य तथ्य हैं की रोग हेतु छटा भावः देखा जाता हैं जिसका कारक मंगल, बुध व शनि को ही माना जाता हैं |
मंगल हमारे शरीर में कान, नाक, खून, फेफडे व मष्तिस्क पर नियंत्रण तथा बुखार, अग्नि, रक्तचाप, पीलिया,चोट, दुर्घटना व सर्जरी का पता बताता हैं वही शनि शरीर में वायु, पीत, सर, गर्दन, दांत व हड्डियों पर नियंत्रण तथा प्रदुषण से होने वाली संक्रमित बीमारियो, वायुविकार, गठिया तथा जोडो के दर्द का पता बताता हैं|
जब भी आकाश में भ्रमण करते समय मंगल व शनि की युति व दृष्टी सम्बन्ध बनते हैं धरती पर महामारी दुर्घट्नाये व प्राकतिक आपदाये आती हैं कारण शनि व मंगल ग्रह का आपस में शत्रुता का व्यवहार होना ऐसा हम सब जानते ही हैं मार्च २००९ में मंगल कुम्भ राशिः तथा शनि सिंह राशिः पर समसप्तक दृष्टी सम्बन्ध बनाये हुए थे जिस दौरान इस बीमारी का जन्म हुआ व इसका पता चला |२२ जुलाई को भारत की राशिः कर्क में जब सूर्यग्रहण पड़ा तब इस बीमारी ने भारत में दस्तक दी, तब तक यह अन्य एशियाई देशो में अपना प्रसार कर चुकी थी यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य हैं की इस समय कर्क राशिः पर मंगल शनि का दृष्टी सम्बन्ध बना हुआ था |
जुलाई माह से ही मंगल भारत की जन्म राशिः कर्क के नजदीक आ रहा हैं जिससे इस बीमारी को भारत में बढने का पुरा अवसर मिला परन्तु कर्क राशिः में ही मंगल नीच का हो जाता हैं जिससे इस रोग की तेजी में जबरदस्त कमी भी आ जायेगी (नीच राशिः में ग्रह पृथ्वी से दूर जा रहा होता हैं )
कब तक रहेगा स्वाइन फ्लू -अक्तूबर माह के शुरू के पॉँच दिनों तक शनि मंगल का दृष्टि सम्बन्ध बना रहेगा ,५ अक्तूबर से मंगल के कर्क राशिः में प्रवेश करने से इस बीमारी में कुछ कमी आएगी तथा इससे असली छुटकारा १३ अक्तूबर से मिलेगा क्यूंकि इस दिन गुरु ग्रह जो की मकर राशिः में राहू संग कर्क राशिः से समसप्तक योग बनाये बैठे हैं( वक्री अवस्था में) मार्गी होते ही भारत की कुछ परेशानिया व तकलीफे कम कर देंगे तथा इस बीमारी से पूर्णतया निजात उनके राशिः परिवर्तन करते ही मिल जायेगी जो की १९ दिसंबर को होगा |
प्रस्तुत शोध पूर्णतया मेरे ज्योतिष ज्ञान पर आधारित हैं जिसमे गलतियाँ हो सकती हैं अतःविद्जनो से निवेदन हैं की इसे मेरे अल्प ज्ञान का एक प्रयास मात्र समझे |
बुधवार, 7 अक्टूबर 2009
करवा चौथ पर करे यह प्रयोग
मंगलवार, 6 अक्टूबर 2009
अखंड सुहाग का प्रतिक करवा चौथ
शास्त्रों में इस व्रत से जुड़ी अनेक कथाये प्रचलित हैं|शरद पूर्णिमा के तीन दिन बाद आने वाला यह मांगलिक पर्व "करवा चौथ" परिवारों में एक अपूर्व उल्लास व आत्मीयता भर देता हैं|महिलायें सोलह श्रृंगार करती हैं, सज धज कर अप्सराओ का सा रूप धर लेती हैं| नए वस्त्र पहनती हैं, मेहंदी लगाती हैं, आभूषण धारण करती हैं तथा ईश्वर के समक्ष दिनभर के व्रत के बाद यह प्रण भी लेती हैं की वे सदैव मन,वचन और कर्म से पति के प्रति पूर्ण समर्पण की भावना रखेंगी |
इस पर्व को मनाने की हर प्रदेश की कुछ अपनी परंपराए व पकवान हैं |पंजाब में फीकी व मीठी मठ्ठिया लेने देने का रिवाज़ हैं |राजस्थान में फीणी का चलन हैं |उत्तर प्रदेश में घर में ही पुए बनाने का रिवाज़ हैं |
