गुरुवार, 18 फ़रवरी 2021

वक्री ग्रहो का प्रभाव

ज्योतिष का हर विद्वान जानता हैं की वक्रत्व पाँच ग्रहो मंगल,बुध,गुरु,शुक्र व शनि का विशेष गुण होता हैं जिनसे इन ग्रहों मे एक खास विशेषता जन्म ले लेती हैं जबकि वास्तव मे ग्रह वक्री अथवा पीछे की ओर जाने वाले कभी नहीं होते बल्कि धरती से हमें पीछे की और जाते दिखते हैं ज्योतिष ग्रंथ व ज्योतिष विद्वान ग्रहो के इस वक्रत्व को मानते व जानते अवश्य हैं परंतु इसके विषय मे ज़्यादा नहीं बताते हैं | 

इस विषय मे अभी बहुत से शोध किए जाने की आवशयकता हैं |

सारे ग्रह सूर्य की गति अथवा भ्रमण के द्वारा नियंत्रित होते हैं जिनसे उनके भ्रमण अथवा गोचर पर स्पष्ट प्रभाव पड़ता हैं जब भी कोई ग्रह किसी राशि विशेष मे होता हैं तब वह अपनी विशेषताओ के अतिरिक्त उस राशि से संबन्धित विशेषताए भी ग्रहण कर लेता हैं जिससे प्रश्न यह उठता हैं की ऐसे मे वह अपनी कितनी विशेषता दिखा पाता हैं हम यह भी पाते हैं की जब ज़्यादातर ग्रह एक ही राशि मे हो तब वह अपने अलग अलग फल ना देकर बिलकुल अलग प्रकार के मिले जुले फल ही प्रदान करने लगते हैं यह फल उस कुंडली के अनुसार फलित सूत्रो द्वारा जाने जा सकते हैं |

जब दो या दो से अधिक ग्रह एक ही राशि मे हो और उनमे से कोई ग्रह वक्री हो तो फलित करना थोड़ा मुश्किल हो जाता हैं उस वक्री ग्रह का फल क्या होगा यह बताने के लिए उसका विशेष अध्ययन करने की ज़रूरत पड़ती हैं अचानक होने वाली घटनाओ मे वक्री ग्रहो का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता हैं वह प्रभाव कैसा होगा शुभ होगा या अशुभ होगा यह उस ग्रह व संबन्धित कुंडली के द्वारा ही जाना जा सकता हैं क्यूंकी ज्योतिष के सिद्धान्त अनुसार कोई भी ग्रह अपने शुभ या अशुभ फल देने मे सक्षम होता हैं |

वक्री ग्रहो पर हमने अपने अनुभव के आधार पर बहुत सी कुंडलियों पर निम्न तथ्य पाये हैं |

1)वक्री ग्रह जातक विशेष के जीवन की कुछ घटनाओ पर अपना अधिकार अवश्य रखता हैं परंतु सभी घटनाओ पर नहीं |

2)ग्रह जो अशुभ भाव का स्वामी होता हैं केंद्र मे वक्री होकर शुभता देता हैं |

3)नीच का ग्रह केंद्र मे वक्री होकर ज़्यादा शुभता देता हैं जबकि ऊंच का ग्रह त्रिकोण मे वक्री होकर शुभता देता हैं |

4)शुभग्रह केंद्रस्वामी होकर केंद्र मे वक्री होकर शुभता नहीं देते बल्कि त्रिकोण मे होकर शुभता देते हैं जबकि पापग्रह केन्द्रस्वामी होकर केंद्र मे वक्री होकर शुभता देते हैं त्रिकोण मे शुभता नहीं देते परंतु दोनों अवस्थाओ मे ग्रहो के कारकत्व ही प्रभावित होते हैं |

5)वक्री ग्रह संग बैठा ग्रह उस ग्रह से शुभाशुभ फल प्राप्त कर लेता हैं |

6)योगकारक ग्रह का तथा 6,8,12 भावो के स्वामियों का वक्री होना अशुभ होता हैं |

7)शुभग्रह वक्री होने पर शुभता अपनी दशा के उतरार्ध मे देते हैं जबकि पाप ग्रह वक्री होने पर अपनी दशा के आरंभ मे तो शुभता देते हैं परंतु दशा के अंत मे सारी शुभता अशुभता मे बदल देते हैं जैसे सप्तमेश वक्री होने पर अपनी दशा के आरंभ मे विवाह तो करवा देगा परंतु दशा अंत होते होते संबंध विच्छेद अथवा जीवन साथी की मृत्यु भी करवा देगा |

