ज्योतिषीय ग्रन्थों में शनिशमन के लिए मन्त्र जप, स्तोत्र पाठ, मूल (जड़), यन्त्र और रत्न धारण के साथ-साथ व्रतोपवास एवं दान आदि का उल्लेख मिलता है । आधुनिक ज्योतिष में रत्नों के अलावा रुद्राक्षों के माध्यम से भी ग्रह- शान्ति का प्रचलन है । बृहत्पाराशरहोराशास्त्र में ग्रहों को देवता मानते हुए उनकी पूजा-उपासना करने का निर्देश मिलता है साथ ही, ग्रहों के अधिदेवता (अथवा सम्बन्धित देवता) के जप - पूजन, . अभिषेक- दर्शन आदि से भी ग्रह शान्ति का प्रचलन है |
जहाँ तक शनिशमन
का प्रश्न है, तो अन्य उपायों के साथ-साथ वर्तमान में सातमुखी
रुद्राक्ष को भी शनि शान्ति हेतु प्रयुक्त किया जाता है । अनुभव मे देखने मे आया है कि अन्य
उपायों की तुलना में मन्त्र जप और सातमुखी रुद्राक्ष से शनि के जन्मपत्रिका
सम्बन्धी दोष और गोचर में साढ़ेसाती, ढैया आदि के अशुभ प्रभावों में अधिक राहत
मिलती है । यही कारण है कि आधुनिक ज्योतिष में सातमुखी रुद्राक्ष माला को शनिशमन
का एक प्रभावी उपाय माना जाता है ।
शनि के मीन राशि
में गोचर से मेष राशि वाले जातक साढ़ेसाती के प्रभाव में आ गए हैं । जन्मराशि से
द्वादश भाव में शनि का गोचर स्वास्थ्य एवं आर्थिक स्थिति को प्रभावित करता है,
तो वहीं दूसरी ओर, कुसंगति आदि की भी आशंका रहती है ।
जातक मादक द्रव्यों के सेवन आदि व्यसनों में पड़ सकता है लग्न या राशि से 12वाँ
शनि खर्चों में भी वृद्धि करवाता है । मेष राशि या लग्न के लिए नीलम रत्न उपयुक्त
नहीं है उन्हें सातमुखी रुद्राक्ष धारण करना उपयुक्त रहता है । चूँकि यह प्रथम चरण
की साढ़ेसाती है, जिसका प्रभाव अति तीव्रगामी होता है,
तो ऐसी स्थिति में मेष राशि वालों को शनि के मन्त्रों का नियमित जप,
भगवान् शिव और हनूमान् जी की उपासना तथा सातमुखी रुद्राक्ष की माला
धारण करनी चाहिए ।
वृषभ राशि वालों
के लिए हालाँकि मीन का शनि शुभ फलदायक है, परन्तु परिजनों
से रिश्तों एवं स्वास्थ्य के सम्बन्ध में कुछ परेशानी उत्पन्न हो सकती है उन्हें
नीलम रत्न धारण करने के साथ-साथ सातमुखी रुद्राक्ष भी धारण करना चाहिए |
मिथुन राशि
वालों के लिए सातमुखी रुद्राक्ष माला शनिशमन के लिए अधिक उपयुक्त रहेगी । उन्हें
नीलम रत्न धारण करने से बचना चाहिए इसके अतिरिक्त शनि मन्त्र का भी जप करना उचित
रहेगा ।
कर्क राशि वालों
के लिए शनि का यह राशि परिवर्तन राहतकारी प्रतीत होगा, क्योंकि
वे अष्टम ढैया के
प्रभाव से मुक्त हो रहे हैं, परन्तु भाग्य भाव में भी शनि का गोचर
अच्छा नहीं माना जाता । यह एक ओर जहाँ जातक के भाग्य को सीमित एवं अवरुद्ध करता है,
तो वहीं दूसरी ओर, उसके माता-पिता के लिए
भी शुभ नहीं होता । इस गोचरावधि में कॅरिअर भी प्रभावित होता है । कर्क राशि और
लग्न वालों को नीलम रत्न धारण नहीं करना चाहिए उनके लिए शनि के अशुभ फलों में कमी
करने के लिए सबसे प्रभावी साधन के रूप में सातमुखी रुद्राक्ष की माला उपयुक्त है |
सिंह राशि वालों
के लिए शनि का मीन राशि में गोचर सर्वाधिक अशुभ फलप्रद माना जा सकता है, क्योंकि
उनकी जन्मराशि से अष्टम भाव में गोचर करता हुआ शनि कुटुम्ब भाव, पंचम
भाव एवं कर्मभाव को प्रभावित करेगा । चन्द्रलग्न में सप्तमेश शनि का अष्टम भाव में
गोचर करना भी शुभ नहीं कहा जा सकता ऐसी स्थिति में सिंह राशि वालों को भगवान् शिव