इसी प्रकार कही कही पहले चंद्रमा का प्रतिबिम्ब महिलायें पानी भरी थाली में देखती हैं और फ़िर उसी थाली में पति के चेहरे का प्रतिबिम्ब देखती हैं |कही छलनी से पति दर्शन का रिवाज़ हैं तो कही पति की आरती उतारी जाती हैं |
करवा चौथ से सम्बंधित कथा -इन्द्रप्रस्थ नगरी में वेद्शर्मा नामक एक ब्राह्मण के सात पुत्र व एक पुत्री थी जिसका नाम वीरावती था जिसका विवाह सुदर्शन नामक एक ब्राह्मण के साथ हुआ |एक बार करवा चौथ के दिन वीरावती भूख सह ना पाने के कारण निढाल होकर बैठ गई तब उसके भाइयो ने नकली चन्द्र
बनाकर उसकाव्रत खंडित करवा दिया जिससे उसका पति बीमार हो गया तथा इन्द्राणी द्वारा दिए गए वरदान व दुबारा करवा चौथ का व्रत विधिविधान से करने पर ही ठीक हुआ |उसी दिन से करवा चौथ का व्रत मनाया जाता हैं |
व्रत विधि -प्रात:सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान आदि से निवृत होकर नेत्र आचमनं करे |अपने पति की लम्बी आयु और सुख सौभाग्य का संकल्प लेकर व्रत आरम्भ करे, दिन भर निराहार व निर्जल रहकर व्रत करे, शाम को सोलह श्रृंगार करके पूजा हेतु बैठे तथा चौथ माता की तस्वीर के आगे कथा सुने या पढ़े| शक्कर के एक करवे में मिठाई व दुसरे में गेहू चावल भरे |मिटटी के करवो में दूध मिश्रित मीठा जल भरे ये सब करवे नैवेध आदि पाटे पर सजाकर शिव,पार्वती,गणेश,कार्तिकेय,सूर्य व चंद्र का पूजन कर दर्शन करे व जल चढाकर सास के पैर छुकर आर्शीवाद लेकर उन्हें फल,मेवा,व सुहाग सामग्री देकर स्वयं पुरे परिवार के साथ भोजन व जल ग्रहण करे |
शुक्रवार, 2 अक्टूबर 2009
भारत बनेगा नंबर वन
१५ अगस्त १९४७ रात १२:०० बजे जब भारत वर्ष की स्थापना हुई उस समय वृषभ लग्न चल रहा था तथा चंद्रमा का संचार शनि के नक्षत्र पुष्य व राशिः कर्क पर था जिससे भारत ने क्रमश: शनि,बुध,केतु व शुक्र की महादशाये भोगी तथा १५ सितम्बर से सूर्य की महा दशा शुरू होगी यह भी विडंबना ही है कि अब तक सभी भोग्य दशाओ के स्वामी तृतीय भावः में विराजित है तथा आगामी १६ वर्षो के दशा नाथ भी तृतीय भावः में ही स्थित है|
भारत वर्ष की कुंडली में तक्षक नामक "कालसर्प" है तथा लग्नेश व भाग्येश (शुक्र व शनि ) अस्त स्थिति में है लग्न में राहू की स्थिति अच्छी नही हैं,तीसरे (पराक्रम,भात्र,पड़ोस,खेल व मित्र) भावः में ग्रहों की अधिकता होने के कारण भारत पडोसियों से हमेशा आक्रांत रहता है और रहेगा|
सूर्य की महा दशा भारत की शक्ति व विकास को बढाएगी भारत कई क्षेत्रो में विशेष कर शिक्षा,बुद्धि,खेल,तकनीक व विकास के क्षेत्र में दुनिया में एक बड़ी शक्ति बन के उभरेगा|
आपके पत्रों का जवाब
आप में से अधिकतर लोगो ने यह जानना चाह हैं की हम अपनी राशिः कैसे देखें या कैसे पता लगाये (शनि ग्रह से सम्बंधित आलेख ) इसका एक आसान तरीका यह हैं की आप अपनी जन्मपत्रिका में चंद्र ग्रह की स्थिति देखे वह किस संख्या में स्थित हैं अगर वो संख्या एक में हैं तो आपकी राशिः मेष होगी अगर चंद्र दो नंबर की संख्या में होगा तो राशिःवृष,संख्या तीन में हो तो मिथुन राशिः क्रमश इसी प्रकार आप सभी बारह राशियो का पता लगा सकते हैं |
आप सभी यह भी जानना चाहते हैं की जन्मपत्री किस प्रकार से देखी जा सकती हैं जिससे आम आदमी भी थोडी बहुत ज्योतिष की जानकारी पा सके तो इसका जवाब हम एक पत्री का उदहारण रखकर आपको
अगले पत्र के जवाब में देने का प्रयास करेंगे |शेष फ़िर .........
