30 मार्च, 2025 को चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से विक्रम संवत् 2082 का शुभारम्भ हो रहा है । वर्षारम्भ में गुरुमान से ‘सिद्धार्थ' नामक संवत्सर है । ‘वर्ष-प्रबोध' आदि ग्रन्थों के अनुसार सिद्धार्थ संवत्सर में प्रजा ज्ञान और वैराग्य से युक्त होती है तथा सम्पूर्ण पृथ्वी पर अधिक उपज एवं वर्षा होती है |
सिद्धार्थवत्सरेभूयोज्ञानवैराग्ययुक्प्रजाः
।
सकलावसुधाभातिबहुसस्यार्घवृष्टिभिः
।।
संवत्सर संहिता
नामक ग्रन्थ के अनुसार –
तो पूर्णाः
भवेन्मेघो बहुसस्या च मेदिनी ।
सुखिन:
पार्थिवाः सर्वे सिद्धार्थे वरवर्णिनि ।।
सिद्धार्थ
संवत्सर में अच्छी वर्षा, अच्छी फसल और शासन की स्थिरता बनी रहती
है ।
संवत् 2082 की
ग्रहपरिषद् में राजा का पद सूर्य को प्राप्त हुआ है । राजा के अलावा
सूर्य मन्त्री और मेघेश भी है । बुध सस्येश और नीरसेश, चन्द्रमा
धान्येश, शुक्र रसेश, शनि फलेश और
दुर्गेश तथा मंगल धनेश के पद पर रहेंगे ।
1. राजा सूर्य का
फल: विक्रम संवत् 2082 का राजा सूर्य है । सूर्य राजा
होने से फलों के उत्पादन में कमी, वर्षा एवं जल की कमी तथा गाय एवं
प्रजाजन को पीड़ा होती है । साथ ही खाद्यान्न की कमी, वृक्षों
से कम फलों की प्राप्ति, चोरी आदि अपराधों की अधिकता, अग्निकाण्ड
जैसी बाधाएँ तथा सत्तापक्ष के लिए अशुभ
फलों की प्राप्ति होती है — सूर्ये नृपे स्वल्पफलाश्च मेघाः
स्वल्पं पयो गोषु जनेषु पीडा ।
स्वल्पं
सुधान्यं फलमल्पवृक्षाश्चौराग्निर्बाधा निधनं नृपाणाम्।।
संवत्सर संहिता
के अनुसार सूर्य यदि संवत् का राजा हो, तो उस वर्ष कृषि
उपज एवं अन्य उत्पादन कम होते हैं। समय पर बारिश नहीं होने से फसलों का नाश होता
है तस्करों,
चारों पाखण्डियों, अपराधियों और लुटेरों का प्रभाव बढ़ता
है ।
रोगों का प्रसार, अग्निकाण्ड, शस्त्रास्त्रों
का खुलेआम उपयोग, शासक दलों में मतभेद उत्पन्न होते हैं । इस अवधि में
जंगलों में आग की आशंका रहती है । शिशिर ऋतु में कम सर्दी तथा साल में अधिक
गर्मी होती है ।
जंगली जानवरों, या रैंगने वाले जीवों का इंसानी बस्तियों में
प्रवेश अधिक होता है । सदाचारी लोगों को कष्ट, पशुओं
की हानि आदि फल भी प्राप्त होते हैं —
तीक्ष्णोऽर्कः
स्वल्पसस्यश्च गतमेद्योऽतितस्करः।
बहुरोगव्याधिगणो
भास्कराब्दो रणाकुलः।।
2. मन्त्री सूर्य का फल: इस वर्ष मन्त्री का पद भी
सूर्य को प्राप्त हुआ है । वर्षप्रबोध के अनुसार सूर्य यदि मन्त्री हो, तो राजा, रोग और
अपराधियों का भय बढ़ता है । पृथ्वी पर धन और धान्य की अधिकता होती है तथा
