प्रस्तुत पुस्तक जैमिनी की ज्योतिषीय प्रणाली पर आधारित है, और जैमिनी-पद्धति को समझने के लिए इसमे महत्वपूर्ण पाठ बनाए गए हैं । कारक या कारकांश लग्न का निर्धारण करते हुए, हमें बताया गया है कि अंशों की गिनती चर राशियो में शुरुआत से, स्थिर राशियो में अंत से और द्विस्वभाव राशियो मे मध्य से होनी चाहिए । यह सिद्धांत पद अंशो की गणना में प्रकट होता है ।
प्रारंभिक
अध्याय में दिए गए चार्ट में विभिन्न ग्रहों की सापेक्ष शक्ति के बारे में रोचक
जानकारी है । इस प्रकार मंगल और शनि के बीच, एक दूसरे की
तुलना में अधिक शक्तिशाली वह हैं जो
लग्न का स्वामी है ।
चंद्रमा के साथ स्थित ग्रह
अधिक शक्तिशाली है । सूर्य मेष, सिंह, धनु, वृश्चिक
और कन्या राशि में शक्तिशाली है, तथा
धनु राशि में अधिक शक्तिशाली है |
तीसरा अध्याय जैमिनी के दृस्टी परिणामो को प्रस्तुत
करता है । यहाँ लेखक फलित ज्योतिष
के सिद्धांत को कारक के रूप
में और फिर प्रकृति, शक्ति और स्थिति के रूप मे व्यक्त करता है । सबसे
पहले, लग्न की ताकत हेतु शुभ ग्रहो का पता लगाएं । इन सभी को एक दूसरे से
जोड़ना एक ऐसा सिद्धांत है जिसे एक सामान्य ज्योतिषी कुछ भी भविष्यवाणी करने से
पहले उपेक्षा करता है और इस तरह इस प्रणाली को बदनाम करता है ।
चौथे अध्याय मे योग और उनके प्रभावों को निर्धारित
करने में, लेखक बताते हैं कि हम ग्रह पर विचार करने के
लिए सबसे महत्वपूर्ण हिस्से
को छोड़ देते हैं, परिणाम चंद्रमा द्वारा ली गई राशि का स्वामी कैसा है पता लगाया जा
सकता है । यह ग्रह शांत है
और इसके संबंध में अन्य सभी योगों को भी देखा जाना चाहिए । इस अध्याय में योग
का तकनीकी अर्थ ग्रहों की युति से
है । विभिन्न संयोजनों के परिणामों को स्पष्ट शब्दों में रेखांकित
किया गया है ।
पाँचवाँ अध्याय अर्गला की बहुप्रचारित
अवधारणा का एक स्पष्ट विवरण प्रस्तुत करता है । जैमिनी की प्रणाली के लिए अर्गला बुनियादी है और
इसमें हमे महारत
हासिल करनी होगी, भले ही हम जैमिनी ज्योतिष का अनुसरण करने की कोशिश न करे क्योंकि
अर्गाला ग्रहों की प्रकृति को काफी हद तक सही प्रदर्शित करता है ।
एक चर राशि में ग्रह की ताक़त एक चौथाई होती
है,स्थिर राशि
में ताकत आधी जबकि द्विस्वभाव राशि
में पूरी ताकत होती है, और उच्च में केवल तीन चौथाई । यह एक
मूल्यवान प्रत्यक्ष देखा
गया सिद्धांत है ।
अगला अध्याय हमें विभिन्न भावो की योजनाओं के
परिणामों की ओर ले जाता है । प्रथम में केतु को एक धर्म-गुणभिमानी (धर्म के गुणों
की सराहना करने वाला) बनाने के लिए कहा गया है बृहस्पति यहाँ एक दार्शनिक बनाते
हैं, और बुध बुद्धिमान और अच्छा वक्ता बनाते हैं |
शिक्षा का
परीक्षण चतुर्थ व 5वें
भाव से करना होता है ।
बुध मंगल की युति इनमें से किसी भी
घर मे आंध्र बनाता है,
बृहस्पति संग
युति संस्कृत बनाता है और शनि चंद्रमा संग द्रविड़ बनाता है।
दूसरे, चौथे
और ग्यारहवें भाव से धन प्राप्ति की भविष्यवाणी की जानी चाहिए ।
यदि चन्द्रमा छठे भाव में हो (जो की बुध का भाव हैं) या चंद्रमा 5
वें में बुध के साथ होतो लेखक
एक दत्तक संतान की भविष्यवाणी करता है, 5 वें भाव में केतु बेटियां देता है, जबकि
राहू पुत्र
देता है । पंचम भाव में सूर्य व्यक्ति को शिव के प्रति समर्पित बनाता है, बृहस्पति
व्यक्ति को शैव और ब्रह्मवादी बनाता
हैं । यदि राहु है तो दुर्गा की पूजा और केतु होतो चण्डेश्वर की पूजा करवाता
है यदि शनि अपने राशि का 5
वें स्थान पर होतो
वह माधव का अनुसरण करता है । यदि यह शनि गुरु से दृष्ट हो या उससे जुड़ा हो,
तो वह रामानुज का अनुसरण करता है और
यदि शुक्र से दृष्टि या संगति आती है, तो व्यक्ति श्री
वेंकटेश का
अनुसरण करता है । यह वास्तव में प्रासंगिक कुंडली के गहन अध्ययन पर आधारित होगा और यह लेखक के वैज्ञानिक दृष्टिकोण के पक्ष में
बहुत कुछ बताता है ।
बृहस्पति,शुक्र,चंद्रमा,केतु
और बुध ग्रह शुभ हैं,
जबकि अन्य चार ग्रह कौल
यानी (तांत्रिक) प्रवृत्तियों को इंगित करते
हैं जातक अभिचार कर्मो में रुचि रखता
है,मंगल
और केतु साथ होने पर जातक एक मांत्रिक बन जाता है ।
सूर्य और चंद्रमा की युति शिवदीक्षा (शिव को समर्पण) देती है,केतु और चंद्रमा
की युति देवी
सालिनी की पूजा करना बताती
है ।
छठे अध्याय में
पांच भावों का अध्ययन किया गया है, सप्तम अध्याय की शुरुआत छठे भाव से होती है । आठवें
में सामान्य सिद्धांत दिए गए हैं । ये आगे के अध्यायों में कई श्लोकों में हैं जो मूल्यवान हैं और लेखक कृष्ण मिश्रा की
अंतर्दृष्टि की गहराई को प्रकट करते हैं ।
दसवें अध्याय की
शुरुआत विभिन्न लग्नों के विवरण
से होती है । गणितीय गणनाओं की सहायता से लेखक दिखाता है
कि हम कैसे और क्या भविष्यवाणी कर सकते हैं ।
जैमिनी ज्योतिष में पाई जाने
वाली विभिन्न दशा प्रणालियों की व्याख्या ग्यारहवें अध्याय से की गयी है ।
तेरहवें अध्याय में ग्रहों के गोचर
(गोचर) के परिणामों के बारे में बहुमूल्य सुझाव दिये गए हैं ।
तेईसवें अध्याय
में फिर से एक विषयांतर है जो जन्म के समय को निर्धारित करता है की एक बच्चे को पूरी तरह से गर्भ से बाहर
निकल जाने पर जन्म समय लिया जाता
है बताया हैं यह अध्याय बालारिष्ट का एक
संक्षिप्त विवरण भी प्रस्तुत करता है ।
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