बुधवार, 21 दिसंबर 2022

शनि साढ़ेसाती/ढैय्या का प्रभाव व उपाय



17 जनवरी 2023 कर्मफल देवता शनिदेव अपनी वर्तमान मकर राशि को छोड़कर अपनी मूलत्रिकोण कुंभ राशि में प्रवेश करेंगे | यहां शनि देव 26 महीनों तक रहेंगे |

शनि के इस गोचर से शनिदेव की साढ़ेसाती का प्रभाव मकर/कुंभ और मीन राशि वालों पर पड़ने लगेगा तथा कर्क व वृश्चिक राशि वालों पर ढैया का प्रभाव पड़ेगा | धनु राशि वालों से साढ़ेसाती समाप्त हो जाएगी तथा मिथुन व तुला वालों को ढैया से मुक्ति मिलेगी |

अब धनु राशि के जातक आपके पास पूरी तरह से निश्चिंत होकर कार्य करने का समय आ रहा है और ये पूरे ढाई साल रहेगा उसके बाद धनु राशि पर शनि की ढैया लगेगी लेकिन उसमें अभी ढाई साल का समय है

मकर राशि के लिए उतरती साढ़ेसाती का प्रभाव रहेगा जो कि अंतिम ढाई साल बचे हुए हैं |

यहां मकर राशि के जातकों के लिए शनि देव 17 जनवरी से आपके द्वितीय भाव में रहेंगे जो कि धन परिवार वाणी से संबंध रखता है | यहां शनि देव आपसे बेफिजूल खर्चे कराकर आपको खुद ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने पर विवश करेंगे हालांकि ये राशि शनिदेव की मूल त्रिकोण राशि है तो नुकसान थोड़ा कम होगा लेकिन आप खुद ही अपने धन का नाश होते हुए देखेंगे और ये ज्यादातर आपकी वाणी के कारण ही होगा आप अपनी भाषा के कारण ही नए शत्रु बनाएंगे जो आपके लिए ही नुकसानदेह साबित हो सकती हैं आपकी इसी कर्कश वाणी के कारण परिवार में कलह का माहौल हो सकता है आपको पत्नी सुख मे कमी हो सकती हैं |

कुंभ राशि के जातकों के लिए 17 जनवरी से साढ़ेसाती का मध्य चरण चलेगा तथा साढ़ेसाती के पहले ढाई साल अब खत्म होंगे | चंद्र राशि से देखें तो इस राशि वालों के लिए शश नाम का महापुरुष राजयोग भी बनेगा लेकिन देखा जाए कुछ मामलों में भी आपको सावधानी रखने की जरूरत है जैसे कि यहां बैठे शनि की तीसरी और नीच दृष्टि आपके मित्रों भाई - बहन पर रहेगी,सप्तम दृष्टि दांपत्य जीवन पार्टनरशिप व्यापार भाव पर रहेगी और दशम दृष्टि कार्य स्थान पर पड़ेगी इन तीनों भाव से संबंधित समस्या आप महसूस करेंगे आपके कार्य निश्चित रूप से धीमी गति से ही पूर्ण होंगे,मित्र भाई बंधु अपना वचन समय से नहीं निभा पाएंगे जिसके असर से आपके व्यापार और दांपत्य जीवन पर पड़ेगा जिससे आपके कार्यस्थल पर भी परेशानी पाएंगे |

मीन राशि के जातकों के लिए शनिदेव की साढ़ेसाती का प्रथम चरण का प्रभाव शुरू होगा | आपकी राशि से शनि देव लाभ भाव और खर्च भाव के स्वामी होकर आपकी राशि से बारहवें भाव मे विराजमान होंगे |

प्रथम चरण की शुरुआत 12वे भाव से होने से बेफीजुल के खर्चे और वह भी अकस्मिक रूप से हों सकते हैं जैसे आपने सोचा मेरा एक हजार खर्चा होने वाला है वहां जाकर आपको पता चलेगा कि ये खर्चा तो 1500 / 2000 का भी हो गया | पुराना कोई दबा हुआ केस अथवा किसी मामले को लेकर कोर्ट केस में आपकी परेशानी का कारण बन सकता है कोई बीमारी के कारण अस्पतालों में भी आपके चक्कर लग सकते हैं | कुल मिलाकर आपके जमा किए हुए पैसे खर्च होंगे कुटुंब परिवार में कलह का माहौल बनेगा पिता के स्वास्थ्य में कोई ऊंच - नीच आ सकती है बेफिजूल की यात्राएं जहां जाने की कोई जरूरत नहीं होगी वैसी यात्राएं आप करेंगे मानसिक तौर पर परेशानी का कारण समझ में नहीं आएगा इन सब चीजों से आपको बचने की आवश्यकता रहेगी,स्थान परिवर्तन की भी संभावना रहगे | ये वो राशियां थी जो शनि की साढ़ेसाती के प्रभाव में रहेंगी |