तरल पदार्थों (गुड़-चीनी आदि) का संग्रह अधिक होता है और महँगाई बढ़ती है |
नृपभयं गदतोऽपि
हि तस्करात्प्रचुर धान्यधनादि महीतले ।
रसचयं हि
समर्घतमं तदा रविरमात्यपदं हि समागतः ।
राजा और मंत्री
पद दोनों सूर्य को प्राप्त होने से अशुभ फलों की अधिकता होती है ।
3. सस्येश बुध का
फल: इस वर्ष बुध सस्येश है, जिसके फलस्वरूप खरीफ की फसलों के लिए
अच्छी बारिश होती है, सुख-समृद्धि होती है तथा उपद्रव नहीं
होते ।
साथ ही ब्राह्मणगण वेद-पाठ करते हैं-
जलधरा
जलराशिमुचो भृशं सुख-समृद्धि निरुपद्रवम्।
द्विजगणा:
स्तुति पाठरता: सदा प्रथमसस्यपतौ सति बोधने ।।
4. धान्येश
चन्द्रमा का फल चन्द्रमा इस वर्ष धान्येश है, फलत: इस वर्ष रबी
की फसलों में अधिक उत्पादन होने, गेहूँ, सरसों और गाय के
दूध के उत्पादन में वृद्धि होने की सम्भावना रहेगी –
चन्द्रेधान्याधिपेजातेप्रजावृद्धिः
प्रजायते ।
गोधूमाः
सर्षपाश्चैवगोषुक्षीरं तदाबहु ।
5. मेघेश सूर्य का
फल: इस वर्ष मेघेश का पद भी सूर्य को ही प्राप्त हुआ है, जिसके
परिणामस्वरूप इस वर्ष वर्षा में कमी, अनाज की पैदावार
में कमी, जनता में भय, आडम्बर और पीड़ा
में वृद्धि होने की सम्भावना है |
रवौ मेघाधिपे
जाते स्वल्प तोयप्रदा घनाः ।
स्वल्पो
धान्योद्भवो लोके भयाडम्बर पीडनम्।
6. रसेश शुक्र का
फल: नवसंवत् में रसेश का पद शुक्र को प्राप्त हुआ है । शुक्र रसेश हो, तो
अच्छी वर्षा के कारण जनता में सन्तोष, सुख और सुभिक्ष
रहता है तथा शासन भी तत्परता से चलता है ।
भृगुसुते
रसनायकतां गते जनपदा जलतोषित-मानसाः ।
सुखसुभिक्षप्रमोदवती
धरा धरणिपा नरपालनतत्पराः ।।
7. नीरसेश बुध फल:
विक्रम संवत् 2082 का नीरसेश बुध है । इसके फलस्वरूप
रंगीन और फैशन के कपड़े, शंख, चंदन, सोना
इत्यादि पदार्थों में तेजी रहने की सम्भावना रहेगी । -
चित्रवस्त्रादिकं
चैव शंख-चन्दन हाटका: ।
महर्घाः सन्ति
वर्षे च नीरसेशो बुधो यदा।।
8. फलेश शनि का फल:
इस वर्ष फलेश का पद शनि को प्राप्त हुआ है, जो कि शुभफलप्रद
नहीं माना जाता। संवत्सर संहिता में इसके फलों का वर्णन करते हुए लिखा गया है कि
शनि के फलेश होने पर लोगों में आपसी कलह, जंगली पेड़ों और
फूलों की अधिकता, दुष्टों से सामान्यजनों को भय तथा
राज्य पर जनसंख्या का भारी दबाव रहता है—
अथ शनौ फलपे
कलहो भवेत् वनजपादपपुष्पगणो घनः ।
अपि च
दुष्टजनाकृतं भयं जनपदा जनराशिसमाकुलाः ।।
9. धनेश मंगल का
फल : धनेश का पद मंगल को प्राप्त हुआ है । फलत: इस वर्ष शरद् ऋतु में तापमान अधिक