8)दशमेश वक्री होने पर अपनी दशा मे बहुत शुभफल देता हैं परंतु कार्यक्षेत्र हेतु मारक प्रभाव भी प्रदान करता हैं बहुधा इस दशा मे जातक अपना कोई नया काम कर लेते हैं जो सफल रहता हैं |

9)वक्री ग्रह जिस नक्षत्र मे रहता हैं उस नक्षत्र स्वामी के अनुसार फल ना देकर अपने अनुसार ही फल देता हैं |

10)दो वक्री ग्रह एक ही भाव मे होने पर अपना अलग अलग प्रभाव देते हैं मिश्रित प्रभाव नहीं देते |

11)वक्री ग्रह अपने कारकत्वों के फल देता हैं उस भाव के नहीं जिस भाव मे वह होता हैं चाहे स्वग्रही क्यूँ ना हो |

12)दशमेश व एकादशेश एक ही भाव मे होतो यह माना जाता हैं की एकादशेश दशमेश की शक्ति ग्रहण कर लेता हैं जिससे दशमेश प्रभावहीन हो जाता हैं परंतु यदि दशमेश वक्री होतो दशमेश की शक्ति बढ़ जाती हैं जिससे एकादशेश प्रभावहीन हो जाता हैं |

13)वक्री ग्रह दूसरे वक्री ग्रह से स्थान परिवर्तन करने पर अपने अपने भावो का फल बढ़ा देते हैं |

14)अष्टमेश यदि केन्द्रस्वामी भी हो तो वक्री होने पर बहुत शुभता देता हैं कैसे कर्क हेतु शनि |

15)शुभग्रह वक्री होने पर स्वयं से 12वे भाव के फल बढ़ा देते हैं जबकि पाप ग्रह वक्री होने पर अपने से दूसरे भाव का फल बढाते हैं |

16)जब कोई ग्रह केंद्र व त्रिकोण दोनों का स्वामी होकर वक्री होता हैं तो वह बहुत शुभ फल प्रदान करता हैं जैसे वृष हेतु शनि |

वक्री ग्रह बली होते हैं रास्ते से हटने के कारण उनमे बल होता हैं इस ग्रह से संबंध होने पर व्यक्ति सनकपन,अपनी चलाने वाला एवं अविश्वसनीय होने के कारण शुभ नहीं माना जाता हैं | 

वक्री ग्रह अनिश्चिताओ का सामना कराते हैं शुभ ग्रहो का कुंडली मे वक्री होना जातक हेतु अशुभ होता हैं राहू केतू मार्गी होने पर अलग कार्य करवाते हैं एवं बुरे कार्यो हेतु शुभ होते हैं,स्थिर होने पर ग्रह डरा हुआ होता हैं |

वक्री ग्रह 3,6,8,12 मे हो तो जीवन मे बार बार परेशानियाँ होती रहती हैं |

जब भी वक्री ग्रह का संबंध त्रिकोण या त्रिकोणेश से होता हैं प्रारब्ध योग कहलाता हैं जिसके अच्छे व बुरे दोनों प्रभाव होते हैं | 

लग्न,लग्नेश,चन्द्र,चंद्रेश अगर बली हो तथा त्रिकोण मे वक्री ग्रह होतो सकारात्मक प्रभाव होता हैं | 

वक्री गुरु का संबंध त्रिकोणेश से होतो ज़िंदगी की शुरुआत अच्छी नहीं होती परंतु आगे चलकर बहुत तरक्की होती हैं साथ साथ रक्त संबंधी दोष भी होते हैं | 

छठे भाव व षष्ठेश का संबंध वक्री ग्रह तथा दशम भाव दशमेश से हो तो कुछ खास पेशे जैसे जासूसी,वकालत,चोरी हेतु अच्छा होता हैं | 

वक्री ग्रहो को आध्यात्मिक दृस्टी से ध्यान व समाधि हेतु शुभ माना जाता हैं नवम भाव मे वक्री ग्रह धर्म विरुद्ध कार्य अथवा धर्म परिवर्तन करवा सकता हैं |

श्रेष्ठ संतान कैसे पाये

 


भारतीय ज्योतिष के प्राचीन विद्वानो ने संतान प्राप्ति के कुछ विशेष अवसर व काल निर्धारण किए हैं जिससे की प्रत्येक जातक को उसकी आने वाली संतान अथवा भावी पीढ़ी के लिए बेहतरीन व सफलतम जीवन मिल सके | हजारो वर्षो के प्रमाणो ने साबित किया हैं की संयम,उचित समय,सात्विक मनोभावों से यदि स्त्री पुरुष रति क्रिया करे तो उसी भावना के अनुरूप उनकी कांतिवान,बुद्दिमान अथवा सर्वगुण संतान जन्म लेती हैं |