आइए अब देखते हैं ढैया वाली राशियो पर क्या प्रभाव पड़ेगा |

17 जनवरी से कर्क व वृश्चिक राशि के जातक शनि की ढैया के प्रभाव मे आएंगे |

कर्क राशि के लिए शनि देव सप्तम और अष्टम के स्वामी होकर अष्टम भाव में गोचर करेंगे  यहाँ के शनि इनके हर एक कार्य में आपके लिए विलंब उत्पन्न करेंगे,दांपत्य जीवन में परेशानी बिजनेस पार्टनरशिप,व्यापार,कुटुंब   परिवार में कलह का माहौल,कार्यक्षेत्र पर अपने सहकर्मियों से भी आपके रिश्तो में खटास जैसी बातें होंगी जो इनके मानसिक परेशानियों का कारण बनेगी और अगर कर्क राशि के जातकों की जन्मपत्री में जन्म से ही शनि चंद्रमा का किसी भी तरह का संबंध बना हुआ है तो ये परेशानी ज्यादा घातक रूप लेकर आ सकती है |

वृश्चिक राशि से शनि चतुर्थ भाव में गोचर करेंगे आपको भी हर तरह से परेशानी का सामना करना होगा कुटुंब  परिवार में आपस में रिश्तो में खटास छोटी-छोटी बातों को लेकर अनबन की स्थिति और यही बातें आगे जाकर कुछ बड़ी परेशानीया आपके पास लाएँगी अपनी मां के स्वास्थ्य का विशेष ख्याल रखें, भूमि,मकान अथवा वाहन खरीदना होतो पुराना खरीदना आपके लिए लाभदायक रहेगा परंतु अच्छी तरह से जांच परख कर ही लें | प्रॉपर्टी, मकान के कागजात देख कर ही साइन इत्यादि करें जल्दबाजी में किया गया निर्णय आपके लिए भविष्य मे परेशानी का कारण बन सकता हैं किसी भी तरह के लोभ लालच में लुभावनी स्कीम में किसी मित्र अपने भाई बंधुओं के कहने पर किसी भी तरह का निवेश ना करें | 

यहां से शनिदेव की तीसरी और निच दृष्टि रोग ऋण कर्जे शत्रु से संबंध भाव पर होने से नए शत्रु बनना कोई रोग निकल कर आना उच्च अधिकारियों के साथ रिश्तो में खटास की स्थिति दे सकती हैं शनि की दसवीं दृष्टि आपकी राशि पर ही रहेगी जो आप के मान सम्मान और स्वास्थ्य को भी हानि पहुंचा सकती है |

शनि - पादविचार

"जन्मांग - रुद्रेषु सुवर्णपादं द्विपञ्चनन्दे रजतस्य पादम् ।

त्रि-सप्त- दिक् ताम्रपादं वदन्ति शेषेषु राशिष्विह लौहपादम् ।।"

पादफल - विचार-

"लौहे धनविनाशः स्यात् सर्वं दुःखं च कांचने ।

ताम्रे च समता ज्ञेया सौभाग्यं च राजते भवेत्॥"

शनि के राशि परिवर्तन के समय तात्कालिक चंद्र जन्मराशि से यदि 1, 6, 11 स्थान में हो तो स्वर्णपाद 2, 5, 9 स्थान में हो तो रजतपाद 3, 7, 10 स्थान में चन्द्र हो तो ताम्रपाद यदि शनि के राशि परिवर्तन के समय चन्द्र 4, 8, 12 में होतो लौहपाद होता है ।

स्वर्णपाद सभी प्रकार के दुःखों को देने वाला,रजतपाद सुख-सौभाग्यप्रद, ताम्रपाद मध्यम फलद एवं लौहपाद धन-धान्य का नाशक होता है ।

कुम्भस्थ शनि की साढेसाती एवं ढैय्या का पाद अथवा पाया अनुसार विचार  

कुम्भ - साढेसाती - हृदय पर, पाद ताम्र ।

मुख्य फल - अचानक धनलाभ, स्त्री / पुत्रसुख, सम्पत्तिलाभ, सेहत ठीक, प्रगति के मार्ग बनें ।

मकर साढेसाती - पैरों पर उतरती, सुवर्ण पाद ।

फल - शत्रु प्रबल, अधि निज-जन-विरोध, रोगभय, परिवार में क्लेश, धनहानि हो, चिन्ता आदि से कष्टप्रद समय ।