और हनूमान् जी की पूजा-उपासना के अलावा सातमुखी रुद्राक्ष की माला भी धारण करनी
चाहिए |
कन्या राशि
वालों के लिए शनि का मीन राशि में गोचर उनकी जन्मराशि से सप्तम भाव में रहता है ।
हालाँकि इसे ग्रन्थों में ढैया के
रूप में नहीं माना जाता, परन्तु आधुनिक ज्योतिष में मारक भाव के
ऊपर गोचर कर रहे शनि को अशुभ ही माना जाता है और उसे सप्तम ढय्या के रूप में
सम्बोधित किया जाता है,कन्या
राशि वाले जातकों को भी प्राय: नीलम रत्न से बचना चाहिए और उन्हें शनि के अशुभ
फलों में कमी के लिए सातमुखी रुद्राक्ष की माला में सातमुखी गौरी शंकर रुद्राक्ष भी धारण करना चाहिए,क्योंकि
यह गोचर दाम्पत्य सुख को भी प्रभावित
करता है ।
तुला राशि में
शनि योगकारक होता है और शनि का मीन राशि में गोचर अनुकूल फलप्रद है । हालाँकि
अष्टम एवं द्वादश भाव पर शनि का दृष्टि प्रभाव भी रहेगा, जिसके
चलते नीलम रत्न के साथ-साथ सातमुखी रुद्राक्ष धारण करना
उपयुक्त रहेगा |
वृश्चिक राशि वालों
के लिए मीन राशि में शनि का गोचर वित्तीय मामलों में बहुत अच्छा
नहीं कहा जा सकता । मान्यता है कि कण्टक शनि जातक की वित्तीय स्थिति को सर्वाधिक
रूप से प्रभावित करता है । जन्मराशि से पंचम भाव में स्थित शनि पारिवारिक सुख में
कमी, अपमान और अपयश की परिस्थितियाँ उत्पन्न करना
तथा आय में अवरोध उत्पन्न करना जैसे फल प्रदान करता है । इस राशि और लग्न वाले व्यक्तियों को नीलम
रत्न धारण नहीं करना चाहिए । उनके लिए सातमुखी रुद्राक्ष की माला सर्वाधिक उपयुक्त
है । इसके अतिरिक्त प्रत्येक शनिवार को सुन्दरकाण्ड का पाठ करना चाहिए और हनुमान
जी की पूजा-उपासना करनी चाहिए ।
धनु राशि वालों
के लिए शनि का मीन राशि में गोचर जन्मराशि से चतुर्थ भाव में रहेगा, जो
कि साढ़ेसाती के बाद सर्वाधिक अशुभ फलदायक माना जाता है । यह गोचर ढैया,लघु
पनौती या लघु कल्याणी के नाम से जाना जाता है । इस ढैया के अशुभ प्रभावों में कमी करने के लिए
उन्हें शनि के बीज मन्त्र का नित्य जप करने के साथ-साथ सातमुखी रुद्राक्ष माला भी
धारण करनी चाहिए ।
मकर राशि वालों
के लिए शनि का मीन राशि में गोचर राहतकारी रहना चाहिए, क्योंकि
साढ़े सात साल बाद शुभ गोचर के प्रभाव में रहे हैं । मकर
राशि वाले जातक नीलम रत्न भी धारण कर सकते हैं । इसके अलावा सातमुखी रुद्राक्ष
धारण भी उपयुक्त रहेगा ।
कुम्भ राशि
वालों के लिए शनि का मीन राशि में गोचर शुभ फलदायक नहीं है, क्योंकि
अब वे उतरती साढ़ेसाती के प्रभाव में हैं । द्वितीय भाव में शनि का गोचर स्वयं के
स्वास्थ्य के साथ-साथ परिजनों के स्वास्थ्य आदि को लेकर भी चिन्ता उत्पन्न करता है
। पारिवारिक शान्ति भंग हो सकती है तथा खर्चों में वृद्धि के चलते जमा पूंजी भी
खर्च हो सकती है । आपको सातमुखी रुद्राक्ष की माला धारण कर भगवान् शिव के
मृत्युंजय स्वरूप की आराधना करनी चाहिए ।
मीन राशि वालों
के लिए शनि का यह राशि परिवर्तन मध्य की साढ़ेसाती के रूप में प्रभाव डालेगा,
जो कि स्वयं के स्वास्थ्य के साथ-साथ परिजनों के स्वास्थ्य को भी
प्रभावित करेगा तथा आपके कॅरिअर
पर भी विपरीत प्रभाव आ सकता है । ऐसी स्थिति में सातमुखी रुद्राक्ष की माला और
सातमुखी गौरीशंकर रुद्राक्ष धारण करना चाहिए ।
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