श्रेष्ठ संतान प्राप्ति हेतु स्त्री सहवास के संबंध मे काल,ऋतु,दिन,तिथि,समय तथा नक्षत्र आदि का उल्लेख हमारे प्राचीन शास्त्रो मे लिखा गया हैं भारतीय संस्कृति मे पुर्णिमा,अमावस्या,चतुर्दशी व अष्टमी को स्त्री सहवास के लिए वर्जित माना गया हैं ( जिसके पीछे वैज्ञानिक आधार भी हैं इन सभी दिनो सूर्य,चन्द्र व पृथ्वी एक ही रेखीय स्थिति मे होते हैं जिससे उनका परस्पर आकर्षण गुरुत्वाकर्षण के कारण अन्य दिनो के तुलना मे अधिक हो जाता हैं जिससे पृथ्वी पर रहने वालो मे रक्तचाप बढ्ने से उत्तेजना का प्रभाव ज़्यादा हो जाता हैं और जल प्रधान होने से हमारा शरीर का जीवन रस सही प्रकार से अपना कार्य नहीं कर पाता हैं )

कामशास्त्र के आचार्यो के अनुसार यदि संयम और शास्त्रानुसार गर्भाधान किया जाये तो मनवांछित संतान प्राप्त होती हैं जिसमे यह भी कहा गया हैं की रात्रि के चतुर्थ प्रहर के मैथुन से उत्पन्न संतान स्वस्थ,बुद्दिमान,धर्मपरायण व आज्ञाकारी होती हैं |

जीवविज्ञानिकों के अनुसार मनवांछित संतान प्राप्ति के लिए दिये गए कुछ सूत्र इस प्रकार से हैं |

1)ऋतुस्नान के आरंभिक दिनो मे किए गए गर्भाधान से कन्या व बाद के दिनो मे किए गए गर्भाधान से पुत्र की प्राप्ति होती हैं |

2) यदि गर्भाधान अथवा मैथुन के समय पुरुष जल्दी स्खलित होता हैं तो पुत्री की प्राप्ति और स्त्री जल्दी स्खलित होती हैं तो पुत्र की प्राप्ति होती हैं |

3)मंगल दोष से प्रभावित जातको की पहली संतान पुत्री होती हैं | ऐसा लगभग 80%लोगो मे सही पाया गया हैं |

4)पुरुष की आयु स्त्री से अधिक होने पर भी पुत्र प्राप्ति की संभावना ज़्यादा पायी जाती हैं ऐसा कई उदाहरणो मे सही पाया गया हैं ( संभवत: इसी कारण भारतीय समाज मे विवाह हेतु स्त्री को पुरुष से छोटा ही रखा जाता हैं )

5) ऋतुश्राव से चतुर्थ रात्रि तक गर्भाधान अनुचित माना गया हैं उसके बाद की सम रात्रि अर्थात 6,8,10,12,14,16 रात्रि मे किए गए गर्भाधान से पुत्र व विषम रात्री मे किए गर्भाधान से पुत्री की प्राप्ति होती हैं |

6)शुभ व अच्छे गर्भाधान के लिए दिनो मे सोमवार,गुरुवार व शुक्रवार,नक्षत्रो मे हस्त,श्रवण,पुनर्वसु,व मृगशिरा व लग्नों मे मंगल(1,8) व शनि(10,11) के लग्नों को छोड़कर सभी लग्न शुभ कहे गए हैं |

रविवार, 14 फ़रवरी 2021

दशम भाव शनि का विचित्र फल - 5

 5)यह दसम शनि जातक को अपने कार्यक्षेत्र मे अच्छी प्रसिद्दि व सफलता देता हैं |

1)अमृता प्रीतम 1/8/1919 13:49 पेशावर वृश्चिक लग्न मे जन्मी लेखिका अमृता प्रीतम के दसवे भाव मे सिंह राशि का शनि (तृतीयेश चतुर्थेश) होकर दशमेश सूर्य संग हैं शनि का तृतीयेश होकर दसम मे होना तथा तीसरे भाव मे 3 ग्रहो का प्रभाव होना इन्हे लेखिका के रूप मे ऊंच सफलता प्रदान कर रहा हैं |  

