केतू ग्रह उष्ण,तमोगुणी,पापग्रह,माना जाता हैं | किसी स्वराशि ग्रह के साथ ये उसका फल कई गुना बढ़ा देता हैं | यह नाना,ज्वर,घाव,दर्द,आंतों का रोग,बहरापन व हकलाने का कारक माना जाता हैं | केतू मंगल की भांति कार्य करता है । यदि दोनों की युति हो ती मंगल का प्रभाव दुगना हो जाता है ।
राहु की भांति केतु भी छाया यह है इसलिए इसका अपना कोई फल नहीं होता है। जिस राशि में या जिस
ग्रह के साथ युति करता है वैसा ही फल देता है । केतु का शुभाशुभ प्रभाव अलग - अलग ग्रह के साथ युति और
अलग अलग भावो में स्थिति होने के कारण ज्यादा या कम हो सकता
है |
केतू से प्रभावित स्त्री भ्रमित व दिशाहीन रहती हैं उसमे शीघ्र निर्णय
लेने की क्षमता नहीं होती क्योंकि यह ग्रह मात्र धड़ का ही प्रतीक होता है और राहु इस धड़ का कटा हुआ सिर होता हैं | अच्छा केतु जहां महिला को उच्च पद, समाज
में सम्मानित,तंत्र मंत्र व ज्योतिष का
जानकार बनाता हैं वही बुरा केतू उन्हे भ्रमित करता हैं चर्म रोग व काम वासना की
अधिकता प्रदान कर सकता हैं वाणी दोष भी दे सकता हैं |
केतु के लिए
लहसुनिया नग उपयुक्त
माना गया है । मंगल वार का व्रत और हनुमान जी की
आराधना विशेष फलदायी होती है । गणेश चालीसा का पाठ भी विशेष फलदायी हो सकता है । चिड़ियों
को बाजरी के दाने खिलाना और भूरे चितकबरे
वस्त्र का
दान तथा इन्ही रंगों
के पशुओं की सेवा करना उचित रहेगा ।
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