बुधवार, 31 अगस्त 2022

श्राद तत्व प्रश्न

प्रश्न - श्राद्द किसे कहते हैं ?

उत्तर – श्रद्धा से किया जानेवाला वह कार्य, जो पितरोंके निमित्त किया जाता है, श्राद्ध कहलाता है ।

प्रश्न - कई लोग कहते हैं कि श्राद्धकर्म असत्य है और इसे ब्राह्मणों ने ही अपने लेने - खानेके लिये बनाया है । इस विषय पर क्या विचार है ?

उत्तर – श्राद्ध कर्म पूर्णरूपेण आवश्यक कर्म है और शास्त्रसम्मत है । हाँ, वर्तमानकाल में लोगों में ऐसी रीति ही चल पड़ी है कि जिस बात को वे समझ जायँ वह तो उनके लिये सत्य है; परंतु जो विषय उनकी समझ के बाहर हो, उसे वे गलत कहने लगते हैं ।

कलयुग काल के लोग प्रायः स्वार्थी हैं,उन्हें दूसरे का सुखी होना सुहाता नहीं । स्वयं तो मित्रों के बड़े - बड़े भोज स्वीकार करते हैं, मित्रों को अपने घर भोजन के लिये निमन्त्रित करते हैं, रात - दिन निरर्थक व्यय में आनन्द मनाते हैं, परंतु श्राद्ध कर्म में एक ब्राह्मण को भोजन कराने में भार अनुभव करते हैं । जिन माता - पिता की जीवन भर सेवा करके भी ऋण नहीं चुकाया जा सकता, उनके पीछे भी उनके लिये श्राद्ध कर्म करते रहना आवश्यक है ।

प्रश्न - श्राद्ध करने से क्या लाभ होता है ?

उत्तर – मनुष्यमात्र के लिये शास्त्रों में देव - ऋण, ऋषि - ऋण और पितृ – ऋण ये तीन ऋण बताये गये हैं । इनमें श्राद्ध के द्वारा पितृ - ऋण उतारा जाता है ।

विष्णुपुराण कहा गया हैं की श्राद्द से तृप्त होकर पितृगण समस्त कामनाओं को पूर्ण कर देते हैं ।

इसके अतिरिक्त श्राद्धकर्ता से विश्वेदेवगण, पितृगण, मातामह तथा कुटुम्बीजन - सभी सन्तुष्ट रहते हैं । पितृपक्ष (आश्विनका कृष्णपक्ष) में तो पितृगण स्वयं श्राद्ध ग्रहण करने आते हैं तथा श्राद्ध मिलने पर प्रसन्न होते हैं और न मिलनेपर निराश हो शाप देकर लौट जाते हैं । विष्णुपुराण में पितृ गण कहते हैं हमारे कुल में क्या कोई ऐसा बुद्दिमान धन्य पुरुष उत्पन्न होगा जो धन के लिए लोभ को त्याग कर हमारे लिए पिंड दान करेगा | इसी विष्णुपुराण मे श्राद्ध कर्म के सरल से सरल उपाय बतलाये गये हैं । अत: इतनी सरलता से होने वाले कार्य को त्यागना नहीं चाहिये ।

प्रश्न – पितरों को श्राद्ध कैसे प्राप्त होता है ?

उत्तर - यदि हम चिट्ठी पर नाम - पता लिखकर डाक पेटी (लैटर बॉक्स) में डाल दें तो वह अभीष्ट को, वह जहाँ भी है, अवश्य मिल जायेगी । इसी प्रकार जिनका नामोच्चारण किया गया है, उन पितरों को, वे जिस जगह अथवा जिस योनि में भी हों, श्राद्ध प्राप्त हो जाता है । जिस प्रकार सभी पत्र पहले बड़े डाक घर में एकत्रित होते हैं और फिर उनका अलग - अलग विभाग होकर उन्हें अभीष्ट स्थानों में पहुँचाया जाता है, उसी प्रकार अर्पित पदार्थ का सूक्ष्म अंश सूर्य - रश्मियों के द्वारा सूर्य लोक में पहुँचता है और वहाँ से बँटवारा होता है तथा अभीष्ट पितरों को प्राप्त होता है ।

पितृपक्ष में विद्वान् ब्राह्मणों के द्वारा आवाहन किये जाने पर पितृगण स्वयं उनके शरीर में सूक्ष्म रूप से स्थित हो जाते हैं । अन्न का स्थूल अंश ब्राह्मण खाता है और सूक्ष्म अंश को पितर ग्रहण करते हैं ।

प्रश्न - यदि पितर पशु – योनि में हों, तो उन्हें उस योनि के योग्य आहार हमारे द्वारा कैसे प्राप्त होता है ?