2)एम॰एस॰सुबबूलक्ष्मी 16/9/1916 9:30 मदुरै तुला लग्न मे जन्मी लक्ष्मी जी के दसम भाव मे कर्क राशि का शनि शुक्र व केतू संग हैं आप कर्नाटक संगीत की बहुत बड़ी उपासक थी जिनके इस दैवीय संगीत ज्ञान के महात्मा गांधीजी भी कायल थे | कर्नाटक संगीत के इस महान पुरोधा को भारत सरकार ने इनकी इस संगीत सेवा के चलते 1998 मे इन्हे भारत रत्न प्रदान किया था |  

3)ऐश्वर्या राय 1/11/1973 4:05 मंगलोर कन्या लग्न मे जन्मी ऐश्वर्या की पत्रिका मे दसवे भाव मे मिथुन का वक्री शनि केतू संग हैं ऐश्वर्या ने काफी कम आयु मे ही सौन्दर्य जगत मे अपना नाम कमा कर सिक्का जमा लिया था,बाद मे ये मौडेलिंग जगत के साथ साथ फिल्म जगत मे भी काफी कामयाब रही हैं |

4)14/12/1964 16:32 दिल्ली वृष लग्न मे जन्मे यह जातक काफी संघर्ष के बाद ऊंच पदाधिकारी बने हैं तथा 36 वर्ष की आयु बाद इन्होने सरकारी कार्यो के लिए सरकारी खर्च पर कई बार विदेश यात्राए भी करी जिससे इनकी अपने संगठन मे काफी प्रसिद्दि भी हुई,शनि दशा अभी नहीं आई हैं  |

5)3/4/1977 20:00 कलकत्ता तुला लग्न मे जन्मी इस जातिका ने बहुत ही कम समय मे चिकित्सा क्षेत्र मे काफी नाम कमाया हैं यह पेशे से शिशु विशेषज्ञ हैं | पत्रिका मे शनि दसवे भाव मे वक्री अवस्था का हैं जिसकी दशा जातिका के जीवन मे अभी आई नहीं हैं |

6)30/8/1951 14:36 मद्रास मे धनु लग्न मे जन्मा यह जातक मात्र 22 वर्ष की आयु मे एक अच्छे संस्थान मे मेनेजर बना तथा वर्तमान मे यह एक विश्व प्रसिद्द संगठन का ऊंच पदाधिकारी हैं | पत्रिका  मे शनि कन्या राशि का दसवे भाव मे हैं जिसकी दशा अभी आई नहीं हैं

7)6/9/1950 13:10 दिल्ली मे वृश्चिक लग्न मे जन्मे यह जातक भारत सरकार मे मुख्य सचिव के पद से सेवानिवृत हुये हैं | इनकी पत्रिका मे शनि सूर्य शुक्र संग सिंह राशि का होकर दसवे भाव मे हैं जिसकी दशा इन्हे 1981 से 2000 के मध्य मिली जिस दौरान इनकी खूब तरक्की हुई |

इन सभी उदाहरणो द्वारा देखे तो दसवे भाव का शनि कुछ विचित्र से फल देता दिखाई देता हैं जो ना सिर्फ चर्चित लोगो के साथ घटते हैं बल्कि आम जन की पत्रिका मे भी स्पष्ट रूप से देखने को मिलते हैं संभवत: इसी कारण शनि को कुंडली मे ठीक से समझ पाना आसान नहीं होता | 

 

 

शनिवार, 13 फ़रवरी 2021

दशम भाव शनि का विचित्र फल - 4

 4)यह जातक को जहां व्यापार मे ज़बरदस्त कामयाबी प्रदान करता हैं वही अपनी विचित्रता के चलते अचानक दिवालिया कर बर्बाद भी कर देता हैं |  

1)जोसेफ कैनेडी सीनियर 6/9/1888 8:56 बोस्टन अमरीका की पत्रिका देखे तो तुला लग्न में दसवें भाव में कर्क राशि का शनि राहु संग है तथा इन्हें शनि दशा 1945 से 1964 के मध्य मिली जिस दशा में इन्होने अपने पुत्रों को अमरीका के राजनीतिक जगत में स्थापित किया,इस दशम शनि ने इनको जबरदस्त रूप से स्टॉक मार्केट,फिल्म स्टूडियो व शिपिंग कंपनी का मालिक बनाया है तथा इनकी गिनती आज भी अमेरिका के महान बिजनेस घरानों में होती है तथा इनकी संतान का भी अमेरिकी राजनीति में अच्छा खासा योगदान रहा है ध्यान से देखें तो इस दशम शनि ने ना सिर्फ इन्हे जीवन मे जबरदस्त सफलता प्रदान करी हैं बल्कि अपनी दशा मे जाते-जाते इनके द्वारा संतान को भी राजनीतिक जगत में स्थापित करवा दिया | 