गुरुवार, 1 अक्टूबर 2009
सोना होगा हद से बाहर
गृह गोचर की दृष्टि से देखें तो सोना ब्रहस्पति गृह से सम्बंधित हैं जो की इस समय अपनी नीच राशिः में भ्रमण कर रहे हैं जब भी कोई गृह अपनी नीच राशिः में होता हैं तो वह पृथ्वी से दूर हो जाता हैं जिस कारण पृथ्वी से उसकी किरणे कम हो जाती हैं तथा उसकी मांग बढ़ जाती हैं इस कारण से पीली वस्तुए जो की ब्रहस्पति गृह से सम्बन्धित हैं एकदमसे महेंगी हो गई हैं
सोना जो की भारतीय संस्कृति में अपना अलग ही महत्व रखता हैं अपना सीज़न आते ही असर दिखाने लग गया हैं इस रफ़्तार से यह जल्द ही १८००० का आंकडा छू लेगा
शंख में गुण बहुत हैं सदा रखिए संग
पं. किशोर घिल्डियाल
पौराणिक कथाओं के अनुसार शंख समुद्र मथंन के समय प्राप्त चौदह अनमोल रत्नों में से एक है। लक्ष्मी के साथ उत्पन्न होने के कारण इसे लक्ष्मी भ्राता भी कहा जाता है। यही कारण है कि जिस घर में शंख होता है वहां लक्ष्मी का वास होता है।
पुराणों में शंख की उत्पत्ति के बारे एक रोचक प्रसंग में कहा गया है कि भगवान और शंखचूंड़ राक्षस में जब युद्ध हो रहा था तब भगवान शंकर ने भगवान विष्णु से प्राप्त त्रिशूल से शंखचूंड़ का वध कर उसके टुकड़े कर अस्थि पंजर समुद्र में डाल दिए और उन्हीं अस्थि पंजरों से शंख की उत्पत्ति हुई। इस प्रसंग का उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण के प्रकृति खंड के १८ वें अध्याय में भी है। नौ निधियों में भी शंख का उल्लेख है।
अन्य ग्रंथों में शंख के विषय में कहा गया है-
शंख चंद्रार्कदैवत्यं मध्ये वरुणदैवतम्। पृष्ठे प्रजापतिं विधादग्ते गंगा सरस्वतीम्॥
त्रैलोक्ये यानि तीर्थानि वासुदेवस्य चाज्ञया। शंखे तिष्ठन्ति विप्रेन्द्र तस्मात् शंख प्रपूजयेत॥
दर्शनेन ही शंखस्य किं पुनः स्पर्शनेन तु विलयं यान्ति पापानि हिमवद् भास्करोदमे।
अर्थात् शंख सूर्य व चंद्र के समान देवस्वरूप है जिसके मध्य में वरुण, पृष्ठ में ब्रह्मा तथा अग्र में गंगा और सरस्वती नदियों का वास है। तीर्थाटन से जो लाभ मिलता है, वही लाभ षंख के दर्शन और पूजन से मिलता है। इसीलिए षंख की पूजा की जाती है। जिस प्रकार धूप की गर्मी से बर्फ पिघल जाती है, उसी प्रकार शंख के दर्शन मात्र से पाप नष्ट हो जाते हैं। अथर्व वेद में शंख को पापहारी, दीर्घायु प्रदाता और शत्रुओं को परास्त करने वाला कहा गया है।
रामायण, महाभारत आदि काव्यों में भी शंख का उल्लेख मिलता है। कई देवी देवतागण शंख को अस्त्र (आयुध) रूप में धारण किए हुए हैं। महाभारत में युद्धारंभ की घोषणा और उत्साहवर्धन हेतु षंख किया गया था, जिसका उल्लेख गीता में इस प्रकार आया है-
पांचजन्यं ऋषीकेशो देवदत्तं धनंजय पौण्ड्रं दध्यमौ महाशंख भीमकर्मो वृकोदर।
