इंडियन कांउसिंल ऑफ एस्ट्रोलॉजिकल साईसेंस के संयुक्त सचिव श्री ए वी सुंदरम इंटरनेशनल वास्तु एकेडमी जयपुर मे नाड़ी ज्योतिष पर निम्न विचार रखे | वैदिक मे ज्योतिष मे ग्रहो का प्रभाव पूर्वजन्मो के कर्मो पर आधारित होता है,राशि का 150 वां हिस्सा नाड़ी होती है,नाड़ी ज्योतिष मे ग्रहो की कोणीय दूरी और गति का अत्यंत महत्व है इसलिये वक्री ग्रहों का भी अलग महत्व होता है वे अपनी पिछली राशि का फल भी देते है ।
नाड़ी ज्योतिष मे
पुर्नजन्म का सिद्धान्त माना जाता हैं,आत्मा अमर है
वही नये शरीर के माध्यम से पुनर्जन्म लेती है । नाड़ी ज्योतिष मे ग्रह कारकत्व
अत्यन्त महत्वपूर्ण है ।
नाड़ी ज्योतिष के अनुसार सूर्य आत्मा तथा
बृहस्पति जीव है तथा शनि कर्म के ग्रह है । यदि जीव कारक बृहस्पति और कर्मकारक शनि
त्रिकोण मे हो तो वह सुखी जीवन का प्रतीक है । शनि पापी या निष्ठुर नही है अतः वो
हमसे वो सब छीन लेते है जिसके हम हकदार नही होते है ।
नाड़ी ज्योंतिष
मे जातक का नाम का अक्षर या घर की दिशा भी बताना संभव है क्यूंकी जीवकारक बृहस्पति को जो ग्रह
प्रभावित करते है,नाम का अक्षर उसके ही अनुरूप होता हैं |
श्री सुंदरम ने
कहा कि उनकी कुंडली मे गुरू को केतु प्रभावित करते है,केतु
ध्वजा कारक है । अतः केतु शनि का सम्मिलित प्रभाव हनुमान जी मे है यह उनके नाम की
व्याख्या करता है |
जिस राशि मे
राहू होते है उस राशि की दिशा मे घर का मुख्य द्वार होता है तथा राहू से 12
वें भाव मे जो राशि होती हैं उसके आधार पर घर के मुख की दिशा ज्ञात की जा सकती हैं
|
यदि जन्मपत्री
मे बुध अकेला हो तो व्यक्ति किसी की अधिक चतुरता अथवा ठगी का शिकार अवश्य होगा |
यदि शनि के दोनो
ओर ग्रह नही हैं और सप्तम भाव मे भी कोई ग्रह ना हो तो व्यक्ति की नौकरी या कार्य
स्थिर नही रहते है ।
जिस जन्मपत्रिका
मे लग्न या सप्तम भाव मे राहू/केतु हो वह अपने पूर्वजों से बहुत कुछ लाते है या
पितरों से प्रभावित होते है ।
यदि मंगल से
त्रिकोण मे केतु हो तो यह पति के विवाहेतर संबंधों का संकेत है ।
पूर्वजन्म का
संकेत नवम भाव से मिलता हैं नवम से दशम अर्थात पूर्व जन्म के कर्म का भाव छठा भी
है इसलिये छठा भाव अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं |
नाड़ी ज्योतिष मे
त्रिकोण भाव विशेषतः महत्वपूर्ण है । यदि त्रिकोणों मे अधिक ग्रह हो तो संघर्ष
अधिक होगा यदि ग्रहों का योग केन्द्र या 2, 3, 11 भावो मे हो तो
जातक को मेहनत के अनुसार फल प्राप्त होगे |
पूर्व जन्म के
कर्मो को फलित करने वाला ग्रह शनि है तथा पूर्वजन्म के फलों को देने वाला ग्रह चन्द्रमा है
।
समुद्र मंथन के समय देवता अमृत
बांटने को तैयार नही थे |
देवताओं के
प्रतिनिधि देव गुरू बृहस्पति है |
लग्न मे बैठे
गुरू कुछ हद तक स्वार्थी बना देते है ।
लग्न, पंचम
एवं नवम के गुरू पुत्र शोक देते है ।
असुर गुरू शुक्र
बांट कर खाने की प्रेरणा देते है ।
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