2)5/5/1956 2:10 लखनऊ कुम्भ लग्न मे जन्मे इस गरीब क्लर्क जातक ने शनि दशा 1985-2004 मे अपना छोटा सा व्यवसाय आरंभ किया जिसमे इनकी खूब तरक्की हुई और आज यह समाज मे प्रतिष्ठित करोड़पति व्यवसायी हैं |

3)25/6/1965 3:45 सीतापुर वृष लग्न की इनकी पत्रिका मे शनि कुम्भ राशि दशमस्थ हैं इन्हे अभी शनि दशा नहीं मिली हैं इनका चीनी का व्यापार था जो बहुत सफल रहा जिसके बाद इन्होने लोह व्यापार मे हाथ आजमाया तथा वर्तमान मे लोह व्यापार मे इनका अच्छा नाम हैं तथा ये अपने व्यापारिक समाज मे काफी सक्रिय हैं |

4)30/1/1966 14:05 फ़तेहपुर बिहार मे जन्मे वृष लग्न के इस जातक की कुंडली मे शनि मंगल संग कुम्भ राशि का दसवे भाव मे हैं जातक का अपना कंस्ट्रक्सन का व्यापार हैं जो काफी बड़े स्तर पर फैला हुआ हैं जिस कारण यह जातक काफी नामी व धनी भी हैं,जातक को अभी शनि दशा नहीं आई हैं |

5)1/1/1967 18:00 फरुखाबाद मिथुन लग्न के इस जातक ने अपनी लगी लगाई नौकरी छोड़कर प्लास्टिक व्यवसाय आरंभ किया जिसमे इनकी खूब तरक्की हुयी फिर इन्हे इनके पार्टनर ने ठग लिया जिससे यह पूरी तरह बर्बाद हो गए,इनकी पत्रिका मे शनि दसवे भाव मे मीन राशि के हैं |  

6)26/6/1971 9:33 इटारसी सिंह लग्न की इनकी पत्रिका मे शनि दशमस्थ हैं इनकी हीरो होंडा की एजेंसी थी जो शुक्र मे शनि दशा मे कर्ज़ चुकाने के लिए इन्हे अपने मकान के साथ बेचनी पड़ी जिससे ये रातोरात फर्श से अर्श पर आ गए वर्तमान मे ये किसी तरह संभालने का प्रयास कर रहे हैं |

8)17/11/1962 16:05 मुरादाबाद मे मेष लग्न मे जन्मे इस जातक को सम्बलपुर का लोह किंग कहा जाता था शुक्र शनि की दशा मे इनका ज़बरदस्त नुकसान हुआ जिससे यह सड़क पर आ गए,कार्य व्यापार सब बंद हो गया पत्नी बीमार हो गयी उसके इलाज तथा बदहाली के चलते अब यह पाई पाई को मोहताज हैं |

शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2021

दशम भाव शनि का विचित्र फल -3

 3)यह शनि विवाह सुख मे हानी करता हैं अथवा विवाह होने नहीं देता |

1)मेधा पाटकर 1/12/1954 11:00 मुंबई मकर लग्न विवाह नहीं,इनकी पत्रिका मे शनि शुक्र संग दसवे भाव मे तुला राशि का हैं इस शनि की सप्तम भाव पर दृस्टी हैं |

2)31/5/1957 00:45 अजमेर कुम्भ लग्न विवाह नहीं,इस जातिका की कुंडली मे शनि दसवे भाव मे वृश्चिक राशि का हैं जो शुक्र व सप्तम भाव को दृस्टी दे रहा हैं |

3)30/3/1954 3:48 बरेली मकर लग्न के इस जातक के दशम भाव मे तुला राशि का शनि वक्री अवस्था मे हैं जातक वकालत के साथ साथ डबल एम॰ ए हैं परंतु असफल होने के कारण पत्नी संग नहीं रहती हैं |

4)15/7/1967 5:30 अजमेर मिथुन लग्न मे जन्मे इस जातक की पत्रिका मे भी शनि दशम भाव मे हैं जातक कि पत्नी उसे छोड़ गयी हैं |