उत्तर – विदेश में हम जितने रुपये भेजें, उतने ही रुपयों का डालर आदि (देशके अनुसार विभिन्न सिक्के) होकर अभीष्ट व्यक्ति को प्राप्त हो जाते हैं । उसी प्रकार श्रद्धा पूर्वक अर्पित अन्न पितृगण को, वे जैसे आहार के योग्य होते हैं, वैसा ही होकर उन्हें मिलता है ।

प्रश्न - यदि पितर परम धाम में हों, जहाँ आनन्द – ही - आनन्द है, वहाँ तो उन्हें किसी वस्तु की भी आवश्यकता नहीं है । फिर उनके लिये किया गया श्राद्ध क्या व्यर्थ चला जायेगा ?

उत्तर – नहीं,जैसे हम दूसरे शहर में अभीष्ट व्यक्तिको कुछ रुपये भेजते हैं, परंतु रुपये वहाँ पहुँचने पर पता चले कि अभीष्ट व्यक्ति तो मर चुका है, तब वह रुपये हमारे पास वापस होकर हमें ही मिल जायेंगे ।

 

 

 

सोमवार, 29 अगस्त 2022

पश्चिमी ज्योतिष का इतिहास

ज्योतिष का इतिहास 2000 ईसा पूर्व के आसपास प्राचीन बेबीलोन से शुरू हुआ है । जहां वहाँ के निवासीयो ने आकाशीय घटनाओ की एक प्रणाली को विकसित करना शुरू किया । उस समय के पुजारियों ने देवताओं की इच्छाओं को बताने के लिए ग्रहों और सितारों की स्थिति का इस्तेमाल किया । वे आकाश में होने वाली गतिविधियों और उनके बाद आने वाली सांसारिक गतिविधियों का दस्तावेजी करण कर अच्छे और बुरे संकेतों की एक सूची तैयार करते रहे,उदाहरण के लिए पुर्णिमा और बादल भरे आकाश के अगले दिन दुश्मन पर बड़ी जीत होती है,तो उन्होने "बादलों के साथ पूर्णिमा" को एक अच्छे शगुन के रूप में दर्ज कर लिया । समय के साथ,यह प्रणाली पूरी दुनिया में फैल गई ।

मिस्रवासी अच्छे कारणों से खगोल विज्ञान पर बहुत ध्यान केंद्रित करते थे । नील नदी में बाढ़ आने की भविष्यवाणी करने के लिए सूर्य और सीरियस नामक ग्रह का उपयोग किया गया था । परंपरागत रूप से, रामसेस द्वितीय को राशि चक्र के कई संकेतों को परिभाषित करने के लिए जाना जाता है ।

अलेक्जेंड्रिया मिस्र में ज्योतिष के क्षेत्र मे कुंडली ने अपनी पहली उपस्थिति दर्ज की । बेबीलोनियाई और मिस्र के ज्योतिष के इस नए संस्करण में किसी व्यक्ति के जन्म के समय ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति पर ध्यान केंद्रित किया गया । टॉलेमी नामक विद्वान ने अपने ग्रंथ “टेटरा बिबलोस” में इसी प्रणाली को संहिता बद्ध किया हैं और इसमे आज तक बहुत कम बदलाव हुआ हैं

मध्य युग के दौरान,ज्योतिष और खगोल विज्ञान लगभग एक दूसरे के पूरक थे । सूर्य,चंद्रमा और ग्रहों के प्रारंभिक खगोलीय प्रेक्षण अधिकांश ज्योतिषियों द्वारा किए गए थे । जहां अंधेरे युग के दौरान यूरोप में अधिकांश ज्योतिष को भुला दिया गया था,फारसियों ने इस ज्ञान को जीवित रखा,और इसे पुनर्जागरण के साथ यूरोप में वापस किया ।

17 वीं शताब्दी में शुरू हुई वैज्ञानिक क्रांति के साथ दोनों खगोल विज्ञान व ज्योतिष अलग-अलग होने लगे खगोल विज्ञान एक विज्ञान बन गया और ज्योतिष को गुप्त अंधविश्वास के रूप में देखा जाने लगा ।

बीसवीं शताब्दी में,संयुक्त राज्य अमेरिका में 1900 से 1950 के आसपास ज्योतिष बहुत लोकप्रिय हो गया । ज्योतिष लेखकों ने कुछ अधिक भ्रमित करने वाले भागों को सरल बनाने की भी कोशिश की,जिससे ज्योतिष आम जनता के लिए अधिक उपलब्ध हो गया । नतीजतन,आज ज्योतिष की किताबों और "सूर्य-संकेत" भविष्यवाणियों का बाजार है ।