महाभारत में सूर्योदय के समय युद्धारंभ और सूर्यास्त के समय युद्धावसान दोनों की घोषणा षंखनाद से ही की जाती थी।
आदि ग्रंथों में शंख को विजय, यश व पवित्रता का प्रतीक कहा गया है। सनातन धर्म संस्कृति में इसकी विशेष महत्ता है। इसकी इसी महत्ता के कारण इसकी पूजा होती है और सभी शुभ अवसरों पर इसे बजाया जाता है। यह बात वैज्ञानिक जांच में भी सिद्ध हो चुकी है कि शंख नाद से वातावरण हानिकारक जीवाणुओं व प्रकोपों से मुक्त रहता है।
प्राप्ति स्थान : वैसे तो शंख लगभग हर समुद्र में पाया जाता है, परंतु भारतवर्ष में यह मुख्यतः बंगाल की खाड़ी, मद्रास, पुरी तट, रामेश्वरम, कन्या कुमारी और हिंद महासागर में मिलता है।
शंख के प्रमुख भेद : शंख के मुख्यतः तीन प्रकार प्रकार होते हैं - वामावर्ती, दक्षिणावर्ती तथा गणेश शंख।
वामावर्ती शंख का प्रयोग सबसे ज्यादा होता है। इसका उपयोग पूजा अनुष्ठान और अन्य मांगलिक कार्यों के समय बजाने व कहीं-कहीं सजावट के लिए किया जाता है। इसे प्रातः और सायं काल आरती के पश्चात बजाने की प्रथा है। इसे दो प्रकार से सीधे होठों से व धातु के बेलन पर रखकर बजाया जाता है जिन्हें क्रमशः धमन व पुराण कहते हैं।
षंखवादन के औषधीय गुण भी हैं। इसे बजाने से ष्वास रोग से बचाव होता है। यही नहीं, इसमें रखे जल तथा इसकी भस्म का सेवन करने से अन्य अनेक बीमारियों से भी रक्षा होती है। इसके इन औषधीय गुणों का आयुर्वेद में विशेष उल्लेख है।
दक्षिणावर्ती शंख को लक्ष्मी का साक्षात स्वरूप माना जाता है। यह अत्यंत मूल्यवान होता है और सर्वत्र सुलभ नहीं होता। यह दाईं ओर से खुला होता है। इस शंख के दो भेद होते हैं - पुरुष और स्त्री। यह बजाने के काम नहीं आता। घर में लक्ष्मी के स्थिर वास तथा अन्य वांछित फलों की प्राप्ति के लिए इसकी स्थापना की जाती है।
गणेश शंख पिरामिडनुमा होता है। इसकी स्थापना और पूजा ऋण तथा दरिद्रता से मुक्ति और विद्या की प्राप्ति हेतु की जाती है। गणेश इन सभी कार्यों के देव हैं इसलिए इसे गणेश स्वरूप माना गया है।
शंख का ज्योतिषीय महत्व
ज्योतिष में षंख को बुध ग्रह से संबंधित माना गया है। इसे चार वर्णों में बाटा गया है जिसका आधार इसका रंग है। इस दृष्टि से षंख चार रंग के होते हैं - सफेद, गाजर के रंग के समान व भूरे, हल्के पीले और स्लेटी।
वैज्ञानिक महत्व
शंख एक समुद्री उत्पाद है, जिसे मोलस्कश परिवार में रखा गया है। यह एक विषेष किस्म के समुद्री जीव का कवच है। ऊपर इसके विभिन्न वैज्ञानिक व औषधीय गुणों का उल्लेख किया जा चुका है।
ऊपर वर्णित तीन प्रमुख षंखों के अतिरिक्त कुछ अन्य षंखों का विवरण इस प्रकार है।
गोमुखी शंख