5)प्रधानमंत्री मोदी जी की कुंडली भी इनमे रखी जा सकती हैं |

गुरुवार, 11 फ़रवरी 2021

दशम भाव शनि के विचित्र फल -2

 2)यह जातक को धार्मिक प्रवृति देता हैं |

1)स्वामी विवेकानंद 12/1/1863 6:13 कलकत्ता धनु लग्न की पत्रिका मे शनि चन्द्र संग दसवे भाव मे कन्या राशि का हैं सभी जानते हैं की ये अविवाहित थे तथा इन्होने आजीवन सन्यासी का जीवन जिया तथा इनके धर्म शास्त्र व अध्यात्म का लोहा आज भी पूरा विश्व मानता हैं कम आयु के चलते इन्हे अपने जीवन काल मे शनि की दशा नहीं मिली थी,4/7/1902 को इनकी मृत्यु हो गयी थी |  

2)स्वामी श्री शील प्रभूपाद 1/9/1896 15:45 कलकत्ता,मकर लग्न मे जन्मे श्री प्रभुपाद की पत्रिका मे शनि तुला राशि का होकर दसवे भाव मे हैं | इन्होने अपना धार्मिक व आध्यात्मिक जीवन इसी शनि की दशा 1935-1954 मे शुरू किया था तथा बाद मे ये कृष्ण भक्ति के लिए मशहूर “इस्कॉन” नामक अंतर्राष्ट्रीय संस्थान के संस्थापक बने आज सारी दुनिया मे इनकी संस्थान के बहुत से कृष्ण मंदिर हैं |

3)नरेंद्र मोदी जी 17/9/1950 11:35 वदनगर भारत की वृश्चिक लग्न की पत्रिका में देखें तो शनि सिंह राशि के दशम भाव में है तथा इन्हे शनि महादशा जन्म से लेकर 1960 तक ही मिली जिस दौरान इन्हें पिता के साथ चाय बेचनी पड़ी तथा 8 वर्ष की अवस्था से ही यह राष्ट्रीय सेवक संघ नामक संस्था से जुड़ गए और इनका धार्मिक जीवन आरंभ हो गया था,इस दशम भाव के शनि ने तृतीयेश चतुर्थेश होकर मातृभूमि अथवा भारत भूमि से इनके लगाव को पूरे विश्व भर में दर्शाया है बल्कि इनके धार्मिक व आध्यात्मिक जीवन का कायल भी पूरी दुनिया को बनाया हैं वर्तमान समय में ये ना सिर्फ देश के दूसरी बार प्रधानमंत्री हैं बल्कि पूरे विश्व में भी इनकी लोकप्रियता का डंका बज रहा  है |

इनके अतिरिक्त ऐसा हम गौतम बुध 14/4/623 ईसा पूर्व 12:00 कर्क लग्न,संत मोहम्मद साहब 20/4/571 1:10 कुम्भ लग्न  की पत्रिका  मे भी देख सकते हैं |

 

बुधवार, 10 फ़रवरी 2021

दशम भाव शनि के विचित्र फल -1

 शनि हमारे ब्रह्मांड मे सबसे धीरे चलने वाला ग्रह हैं जिस कारण धरती पर इसका प्रभाव सबसे ज़्यादा व देर तक पड़ता हैं संभवत: इसी कारण इन्हे सबसे ज़्यादा भयावह समझा जाता हैं | भारतीय ज्योतिष शास्त्रो मे शनि को सेवक,झुककर व लंगड़ाकर चलने वाला,अहंकार का विरोधी,विनाशक,दंड देने मे सक्षम व न्याय करने वाला बताया गया हैं जो दलित,मजदूर,सर्वहारा वर्ग तथा आम जनता का प्रतिनिधित्व करता हैं |

भारतीय ज्योतिष के अनुसार कुंडली का दशम भाव व्यक्ति विशेष के कार्य क्षेत्र,व्यवसाय व कार्यवृति को दर्शाता हैं | कालपुरुष पत्रिका मे इस दशम भाव का स्वामी शनि ही बनता हैं ऐसे मे जब यह शनि दशम भाव मे होता हैं तो जातक किस प्रकार का कार्य अथवा व्यापार आदि करता हैं और उसका जीवन कैसा होता हैं हमने अपने इस लेख मे यही जानने का प्रयास किया हैं |

हमारे भारतीय शास्त्र दशम भाव के शनि हेतु निम्न बातें बताते हैं |

फलदीपिका - ऐसा जातक राजा अथवा राजा का मंत्री होता हैं जो प्रसिद्द,धनी व शूरवीर व कृषिकार्य (आजकल के संदर्भ मे मेहनत भरा कार्य ) करने मे तत्पर रहता हैं |

मानसागरी – ऐसा जातक निम्न कार्य करने वाला,बुरे स्वभाव वाला तथा शरीर से दुर्बल होता हैं |

