शनि हमारे ब्रह्मांड मे सबसे धीरे चलने वाला ग्रह हैं जिस कारण धरती पर इसका प्रभाव सबसे ज़्यादा व देर तक पड़ता हैं संभवत: इसी कारण इन्हे सबसे ज़्यादा भयावह समझा जाता हैं | भारतीय ज्योतिष शास्त्रो मे शनि को सेवक,झुककर व लंगड़ाकर चलने वाला,अहंकार का विरोधी,विनाशक,दंड देने मे सक्षम व न्याय करने वाला बताया गया हैं जो दलित,मजदूर,सर्वहारा वर्ग तथा आम जनता का प्रतिनिधित्व करता हैं |
भारतीय ज्योतिष के अनुसार कुंडली का दशम भाव व्यक्ति विशेष के
कार्य क्षेत्र,व्यवसाय व कार्यवृति को दर्शाता हैं | कालपुरुष
पत्रिका मे इस दशम भाव का स्वामी शनि ही बनता हैं ऐसे मे जब यह शनि दशम भाव मे
होता हैं तो जातक किस प्रकार का कार्य अथवा व्यापार आदि करता हैं और उसका जीवन
कैसा होता हैं हमने अपने इस लेख मे यही जानने का प्रयास किया हैं |
हमारे भारतीय शास्त्र दशम भाव के शनि हेतु निम्न बातें बताते
हैं |
फलदीपिका - ऐसा जातक राजा अथवा राजा का मंत्री होता हैं जो
प्रसिद्द,धनी व शूरवीर व कृषिकार्य (आजकल के संदर्भ मे मेहनत
भरा कार्य ) करने मे तत्पर रहता हैं |
मानसागरी – ऐसा जातक निम्न कार्य करने वाला,बुरे स्वभाव वाला तथा शरीर से दुर्बल होता हैं |
अन्य विद्वानो ने इस दशम शनि के मिले जुले प्रभाव बताए हैं कुछ
इस शनि को अच्छा तो कुछ बुरा बताते हैं कतिपय कुछ विद्वान इस शनि को दशवे भाव मे
स्वग्रही अथवा ऊंच का होने पर ही अच्छा बताते हैं |
भारतीय ज्योतिष के पुरोधा श्री बी॰वी॰ रमन के अनुसार दशम भाव का
शनि जातक विशेष को चमत्कारिक सफलता देता हैं उनके अनुसार राजनीतिज्ञो मे यह उन्हे उनके
शिखर से अचानक धरातल पर ले आता हैं | ऐसा ही मत ज्योतिष के अन्य पुरोधा श्री के॰एन॰राव का भी हैं
तथा अनुभव मे भी यह सही प्रतीत भी होता दिखता हैं |
यह भी देखा गया हैं की दशम भाव मे जब यह शनि शश योग का निर्माण
करता हैं तो यह शनि जातक को दुष्ट स्वभाव वाला राजा अथवा ग्राम प्रधान बनाता हैं
जो दूसरों के धन को पाने की लालसा रखता हैं |
अनुभव के आधार पर दशम शनि के कुछ इस प्रकार के फल देखने मे आते
हैं |
1)यह जातक विशेष तौर से राजनीतिज्ञो को राजयोग प्रदान कर शिखर
पर पहुंचाता हैं तथा अचानक उन्हे अर्श से फर्श पर ले आता हैं अथवा उनकी हिंसक
मृत्यु करवाता हैं |
1)हिटलर 20/4/1889 18:30 ब्रौनेऊ ऑस्ट्रीया की पत्रिका में
देखें तो तुला लग्न में शनि दसवें भाव में कर्क राशि पर स्थित है इनके जीवन में
भले ही शनि की दशा नहीं आई परंतु इस शनि ने इन्हें दसवे भाव में होने के जबरदस्त
फल प्रदान किए हैं इस शनि (चतुर्थेश-पंचमेश) के कारण ही उन्होंने अपने जीवन में
अपने देश को विश्व विजयी बनाने के लिए दुनिया भर में अपना नाम तानाशाही मे कमाकर
डंका बजवाया |