 

शनिवार, 27 अगस्त 2022

पितृ पक्ष में श्राद्ध 2022 की तिथियां


10 सितंबर    2022-      पूर्णिमा का श्राद्ध/ प्रतिपदा का श्राद्ध  

11 सितंबर     2022-      द्वितीया का श्राद्ध

12 सितंबर    2022-      तृतीया का श्राद्ध

13 सितंबर    2022-      चतुर्थी का श्राद्ध

14 सितंबर    2022-      पंचमी का श्राद्ध

15 सितंबर    2022-      षष्ठी का श्राद्ध

16 सितंबर    2022-      सप्तमी का श्राद्ध

18 सितंबर    2022-     अष्टमी का श्राद्ध

19 सितंबर    2022-      नवमी श्राद्ध

20 सितंबर    2022-     दशमी का श्राद्ध

21 सितंबर    2022-      एकादशी का श्राद्ध

22 सितंबर    2022-     द्वादशी/सन्यासियों का श्राद्ध

23 सितंबर    2022-    त्रयोदशी का श्राद्ध

24 सितंबर    2022-    चतुर्दशी का श्राद्ध 

25 सितंबर    2022-     अमावस्या का श्राद्ध, सर्वपितृ अमावस्या, सर्वपितृ अमावस्या का श्राद्ध, महालय श्राद्ध  |

गुरुवार, 25 अगस्त 2022

सितंबर माह मे बाज़ार

सितंबर माह के प्रथम सप्ताह सभी धातुओं,अनाजो तथा लाल रंग की वस्तु में तेजी के झटके लगते रहेंगे |

8 सितंबर को कन्या राशि से बुध वक्री होगा बुध गुरु का समसप्तक योग चल रहा है | अचानक ही गुड,खांड,शक्कर,शेयर बाजार में तेजी बनकर शीघ्र ही मंदी की तरफ जा सकते हैं | बहुत ही सावधानी पूर्वक आगे बढ़े बाजार तेज होकर शीघ्र ही मंदी की तरफ जा सकते हैं |

11 सितंबर को शुक्र पूर्व फाल्गुनी में आकर गेहूं और ज्वार बाजरा मूंग एवं चने में मंदी का माहौल करेगा मंदी का रुझान 12 सितंबर तक रहेगा लेकिन 13 सितंबर वाले दिन सूर्य उत्तराफाल्गुनी में आकर 15 दिन में कपास,रेशम,सूत,सोना,चांदी,लोहा,घी,तेल,अलसी,सरसों,अरंड,चावल,उड़द,ज्वार,सुपारी,नारियल,मूंग बांस तथा नील में तेजी करेगा यह तेजी 15 सितंबर तक चलेगी |

16 सितंबर को बुध पश्चिम में अस्त होकर व्यापारिक लाइन को बदल सकता है भूमि एवं शेयर मार्केट में मंदा रहेगा लेकिन चांदी में तेजी संभव है |

इस महीने 8,11,16,17,सितंबर को बाजार में मंदी और तेजी का जोरदार झटका आएगा |

17 सितंबर को सूर्य कन्या राशि में आकर बुध के साथ योग करेगा । इनका गुरु के साथ समसप्तक दृष्टि सम्बन्ध रहेगा । ध्यान दें, वक्री गुरु पर वक्री शनि की दृष्टि भी चल रही है । रूई, नारियल, सुपारी, तिल, तैल, मजीठ, लाल वस्तुओं, सोना, ताम्बे में अच्छी तेजी बनकर पुन: कुछ देर बाद अथवा अगले दिन ही ठहराव या मन्दी बनेगी | चान्दी तथा शेयरों में भी तेजी बनकर बाद में मन्दी बनेगी । इसी दिन वक्री बुध पश्चिम में अस्त होने से प्रारम्भ में रुई, चान्दी, घी, बैंकिंग शेयर्ज अवश्य तेजी का परिदृश्य बनाएंगे ।

19 सितंबर को वक्री बुध उत्तराफाल्गुनी में 7 दिन में उड़द,मूंग,मसूर,अरहर में तेजी करता है | रुई चाँदी में घटा बड़ी के बाद मंदी का रुख रहेगा |

22 सितंबर को शुक्र उ. फा. नक्षत्र में आने से गेहूँ आदि अनाजों, रुई में तेजी बनेगी सोना, चान्दी में घटाबढ़ी के बाद तेजी बनेगी ।

23 सितंबर को वक्री गुरु उ.भा. (2) में आने से चाँदी मे कुछ मंडी,सोने,रुई,गेहूं,आदि नाजो मे तेजी आएगी |

