शनिवार, 25 जनवरी 2025

ग्रहों दोषों का शमन करते हैं रत्न

 


सामान्यतः ग्रहों के प्रतिकूलता के शमन हेतु रत्नों को धारण करने का विधान है । इन रत्नों को लेकर कहीं - कहीं हमारे ज्योतिविंद अथवा रत्न धारण करने वाले जातक दुविधा को प्राप्त हो जाते हैं । कुछ लोगों का मानना है कि जो ग्रह प्रतिकूल प्रभाव डालता है उसकी प्रतिकूलता को नष्ट करने के लिए उससे संबंधित रत्न को धारण करना चाहिए जबकि दूसरा मत है कि कमजोर ग्रह की ताकत बढ़ाने के लिए संबंधित रत्न धारण करना श्रेयस्कर माना जाता है । उदाहरण के लिए यदि शनि प्रतिकूल है तो कुछ लोग उसकी प्रसन्नता के लिए नीलम, नीली, जमुनिया आदि रल धारण करने की सलाह देते हैं किंतु यदि शनि चंद्रमा पर या उसके भाव पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है तो कुछ ज्योतिर्विद शनि का नग न पहनकर चंद्रमा की ताकत बढ़ाने के लिए मोती चंद्रमणि आदि धारण करने की बात करते हैं ।

ये दोनों तर्क अपने - अपने स्थान पर सही हो सकते हैं परंतु किसी भी ज्योतिर्विद को समग्र कुंडली तथा संबंधित ग्रहों के पड़ने वाले प्रभाव को देखकर ही ऐसा निर्धारित करना होगा । वस्तुतः मणि, मंत्र और औषधि यह तीनों ही उपचार शास्त्र सम्मत हैं । इसलिए इनका प्रयोग उपचार की दृष्टि से करना चाहिए ये कोई चमत्कारिक पत्थर नहीं होते । ग्रहों की शांति के लिए नवग्रह यंत्र की अंगूठी धारण करने का भी विधान है । इससे सभी ग्रह प्रसन्न हो जाते हैं इसका उल्लेख मुहूर्त चिंतामणि में इस प्रकार किया गया है –

'वज्रं शुक्रेब्जे सुमुक्ता प्रवालं भीमेगो गोमेदमाक सुनीलम् ।

केती वैदूर्य गुरौ पुष्पकं ज्ञे पाचिः प्रामाणिक्य मर्के तु मध्ये ।'

अर्थात सोने की अंगूठी में रत्रों को जड़ने के लिए नौ कोष्ठ, अष्टदल कमल का निर्माण कराएं, पूर्व भाग में होरा, चंद्रमा की तुष्टि के लिए अग्निकोण में सुंदर मोती,मंगल की प्रसन्नता के लिए दक्षिण में मूंगा, राहु की प्रसन्नता के लिए नैऋत्य में गोमेद, शनि की अनुकूलता के लिए पश्चिम में सुंदर नीलम, केतु के लिए वायव्य में वैदूर्य, गुरु के प्रीत्यर्थ उत्तर में पुष्पक अर्थात पोखराज, बुध की प्रसन्नता के लिए ईशान कोण में पन्ना और सूर्य के लिए बीच में माणिक जड़वाकर प्राण प्रतिष्ठा के बाद धारण करें । इसके अतिरिक्त पृथक - पृथक रत्नों को अलग - अलग राशि तथा ग्रहों के क्रम में धारण करने की मान्यता हैं |

सूर्य के लिए माणिक अथवा पद्म पराग, चंद्र के लिए मोती यह मोती हाथी, सांप, सीपी, शंख, मेघ, बांस, मछली और सुअर से उत्पन्न होता है,इनमें सीपी का मोती सर्वश्रेष्ठ है । मंगल के लिए मूंगा इसका अपना धारण करने का विधान है । मंगलवार को मेष या वृश्चिक राशि पर चंद्रमा या मंगल हो एवं दो चरण वाले मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा नक्षत्र हों उस दिन सूर्योदय से 10 बजे दिन के पहले उत्तम प्रकार के मूंगे को सोने की अंगूठी में जड़वाकर धारण करना चाहिए । मूंगे की माला भी धारण की जा सकती है ।

बुध के लिए पन्ना, बुधवार हस्त, ज्येष्ठा, रेवती नक्षत्र एवं पूर्वाह्न के समय जड़वाकर पहनना उत्तम माना गया है । प्रत्येक राशि की दृष्टि से इन रत्नों की माप निर्धारित की गयी है । गुरु के दोष शमन के लिए पुखराज, गुरु पुष्य के दिन धारण करना श्रेयस्कर रहता है । मेषादि राशियों के क्रम में उसकी माप निर्धारित की जाती है । शुक्र का रत्न हीरा, यह शुक्र के दोष का शमन करता है पति -पत्नी के प्रेम का वर्धक है । भूत - प्रेतादि बाधाओं को नष्ट करता है, काम कला को सशक्त बनाता है इसे शुक्रवार भरणी, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में धारण करना चाहिए । शनि के लिए नीलम, मकर कुंभ के शनि में अथवा शनिवार, चित्रा, स्वाति, विशाखा, श्रवण एवं घनिष्ठा नक्षत्र में सोने अथवा पंचधातु की अंगूठी में मढ़वा कर धारण करना श्रेयस्कर होता है । जिस राशि में शनि हो उसके अनुसार उसकी तौल होनी चाहिए ।

राहु के लिए गोमेद स्वच्छ गोमेद धारण करने से राहु ग्रह जनित समस्त रोग शांत होते हैं । राजकीय कर्मचारी, वकील, न्यायाधीश आदि को इसके धारण करने से बड़ी राहत मिलती है । मिरगी, बवासीर, तिल्ली, वायुविकार आदि रोगों में लाभ मिलता है इसकी अंगूठी बुध या शनिवार, स्वाति, शतभिषा एवं आर्द्रा नक्षत्र के योग में मढ़वाकर पहनना चाहिए जन्मकाल में जिस राशि पर राहु हो उसी क्रम से उसके माप को निर्धारित किया जाना चाहिए ।

केतु के लिए लहसुनिया धारण किया जाता है जिस दिन मेष, मीन या धनु राशि पर चंद्रमा हो उस दिन लोहे या सोने की अंगूठी में इसे धारण करें । 11 से अधिक रत्ती का वैदूर्य धारण करना अच्छा होता है कहा भी गया है कि नवरल की अंगूठी धारण करने की क्षमता न हो तो पृथक नग धारण करना चाहिए -

'माणिक्य मुक्ताफलविद्रुमाणि गारुत्मकं पुष्पकवज्रनीलम् ।

गोमेद वैदूर्यकमकंतः स्यू रत्नान्यथो ज्ञस्य मुदे सुवर्णम् ॥'

राहु की प्रसन्नता के लिए लाजावर्त, शुक्र और चंद्र की प्रसन्नता के लिए चांदी, गुरु लिए मोती, शनि के लिए लोहा, सूर्य और भौम के लिए मूंगा धारण करने का भी विधान बताया गया हैं

 

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