यह दशम शनि ही हैं जो इन्हे जितनी
तेजी से ऊंचाई की ओर ले गया उतने ही अप्रत्याशित तरीके से अचानक नीचे भी ले आया
तथा इन्होंने 30/4/1945 को स्वयं को गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी |
2)शेख मुजीब उर रहमान 17/3/1920 23:29 तुंगीपाड़ा बांग्लादेश की
वृश्चिक लग्न की पत्रिका में शनि सिंह राशि का दशम भाव में स्थित है तथा इन्हें
शनि दशा 1957 से 1976 के बीच मिली,इसी शनि (षष्ठेश सप्तमेश) की दशा में उनका राजनीतिक कैरियर आरंभ
हुआ तथा वे 1970 मे अवामी लीग के चुनाव जीते और बांग्लादेश के पहले राष्ट्रपति बने
तथा उसके बाद 1971 से 1975 के बीच बांग्लादेश के प्रधानमंत्री भी रहे परंतु सैन्य
विद्रोह के कारण 15 अगस्त 1975 के दिन इनको और इनके पूरे परिवार को मार डाला गया | इस प्रकार देखें तो इस दशम शनि की महादशा ने जहां इन्हें
जबरदस्त सफलता दी वही इनका हिंसात्मक अंत भी करवा दिया |
3)पूर्व इराक़ी राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन 28/4/1937 8:15 तिगरित,इराक की मिथुन लग्न की पत्रिका में देखे शनि कर्क राशि का दशम
भाव मे हैं इन्हें जन्म के समय से 1945 तक शनि दशा मिली शनि के नीच अभिलाषी होने
पर तथा दसवें भाव में वक्री शुक्र द्वादशेश संग होने से तथा नवे भाव मे मंगल का
प्रभाव होने से इनके जन्म से पहले ही उनके पिता की मृत्यु हो गई थी तथा मां ने
इन्हें छोड़ दिया इनका लालन-पालन चाचा के घर पर ही हुआ,इस प्रकार से कह सकते हैं कि इस शनि ने इन्हें आरंभिक जीवन बहुत
कठिनाई भरा दिया परंतु आगे चलकर इस शनि (अष्टमेश नवमेश )की दशम भाव की स्थिति ने
इन्हें ना सिर्फ अपने देश का राष्ट्रपति बनाया बल्कि पूरी दुनिया में इनके
तानाशाही रवैये के कारण इन्हें कुख्यात भी बना दिया | इनके
द्वारा ईरान और कुवैत पर हमला करने से युद्ध के बाद इन्हें अमेरिका ने फांसी
द्वारा मृत्युदंड दिया था |
4)पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन 9/1/1913 21:35 योरबा
लिंडा,अमरीका की सिंह लग्न की पत्रिका में शनि वृषभ राशि
के दशम भाव में वक्री अवस्था में है,शनि की महादशा इन्हें 1951 के अंत से 1970 के अंत तक रही तथा इस
शनि की महादशा के शुरुआत मे ही सन 1950 में यह सीनेट चुनाव जीते तथा 1952 से 1960
के बीच अमेरिका जैसे महान देश के उपराष्ट्रपति बने उसके बाद दशा के अंत मे 1969 से
1974 के बीच यह अमेरिका के राष्ट्रपति भी रहे तथा वॉटरगेट स्कैंडल के चलते इन्हें
9 अगस्त 1974 को त्यागपत्र देना पड़ा | इनकी पत्रिका में भी देखें तो इस दशम वक्री शनि ने जहां इन्हें
सर्वोच्च सफलता प्रदान करी,वही
अपनी दशा समाप्ती के तुरंत बाद रसातल में भी पहुंचा दिया |
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