इस शंख की आकृति गाय के मुख के समान होती है। इसे शिव पावर्ती का स्वरूप माना जाता है। धन-संपत्ति की प्राप्ति तथा अन्य मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए इसकी स्थापना दक्षिणावर्ती षंख के समान उत्तर की ओर मुंह कर के की जाती है। मान्यता है कि इसमें रखा पानी पीने से गौहत्या के पाप से मुक्ति मिलती है। विशाखा, पुष्य, अश्लेषा आदि नक्षत्रों में इसकी साधना विषेष रूप से की जाती है। इसे कामधेनु शंख भी कहा जाता है।
विष्णु शंख
यह सफेद रंग और गरुड़ की आकृति का होता है। इसे वैष्णव सप्रंदाय के लोग विष्णु स्वरूप मानकर घरों में रखते हैं। मान्यता है कि जहां विष्णु होते हैं, वहां लक्ष्मी भी होती हैं। इसीलिए जिस घर में इस षंख की स्थापना होती है, उसमें लक्ष्मी और नारायण का वास होता है। मान्यता यह भी है कि इस शंख में रोहिणी, चित्रा व स्वाति नक्षत्रों में गंगाजल भरकर और मंत्र का जप कर किसी गर्भवती को उस जल का पान कराने से सुंदर, ज्ञानवान व स्वस्थ संतान की प्राप्ति होती है।
पांचजन्य शंख
यह भगवान कृष्ण भगवान का आयुध है। इसे विजय व यश का प्रतीक माना जाता है। इसमें पांच उंगलियों की आकृति होती है। घर को वास्तु दोषों से मुक्त रखने के लिए स्थापित किया जाता है। यह राहु और केतु के दुष्प्रभावों को भी कम करता है।
अन्नपूर्णा शंख
यह अन्य शंखों से भारी होता है। इसका प्रयोग भाग्यवृद्धि और सुख-समृद्धि की प्राप्ति हेतु किया जाता है। इस शंख में गंगाजल भरकर प्रातःकाल सेवन करने से मन में संतुष्टि का भाव जाग्रत होता है तथा व्याकुलता समाप्तहोती है।
मोती शंख
यह आकार में छोटा व मोती की आभा लिए होता है। इसे भी लक्ष्मी की कृपा के लिए दक्षिणावर्ती शंख के समान पूजाघर में स्थापित किया जाता है। इसकी स्थापना से समृद्धि की प्राप्ति व व्यापार में उन्नति होती है। इसमें नियमित रूप से लक्ष्मी मंत्र का जप करते हुए ११ दाने चावल लक्ष्मी शीघ्र ही प्रसन्न होती है।
हीरा शंख
यह स्फटिक के समान धवल, पारदर्शी व चमकीला होता है। यह ऐष्वर्यदायक किंतु अत्यंत दुर्लभ है। इससे हीरे के समान सात रंग निकलते हैं। इसका प्रयोग प्रेम वर्धन व शुक्र दोष से रक्षा हेतु किया जाता है। इसकी स्थापना से षुक्र ग्रह की कृपा भी प्राप्त होती है।
टाइगर शंख
इस शंख पर बाघ के समान धारियां होती हैं जो बहुत ही सुंदर दिखती हैं। ये धारियां लाल, गुलाबी, काली व कत्थई रंगों की होती हैं। इसकी स्थापना से आत्मविश्वास में वृद्धि होती है तथा शनि, राहु और केतु ग्रह की व्याधियों से मुक्ति मिलती है। साथ ही साधक के मन में तंत्र शक्ति का संचार भी होता है।
तात्पर्य यह कि शंख में अनेक गुण हैं। ये गुण आध्यात्मिक भी हैं, वैज्ञानिक भी और औषधीय भी। इनके इन गुणों को देखते हुए इनकी स्थापना अवश्य करनी चाहिए।