भारतीय
ज्योतिष के प्राचीन विद्वानो ने संतान प्राप्ति के कुछ विशेष अवसर व काल निर्धारण
किए हैं जिससे की प्रत्येक जातक को उसकी आने वाली संतान अथवा भावी पीढ़ी के लिए बेहतरीन
व सफलतम जीवन मिल सके | हजारो वर्षो के प्रमाणो ने साबित किया हैं की
संयम,उचित
समय,सात्विक
मनोभावों से यदि स्त्री पुरुष रति क्रिया करे तो उसी भावना के अनुरूप उनकी कांतिवान,बुद्दिमान अथवा
सर्वगुण संतान जन्म लेती हैं |
श्रेष्ठ
संतान प्राप्ति हेतु स्त्री सहवास के संबंध मे काल,ऋतु,दिन,तिथि,समय तथा नक्षत्र आदि का उल्लेख हमारे
प्राचीन शास्त्रो मे लिखा गया हैं भारतीय संस्कृति मे पुर्णिमा,अमावस्या,चतुर्दशी व अष्टमी को स्त्री सहवास के लिए
वर्जित माना गया हैं ( जिसके पीछे वैज्ञानिक आधार भी हैं इन सभी दिनो सूर्य,चन्द्र व पृथ्वी एक ही रेखीय स्थिति मे
होते हैं जिससे उनका परस्पर आकर्षण गुरुत्वाकर्षण के कारण अन्य दिनो के तुलना मे
अधिक हो जाता हैं जिससे पृथ्वी पर रहने वालो मे रक्तचाप बढ्ने से उत्तेजना का
प्रभाव
ज़्यादा हो जाता हैं और जल प्रधान होने से हमारा शरीर का जीवन रस सही प्रकार से
अपना कार्य नहीं कर पाता हैं )
कामशास्त्र
के
आचार्यो के अनुसार यदि संयम और शास्त्रानुसार गर्भाधान किया जाये तो मनवांछित
संतान प्राप्त होती हैं जिसमे यह भी कहा गया हैं की रात्रि के चतुर्थ प्रहर के
मैथुन से उत्पन्न संतान स्वस्थ,बुद्दिमान,धर्मपरायण व आज्ञाकारी होती हैं |
जीवविज्ञानिकों के अनुसार
मनवांछित संतान प्राप्ति के लिए दिये गए कुछ सूत्र इस प्रकार से हैं |
1)ऋतुस्नान के आरंभिक दिनो मे किए गए
गर्भाधान से कन्या व बाद के दिनो मे किए गए गर्भाधान से पुत्र की प्राप्ति होती हैं |
2)
यदि
गर्भाधान अथवा मैथुन के समय पुरुष जल्दी स्खलित होता हैं तो पुत्री की प्राप्ति और
स्त्री जल्दी स्खलित होती हैं तो पुत्र की प्राप्ति होती हैं |
3)मंगल दोष से प्रभावित जातको की पहली
संतान पुत्री होती हैं | ऐसा लगभग 80%लोगो मे सही पाया
गया हैं |
4)पुरुष की आयु स्त्री से अधिक होने पर भी
पुत्र प्राप्ति की संभावना ज़्यादा पायी जाती हैं ऐसा कई उदाहरणो मे सही पाया गया
हैं ( संभवत: इसी कारण भारतीय समाज मे विवाह
हेतु
स्त्री को पुरुष से छोटा ही रखा जाता हैं )
5)
ऋतुश्राव से चतुर्थ रात्रि तक गर्भाधान अनुचित माना गया हैं उसके बाद की सम रात्रि अर्थात 6,8,10,12,14,16 रात्रि मे किए
गए गर्भाधान से पुत्र व विषम रात्री मे किए गर्भाधान से पुत्री की प्राप्ति होती
हैं |
6)शुभ व अच्छे गर्भाधान के लिए दिनो
मे सोमवार,गुरुवार
व शुक्रवार,नक्षत्रो
मे हस्त,श्रवण,पुनर्वसु,व मृगशिरा व लग्नों मे मंगल(1,8) व शनि(10,11) के लग्नों को छोड़कर सभी लग्न शुभ कहे गए
हैं |
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