अन्य विद्वानो ने इस दशम शनि के मिले जुले प्रभाव बताए हैं कुछ इस शनि को अच्छा तो कुछ बुरा बताते हैं कतिपय कुछ विद्वान इस शनि को दशवे भाव मे स्वग्रही अथवा ऊंच का होने पर ही अच्छा बताते हैं |

भारतीय ज्योतिष के पुरोधा श्री बी॰वी॰ रमन के अनुसार दशम भाव का शनि जातक विशेष को चमत्कारिक सफलता देता हैं उनके अनुसार राजनीतिज्ञो मे यह उन्हे उनके शिखर से अचानक धरातल पर ले आता हैं | ऐसा ही मत ज्योतिष के अन्य पुरोधा श्री के॰एन॰राव का भी हैं तथा अनुभव मे भी यह सही प्रतीत भी होता दिखता हैं |

यह भी देखा गया हैं की दशम भाव मे जब यह शनि शश योग का निर्माण करता हैं तो यह शनि जातक को दुष्ट स्वभाव वाला राजा अथवा ग्राम प्रधान बनाता हैं जो दूसरों के धन को पाने की लालसा रखता हैं |

अनुभव के आधार पर दशम शनि के कुछ इस प्रकार के फल देखने मे आते हैं |

1)यह जातक विशेष तौर से राजनीतिज्ञो को राजयोग प्रदान कर शिखर पर पहुंचाता हैं तथा अचानक उन्हे अर्श से फर्श पर ले आता हैं अथवा उनकी हिंसक मृत्यु करवाता हैं |

1)हिटलर 20/4/1889 18:30 ब्रौनेऊ ऑस्ट्रीया की पत्रिका में देखें तो तुला लग्न में शनि दसवें भाव में कर्क राशि पर स्थित है इनके जीवन में भले ही शनि की दशा नहीं आई परंतु इस शनि ने इन्हें दसवे भाव में होने के जबरदस्त फल प्रदान किए हैं इस शनि (चतुर्थेश-पंचमेश) के कारण ही उन्होंने अपने जीवन में अपने देश को विश्व विजयी बनाने के लिए दुनिया भर में अपना नाम तानाशाही मे कमाकर डंका बजवाया | यह दशम शनि ही हैं जो इन्हे जितनी तेजी से ऊंचाई की ओर ले गया उतने ही अप्रत्याशित तरीके से अचानक नीचे भी ले आया तथा इन्होंने 30/4/1945 को स्वयं को गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी |

2)शेख मुजीब उर रहमान 17/3/1920 23:29 तुंगीपाड़ा बांग्लादेश की वृश्चिक लग्न की पत्रिका में शनि सिंह राशि का दशम भाव में स्थित है तथा इन्हें शनि दशा 1957 से 1976 के बीच मिली,इसी शनि (षष्ठेश सप्तमेश) की दशा में उनका राजनीतिक कैरियर आरंभ हुआ तथा वे 1970 मे अवामी लीग के चुनाव जीते और बांग्लादेश के पहले राष्ट्रपति बने तथा उसके बाद 1971 से 1975 के बीच बांग्लादेश के प्रधानमंत्री भी रहे परंतु सैन्य विद्रोह के कारण 15 अगस्त 1975 के दिन इनको और इनके पूरे परिवार को मार डाला गया | इस प्रकार देखें तो इस दशम शनि की महादशा ने जहां इन्हें जबरदस्त सफलता दी वही इनका हिंसात्मक अंत भी करवा दिया |  

3)पूर्व इराक़ी राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन 28/4/1937 8:15 तिगरित,इराक की मिथुन लग्न की पत्रिका में देखे शनि कर्क राशि का दशम भाव मे हैं इन्हें जन्म के समय से 1945 तक शनि दशा मिली शनि के नीच अभिलाषी होने पर तथा दसवें भाव में वक्री शुक्र द्वादशेश संग होने से तथा नवे भाव मे मंगल का प्रभाव होने से इनके जन्म से पहले ही उनके पिता की मृत्यु हो गई थी तथा मां ने इन्हें छोड़ दिया इनका लालन-पालन चाचा के घर पर ही हुआ,इस प्रकार से कह सकते हैं कि इस शनि ने इन्हें आरंभिक जीवन बहुत कठिनाई भरा दिया परंतु आगे चलकर इस शनि (अष्टमेश नवमेश )की दशम भाव की स्थिति ने इन्हें ना सिर्फ अपने देश का राष्ट्रपति बनाया बल्कि पूरी दुनिया में इनके तानाशाही रवैये के कारण इन्हें कुख्यात भी बना दिया | इनके द्वारा ईरान और कुवैत पर हमला करने से युद्ध के बाद इन्हें अमेरिका ने फांसी द्वारा मृत्युदंड दिया था | 

