रोगों से मुक्ति
की अनेकानेक पद्धतियां हैं और इन्हीं में एक है हस्ताक्षर विज्ञान । हस्ताक्षर के
विश्लेषण से विभिन्न रोगों की पहचान और तदनुरूप उनसे मुक्ति के उपाय किए जा सकते
हैं । यहां हस्ताक्षर के विश्लेषण से रोगों की पहचान और उनसे मुक्ति के उपायों का
विवरण दिया जा रहा है ।
व्यक्ति के
हस्ताक्षर के अक्षरों और उनकी रूपरेखा से युक्त उसके हस्ताक्षरों को निम्नलिखित 3
भागों में विभाजित किया जा सकता है।
हस्ताक्षरित
अक्षरों का प्रथम यानी आगे का हिस्सा जिसमें हस्ताक्षर का प्रथम अक्षर होता है ।
हस्ताक्षरित
अक्षरों का मध्य भाग जो प्रथम अक्षर और अंतिम अक्षर के मध्य का हिस्सा होता है ।
हस्ताक्षरित
अक्षरों का अंतिम भाग जिसमें अंत का अक्षर या कोई और रूपरेखा भी हो सकती है |
हस्ताक्षर का
ऊपर वर्णित हर हिस्सा व्यक्ति के शरीर के किसी न किसी भाग का प्रतिनिधित्व करता है
। कौन-सा भाग उसके शरीर के किस हिस्से का प्रतिनिधत्व करता है इसका विश्लेषण यहां
प्रस्तुत है |
प्रथम हिस्सा
सिर से कंधे तक के विभिन्न अंगों का प्रतिनिधित्व करता है । इस
तरह हस्ताक्षर के अक्षरों के प्रथम भाग के विश्लेषण से व्यक्ति के सिर से कंधों तक
होने वाले रोगों का पता लगाया जा सकता है ।
मध्य भाग छाती
से नाभि तक के अंगों का प्रतिनिधित्व करता है । इस भाग के विश्लेषण
से छाती से नाभि तक के क्षेत्र से संबंधित रोगों का पता लगाया जा सकता
है ।
तीसरा और अंतिम
भाग नाभि के नीचे से तलुवों तक के अंगों का प्रतिनिधित्व करता है । इस भाग के
विश्लेषण से नाभि के नीचे से तलुवों तक के रोगों का पता लगा सकते हैं |
हस्ताक्षर से
रोगों की पहचान
हस्ताक्षर के
प्रथम भाग का अन्य दो भागों से अधिक महत्व है । हस्ताक्षर का प्रथम अक्षर छोटा,
टूटा, अस्पष्ट और उलझा हुआ हो, तो
व्यक्ति शिरोरोग से पीडित होता है । जीवन के प्रति उसका दृष्टिकोण निराशाजनक होता
है और वह जीवन की प्रत्येक लड़ाई में हारा हुआ खिलाड़ी होता है । इस भाग से ब्रेन
ट्यूमर और कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी का पता भी लगाया जा सकता है ।
इन रोगों से
बचाव हेतु व्यक्ति को हस्ताक्षर का प्रथम अक्षर साफ, स्पष्ट और
स्वच्छ लिखना चाहिए तथा उसके नीचे व ऊपर की ओर किसी भी प्रकार के बिंदु इत्यादि का
प्रयोग नहीं करना चाहिए । यदि हस्ताक्षर हिंदी भाषा में हों तो उससे थोड़ा आगे ऊपर
की ओर जहां तक संभव हो एक सरल रेखा खींचें |
हस्ताक्षर के
मध्य भाग के किसी अक्षर का टेढ़ा - मेढ़ा, कटा या अस्पष्ट
होना हृदय से पेट के बीच के किसी अंग के रोग का सूचक होता है । मध्य का अक्षर यदि खुला
हुआ हो, अन्य से अधिक स्पष्ट हो तथा इसे बहुत अधिक लिखा
गया हो तो यह उत्तेजना से पीड़ित होने का लक्षण है । मध्य के
अक्षर का उत्तर व दक्षिण दोनों ओर मुड़ा होना व्यक्ति के अति वासना प्रिय होने का सूचक
होता है । उसे इससे मनोरोग हो सकता है । उसकी मानसिकता संकुचित होती है । यदि ऐसा हस्ताक्षर
किसी स्त्री का हो तो उसे अपने हस्ताक्षर के मध्य का अक्षर उत्तर की ओर और यदि पुरुष का
हो, तो उसे दक्षिण की ओर बढ़ाना चाहिए ।
हस्ताक्षर के
अंतिम अक्षरों का अधिक लंबा या फिर सिकुड़ा हुआ होना व्यक्ति के गठिया, बाय,
पैरों के दर्द या पैरों के किसी न किसी रोग से पीडित होने का लक्षण
है और ये रोग जंघाओं, घुटनों, पिंडलियों,
एडियों, तलुवों इत्यादि से संबंधित हो सकते हैं ।
विभिन्न रोगों
की हस्ताक्षर से उपचार की विधियां :
आधा शीशी का
दर्द: आधा शीशी दर्द से पीड़ित व्यक्ति को इससे मुक्ति के लिए अपने हस्ताक्षर में
पीछे की ओर नीचे दो बिंदु अवश्य लगाने चाहिए ।
• सिर दर्द सिर
दर्द से मुक्ति के लिए
हस्ताक्षर में
पीछे की ओर नीचे केवल एक बिंदु का प्रयोग करें और फिर अपने हस्ताक्षर को फाड़कर
फेंक दें । ध्यान रहे, यह प्रयोग सिर दर्द के समय ही करें |