मीन साढेसाती - मस्तक पर चढ़ती हुई,पाद रजत ।

फल - व्यापार में प्रगति, धन - धान्य समृद्धि, सुख-सम्पदा लाभ, प्रभाव क्षेत्र बढ़े, घर में मंगलकृत्य हों, राजपक्ष से सम्मान ।

कुम्भस्थ शनि में कर्क / वृश्चिक राशि के व्यक्ति ढैय्या के प्रभाव में रहेंगे ।

1. मेष, सिंह, धनु को लौहपाद होने से शरीरपीड़ा, स्त्री/पुत्र / पशु - पीड़ा, एवं व्यापार में हानि व आर्थिक संकट रहे ।

2. वृष, कन्या, कुम्भ को ताम्रपाद होने से अचानक धनलाभ, स्त्रीपुत्र - सुख, सम्पत्तिलाभ, सेहत ठीक, प्रगति के मार्ग बनें।

3. मिथुन, वृश्चिक, मकर को सुवर्णपाद होने से शत्रुप्रबल, निजीजन - विरोध, रोगभय, पारिवारिक क्लेश, धनहानि व चिन्ता आदि से कष्ट रहे ।

4. कर्क, तुला, मीन को रजतपाद होने से व्यापार में प्रगति, धान्यसमृद्धि, सुख-सम्पदालाभ, प्रभावक्षेत्र-वृद्धि, घर में मंगलकार्य हों, राजपक्ष कर से सम्मान मिले।

साढेसाती में प्रत्येक राशि के लिए शनि का सामान्यतया अशुभ फल कब होगा -

मेष राशि वालों के बीच के अढाई वर्ष खराब हैं । वृष को पहले अढाई वर्ष, मिथुन को अन्त के अढाई वर्ष, कर्क को बीच के अढाई वर्ष, सिंह को पहले 5 वर्ष, उनमें भी मध्य के अढाई वर्ष खराब हैं । कन्या को पहले 5 वर्ष, उनमें भी मध्य के अढाई वर्ष विशेष अशुभ हैं । तुला को आखिर के अढाई वर्ष, वृश्चिक को अन्तिम 5 वर्ष नेष्ट हैं, उनमें भी मध्य के अढाई वर्ष विशेष अशुभ हैं । धनु को प्रारम्भ के अढाई वर्ष, मकर को पहले 5 वर्ष, उनमें भी पहिले अढाई वर्ष विशेष खराब हैं । कुम्भ को आदि एवं अन्त के पांच वर्ष, विशेषतः अन्त के अढाई वर्ष अधिक अशुभ हैं । मीन को पूरे साढेसात वर्ष नेष्ट हैं, उनमें भी अन्त के अढाई वर्ष विशेष अशुभ फल देने वाले होते हैं |

शनिजन्य नेष्टफल - शान्त्यर्थ शास्त्रीय उपाय

1)शनि की साढेसाती / ढैय्या के नेष्टफल की शान्ति के लिए शनि के बीजमन्त्र या वैदिक मन्त्र का 23,000 की संख्या में विधिपूर्वक जाप करें। तदुपरान्त दशांश हवनादि करें ।

2)शनिवार के दिन सतनाजा दान, लौहपात्र में तैलदान, शनिस्तोत्र का पाठ करना/कराना श्रेयस्कर रहता है ।

3)इसके अतिरिक्त शुभ वेला में 'नीलम' रत्न एवं 'शनियन्त्र' धारण करना भी आश्चर्यजनक रूप से लाभप्रद रहता है । परन्तु रत्नधारण करने से पूर्व किसी दैवज्ञ का परामर्श लेकर शनि के अंशादि का अध्ययन करवाना श्रेयस्कर रहता हैं |

4)शनि का बीज मन्त्र – “ ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः का प्रतिदिन 3 माला जाप करें । मन्त्रजाप से पहले "अमुक मासे, अमुक पक्षे, अमुक तिथौ, शनैश्चर नेष्टफल शान्त्यर्थम् शनि - मन्त्रजापमहं करोमि " - इस प्रकार संकल्प करके शनि - मन्त्रजाप करें ।

5)शनिवारी अमावस वाले दिन सूर्यास्तसमय (गोधूलिवेला में ) शनि - मन्त्रजाप, स्तोत्रपाठ करें एवं तेल में मुंह देखकर, उसमें एक लौंग डालकर दान करें और सायंकाल पीपल के नीचे दीपक जलायें ।

