बुधवार, 20 नवंबर 2024

काम भावना और ज्योतिष

 

मनुष्य में काम वासना एक जन्मजात प्रवृति और वह इससे आजीवन प्रभावित संचालित होता है । किसी व्यक्ति में इस भावना का प्रतिशत कम या किसी में ज्यादा हो सकता है । ज्योतिष के अनुसार यह पता लगाया जा सकता है की व्यक्ति में काम भावना किस रूप में विद्यमान है और वह उसका प्रयोग किन क्षत्रों में कितने अंशों में कर रहा हैं | प्रस्तुत लेख मे हम आज इसी विषय पर जानकारी देने का प्रयास कर रहे हैं |

लग्न अथवा लग्नेश

1. यदि लग्न और बारहवें भाव के स्वामी एक हो कर केंद्र/त्रिकोण में बैठ जाएँ या एक दूसरे से केंद्रवर्ती हो या आपस में स्थान परिवर्तन कर रहे हों तो पर्वत योग का निर्माण होता है । इस योग के चलते जहां व्यक्ति भाग्यशाली, विद्या प्रिय, कर्मशील, दानी, यशस्वी, घर जमीन का अधिपति होता है वहीं अत्यंत कामी और कभी कभी पर स्त्री गमन करने वाला भी होता है |

2. यदि लग्नेश सप्तम स्थान पर हो तो ऐसे व्यक्ति की रूचि विपरीत सेक्स के प्रति अधिक होती है । उस व्यक्ति का पूरा चिंतन मनन, विचार व्यवहार का केंद्र बिंदु उसका प्रिय ही होता है ।

3. यदि लग्नेश सप्तम स्थान पर हो और सप्तमेश लग्न में हो, तो जातक स्त्री और दोनों में रूचि रखता है, उसे समय पर जैसा साथी मिल जाए वह अपनी शारीरिक भूख मिटा लेता है । यदि केवल सप्तमेश लग्न में स्थित हो तो जातक में काम वासना अधिक होती है तथा उसमें रतिक्रिया करते समय पशु प्रवृति उत्पन्न हो जाती है और वह निषिद्ध स्थानों को अपनी जिह्वा से चाटने लगता हैं |

4. यदि लग्नेश ग्यारहवें भाव में स्थित हो तो जातक अप्राकृतिक सेक्स और हस्त मैथुन (मैस्टरबेशन) आदि प्रवृत्तियों से ग्रसित रहता है और ऐसी क्रियाएँ उसे आनंद और तृप्ति प्रदान करती हैं ।

5. लग्न में शुक्र की युति 2/7/6 के स्वामी के साथ हो तो जातक का चरित्र संदिग्ध ही रहता है ।

6. मीन लग्न में सूर्य और शुक्र की युति लग्न/चतुर्थ भाव में हो या सूर्य शुक्र की युति सप्तम भाव में हो और अष्टम में पुरुष राशि हो तो स्त्री,स्त्री राशि होने पर पुरुष अपनी तरकी या अपना कठिन कार्य हल करने के लिए अपने साथी के अतिरिक्त अन्य से सम्बन्ध स्थापित करते हैं ।

सप्तम भाव

1. सातवें भाव में मंगल, बुद्ध और शुक्र की युति हो इस युति पर कोई शुभ प्रभाव न हो और गुरु केंद्र में उपस्थित न हो तो जातक अपनी कामपूर्ति अप्राकृतिक तरीकों से करता है ।

2. मंगल और शनि सप्तम स्थान पर स्थित हो तो जातक समलिंगी (होमसेक्सुअल) होता है, अकुलीन वर्ग की महिलाओं के संपर्क में रहता है । अष्टम /नवम /द्वादश भाव का मंगल भी अधिक काम वासना उत्पन्न करता है, ऐसा जातक गुरु पत्नी को भी नहीं छोड़ पाता |

3. तुला राशि मे चन्द्र शुक्र की युति जातक की काम वासना को कई गुणा बढ़ा देती है । अगर इस युति पर राहु/मंगल की दृष्टि भी हो तो जातक अपनी वासना की पूर्ति के लिए किसी भी हद तक जा सकता है ।

4. तुला राशि में चार या अधिक ग्रहों की उपस्थिति भी काम संबंधो के कारण पारिवारिक कलेश का कारण बनती है ।

5. दूषित शुक्र और बुद्ध की युति सप्तम भाव में हो तो जातक काम वासना की पूर्ति के लिए गुप्त तरीके खोजता है |

चन्द्रमा

1. चन्द्रमा बारहवें भाव में मीन राशि में हो तो जातक अनेकों का उपभोग करता है ।

2. नवम भाव में दूषित चन्द्रमा की उपस्थिति गुरु/शिक्षक/मार्गदर्शक के साथ व्यभिचार करने के उकसाते हैं ।

