सूर्य जिस राशि
में गोचर में स्थित हों जब उसे छोड़कर अगली राशि में प्रवेश करते हैं तब उस
संक्रमण काल को संक्रान्ति कहते हैं —
रवेः संक्रमणं
राशौ संक्रान्तिरिति कथ्यते !
ऐसी बारह
संक्रान्तियों में मकरादि छः और कर्कादि छ: राशियों के भोगकाल में क्रमशः उत्तरायण
और दक्षिणायण यह दो अयन आते हैं —
मकर कर्कट संक्रान्तिः क्रमेणो
उत्तरायणं दक्षिणायणं स्यात् !
इसके अतिरिक्त
मेष और तुला की संक्रान्ति को 'विषुवत्' !
वृष, सिंह,
वृश्चिक और कुम्भ को 'विष्णुपदी' और
मिथुन, कन्या, धनु एवं मीन को ‘षडशीत्यानन'
संक्रान्ति कहते हैं —
अयने द्वे
विषुवती चतस्रः षडशीतयः !
चतस्रो
विष्णुपद्यश्च संक्रान्त्यो द्वादश स्मृताः !!
संक्रान्ति के
समय व्रत-दान और जप आदि करने के सम्बन्ध में 'हेमाद्रि''
के मतानुसार संक्रमण काल से पहले और बाद की 15-15
घड़ियाँ पुण्यकाल होती हैं —
अधः पञ्चदश ऊर्ध्वं च पञ्चदशेति
इसी प्रकार 'बृहस्पति'
के मत से दक्षिणायण के पहले और उत्तरायण के बाद की 20-20
घड़ियाँ पुण्यकाल के रूप में मान्य हैं —
दक्षिणायने
विंशतिः पूर्वा मकरे विंशतिः परा !
'देवल' के
मत से पहले और बाद की 30-30 घड़ियाँ पुण्यकाल कहलाती हैं —
संक्रान्तिसमयः
सूक्ष्मो दुर्जेयः पिशितेक्षणैः !
*तद्योगाच्चाप्यधश्चोर्ध्वं
त्रिंशत्राड्यः पवित्रिताः!
इनमें वसिष्ठ'
के मत से 'विषुव' के मध्य की,
विष्णुपदी और दक्षिणायण के पहले की तथा षडशीतिमुख और उत्तरायण के बाद
की उपर्युक्त घड़ियाँ पुण्य काल की होती हैं —
मध्ये तु विषुवे
पुण्यं प्राग्विष्णौ दक्षिणायने!
षडशीतिमुखेऽतीते
अतीते चोत्तरायणे !! (वसिष्ठ)*
वैसे सामान्य मत
से सभी संक्रान्तियों की 16-16 घड़ियाँ अधिक फलदायक होती हैं —
अर्वाक् षोडश
विज्ञेया नाड्यः पश्चाच्च षोडश !
कालः
पुण्योऽर्कसंक्रान्तेः !!......(शातातप) !!
यह विशेषता है
कि दिन में संक्रान्ति प्रारम्भ हो तब पूरा दिन, अर्धरात्रि से
पहले हो तब उस दिन का उत्तरार्द्ध, अर्द्ध रात्रि से बाद हो तब अगले दिन
का पूर्वार्ध पुण्य काल होता है —
अह्नि संक्रमणे पुण्यमहः सर्वं
प्रकीर्तितम् !
रात्रौ संक्रमणे
पुण्यं दिनार्धं स्नानदानयोः !!
अर्धरात्रादधस्तस्मिन्
मध्याह्नस्योपरि क्रिया !
ऊर्ध्वं
संक्रमणे चोर्ध्वमुदयात्प्रहरद्वयम् !! (वसिष्ठ)
जबकि ठीक अर्धरात्रि में संक्रान्ति प्रारम्भ हो तब
पहले और बाद के तीन-तीन प्रहर और उसी समय अयन का भी परिवर्तन हो तब तीन-तीन दिन
पुण्यकाल के होते हैं —
"पूर्णे चैवार्धरात्रे
तु यदा संक्रमते रविः !
तदा दिनत्रयं
पुण्यं मुक्त्वा मकरकर्कटौ !! (ज्योतिर्वसिष्ठ)
उस समय दान देने
में भी यह विशेषता है कि अयन अथवा संक्रमण-समय का दान उनके आदि में और दोनों ग्रहण
तथा षडशीतिमुख के निमित्त का दान अन्त में देना चाहिये !
सूर्य दिनांक 17.09.2023
को 13.43 बजे सिंह राशि छोड़कर कन्या राशि में
प्रवेश कर गये हैं, अतः अब कन्या संक्रान्ति प्रारम्भ हो
चुकी है जो 18.10.23 को 01.42 तक प्रचलित
रहेगी |
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