मन्त्र जाप की विधि - अनुष्ठान शनिवार को करें। सूर्यास्त-समय स्नान करके कम्बलासन पर बैठकर, पश्चिमाभिमुख होकर (पश्चिम की तरफ मुंह करके) लोहे के खुले बर्तन में जौ, लौंग एवं काले तिल प्रत्येक 200 - 200 ग्राम लेकर एक अंजलि भर चावल और 7 सुपारी रखें । मौली, धूप, लाल चन्दन, दो अपूप (पूड़े) भी सामने रख लें । मिट्टी के बर्तन में तेल का दीपक प्रज्वलित करें एवं एक स्टील का लोटा तेल से भरकर सामने रखकर " ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः " - इस मन्त्र का कुल 23 हज़ार जाप करें। मन्त्रजाप पूर्ण होने के बाद सारी सामग्री, जो सामने रखी थी, को जलप्रवाह कर दें । तेलभरी गड़वी (लोटा) में लौंग डालकर शनि वाले डकौत को दें। सामग्री को जलप्रवाह करते समय निम्नांकित मन्त्र का उच्चारण करें -

 “ ॐ नमः कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च ।

नमः कालाग्नि-रूपाय कृतान्ताय च ते नमः । ।

इस मन्त्रोच्चारण के बाद "दूर जाते हुए शनि को पृष्ठभाग" से नमस्कार करके घर को जायें ।

 6)'नीलम' रत्न का काम देने वाली वनौषधि

शनिदोष - निवारण के लिए अनेक व्यक्ति 'नीलम' धारण करते हैं, परन्तु सबको अनुकूल बैठने वाला शुद्ध 'नीलम' रत्न बहुत कम मिलता है । उसकी भले-बुरे की परीक्षा भी कठिन है और यह रत्न बहुमूल्य (महंगा) होता है। अतः सर्वसाधारण मनुष्य खरीद नहीं सकते। ऐसे व्यक्ति नीलम के अभाव में 'बिच्छू- बूटी' की जड़ का प्रयोग करें। बिच्छू-बूटी हिमाचल प्रदेश में बहुत होती है। कोमल कांटेदार पत्तों को स्पर्श करने से वृश्चिकदंश जैसी पीड़ा होने लगती है। अतः इसका नाम बिच्छू-बूटी है। शुक्लपक्ष शनिवार को प्रातः (यदि पुष्य नक्षत्र भी मिल जाये तो अत्युत्तम) बिच्छू-बूटी की जड़ उखाड़कर ले आयें। पहले दिन शुक्रवार की सन्ध्या को निमन्त्रण दे आयें। इस जड़ के टुकड़े को चांदी के ताबीज में भरकर शनिमन्त्र से धारण करें। यह हर व्यक्ति का शनिदोष निवारण करती है ।

7)शनि जन्य नेष्टफल - शान्त्यर्थ वैदिक मन्त्र

ॐ शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये, शंय्योरभिस्रवन्तु नः । शं शनये नमः ॐ । "

8)शनिजन्य नेष्टफल - शान्त्यर्थ शनैश्चर - स्तोत्र

पिप्पलाद उवाच -

ॐ नमस्ते कोणसंस्थाय पिंगलाय नमोऽस्तु ते ।।

नमस्ते बभ्रुरूपाय कृष्णाय च नमोऽस्तु ते ।।

नमस्ते रौद्रदेहाय नमस्ते चांतकाय च ।

नमस्ते यमसंज्ञाय नमस्ते सौरये विभो ।।

नमस्ते मन्दसंज्ञाय शनैश्चर नमोऽस्तु ते ।

प्रसादं कुरु देवेश दीनस्य प्रणतस्य च।।"

इस स्तोत्र का पाठ शनिवार को पीपल के नीचे बैठकर एवं अन्य दिनों में भगवान् शंकर से प्रार्थनापूर्वक शिवमन्दिर या घर में भी बैठकर प्रातः करने से साढेसाती व ढैय्या की दुःखद पीड़ा नहीं होती है |

9)शनिजन्य नेष्टफल - परिहारार्थ तुलादान करायें |

विधि - शनि ग्रह से पीड़ित व्यक्ति अपने जन्मदिन पर या शनैश्चरी अमावस/ शनिवार को दिन में लगभग 11/12 बजे गेहूं, काले चने, चावल, बाजरा, कालीदाल (माह), जौ, मूंग आदि सात अनाजों से अपने वजन के बराबर तौलकर दान (तुलादान) करें। साथ ही तेल में मुंह देखकर दक्षिणासहित शनि का दान लेने वाले (ढौंसी) को दे दें। बाद में तुलादान के समय पहने हुए कपड़े भी स्नान करके, दान कर दें ।

नोट - तुलादान से पहले यदि कोई बहुमूल्य आभूषण आदि शरीर पर धारण किया हुआ हो, वह पहले ही उतार दें, अन्यथा वह भी दान करना होगा ।

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