24 सितंबर को शुक्र कन्या में आकर सूर्य बुध के साथ संबंध बना लेगा,चांदी में घटा बड़ी के बाद तेजी से लाभ मिलेगा | इन दिनों गेहूं आदि सभी अनाज,दलहन,गुड,खांड,घी,तेल,ऊनी/रेशमी वस्त्र तेजी में रहेंगे | चावलों में इन दिनों विशेष तेजी का झटका आएगा यहां से तेजी का वातावरण पूरे महीने तक चलेगा |

27 सितंबर को सूर्य हस्त नक्षत्र में आएगा एवं मंगलवारी चंद्र दर्शन होने से गेहूं,जौ,ज्वार,गुड,खांड,कपास सूत-जुट,नमक,हरड़,हींग,धनिया,हल्दी एवं क्षार वस्तुओं में तेजी रहेगी | इन दिनों वायदा व्यापार में तेजी रहेगी और चांदी में घटा बड़ी के बाद तेजी रहेगी |

30 सितंबर को पूर्व दिशा में बुध का उदय होने से इस समय रूई में पहले मंदिर का रिएक्शन आकर 20-25 दिनों में तेजी आएगी | गेहूं चना आदि अनाजों में 40 दिन के अंदर तेजी होगी,घी,लाल मिर्च एवं तेलों में भी तेजी का वातावरण बनेगा |

मंगलवार, 23 अगस्त 2022

कब कौन सा मंत्र


भगवान से जुड़े कुछ मंत्रो को यदि प्रतिदिन स्मरण किया जाये तो जीवन मे बहुत लाभ व सुख समृद्दि की प्राप्ति होती हैं प्रस्तुत लेख मे हम ऐसे ही कुछ मंत्रो के विषय मे जानकारी दे रहे हैं जिनको आप कोई भी क्रिया करते समय यदि जपेंगे तो बहुत लाभ प्राप्त होगा |

आइए जानते कब किस समय कौन सा मंत्र करना लाभदायक होता हैं |

1) दवाई लेते समय - श्री विष्णवे नमः

2) भोजन करते समय - श्री जनार्दनय नमः

3) शयन करते समय - श्री पद्मनाभय नमः

4) विवाह के समय - श्री प्रजापताये नमः

5) युद्ध छेड़ने से पहले - श्री चक्रधराय नमः

6) यात्रा करते समय - श्री त्रिविक्रमाय नमः

7) मृत्यु शय्या पर रहते हुए - श्री नारायणाय नमः

8) प्रियतम से मिलते समय - श्री श्रीधराय नमः

9) बुरे सपने पर काबू पाने के लिए - श्री गोविंदाय नमः

10) आपदाओं के समय - श्री मधुसूदनय नमः

11) वन में विचरण करते समय - श्री नरसिंहाय नमः

12) आग लगने पर - श्री जलशायें नमः

13) जब जल में हों तब - श्री वराहाय नमः

14) पर्वत पर चढ़ते समय - श्री रघुनन्दनाय नमः

15) घूमते समय - श्री वामनाय नमः

16) अन्य कर्म करते समय - श्री माधवय नमःव

सोमवार, 22 अगस्त 2022

शनि के दुष्प्रभाव से बचने के उपाय

 

1)लोहवान युक्त वर्तिका कड़वे तेल के दीपक में डालकर सन्ध्या समय पीपलवृक्ष के नीचे ज्योति जलाऐं ।

2)बन्दरों को प्रत्येक शनि तथा मंगलवार को चना गुड़ खिलायें ।

3)भीगे हुए उड़द पक्षियों को डालें ।

4)काले तिल, मिश्रित कड़वे तेल का शरीर मे मर्दन करें ।

5) गरीब,अपाहिज व असहाय लोगो को भोजन करवाएं ।

6)काले कम्बलादि वस्त्रो का दान करे

7)11 या 21 कच्चे नारियल संख्यानुसार सिर से घुमाकर बहते जल में छोड़ दें |

8)दसनाम शनि स्त्रोत का  पाठ नित्य करे |

कोंणस्थ पिंगलो बभ्रुः कृष्णो रौदन्तको यमः ।

सौरिः शनैश्चरो मंदः पिप्पलादेन संस्तुतः ॥

एतानि दशनामानि प्रातरुत्थाययः पठेत् ।

शनैश्चर कृता पीड़ा न कदाचित भविष्यति ॥

इन सभी उपायो के शनि का ग्रहदोष शान्त होकर मस्तिष्क हल्का हो जायेगा । धनायु कारोबार की वृद्धि से सौख्य-समृद्धि बढ़ेगी, मंगलोत्सव की खुशी होगी ।