4)पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन 9/1/1913 21:35 योरबा लिंडा,अमरीका की सिंह लग्न की पत्रिका में शनि वृषभ राशि के दशम भाव में वक्री अवस्था में है,शनि की महादशा इन्हें 1951 के अंत से 1970 के अंत तक रही तथा इस शनि की महादशा के शुरुआत मे ही सन 1950 में यह सीनेट चुनाव जीते तथा 1952 से 1960 के बीच अमेरिका जैसे महान देश के उपराष्ट्रपति बने उसके बाद दशा के अंत मे 1969 से 1974 के बीच यह अमेरिका के राष्ट्रपति भी रहे तथा वॉटरगेट स्कैंडल के चलते इन्हें 9 अगस्त 1974 को त्यागपत्र देना पड़ा | इनकी पत्रिका में भी देखें तो इस दशम वक्री शनि ने जहां इन्हें सर्वोच्च सफलता प्रदान करी,वही अपनी दशा समाप्ती के तुरंत बाद रसातल में भी पहुंचा दिया | 

 

शनि,राहू-केतू और आपके पूर्व कर्म

हम सब जानते हैं शनि हमें इस जन्म मे कर्म करना बताता है,हमे क्या कर्म करना पड़ेगा ये शनि की स्थिति से जाना जा सकता हैं | राहु हमारी पूर्व जन्म से सम्मिलित इच्छाओं की पूर्ति के लिए हमें जन्म देता है तथा केतू हमारे पूर्व जन्म के किए गए कर्मों को बताता है जो हमने पूरे कर लिए थे |

कुंडली में शनि की स्थिति को देखें वह जिस भाव और जिस राशि में है उसके स्वामी को उसके नक्षत्र स्वामी को भी देखें तथा वह किस भाव को दिखाता है यह भी देखें यदि किसी ग्रह से शनि की युति हैं तो उसे भी देखें न भावो से संबंधित ही आपके कर्म इस जन्म मे होंगे,यदि शनि वक्री हो तो आपके और अधूरे कर्म होंगे जो आपको पूरे करने होंगे |

उदाहरण के लिए शनि नवे भाव में है तो आपके धर्म संबन्धित पूर्व जन्मो के कर्म जो आपने ईश्वर से कहे थे वह पूरे नहीं हुए हैं जिसके लिए आपका जन्म हुआ है यह हमारा निश्चित भाग्य क्षेत्र है इस कारण आपका भाग्य इस जन्म मे रुका हुआ है और आपकी कोई तरक्की नहीं हो रही है इस जन्म मे इस दिशा में किए गए कर्म आपको तरक्की प्रदान करेंगे |

राहु आपकी वह इच्छा बता रहा है जो आपके किसी पूर्व जन्म से अब तक नहीं पूरी नहीं हुई है आप उसकी पूर्ति के लिए इस जीवन में आए हैं इसके लिए राहु की राशि का स्वामी नक्षत्र नक्षत्र का स्वामी युति सब को देखें इससे आपको इस जन्म में क्या करना चाहिए पता चलता है यदि आप उसी क्षेत्र में चलते हैं तो आपका वह कर्म पूरा हो जाता है और आपकी इच्छा की पूर्ति हो जाती हैं |

उदाहरण के लिए यदि राहु सूर्य के साथ हो तो आपके रुके में इच्छित कर्म पिता सरकार अथवा राजनीति से संबंधित है आपको यह कर्म अवश्य ही पूर्ण करने होंगे चाहे आप चाहे ना चाहे आपकी परिस्थिति आपको उस तरफ धकेलेगी |

केतु आपको उस क्षेत्र,कारक,भाव अथवा घर से अलग हटाएगा जिससे संबन्धित वह कुंडली मे बैठा हैं अथवा जिस ग्रह से वह संबंधित हो,ग्रह की युति हो,नक्षत्र हो क्योंकि आपने वह कर्म अपने पूर्व जन्म मे पूरा किया हुआ है जिस कारण केतू हमे उस कर्म से अलग कर रहा हैं और हम अलग हो रहे हैं जो कि हमें इस जीवन में मिला हुआ है और अब हम जब तक इस जन्म मे कोई नया कर्म नहीं करते हैं वह हमे कर्म करने नही देगा तथा इस जन्म को हम आगे लेकर नहीं जा पाएंगे |