चिंता : एक कोरे
कागज पर बड़ा सा ॐ लिखें
और उस पर हस्ताक्षर कर उसे अपनी आंखों और माथे से छुआकर फाड़कर फेंक दें, चिंता
कम होगी ।
नेत्र पीडा :
नेत्र पीड़ा से ग्रस्त व्यक्ति हस्ताक्षर के अक्षरों को नीचे की और दुहरा करके लिखे और आंखों से छु आकर फाड़कर फेंक दे,
तो नेत्र पीड़ा में कमी आएगी |
कर्ण पीड़ा :
हस्ताक्षर के केवल आगे और पीछे के अक्षरों को दोहरा कर लिखें
और फिर उसे फाड कर फेंक दें, कर्ण पीड़ा से मुक्ति मिलेगी ।
दंत पीड़ा :
दांत की पीड़ा से मुक्ति हेतु अपने हस्ताक्षर पर एक दांत का चिह्न बनाकर उसमें तीन
बार काटा लगाएं और फिर उसे फाड़कर फेंक दें ।
जिहवा के छाले
होने पर : हस्ताक्षर करके उस पर तीन बार 20 की संख्या लिखकर उसे मुंह में रखकर
थोड़ी देर चबाएं और थूक दें, जीभ पर निकल आए छाले से मुक्ति मिलेगी
।
गर्दन की पीड़ा
: हस्ताक्षर करके उसके मध्य बगुले की गर्दन का एक चिह्न बनाएं और उसे फाड़कर फेंक
दें, गर्दन की पीड़ा दूर होगी ।
कंधों का दर्द :
रात्रि के समय हस्ताक्षर करके उन्हें तकिये के बीच में रखें । सुबह उठकर उसे घूरकर
देखें और फाड़कर फेंक दें, कंधों का दर्द दूर होगा ।
छाती की पीड़ा :
अनार की कलम और अनार के ही रस से हस्ताक्षर और उसे अनार के रस में डुबोकर कहीं
कच्चे स्थान में गड्ढा खोदकर दबा दें, छाती में जमे
बलगम, सांस की तकलीफ अथवा किसी अन्य कारणवश हुई छाती
की तकलीफ से मुक्ति मिलेगी |
हाथों की पीड़ा
: हाथों की पीड़ा से मुक्ति हेतु अमरूद के पत्ते पर
हस्ताक्षर करें और फिर फूंक मारकर उसे पत्ते को उडा दें ।
उदर पीड़ा :
अमरूद के पत्तों को जलाकर उसकी चुटकी भर राख चाटें । फिर अमरूद के पेड़ की लकड़ी
की कलम से उसी राख से किसी कोरे कागज पर अपने हस्ताक्षर करें और उस कागज को जला
दें, उदर पीड़ा कम होगी ।
नोट : उदर में
घाव हो, लीवर खराब हो, अल्सर हो,
किडनी खराब हो, आंत्र शोथ हो अथवा नाभि की गड़बड़ी हो,
तो उदर पीड़ा से मुक्ति का ऊपर वर्णित उपाय काम नहीं करेगा । इन सबसे मुक्ति हेतु बेलगिरी के
रस और बेल की कलम से बेल के पत्ते पर हस्ताक्षर करें और उसे बेल के ही रस में
डुबोकर किसी मिट्टी के पात्र में रखकर कच्चे स्थान में गड्ढा खोदकर दबा दें ।
नितंबों की
पीड़ा : गुड़ का घोल बनाएं और कोरे कागज पर सरकंडे की कलम से अपने हस्ताक्षर करें ।
फिर उसे सुखाकर उसके बीच में बाजरे के दाने जितनी छोटी - छोटी गुड़ की डली रखकर
उसे किसी छायादार वृक्ष के नीचे गड्ढा खोदकर उसमें दबा दें, नितंबों
की पीड़ा कम होगी ।
जांघों की पीड़ा
: कोरे कागज पर काली स्याही से हस्ताक्षर करें और उस कागज को काजल की डिब्बी में
बंद कर किसी चौराहे पर दबा दें, जांघों की पीड़ा दूर होगी |
पिंडलियों की
पीड़ा : पिंडलियों की पीड़ा से मुक्ति हेतु कोरे कागज पर
हस्ताक्षर कर उसे चार खजूरों के बीच रखकर अपनी पिंडलियों से छुआकर किसी बाग,
पार्क या मैदान में दबा दें ।
टखनों और
एड़ियों की पीड़ा : गुड़ के पुए बनाएं और एक
कोरे कागज पर हस्ताक्षर कर उसे पुओं के बीच रखकर किसी बड़ के
वृक्ष के नीचे रख आएं, टखनों और एड़ियों की पीड़ा से मुक्ति
मिलेगी ।
बुखार होने पर :
एक कोरे कागज पर हस्ताक्षर कर उस पर एक चम्मच चीनी रखकर अपने ऊपर से 7 बार उतारें
(जिस प्रकार नजर उतारी जाती है) और किसी गंदी नाली में फेंक दें |
नोट : गंदी नाली
न मिले तो फ्लश में डालकर फ्लश चला दें ।
रक्तचाप : एक
कोरे कागज पर हस्ताक्षर करें और उसे गुलाब के फूल पर रखकर उसकी पंखुड़ियों समेत
चूसकर अथवा चबाकर थूक दें, रक्तचाप सामान्य हो जाएगा
।
बर्न, घाव,
फुंसी, एलर्जी : इन रोगों से मुक्ति हेतु किसी
कोरे कागज
पर हस्ताक्षर कर उसे गुड़ की गजक के चूरे से ढक दें और किसी नदी या तालाब के किनारे गड्ढा खोदकर
दबा दें ।
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