जन्म पत्रिका मे यदि सूर्य निम्न अवस्था मे होतो जातक को कुछ ऐसे प्रभाव मिलते हैं -
शयनावस्था मे हो
तो अपच, पित्तशूल, मोटे पैर,
अनेक रोग, गुदा मे व्रण, हृदयाघात
होता है ।
उपवेशनावस्था मे हो तो श्रमिक, गरीब,
मुकदमो मे लिप्त, कठोर व दुष्ट, दायित्वहीन
होता है ।
नेत्रपाणि अवस्था मे
सूर्य 5, 7, 9,
10 भावो मे हो तो सुखी, धनी, विद्वान्
होता है । यदि अन्य भावो मे हो तो क्रूर स्वभाव, नेत्ररोगी,
क्रोधी, द्वेषशील व पानी के रोगो से पीड़ित होता
है ।
प्रकाशनावस्था
मे हो तो धार्मिक, दानी, सुखी, राजसी
ठाट वाला होता है ।
गमनावस्था मे हो
तो बाहर रहने वाला, पैरो में कष्ट, निद्रा,भययुक्त होता
है ।
आगमनावस्था मे
हो तो क्रूर, दुर्बुद्धि, परस्त्रीरत,
कंजूश होता है । यदि सूर्य 7, 12 स्थान मे हो
तो पत्नी या पुत्र नष्ट होते है अर्थात उनकी मृत्यु हो जाती है ।
सभावास अवस्था मे हो तो
जातक हुनरमंद विद्वान्, सदाचारी व वक्ता होता है ।
आगमावस्था मे हो
तो मनुष्य दुखी, कुरूप किन्तु धनाढ्य होता है ।
भोजनावस्था मे हो
तो स्त्री पुत्र धन से हीन, जोड़ो मे दर्द से पीड़ित, सिर
में पीड़ा, असदाचारी होता है ।
नृत्यलिप्सा में
हो तो सुन्दर, चतुर लेकिन सिर, पेट, हृदय
पीड़ा से पीड़ित, धनी होता है ।
कौतुक अवस्था
प्रसिद्ध पुत्र वाला, सुखी,
अधिक बोलने वाला लेकिन त्वचा रोगी व क्रोधी होता है । यह
सूर्य 5,7
भाव में हो तो स्त्री व पहली संतान की हानि होती है, सभा मे बात करने मे संकोच
करता है । षष्ट भाव मे हो तो शत्रुओ का
नाश होता है ।
निiद्रावस्था मे हो तो प्रवासी, गुदा
व लिंग रोगी, दरिद्र, विकलांग,
सुख से वंचित होता है ।
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