3. सप्तम भाव में क्षीण चन्द्रमा किसी पाप ग्रह के साथ बैठा हो तो जातक विवाहित स्त्री से आकर्षित होता है ।

4. नीच का चन्द्रमा सप्तम स्थान पर हो तो जातक आपने नौकर/नौकरानी से शारीरिक सम्बन्ध बनाते हैं ।

 मंगल

1. मंगल की उपस्थिति 8/9/12 भाव में हो तो जातक कामुक होता है ।

2. मंगल सप्तम भाव में हो और उसपर कोई शुभ प्रभाव न हो तो जातक नाबालिकों के साथ सम्बन्ध बनाता है ।

3. मंगल की राशि में शुक्र या शुक्र की राशि में मंगल की उपस्थित हो तो जातक में कामुकता अधिक होती है ।

4. जातक कामांध होकर पशु सामान व्यवहार करता है यदि मंगल और एक पाप ग्रह सप्तम में स्थित हो या सूर्य सप्तम में और मंगल चतुर्थ भाव हो या मंगल चतुर्थ भाव में और राहु सप्तम भाव में हो या शुक्र मंगल की राशि में स्थित होकर सप्तम को देखता हो ।

शुक्र

1. यदि शुक्र स्वक्षेत्री, मुलत्रिकोण राशि या अपने उच्च राशि का हो कर लग्न से केंद्र में हो तो मालव्य योग बनता है । इस योग में व्यक्ति सुन्दर, गुणी,संपत्ति युक्त, उत्साह शक्ति से पूर्ण, सलाह देने या मंत्रणा करने में निपुण होने के साथ साथ परस्त्रीगामी भी होता है । ऐसा व्यक्ति समाज में अत्यंत प्रतिष्ठा से रहता है तथा आपने ही स्तर की महिला/पुरुष से संपर्क रखते हुए भी अपनी प्रतिष्ठा पर आंच नहीं आने देता है,समाज भी सब कुछ जानते हुए उसे आदर सम्मान देता रहता है ।

2. सप्तम भाव में शुक्र की उपस्थिति जातक को कामुकता प्रदान करती है ।

3. शुक्र के ऊपर मंगल /राहु का प्रभाव जातक को काफी लोगों से शरीरिक सम्बन्ध बनाने के लिए उकसाता है ।

4. शुक्र तीसरे भाव में स्थित हो और मंगल से दूषित हो, छठे भाव में मंगल की राशि हो और चन्द्रमा बारहवें स्थान पर हो तो व्यभिचारी प्रवृतियां अधिक होती है ।

5. शुक्र के ऊपर शनि की दृष्टि/युति/प्रभाव जातक में अत्याधिक हस्त मैथुन (मैस्टरबेशन) की प्रवृति उत्पन्न करते हैं ।

गुरु

1. गुरु लग्न/चतुर्थ/सप्तम/दशम स्थान पर हो या पुरुष राशि में छठे भाव में हो या द्वादश भाव में हो, जातक अपनी वासना की पूर्ति के लिए सभी सीमाओं को तोडालता है ।

2. छठे भाव में गुरु यदि पुरुष राशि में बैठा हो तो जातक काम प्रिय होता है ।

शनि

1. यदि शनि स्वक्षेत्री, मूलत्रिकोण राशि या अपनी उच्च राशि का होकर लग्न से केंद्रवर्ती हो तो शशः योग बनता है । ऐसा व्यक्ति राजा,सचिव, जंगल पहाड़ पर घूमने वाला, पराये धन का अपहरण करने वाला,दूसरों की कमजोरियों को जानने वाला,दूसरों की पती से सम्बन्ध स्थापित करने की इच्छा करने वाला होता है । कभी कभी अपने इस दुराचार के लिए उसकी प्रतिष्ठा कलंकित हो सकती है, वह दूसरों की नजरों में गिर सकता है और समाज में अपमानित भी हो सकता है ।

2. शनि लग्न में हो तो जातक में वासना अधिक होती है, पंचम भाव में शनि अपनी से बढ़ी उम्र की स्त्री से आकर्षण, सप्तम में होने से व्यभिचारी प्रवृति, चन्द्रमा के साथ होने पर वेश्यागामी, मंगल के साथ होने पर स्त्री में और शुक्र के साथ होने पर पुरुष में कामुकता अधिक होती है ।

3. दशम स्थान का शनि विरोधाभास उत्पन्न करता है, जातक कभी कभी ज्ञान वैराग्य की बात करता है तो कभी कभी कामशास्त्र का गंभीरता से विश्लेषण करता है काम और सन्यास के बीच जातक झूलता रहता है ।

4. दूषित शनि यदि चतुर्थ भाव में उपस्थित हो तो जातक की वासना उसे इन्सेस्ट (परिवार मे ही संबंध बनाने) की और अग्रसर करती है ।

5. शनि की चन्द्रमा/शुक्र/मंगल के साथ युति जातक में काम वासना को काफी बढ़ा देती है |

 

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