रहने और वर्षा न होने से गेहूँ आदि तृण फसलों में कमी देखने को मिल सकती है । साथ
ही देश में अस्थिरता का माहौल रह सकता है और शासक जनविरोधी भी हो
सकता है-
धरणिपे
धननायकतां गते शरदि ताम्रकरास्तुषधान्यहा ।
सकलदेश्यजनाश्चलितास्तदा
नरपतिर्नरशोकविधायकः ।
10. दुर्गेश शनि का
फल: दुर्गेश शनि के फलों का वर्णन करते हुए
संवत्सर संहिता में कहा गया है कि शनि के दुर्गेश होने पर चारों ओर हड़कम्प मचा
रहता है ।
लोगों में परस्पर वैर पनपता है तथा कृषि धन भी अच्छा नहीं रहता- रविसुतो यदि
दुर्गपतिर्भवेत् सकलदेशजनाश्चलितास्तदा।
विविधवैरविशेषितनागराः
कृषिधनं लभते न जनः क्वचित् ।।
रोहिणीवास
इस वर्ष रोहिणी
का निवास 'तट' पर रहेगा,
जो कि शुभ फलप्रद माना है । इसके फलस्वरूप वर्षा पर्याप्त होती है और
सामान्यतः अन्न एवं धन की वृद्धि होती है—
यदिविधिधिष्ण्यपततितटस्थम्।
शुभजलवृष्टिर्धनकणवृद्धिः॥
समय का वास
समय (संवत्) का
वास धोबी के घर में रहेगा, जो शुभफलदायक है । इसके फलस्वरूप वर्षा
बेहतर रहेगी, जिससे जलाशयों में पानी पर्याप्त रहेगा |
वापी कूपतडागानि
नदीनदवनानि च ।
जलपूर्णानि
दृश्यन्ते वासो रजके।।
समय का वाहन
वर्षप्रबोध के
अनुसार समय का वाहन अश्व है, जो कि शुभ नहीं कहा जाता । इसके
फलस्वरूप शासक वर्ग में मतभेद, वर्षा की कमी, महँगाई
में वृद्धि, भूकम्प आदि प्राकृतिक आपदाओं से सम्बन्धित अधिक
भय की आशंका रहती है—
राजानो विग्रहं
यान्ति वृष्टिनाशो महर्घता।
भूमिकम्पो भयं
घोरं हयारूढ़े तु वत्सरे।।
नील मेघ के फल
नवमेघों में इस
वर्ष 'नील' नामक मेघ है,
जो कि प्राय: शुभफलप्रद माना जाता है, जिससे पर्याप्त
वर्षा, गोवंश की अधिकता, वस्त्रादि की
पर्याप्त उपलब्धता होती है तथा सम्पूर्ण जनता को सन्तोष प्राप्त होता है -
सत्यपयोदिशति
गोकुलपूर्णा वस्त्रताखिल महीपरिपूर्णा ।
नीलनाम्नि जलदे
जलवृष्टिः जायते सकलमानवतुष्टिः ।।
चार स्तम्भ
इस वर्ष जल स्तम्भ लगभग 85
प्रतिशत है,तृण स्तम्भ 100,वायु स्तम्भ 11
प्रतिशत तथा अन्न स्तम्भ लगभग 22 प्रतिशत है | इस प्रकार एक
ओर जहाँ जल और तृण स्तम्भ की अधिकता से जल पर्याप्त होगा तथा पशुओं के लिए चारा भी
मिलेगा, परन्तु वायु स्तम्भ के कमजोर होने से फलों में
रोग आदि का प्रकोप होगा और प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि होगी । इसके अतिरक्त अन्न
स्तम्भ के कमजोर होने से फसलों का उत्पादन भी अपेक्षानुरूप न रह पाने की सम्भावना
भी दिखाई दे रही है
।
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